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- ध्यात्मिक विकास के लिए तत्त्वबोध जा नितांत अनिवार्य है । सम्पूर्ण भारतीय आध्यात्मिक वाङ्गमय का स्वर है कि सर्व प्रथम तत्त्व का सम्यक्बोध करो । अपने आपको पहचानों । अपनी अनंत शक्तियों का भान करो। फिर कुछ भी अज्ञान नहीं रहेगा । आत्मज्ञान ही श्रेष्ठ ज्ञान है।
आत्मबोध, आत्मज्ञान निर्वाण का द्वार है। ज्ञान-ज्योति के अभाव में स्वभाव के भीतर व्याप्त कामनाओं का अंधेरा छंट नहीं सकता है। कषायों के, विषमताओं के, मोह के अंधेरे को तोड़कर ही निःश्रेयस के परम आलोक में चेतना अंतर स्नान करती है । आध्यात्मिक उन्नयन के लिए तत्त्वबोध सर्वोपरी है । बोध का सूर्योदय होते ही अवरोध का तमस फुट जाता है।
अध्यात्म दृष्टि से तत्त्व तीन प्रकार के हैं - हेय, ज्ञेय और उपादेय । हेय, ज्ञेय और उपादेय किसे कहते हैं, कौन-कौन से तत्व, हेय, शेय
और उपादेय है, इसे ठीक तरह से समझ लेना चाहिए । अगली पंक्तियों में इस तथ्य को मैं स्पष्ट कर रहा हूँ -
• जो जानने योग्य है, वह ज्ञेय तत्त्व है। • जो छोड़ने योग्य है, वह हेय तत्त्व है।
• जो ग्रहण योग्य है वह उपादेय तत्त्व है। 136 - अध्यात्म के झरोखे से
o_आध्यात्मिक दृष्टि से तत्त्व मीमांसा
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