Book Title: Acharanga Stram Part 05
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आचा० ॥१०८१॥
www.kobatirth.org
मुज्ञपुरुषो भव्यात्माओने बचाववा उपदेश आपे छे के जीवहिंसा विगेरे पापो बाळक बुद्धिना माणसो प्रथम डरीने छुपां | करे छे. के रखेने मारी लोकमां निंदा थशे, पण त्यां कुटेव न छुटे तो पछी अपेक्षा विचारी कुयुक्ति लगाडीने जाहेर पाप करे छे, त्यार पछी निःशंक थइने लज्जा दयाने छोडी नवां नवां पाप करे छे, अने छेवटे पापना अभ्यासथी हमेशां पापमांज रमे छे.
प्रशस्त भावना.
दंसणनाणचरिते तववेरग्गे य होइ उ पसत्था । जा य जहा ता य नहा लक्खण बुच्छं सलक्खणओ ॥ ३२९ ॥ दर्शन ज्ञान चारित्र तप वैराग्य विगेरेमा जे प्रशस्त भावना होय छे, ते प्रत्यकने लक्षणत्री कहीश.
दर्शन भावना.
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तित्थगण भगवओ पत्रयणपावयणि अइसइङ्काणं । अभिगमणनमणद रिसण कित्तणसंपूणाथुणणा ॥ ३३० ॥ तीर्थकर मञ्जु बार अंग (जैन सिद्धांत) जेनुं बीजुं नाम गणिपिटक ( भगवंतना वचन रूप रत्नोने राखवानो पेटारो ) तथा मावचनि ते गणधरो तथा महान प्रभाविक आचार्यो युग प्रधांनो तथा अतिशय ऋद्धिवाळा केवलज्ञानी मनःपर्यव तथा अवधिज्ञान तथा चदपूर्वी तथा आमर्श औषधि लब्धिधारक मुनिओ विगेरेनुं बहु मान करवा सामे जड़ने दर्शन कर तेमना उत्तम गुणोने | प्रशंसवा. सुगंधथी पूजन स्तोत्र वडे स्नवन करं, ( आमां देव मनुष्यने जे उचित होय ते करबु . )
आ प्रमाणे हमेशां करवाथी दर्शन शुद्धि थाय छे,
जम्मा भिसेयनिक्खमणचरणनाणुप्पया य निव्वाणे । दियलो अभवणमंदरनंदीसरभोमनगरेसुं ।। ३३१ ।।
For Private and Personal Use Only
सूत्रम् ॥१०८१ ॥

Page Navigation
1 ... 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328