Book Title: Acharanga Stram Part 05
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 319
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥११०४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जे दिने भगवानने केवलज्ञान दर्शन उपन्यां ते दिने भवनपत्यादि चारे जातना देवदेवीओ आवतां जतां आकाश देवमय तथा घोलुं थइ रं. ए रीते उपजेलां ज्ञान दर्शनने धरनार भगवाने पोताने तथा लोकने संपूर्णपणे जोड़ने पहेलां देवाने धर्म कही संभळाव्यो, अने पछी मनुष्यने. पछी उपजेला ज्ञान दर्शनना धरनार श्रमण भगवान महावीरे गौतमादिक श्रमण निर्धन्धोने भावना सहित पांच महाव्रत तथा पृथ्विकाय विगेरे छ जीवनिकाय कही जणाव्या. (पांच पांच भावना सहित पांच महाव्रत) दीक्षा लेनार साधुए आम बोलं - पहेले मात्रत - हे भगवान् ! हुं सर्व प्राणातिपात त्याग करूँ हुँ, ते ए रीते के सूक्ष्म के के बादर, त्रस के स्थावर जीवनो यावज्जीव पर्यंत मन वचन कायाए करी त्रिविधे त्रिविधे पोते घात न करीश, बीजा पासे न करावीश अने करताने रुडुं न मानीश तथा ते जीवघातने पडिक छु, निहुं हुं गरहुं हुं अने तेवा स्वभावने वोसरावं छं भावना कहे छे. इरियासमिए से निग्गंथे नो अणइरियासमिएत्ति, केवली बूया० - अणइरियासमिए से निग्गंथे पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई अभिहणिज्ज वा वत्तिज्ज वा परियाविज्ज वा लेखिन वा उदविज्ज वा इरियासमिए से निग्गंथे नो इरिया असमइत्ति पढमा भावणा १ । अहावरा दुच्चा भावणामणं परियाणा से निम्गंथे, जे य मणे पात्रए, सावज्जे सकिरिए अण्हयकरे छे करे भेयक अहिगरणिए पाउसिए पारियाए पाणाइवाइए भूभवचाइए, तहप्पगारं मणं नो पधारिजा गमणाए For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥११०४॥

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