Book Title: Abhidhan Chintamani
Author(s): Hemchandracharya, Nemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan
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.. (२६ ) शाकटायन (२-१)। श्रुति (२८-२५, ३०-१८,... ) । संहिता (९३-४, ९६-६) तथा स्मृति (३५-२७, ३६-७,... )। __भागुरि तथा व्याडि के सम्बन्ध में इस कोश से बड़ी जानकारी प्राप्त हो जाती है । जहां शब्दों के अर्थ में मतभेद उपस्थित होता है, वहाँ आचार्य हेम अन्य ग्रन्थ तथा ग्रन्थकारों के वचन उद्धृत कर उस मतभेद का स्पष्टीकरण करते हैं । उदाहरण के लिए गूंगे के नामों को उपस्थित किया जा सकता है। इन्होंने मूक तथा अवाक-ये दो नाम गूंगे के लिखे हैं। 'शेषश्च' में मूक के लिए 'जड तथा कड' पर्याय भी बतलाये हैं। इसी प्रसङ्ग में मतभिन्नता बतलाते हुए “कलमूकस्त्ववाश्रुतिः। इति हलायुधः। अनेडोऽपि अवर्करोऽपि मूकः अनेडमूकः, 'अन्धो बनेडमूकः स्यात्' इति हलायुधः 'अनेडमूकस्तु जडः । इति वैजयन्ती, 'शठो ह्यनेडमूकः स्यात्' इति भागुरिः'।" अर्थात् हलायुध के मत में अन्धे को 'अनेडमूक' कहा है, वैजयन्तीकार ने जड को 'अनेडमूक' कहा है और भागुरि ने शठ को अनेडमूक बतलाया है । इस प्रकार 'अनेडमूक' शब्द अनेकार्थक है। हेम ने गूंगे-बहरे के लिए 'अनेडमूक' शब्द को व्यवहृत किया है। इनके मत में 'एडमूक, अनेंडमूक और अवाश्रुति'-ये तीन पर्याय गूंगेबहरे के लिए आये हैं। ___इस प्रकार इतिहास और तुलना की दृष्टि से इंस कोश का बहुत अधिक मूल्य है। भाषा की जानकारी विभिन्न दृष्टियों से प्राप्त कराने में आये हुए विभिन्न ग्रन्थ और ग्रन्थकारों के वचन पूर्णतः क्षम हैं। ___ इस कोश की दूसरी विशेषता यह है कि आचार्य हेम ने भी धनंजय के समान शब्दयोग से अनेक पर्यायवाची शब्दों के बनाने का विधान किया है, किन्तु इस विधान में (कविरूदया ज्ञेयोदाहरणावली) के अनुसार उन्हीं शब्दों को ग्रहण किया है, जो कवि-सम्प्रदाय द्वारा प्रचलित और प्रयुक्त हैं। जैसे पतिवाचक शब्दों से कान्ता, प्रियतमा, वधू, प्रणयिनी एवं निभा शब्दों को या इनके समान अन्य शब्दों को जोड़ देने से पत्नी के नाम और कलत्रवाचक शब्दों में वर, रमण, प्रणयी एवं प्रिय शब्दों को या इनके समान अन्य शब्दों को जोड़ देने से पतिवाचक शब्द बन जाते हैं। गौरी के पर्यायवाची बनाने के लिए शिव शब्द मे उक्त शब्द जोड़ने पर शिवकान्ता, शिवप्रियतमा, शिववधू एवं शिवप्रणयिनी आदि शब्द बनते हैं। निभा का समानार्थक परिग्रह भी है, किन्तु जिस प्रकार शिवकान्ता शब्द ग्रहण किया जाता है, उस
१. अमि० चिन्ता० काण्ड ३ श्लोक १२ की स्वोपनवृत्ति। .