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आचा०
॥१०४१॥
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बीजो उद्देशो.
पहला उद्देशा साथै आनो संबंध आ छे, के गया सूत्रमां पात्रांतुं जो बतायुं, अने अहीं पण तेनुंज बाकीनुं बनावे छे, आ संबंधे आवेला उद्देशानुं आ पहेलुं सूत्र छे.
से भिक्खू वा २ गाहावइकुलं पिंड पविट्टे समाणे पुब्वामेत्र पेहाए पडिग्गहगं अव पाणे पमज्जिय स्यं तओ सं० गाहावई० पिंड० निक्ख० प० प०, केवली०, आउ० ! अंतो पडिग्गहगंसि पाणे वा बीए वा हरि० परियात्रज्जिज्जा, अह भिक्खूणं पु० जं पुन्त्रामेव पेढाए पडिग्गहं अवहट्ट पाणे पमज्जिय रयं तभ सं० गाहावइ० निक्खमिज्ज वा २ ॥ ते भिक्षु गृहस्थना घरमा गोवरी लेवां जतां पहेलां बरोबर रीते पात्रां तपासे, अने गोचरी लेता पहेला पण तपासे, अने कीडी विगेरे प्राणी चडेलुं जोए तो तेने संभाळीने बाजुए मुके, तथा रज पूंजीने साधु गृहस्थना घरमा पेसे, अथवा नीकळे, तेथी | आपणा पात्रांनीज विधि छे, कारण के अहीं पण प्रथम पात्रां बरावर तपासीने पूंजीने पिंड लेवो, तेथी ते पण पात्रां संबंधीज | विचार छे, म० पात्रां शामाटे पूंजीने गोचरी लेवी ? उ-केवळी प्रभु पात्रां पूंज्या विना गोचरी लेतां कर्मबंध बतावे छे ते आ प्रमाणे छे.
पात्रामा बेइंद्रिय विगेरे जीवो चडी जाय ले, अथवा बीजो अथवा रज होय तेवां पात्रामां गोचरी लेतां कर्मनुं उपादान थाय छे, माटेज साधुओने आ प्रतिज्ञा विगेरे पूर्व बतावेल ले के, प्रथम पात्रां देखीने जीव जंतु के रज होय तो दूर करीने गृहस्थना
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सूत्रम् ॥१०४१॥