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आचा०
॥ १०५८ ॥
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निपीथिका – 'बोजु अध्ययन'
पहेलुं अध्ययन कहीने वीजुं कहे छे, तेनो संबंध आ छे के गया अध्ययनमा स्थान तान्युं ते केधुं होय तो भगवाने योग्य थाय, अने ते स्वाध्याय भूमिमां शुं करवु, शुं न करवं, ते अहीं कहेशे, आ संबंधे आ अध्ययन आव्युं छे. एना चार अनुयोगद्वार थाय छे, तेनुं नाम निष्पन्न निक्षेपामां "निपीथिका " एवं नाम छे, आ निपीथिकानो नाम स्थापना द्रव्य क्षेत्र काळ भाव छ प्रकारे निक्षेपो छे, नाम स्थापना पूर्व माफक छे, द्रव्य निषीथनो आगमथी ज्ञशरीर भव्यशरीर छोडीने जे द्रव्य प्रच्छन्न (छानुं) होय ते छे, [टीकाना संशोधके टीपणामां लख्युं छे के निशीथ निषीध वनेनुं प्राकृतमां एक 'निसीह' शब्द वडे बोलतं होवाथी एज प्रमाणे निक्षेपानुं वर्णन छे, तेज प्रमाणे निपीधिका निशीथिका बने नामनुं एकपणुं छे. क्षेत्र निपीय ते 'ब्रह्मलोक' नामना देवलोकमा रिष्ट विमाननी पासे 'कृष्ण राजाओ' जे क्षेत्रमां छे, ते तथा जे क्षेत्रमां निपीयनुं वर्णन चाले ते काळनिषीथ ते कृष्ण [ काळी अंधारी ] रात्रिओ अथवा जे काळे निषीधनुं वर्णन चाले,
भावनिषीथ 'नो आगमथी' आ कहेवातुं मूत्रनु अध्ययनज छे, कारण के ते आगमनो एक देश छे, नाम निष्पन्न निक्षेपो पुरो थयो, इवे सूत्रानुगममां सूत्र कहे छे,
से भिक्खु वा २ अभिक० निसीहिये फासूयं गमणाए से पुण निसीहियं जाणिज्जा - सअंडं तह० अफा० नो चेइस्सामि || से भिक्खू० अभिकं खेज्जा निसीडिय गमणाए, से पुण नि० अप्यपाणं अप्यवीयं जाव संताणयं तह० निसीहियं फासूयं areसामि, एवं सिज्जागमेणं नेयव्वं जाव उदयप्पनूया ॥ जे तत्थ दुवम्गा तिवग्गा चउवरगा पंचवरगा वा अभिसंधा
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सूत्रम् ||१०५८॥