Book Title: Abhidhan Chintamani Kosh
Author(s): Vijaykastursuri
Publisher: Vijay Nemi Vigyan Kastursuri Gyanmandir

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Page 718
________________ रक्षित रक्षिवर्ग रक्षोघ्न रक्षण कु रु " रङ्गमातृ नाजीव " शावतारक रचना " जक रजत " (»): रजतादि रजनी (रजनीकर) रजनीद्वन्द्व श्लोकाङ्कः १५२३ १४९७ ७२२ ४१६ १५२३ १२९३ २८२ १०४२ ६८५ ३२८ ९२१ ३२८ ६५३ रतव्रण १४९९ ९१४ १०४३ १०४५ १०६३ १०२८ १४२ १०५ १४४ ५३६ ९.७० १०४२ - शे. १२८२ शब्दानुक्रमणिका अनु ११ शब्दः रजस्वला रजोबल रज्जु रञ्जन रण "" रणरणक रणसंकुल रणेच्छु रण्डा रत रतकील रतशायिन् रतान्दुक रतावुक रति " "" " ( रतिपति) (रतिवर) रतोद्वह रन्त रत्नकर रत्नगर्भ श्लोकाङ्कः ५३४ १४६- शे. ९२८ ६४२ ७९६ १४०० ३१४ ७९ रत्नसानु १३२५- शे. ५३१ - शि. ५३६ १२८० १२८० १२८० १२८० ६०८ - शे. ७२ २२९ २९५ शब्दः रत्नगर्भा रत्नप्रभा रत्नबाहु रत्नमयध्वज रत्न मुख्य (रत्नराशि) रत्नवती ५३७ २२९ २२९ १३२१ - शे. १०६३ १८९ १९० - शे. रत्नसू रत्नाकर रनि रत्नपृष्ठक रथ ލވ "" रथकट्या रथकार रथकारक रथकुटुम्बिक रथकृत् गर्भक रथगुप्त 'रथ ु ' रथद्रुम रथपाद रथहिन् १६१ श्लोकाङ्कः ९३७ १३६० २१९ - शे. ६१ १०६५ १०७४ ९३८ शि. १०३२ ९३७ १०७४ ५९९ ५९० - शे. ७:१ ७५१ ११३७ १४२२ ९१७-शि. ८९९ ७६० ९१७ ७९३ : ७५८ ११४२ ११४२ ७५५ ७६१

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