Book Title: Acharanga Stram Part 05
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 297
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra IA Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करन सत्रम ॥१०८२॥ www.kobatirth.org अट्टावयमुजिते गयग्गपयागपयए य धमचके य । पासरहावंतनगं चमरुपायं च वंदामि ।। ३३२ ।। तीर्थकरोनी जन्मभूमि, दीक्षा लेवाना वरघोडामां, चारित्र लीधुं ते जग्या, तथा केवळ ज्ञान तथा निर्वाण भूमि, तथा देवलोकमां आचा० मेरु पर्वत, नंदीश्वर द्वीप विगेरे तथा पाताळनां भवनोमां जे शाश्वता जिनेश्वरनां विंधो छ, तथा अष्टापद गिरनार दशाणर्णकूटमा ॥१०८२॥ तथा तक्षशिलामां धर्म चक्रना स्थानमां, तथा अहिछत्रा नगरीमा ज्यां धरणेंद्रे पार्श्वनाथ प्रभुनो महिमा को छे, तथा रथावत पर्वत्त ज्यां वज्र स्वामिए पादपोपगमन अणशण कर्यु छ, तथ ज्यां वर्धमान स्वामीने आश्रयी चमरेंद्रे उत्पतन कयु छे. आ बधा से स्थानोमा जइने यथायोग्यपणे वंदन पूजन स्तवन ध्यान करवाथी दर्शन शुद्धि थाय छे. गणियं निमित्त जुत्ती संदिही अवितहं इमं नाणं । इय एग मुवगया गुणपञ्चाया इमे अत्था ।। ३३३॥ व गुणमाहप्पं इसिनामकित्तणं सुरनरिंदपूया य । पोराणचेइयाणि य इय एसा दंसणे होइ ।। ३३४ ॥ नैन सिद्धांतने जाणनारा जे महान साधुपुरुषो छे. तेमनामां गुणने आश्रयो आ बाबतो छे, जेमके बीजगणित विगेरेमां कोई पार पामेलो होय तथा ज्योतिषना आठे अंगमां पत्रीण होय तथा दृष्टिवाद नामना बारमा अंगमां बतावेल तमाम दर्शनोनी बतावेली ४/ जुदी जुदी युक्तिओने पोते जाणे अथवा द्रव्यना संयोगोने अथवा हेतुओने जाणे. तथा सम्यग् ("अविपरीत" ) दृष्टि होय के जेथी देवताओथी पण पोते चलयमान् न थाय. व तथा अवितथ जेनुं ज्ञान होय आवा पवित्र आचार्य विगेरेना गुणोनी प्रशंसा करतां पोताना आत्मानी श्रद्धा निर्मळ थाय छ, 13/ तेज प्रमाणे कोइ पण गुण- वर्णन करतां ते पवित्र पुरुषना गुणो मळे के, तथा मंदबुद्धिवाळाने तेवा गुणो कीर्तन न थाय तो For Private and Personal Use Only

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