Book Title: Acharanga Stram Part 05
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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आघा० ॥११०१ ॥
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| देवच्छेदकनी बच्चोवच्च मध्य भागे एक तेलुंज रमणीय पादपीठिका सहित एक महान् सिंहासन त्रिकुर्यु पछी ज्यां भगवान हता, त्यां आवीने भगवाननी त्रणवार प्रदक्षिणा करी बांदी नमी भगवानने लड़ ज्यां देवच्छेदक हतुं त्यां आवी धीमे धीमे पूर्व दिशा सामे भगवान ने सिंहासनमा बेसाड्या पछी शतपाक अने सहस्रपाक तैलोबडे मर्दन करी गंधकापायिक वखवडे लुंछीने पवित्र पाणीथी नवरात्री लक्षमूल्यवाळु थंड रक्तगोशीर्षचंदन घसी तैयार करी लेना वडे लेपन कर्यु. त्यारवाद निश्वासना लगारेक वायुथी चलायमान थनारा, खणायलां नगर के पाटणमां बनेलां, चतुर जनोमां वखणाएलां, घोडानां फीण जेवां मनोहर, चतुर कारीगरीए सोनाथी खंचेला, हंस समान स्वच्छ वे वस्त्रो पहेराव्यां. पछी हार, अर्धहार उरस्थ, एकावळि मांलंब, सूत्रपट्ट, मुकुट तथा रत्नमाळादि आभरणो पहेराव्यां. पछी जूदी जूदी जातनी फूलनी मालाओथी पुष्पतरुना माफक शणगार्या पछी इंद्रे पाछो बीजीवार वैक्रिय समुद्घात करी हजार जण उपाडी शके एवी एक महान् चंद्रप्रभा नामे शित्रिका विकुर्थी. ए शिविकानुं वर्णन आ प्रमाणे - ए शिविका इहामृग, बळद, घोडा, नर, मगर. पक्षी, वानर, हाथी, रुरु, सरभ, चमरीगाय, वाघ, सिंह, वननी लताओ, तथा अनेक विद्याधरयुग्मना यंत्रयोगे करी युक्त हती तथा हजारो तेज राशिओथी भरपूर हती, रमणीय अने झगझगायमान हजारो चित्रामणोथी भरपूर अने देदीप्यमान अने आंखथी सामे नहि जोड़ शकाय तेवी हती अनेक मोतीओोथी विराजित सुवर्णमय प्रतरवाळी हती तथा झूलती मोतीओनी माळा, हारो अर्द्धहार, विगेरे भूषणोथी शोभती हती, अतिशय देखना लायक हती, पद्मलता, अशोकलता विगेरे अनेक लताओधी चित्रित हती. शुभ तथा मनोहर आकारवाळो हती. अनेक प्रकारनी पंचवर्णी मणिओवाळी घंटा तथा पताकावडे शोभीता अग्रभागवाळी हती तथा मनोहर देखवालायक अने सुंदर आकारवाळी हती.
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सूत्रम् ॥११०१ ॥

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