Book Title: Acharanga Stram Part 05
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 320
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥११०५॥ www.kobatirth.org मणं परिजाइ से निग्गंथे, जे य मणे उपावएत्ति दुच्या भावणा २ । अहावरा तथा भावणा - बई परिजाणइ से निग्गंथे, माय वई पात्रिया सावज्जा सकिरिया जाब भूओवघाइया तहपगारं वई नो उच्चारिता, जे बई परिमाणइ से निम्गंथे, जान व अप्पावियत्ति तच्चा भावणा ३ । अहावरा चउत्था भावणा- आयाणभंडम त्तनिक्खेवणासमिए से निम्गंथे, नो अणायाणभंडमनिक्खेवणासमिए, केवली ब्रूया० - आयाण भंडमत्त निक्खेवणा असमिए से निम्गंथे पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई अभिहणिज्जा वा जाव उद्दविज्ज वा तम्हा आयाणभंडमत्त निक्खेवणासमिए से निग्गंथे, नो आयाणभंड निक्खेवणा समिति चउत्था भावणा ४ | अहावरा पंचमा भावणा-आलोइयपाणभोयणभोई, से निग्गंथे नो अणालोइयपाणभोणभोर, केवली वूया० - अणालोईयपाणभायणभाई से निग्गंथे पाणाणि वा ४ अभिहणिज वा जान उद्दविज वा तुम्हा आलोइयपाणभोयणभोई से निग्गंथे नो अणालोइयपाणभोयणभाईसि पंचमा भावणा ५ । एयात्रता महत्रए सम्भं कारण फासिए पालिए तीरिए किट्टिए अवट्ठिए आणाए आराहिए यावि भवइ, पढमे भंते! महत्व पाणावायोओ वेरमणं || अहावरं दुच्चं महत्वयं पच्चक्रखामि सव्वं मुसावार्थ वइदोस से कोडा वा लोहा वा भया वा हासा वा नेव सयं मुसं भासिज्जा नेवणं मुखं भासाविज्जा अनंपि मुसं भासतं न समणुमन्भिज्जा तिविहं तिविद्देणं मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पटिकमामि जान वोसिरामि, तस्सि माओ पंच भावणाओ भवति तन्थिमा पढमा भावणा-अणुबीमासी से निग्गंथे नो अणणुवी इभासी, केवली वूया० - अणणुवीभासी से निग्गंथे समावज्जिज्ज मोसं वयणाए; अणुत्री भासी से निग्गंथे नो अणणुवी भासित्ति पदमा भावणा । अहावरा दुच्चा भावणा-काहं परियाण से निगं ये For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥११०५ ॥

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