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M_अध्यात्म विकास के दो पहलू : व्यवहार और निश्चय
Fध्यात्म जीवन विकास के दो पहलू है अ व्यवहार और निश्चय । जीवन के आध्यात्मिक पक्ष को ज्योतिर्मय करने के लिए यह आवश्यक है कि पहले व्यावहारिक पक्ष को ज्योतिर्मय एवं उज्ज्वल बनाया जाए । यह तथ्य है कि जिसका व्यवहार ठीक है उसका निश्चय अंततः ठीक बन जाता है । व्यवहार के पक्ष को एकान्तः नकारना किसी भी दृष्टि से उपयुक्त नहीं है।
जैनागमों में साधक जीवन के दो प्रकार बताए गए है। "तंजहा आगारे धम्मे, अणगार धम्मे ।' आगार धर्म और अणगार धर्म अर्थात् श्रावक धर्म और श्रमण धर्म । यह स्पष्ट है कि श्रावक धर्म हो अथवा श्रमण धर्म दोनों के लिए जीवन जीने की एक व्यवस्थित पद्धति दी गई है। जीवन अंधाधुंध रूप से जीने का नाम नहीं है। व्यवस्थित, मर्यादित एवं संतुलित ढंग से जीवन जीकर के ही लक्ष्य को पाया जा सकता है । यह एक वास्तविकता है कि व्यावहारिक जीवन की सुदक्षता एवं कुशलता आध्यात्मिक जीवन की बुनियाद है ।
जैन दर्शन में जीव के नैतिक विकास की प्राथमिक शर्त है - यथार्थ का बोध, यथार्थ ज्ञान एवं यथार्थ आचरण, इन तीनों का समन्वय, इन तीनों की एकरूपता ही नैतिक विकास के मार्ग
188 - अध्यात्म के झरोखे से
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