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अध्यात्म का आधार :
अन्तरशुद्धि
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आ
ध्यात्मिक विकास के लिए जो सहायक तथ्य है, उनमें अन्तरशुद्धि का महत्त्व शुरू से रहा है । अंतरशुद्धि को चित्तशुद्धि, मनशुद्धि के रूप में जाना जा सकता है । अंतरशुद्धि को सभी ने आवश्यक माना है । मन यदि मैला है तो मैले मन को लेकर उस परम सत्ता से मेल स्थापित नहीं हो सकता । कहा जाता है
अध्यात्म के झरोखे से
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परमात्मा हम से दूर नहीं । पर मैला मन मंजूर नहीं ॥
अंतरशुद्धि का अभिप्राय मन का निग्रह अथवा मनोनुशासन है । मन पर निग्रह, मन पर शासन, मन पर जय अध्यात्म को पुष्टि देता है । यह सत्य है कि मानव के पास सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व जो मन है, उसका दुरूपयोग जीवन को अभिशापों से ग्रस्त करता है । आज जन-जीवन में जो विविध समस्याएं पारिलक्षित होती हैं, उनमें अधिकांश समस्याएं मन के अनियंत्रण से हैं। किसी ने बहुत सुन्दर लिखा है
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत ।
स्पष्ट है जब व्यक्ति अपने आपको मन का गुलाम बना देता है तो वह हारता चला जाता है और ज्यों ही वह कुशल शासक की तरह मन के अश्व पर विवेकपूर्वक सवार होता है तो देखते ही
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