Book Title: Abhidhan Chintamani Author(s): Hemchandracharya, Nemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri Publisher: Chaukhamba VidyabhavanPage 16
________________ तीन दशाले और तीन लाख रुपये भेंट किये। इस सम्मान को पाकर चाचिग द्रवीभूत हो गया और स्नेह-विह्वल हो बोला-'आप तो तीन लाख रुपये देते हुए उदारता के छल से कृपणता प्रकट कर रहे हैं। मेरा यह पुत्र अमूल्य है, परन्तु साथ ही मैं -देखता हूँ कि आपका सम्मान उसकी अपेक्षा कहीं अधिक मूल्यवान् है। अतः इस बालक के मूल्य में अपना सम्मान हो बनाये रखिये । आपके द्रव्य का तो मैं शिव-निर्माल्य के समान स्पर्श भी नहीं कर सकता हूँ। चाचिग के उक्त कथन को सुनकर उदयन मन्त्री बोला-आपके पुत्र का अभ्युदय मुझे सौंपने से नहीं होगा। आप इसे गुरुदेव को समर्पण करें, तो यह गुरुपद प्राप्त कर बालेन्दु के समान त्रिभुवन-पूज्य होगा। आप पुत्रहितैषी हैं, पर सोचिये कि साहित्य और संस्कृति के अभ्युत्थान के लिए इस प्रकार के प्रतिभाशाली व्यक्तियों को कितनी आवश्यकता है ? मन्त्री के इस कथन को सुनकर चाचिग ने कहा-'आपका वचन प्रमाण है, मैंने अपना पुत्र गुरुजी को सौंपा। अब उनकी जैसी इच्छा हो, इसका निर्माण करें। शिशु की शिक्षा का प्रबन्ध स्तम्भतीर्थ ( खम्भात) में सिद्धराज के मन्त्री उदयन के घर पर ही किया गया। दीक्षा-ग्रहण एवं शिक्षा .. "हेमचन्द्र की प्रव्रज्या के सम्बन्ध में मत-भिन्नता है। प्रभावकचरित में पाँच वर्ष की अवस्था में उनका दीक्षित होना लिखा है। जिनमण्डनकृत 'कुमारपालप्रबन्ध' में विक्रम संवत् ११६४ में दीक्षित होने का उल्लेख प्राप्त होता है। प्रबन्धचिन्तामणि, पुरातनप्रबन्धसंग्रह, प्रबन्धकोश एवं कुमारपालप्रतिबोध आदि ग्रन्थों से आठ वर्ष की अवस्था में दीक्षित होना सिद्ध होता है। हमारा अनुमान है कि चांगदेव-हेमचन्द्र की दीक्षा आठ वर्ष की अवस्था में ही सम्पन्न हुई होगी। प्रव्रज्या ग्रहण करने के उपरान्त चांगदेव का नाम सोमचन्द्र रखा गया। सोमचन्द्र की प्रतिभा अत्यन्त प्रखर, सूक्ष्म और प्रसरणशील थी। थोड़े ही समय में इन्होंने तर्क, व्याकरण, काव्य, अलङ्कार, छन्द, आगम आदि ग्रन्थों का बहुत गहरा अध्ययन किया। इनके पाण्डित्य का लोहा सभी विद्वान् स्वीकार करते थे। . १ सोमचन्द्रस्ततश्चन्द्रोज्ज्वलप्रशाबलादसौ । तर्कलक्षणसाहित्यविद्याः पर्यच्छिनद् द्रुतम् ॥ -प्रभावकचरितम्-हेमचन्द्र सूरि प्रबन्ध श्लो० ३७Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 566