Book Title: Acharanga Sutram Uttar Bhag
Author(s): Tattvadarshanvijay, 
Publisher: Parampad Prakashan

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Page 193
________________ च्छिजा जे तेण सयमेसित्तए पीढे वा फलए वा. सिज्जा वा संधारए वा तेण ते साहम्मिए अन्नसंभोइए समणुग्ने उवनिमंतिजा नो चेवणं परवडियाए ओगिजिमय उवनिमंतिजा ॥से आगंतारेसु वा ४ जाव से किं पुण तत्थुग्गहंसि एवोग्गहियसि । जे तत्थ गाहावईण वा गाहा० पुत्ताण वा सूई वा पिप्पलए वा कण्णसोहणए वा नहच्छेयणए वा तं अप्पणो एगस्स अट्ठाए पाडिहारियं जाइत्ता नो अन्नमनस्स दिज वा अणुपइज वा, सयंकरणिजंतिकटू, से तमायाए तत्थ गरिछज्जा २ पुठवामेव उत्ताणए हत्थे कटु भूमीए वा ठवित्ता इमं खलु २ त्ति आलोइजा, नो चेव णं सयं पाणिणा परपाणिसि पञ्चप्पिणिजा ॥ (सू० १५७) पूर्वसूत्रवत्सर्व, नवरमसाम्भोगिकान् पीठफलकादिनोपनिमन्त्रयेद, यतस्तेषां तदेव पीठिकादिसंभोग्यं नाशनादीनि ॥ किञ्च-तस्मिन्नवग्रहे गृहीते यस्तत्र गृहपत्यादिको भवेत् तस्य सम्बन्धि सूच्यादिक यदि कार्यार्थमेकमात्मानमुद्दिश्य गृहीयात् तदपरेषां साधूनां न समर्पयेत् , कृतकार्यश्च प्रतीपं गृहस्थस्यैवानेन सूत्रोक्तेन विधिना समर्पयेदिति ॥ अपि च से भि० से जं० उग्गहं जाणिज्जा अणंतरहियाए पुढवीए जाव संताणए तह० उग्गहं नो गिहिजा वा २॥ से भि० से जं. पुण उग्गहं थूणसि वा ४ तह, अंतलिक्खजाए दुबद्धे जाव नो उगिहिज्जा वा २॥ से मि० से जं. कुलियसि वा ४ जाव नो उगिहिज्ज वा २ ॥ से मि० खंधंसि वा ४ अनयरे वा तह० जाव नो उग्गहं उगिहिज वा २ ॥ से मि० से जं. पुण. ससागारियं० सखुस्पसुभत्तपाणं नो पनस्स निक्खमणपवेसे जाव धम्माणुओगचिंताए, सेवं नच्चा तह. उवस्सए ससागारिए, नो उबग्गहं उगिण्हिज्जा वा २ ।। से भि० से जं० गाहावइकुलस्स मझमझेणं गंतुं पंथे पडिबद्धं वा नो

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