Book Title: Acharanga Stram Part 05
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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आचा०
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पांचमी भावना ए के निचे आहारपाणी जोड़ने वापरवां, वगर जोए न वापरवां केमके केवली कहे छे के बगर जोए आहारपाणी वापरनार निर्बंथ प्राणादिकनो घात विगेरे करे माटे निर्ग्रथे आहारपाणी जोडने
वापरai. नहि के वगर जोड़ने
ए पांचमी भावना.
ए भावनाओथी महाव्रत रुडीरीते कायाए स्पर्शित, पालित, पार पाडेल, किर्त्तित, अवस्थित अने आज्ञा प्रमाणे आराधित थाय छे. ए पहेलुं प्राणातिपात विरमणरूप महाव्रत छे ते हुं स्वीकारुं छु
बीजुं महाव्रत - " सघळं मृषावादरुप वचनदोष त्याग करूं छं एटले के, क्रोध, लोभ, भय, के हास्यथी यावज्जीव पर्यंत त्रिविधे त्रिविधे एटले मन वचन कायाए करी मृपाभाशण करूं नहि, कराखुं नहि. अने करताने अनुमोदु नहि तथा ते मृषाभाषणने | पडिक छु. निंदुं हुं गहुँ छु अने तेवा स्वभावने वोसराकुं हुं तेनी आ पांच भावना छे
त्यां पेली भावना आ, निर्ग्रथे विमासीने बोलवु वगर विचारे न बोलबुं; केमके केवळी कहे छे के बगर विमासे बोलनार निर्ग्रथ मृषा वचन बोली जाय माटे निर्बंथे विमासीने बोलवु नहि के बगर विमासे ए पेली भावना. बीजी भावना ए के निग्रंथे क्रोधनुं स्वरूप जाणी क्रोधी न थवं केमके केवली कहे छे के क्रोधी जीव मृषा बोली जाय माटे निर्ग्रथे क्रोधनुं स्वरुप जाणी क्रोधी न थवं ए बीजी भावना. त्रीजी भावना ए के निर्ग्रथे लोभनुं स्वरुप जाणी लोभी न थः केमके केवली कहे छे के लोभी जीव मृषा बोली जाय माटे निर्ग्रथे लोभी न थनुं ए त्रीजी भावना. चोथी भावना ए के निर्ग्रथे भयनुं स्वरूप जाणी भयभीरु न थ; केमके केवली कहे छे के भीरु पुरुष मृषा बोली जाय माटे भीरु न थ ए चोथी भावना. पांचमी भावना ए के हास्यनुं
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सूत्रम्
।। ११११ ॥

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