Book Title: Adhyatma Ke Zarokhe Se
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 184
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपने आपसे कटता है तो उसका समूचा जीवन पीड़ाओं का, समस्याओं का आगार बन जाता है। तनाव का जीवन में प्रवेश होते ही सुख चैन और शांति समाप्त हो जाती है । तनावग्रस्त आदमी भीतर ही भीतर घुटन महसूस करने लगता है । तनावों से जो आवृत्त है, वह व्यक्ति कहीं भी रहे, उसकी शक्ति क्षीण होने लगती है । दफ्तर हो या घर तनाव के कारण उसकी नसे खिंची-खिंची सी रहती है । कभी कभी तो उसे ऐसा लगता है कि सिर में विस्फोट ही हो जाएगा । वैज्ञानिकों के अनुसंधान के पश्चात् स्पष्ट रूप से यह प्रकट हुया है कि तनाव से रक्तचाप, हृदयगति रूक जाना, पागलपन आदि अनेक बीमारियां जन्म लेने लगती है । तनाव के कारण घर नरक बन जाता है, सभी के साथ टकराव की स्थिति बन जाती है। सड़क पर चलते हुए लगता है कि पीछे आनेवाला हमारा दुश्मन है। कुल मिलाकर जीवन के साथ नकारात्मक दृष्टिकोण हो जाता है और मनुष्य हर जगह कांटों, कांच के टुकडों, नश्तरों और तेजाबी आंखों से घिरा रहता है । ऐसा व्यक्ति तन और मन की थकान से निरंतर टूटने लगता है | तनावों से ग्रस्त व्यक्ति-स्वस्थ नहीं, अपितु अस्वस्थ होता है । अस्वस्थ वह है जो स्व में स्थित नहीं है। स्व अर्थात् अपने आपमें स्थित होने पर कभी कोई भी तन और मन से नहीं टूटता । अपने आपमें, आत्मा में लीन व्यक्ति की सोच सम्यक् होती है । वह जानता है कि तनावों का कारण, मेरी अपनी बाह्य पदार्थों में, बाह्य वातावरण में अनुरक्ति एवं आसक्ति है। आत्मनिष्ठ, अध्यात्मनिष्ठ व्यक्ति सांयोगिक संबंधों एवं आत्यंतिक संबंधों को ठीक तरह से समझता है । विनाशी और अविनाशी, हेय और उपादेय, मर्त्य और अमर्त्य निज और पर जड़ और चेतन का जिसके पास सही बोध है, वह कभी भी क्षोभ ग्रस्त नहीं होता । अवरोध तभी तक रहते हैं जब तक बोध नहीं होता। किसी मनीषी विद्वान ने एक श्लोक के माध्यम से व्यक्त किया है - मानसानां पुनर्योनि, सुखानां चित्त विभ्रमः । अनिष्टोपनिपातो वा, तृतीय नोपद्यते ॥ अध्यात्म की उपेक्षा : तनाव का कारण - 183 For Private And Personal Use Only

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