Book Title: Adhyatma Ke Zarokhe Se
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Ashtmangal Foundation

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Page 179
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir TT ध्यात्मिक दृष्टि से संयम और तप मा का महत्त्व सुनिश्चित है । संयम और तप के प्रति जहां निष्ठा हैं, वहाँ अध्यात्म विकास में अवरोध ठहर नहीं पाते । आगमों में इस आशय की प्रेरक गाथाएं है । उत्तराध्ययन सूत्र की एक गाथा है - वरं मे अप्पा दंतो, संजमेण तवेण य । माहं परेहिं दम्मतो, बंधणेहिं वहेहिं य !! दुसरे वध और बंधन आदि से दमन करे इससे तो अच्छा है कि स्वयं ही संयम और तप के द्वारा अपनी इच्छाओं का दमन करें। अपने आप पर नियंत्रण करनेवाला ही अध्यात्म की अनुभूति करता है एवं लोक तथा परलोक में सुखी बनता है। समरांगण में हजारों शत्रुओं को परास्त करनेवाला कायर है यदि वह अपने आप पर नियंत्रण नहीं पर पाए। आध्यात्मिक विकास की शुरूआत स्वयं से होती है। स्वयं के सुधरते ही वातावरण सुधरने लगता है । स्वयं का परिष्कार, समूह का परिष्कार है। व्यक्ति का निखार, संपूर्ण समष्टि का निखार है । संयम की आराधना अन्य करें, तप से कोई अन्य जुड़े यह दृष्टिकोण अध्यात्म के क्षेत्र में मान्य नहीं है । प्रमुख एवं बुनियादी बात यह है कि तप से, संयम से, प्रत्येक पवित्र अनुष्ठान से हम स्वयं हार्दिकता पूर्वक जुड़े । 178 - अध्यात्म के झरोखे से _आध्यात्मिक दृष्टि से संयम और तप For Private And Personal Use Only

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