Book Title: Acharanga Stram Part 05
Author(s): Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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तेवा पूर्व महर्षिनां नामो लेबाथी पण धर्ममां श्रद्धा थाय छे, अथवा तेवा पुरुषने सुरनरना स्वामिओए पूज्या ते कथा सांभळतां आचाका अथवा पुराणां चैत्योने पूजवाथी के तेवी बीजी क्रिया करवाथी तेओने गुणोनी वासना मळनाथी दर्शन शुद्धि थाय छे, ते दर्शननी । सुत्रम् | प्रशस्त भावना के.
ज्ञान भावना. ॥१०८३॥ ततं जीवाजीचा नायन्ना जागणा इहं दिट्ठा । इह कनकरणकारगसिद्धी इह बंधमुक्खो य ॥ ३३५ ॥
॥१०८३॥ बद्धो य बंधहेउ बंधणबंधप्फलं सुकहियं तु । संसारपवंचोऽवि य इडयं कहिओ जिणवरेहिं ।। ३३६ ॥
नाणं भविस्सई एवमाइया वायणाइयाओ य । सज्झाए आउत्तो गुरुकुलबासो य इय नाणे ॥ ३३७ ॥ जीनेश्वरनुं वचन जेवी रीते पदार्थों छे तेवी रीते संपूर्ण पदार्थो वर्णन करे छे, तेथी ते पाचन कहेवाय छे. अने ते ज्ञान 8
भणबाथी मोक्षनुं प्रधान अंग सम्यकदर्शन प्रगट करे छे. कारण के तत्वोनुं स्वरूप जाणीने तेमां श्रद्धा करवी तेज सम्यग । दर्शन के. जीव, अजीव, पुन्य, पाप, आश्रत्र, संपर बंध, निर्जरा अने मोक्ष ए नव तत्त्वो छे, ते नव पदार्थोने नवतत्व ज्ञानना अर्थीए हाबरोबर जाणवा जोइए अने ते जाणवानुं साधन जिनेश्वरना वचनमाज छे. व बळी आ जिनवचनमांज परमार्थ रुप छेवटचें कार्य मोक्ष छे ते मोक्ष मेळववानी क्रिया करवामां महान उपकारक सम्यगदर्शन दज्ञान-चारित्र मुख्यपणे छे,
कारक (क्रिया करनारो) साधु सभ्यग दर्शन विगेरेनुं अनुष्ठान बरोबर करनार छे अने ते प्रमाणे क्रिया करवाथी आज जैन, दर्शनमा छेवटे मोक्षनी प्राप्ति के तेज क्रियासिद्धि जाणवी तेने बतावे के.
RECAUGU
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