Book Title: Abhidhan Chintamani
Author(s): Hemchandracharya, Nemichandra Siddhant Chakravarti, Hargovind Shastri
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 15
________________ ( १४ ) को प्राप्त करेगा।" आचार्य की उक्त वाणी को सुनकर पाहिनी देवी भ्याकुल हो गयी। माता की ममता ने उसके हृदय को मथ डाला, अतः वह गद्गद कंठ से बोली-'प्रभो! यह तो मेरा प्राणाधार है। इस कलेजे के टुकड़े के बिना मेरा जीवित रहना संभव नहीं। दूसरी बात यह भी है कि पुत्र के ऊपर माता-पिता दोनों का अधिकार होता है, अतएव इसके पिता की आज्ञा भी अपेक्षित है। इस समय इसके पिता ग्रामान्तर को गये हैं। उनकी अनुमति के बिना मैं अकेली इस पुत्र को देने में असमर्थ हूँ।' कहा जाता है कि पाहिनी जैन कुल की थी और चाचदेव शैव । अतः पाहिनी को यह आशा भी थी कि उसका पति जैनाचार्य को पुत्र देना शायद ही पसन्द करेगा। - आचार्य देवचन्द्र ने चांगदेव की प्रतिभा की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा उसके द्वारा सम्पन्न होनेवाले कार्यों का भव्य रूप उपस्थित किया, जिससे उपस्थित सभी समाज प्रसन्न हुआ । अनेक व्यक्तियों ने साहित्य और शासन की प्रभावना के हेतु उस पुत्र को आचार्य देवचन्द्र सूरि को समर्पित कर देने का अनुरोध किया। पाहिनी ने उस अनुरोध को स्वीकार किया और उसने साहसपूर्वक उस शिशु को आचार्य को सौंप दिया। आचार्य इस भविष्णु बालक को प्राप्त कर अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने बालक से पूछा-'वत्स ! तू हमारा शिष्य बनेगा ?' चांगदेव ने निर्भयतापूर्वक उत्तर दिया-'जी हाँ, अवश्य बनूँगा।' इस उत्तर से आचार्य बहुत प्रसन्न हुए। उनके मन में यह आशंका लगी हुई थी कि चाचिग यात्रा से वापस लौटने पर कहीं इसे छीन न ले। अतः वे उसे अपने साथ लेकर कर्णावती पहुंचे और वहाँ उदयन मन्त्री के यहाँ उसे रख दिया। उदयन उस समय जैनधर्म का सबसे बड़ा प्रभावशाली व्यक्ति था। अतः उसके संरक्षण में चांगदेव को रखकर आचार्य देवचन्द्र चिन्तामुक्त हुए। चाचिग जब ग्रामान्तर से लौटा तो पुत्रसम्बन्धी समाचार को सुनकर बहुत दुःखी हुआ और पुत्र को वापस लाने के लिए तत्काल ही कर्णावती को चल दिया। पुत्र के अपहार से वह बहुत दुःखी था, अतः देवचन्द्राचार्य की पूरी भक्ति भी न कर सका। ज्ञानराशि आचार्य तत्काल उसके मन की बात समझ गये, अतः उसका मोह दूर करने के लिए अमृतमयी वाणी में उपदेश दिया। इसी बीच आचार्य ने उदयन मन्त्री को भी अपने पास बुला लिया। मन्त्रिवर ने बड़ी चतुराई के साथ चाचिग से वार्तालाप किया और धर्म के बड़े भाई होने के नाते श्रद्धापूर्वक उसे अपने घर ले गया और बड़े सस्कार से भोजन कराया। तदनन्तर उसकी गोद में चांगदेव को बैठाकर पञ्चाङ्ग सहित

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