Book Title: Acharanga Stram Part 05
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 241
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org 15 तेमां मोती हीरा जड्या होय-गुंथ्या होय] तथा आभरण विचित्र गिरि विडक विगेरेथी विभूषित कर्या हाय, तथा तेवां बीजां भारे || चामडांथी बनावेल भारे किंमतनां सुंदर वस्त्रो मळतां होय तोपण लेवां नहि. हवे वस्त्र ग्रहणना अभिग्रहनी विशेष विधिने कहे छे. आचा० सूत्रम् इच्छेइयाई आयतणाई उवाइकम्म अह भिक्खू जाणिज्जा चउहि पडिमाहि वत्थं एसित्तए, तत्य खलु इमा पढमा पडिमा, ॥१०२६॥ से भि०२ उद्देसि वयं जाइज्जा, तं०-जंगियं वा जाव तूलकडं वा, तह० वत्थं सयं वा ण जाइज्जा, परो. फामुयं० ॥१०२६॥ पडि०, पढमां पडिमा १। अहावरा दुच्चा पडिमा-से मि० पेहाए वत्थं जाइज्जा, गाहावई वा० कम्मकरी वा से पुवामेव आलोइज्जा-आउसोत्ति वा २ दाहिसि मे इत्तो अन्नयरं वत्थं ?, तहष्प० वत्थं सयं वा० परो० फासुयं एस० लाभे० पडि०, दुच्चा पडिमा २। अहावरा तच्चा पडिमा-से भिक्खू वा० से नं तं पुण. अंतरिजं वा उत्तरिज्जं वा तहप्पगारं वत्थं सयं० पडि०, नचा पडिमा ३। अहावरा चउत्था पडिमा-से. उज्झियधम्मियं वत्थं जाइज्जा जं चऽन्ने बहवे समण वणीमगा नावकखंति तहप्प. उज्झिय वत्थ सयं परो० फासुयं जाव प०, चउत्थापडिमा ४ इञ्चेयाणं चउण्हं पडिमाणं जहा पिंडेसणाए । सिया णं एताए एसणाए एसमाणं परो वइज्जा-आउसंतो समणा ! इजाहि तुमं मासेण वा दसराएण वा पंचराएण वा सुते मुततरे वा तो ते वयं अन्नयरं वत्थं दाहामो, एयप्पगारं निग्धोसं सुच्चा नि० से पुच्चामेव आलोइज्जा-आउसोत्ति वा ! २ नो खलु मे कप्पइ एयप्पगारं संगारं पडिसुणित्तए, अभिकखसि मे दाङ इयाणिमेव दलयाहि, से णेवं वयंत परो वइज्जा-आउ० स०! अणुगच्छाहि ती ते वयं अन्न वत्थं दाहामो, से पुवामेव आलोइज्जा-आउसोत्ति ! वा २.नो खलु मे कप्पइ संगारवयणे पडिमुणित्तए०, से सेवं वयंत परो णेया वइज्जा-आउसोत्ति CRECIRC- AAAAAESARGAON CRACCI) For Private and Personal Use Only

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