Book Title: Abhidhan Chintamani
Author(s): Hemchandracharya, Nemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

Previous | Next

Page 18
________________ ( १७ ) अनुकरण पर गुजरात में हर प्रकार की उन्नति करने का इच्छुक था । उस समय मालव में राजा भोज का सरस्वतीप्रेम प्रसिद्ध था । भोजराज संस्कृत का स्वयं प्रकाण्ड पण्डित था । विद्वानों को राजाश्रय देकर शैक्षणिक और सांस्कृतिक विकास के लिए अहर्निश प्रयास करता रहता था । इस कार्य में उसे हेमचन्द्र से अपूर्व सहयोग मिला । हैमी प्रतिभा का स्पर्श पा गुजरात की सांस्कृतिक एवं साहित्यिक चेतना उत्तरोत्तर विकसित होने लगी । सिद्धराज के आदेश से हेमचन्द्र ने सिद्धहैम नाम का एक नया व्याकरण ग्रन्थ लिखा, यह ग्रन्थ गुजरात का व्याकरण कहलाता है । इस मन्थ को तैयार करने के लिए कश्मीर से व्याकरण के आठ ग्रन्थ मंगवाये गये थे' । आचार्य हेमचन्द्र और सिद्धराज समवयस्क थे। सिद्धराज का जन्म हेमचन्द्र से दो वर्ष पूर्व हुआ था। दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी । सिद्धराज राष्ट्रीय नेता, शासक, संरक्षक के रूप में सम्माननीय थे तो हेमचन्द्र धार्मिक, चारित्रिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से प्राणदायी थे । आचार्य हेमचन्द्र और कुमारपाल हेमचन्द्र का कुमारपाल के साथ गुरु-शिष्य का सम्बन्ध था । उन्होंने सात वर्ष पहले ही कुमारपाल को राज्य प्राप्त होने की भविष्यवाणी की थी । एक बार जब राजकीय पुरुष उसे पकड़ने आये तो हेमचन्द्र ने उसे ताड़पत्रों मैं छिपा दिया था और उसके प्राणों की रक्षा की थी। कहा जाता है कि सिद्धराज को कोई पुत्र नहीं था; इससे उनके पश्चात् गढ़ी का झगड़ा खड़ा हुआ और अन्त में कुमारपाल नामक व्यक्ति वि० सं० ११९४ में मार्गशीर्ष कृष्ण १४ को राज्याभिषिक्त हुआ । सिद्धराज जयसिंह कुमारपाल को मारने के प्रयत्न में था, पर वह किसी प्रकार बच गया । राजा बनने के समय कुमारपाल की अवस्था ५० वर्ष की थी। अतः उसने अपने अनुभव और पुरुषार्थ द्वारा १ देखें - पुरातत्त्व (पुस्तक चतुर्थं ) - गुजरात नुं प्रधान व्याकरण पृ० ६१ । गौरीशंकर ओझा ने अपने राजपूताने के इतिहास भाग १ पृ० १९६ पर लिखा है कि 'जयसिंह ने यशोवर्मा को वि० सं० ११९२ - ११९५ के मध्य हराया था । उज्जयिनी के शिलालेख से ज्ञात होता है कि मालवा वि० सं० ११९५ ज्येष्ठ वदी १४ को सिद्धराज जयसिंह के अधीन था ।' इस उल्लेख के आधार पर 'सिद्ध हैम' व्याकरण की रचना सं० १९९० के लगभग हुई होगी । बुद्धि प्रकाश, मार्च १९३५ के अंक में प्रकाशित २ -- नागरीप्रचारिणी पत्रिका भाग ६ पृ० ४४३-४६८ (कुमारपाल को कुल में हीन समझने के कारण ही सिद्धराज उसे मारना चाहता था । ) २ अ० चि० भू०

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 ... 566