Book Title: Abhidhan Chintamani
Author(s): Hemchandracharya, Nemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan
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( २७ ) प्रकार शिवपरिग्रह नहीं। यतः कवि-सम्प्रदाय में यह शब्द ग्रहण नहीं किया गया है। ___कलत्रवाची गौरी शब्द में वर, रमण, प्रभृति शब्द जोड़ने से गौरीवर, गौरीरमण, गौरीश आदि शिववाचक शब्द बनते हैं। जिस प्रकार गौरीवर शब्द शिव का वाचक है, उसी प्रकार गंगावर शब्द नहीं । यद्यपि कान्तावाची गङ्गा शब्द में वर शब्द जोड़कर पतिवाचक शब्द बन जाते हैं, तो भी कविसम्प्रदाय में इस शब्द की प्रसिद्धि नहीं होने से यह शिव के अर्थ में ग्राह्य नहीं है। हेमचन्द्र ने अपनी स्वोपज्ञवृत्ति में इन समस्त विशेषताओं को बतलाया है । अतः स्पष्ट है कि "कविरूढ्या ज्ञेयोदाहरणावली" सिद्धान्त वाक्य बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इससे कई सुन्दर निष्कर्ष निकलते हैं। आचार्य हेम की नयी सूझ-बूझ का भी पता चल जाता है। अतएव शिव के पर्याय कपाली के समानार्थक कपालपाल, कपालधन, कपालभुक्, कपालनेता एवं कपालपति जैसे अप्रयुक्त और अमान्य शब्दों के ग्रहण से भी रक्षा हो जाती है । व्याकरण द्वारा उक्त शब्दों की सिद्धि सर्वथा संभव है, पर कवियों की मान्यता के विपरीत होने से उक्त शब्दों को कपाली के स्थान पर ग्रहण नहीं किया जा सकता है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह कोश बड़ा मूल्यवान् है। आचार्य हेम ने इसमें जिन शब्दों का संकलन किया है, उनपर प्राकृत, अपभ्रंश एवं अन्य देशी भाषाओं के शब्दों का पूर्णतः प्रभाव लक्षित होता है। अनेक शब्द तो आधुनिक भारतीय भाषाओं में दिखलायी पड़ते हैं। कुछ ऐसे शब्द भी हैं, जो भाषाविज्ञान के समीकरण, विषमीकरण आदि सिद्धान्तों से प्रभावित हैं। उदाहरण के लिए यहाँ कुछ शब्दों को उद्धृत किया जाता है..(१) पोलिका (३६२)-गुजराती में पोणी, व्रजभाषा में पोनी, भोजपुरी में पिउनी तथा हिन्दी में भी पिउनी। ... (२) मोदको लडकश्च (शेष ३६४)-हिन्दी में लड्डू, गुजराती में लाडु, राजस्थानी में लाडू।
(३) चोटी (३३३३९)-हिन्दो में चोटी, गुजराती में चोणी, राजस्थानी में चोड़ी या चुणिका।
(४) समौ कन्दुकगेन्दुको (३।३५३)-हिन्दी में गेन्द, ब्रजभाषा में गेंद या गिंद।
(५) हेरिको गूढपुरुषः (३।३९७) ब्रजभाषा में हेर या हेरना-. देखना, गुजराती में हेर।