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औचा०
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टीकाकारे आ मूत्रनो अर्थ पूर्व माफक होवाथी विशेष लख्यो नथी. ते साधु मुसाफरखाना विगेरेमां उतरेलो होय त्यां बीजा उत्तम साधुओ आवे. पण जो तेमनी समाचारी जुदी होय तो गोचरीनो व्हेवार न होवाथी फक्त पीठ फलक विगेरेनी निमंत्रणा करे, वळी ते घरमाथी घरघणी पासे के तेना पुत्र पासेथी कारण विशेषे मुड़ अस्त्रो कान खोतरणी अथवा नयणी पोताना माटे याची होय, तो एके बीजाने आपकी नहि, तेम लेवी नहि, पण ज्यारे पोतानुं कार्य पूरुं थाय, त्यारे पोते जाते जइगे पोताना | हाथमां इथेळीमां राखीने कहे के आ तमारी वस्तु सूइ विगेरे लो, पण जो ते स्त्री विगेरे होय तो जमीन उपर मुकीने कहें के आ तमारी वस्तु लो, पण साधुए गृहस्थ के स्त्रीने हाथोहाथ आपकी नहि ( वखते लागी जाय )
से भि० से जं० उग्गहं जाणिज्जा अनंतरहियाए पुढवी जाव संताणए तह० उग्गहं नो गिव्हिज्जा वा २ ।। सेमि जंण उग्गहं सिवा ४ तह० अंतलिक्खजाए दुबद्धे जात्र नो उगिण्डिज्जा वा २ ।। से भि० से नं० कुलियंसि बा ४ जाव नो उगिण्डिज्ज वा २ ।। से मि० खंसि वा ४ अन्नयरे वा तह० जाव नो उग्गहं उगिण्हिज्ज वा २ । से भि० से जं> पुण० ससागारियं० सखुपसुभन्तपाणं नो पनस्स निक्खमणपवेसे जात्र धम्माणुओगचिंताए, सेवं नच्चा तह० उबस्सए ससागारिए० नो उवग्ग उगिण्डिज्जा वा २ || से भि० से जं० गाहावइकुलस्स मज्झंमज्झेणं गंतुं पंथे पडिबद्धं वा नो पन्नस्स जाव सेवं न० ॥ से भि० से जं० इह खलु गाहावई वा जाव कम्मकरीओ वा अन्नमन्नं अकोसंति वा तव तिल्लादि सिणाणादि सीओदगविग्रडादि निगिणाइ वा जहा सिज्जाए आलावगा, नवरं उग्गहवरान्वया || से भि० से जं० आइन्नसलिक्खे नो पन्नस्स० उगिण्डिज्ज वा २, एयं खलु० ॥ ( मू० १५८ ) उग्गहपडिमाए पढमो उद्देशो
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सूत्रम्
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