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श्रतसागर | श्रूतसागर
SHRUTSAGAR (MONTHLY) September-2019, Volume : 06, Issue : 04, Annual Subscription Rs. 150/- Price Per copy Rs. 15/
EDITOR: Hiren Kishorbhai Doshi
BOOK-POST / PRINTED MATTER
अदाणी-शान्तिग्राम में आयोजित पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा का ८५वाँ जन्मदिवस
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर
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'पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के
८५वें जन्मदिवस समारोह की झलकियाँ
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कार्यक्रम के प्रारम्भ में दीप-प्रागट्य करते हए श्री भूपेन्द्रभाई चूडासमा, श्री वीरेन्द्रजी, श्री पंकजभाई गांधी
आदि विशिष्ट अतिथि
पूज्य गुरुदेवश्री से कोबा में चातुर्मास हेतु विनती करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के ट्रस्टी माननीय श्री कल्पेशभाई वी. शाह
पूज्य राष्ट्रसन्तश्री से आशीर्वाद ग्रहण करते हुए प्रसिद्ध उद्योगपति
श्री गौतमभाई अदाणी
समारोह में उपस्थित
महिलाएँ
0/6000
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SHRUTSAGAR
RNI : GUJMUL/2014/66126
September-2019 ISSN 2454-3705
श्रुतसागर
(आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र) श्रुतसागर
SHRUTSAGAR (Monthly)
वर्ष-६, अंक-४, कुल अंक-६४, सितम्बर-२०१९
Year-6, Issue- 4, Total Issue-64, September-2019 वार्षिक सदस्यता शुल्क - रु. १५०/- * Yearly Subscription - Rs.150/अंक शुल्क - रु. १५/- * Price per copy Rs. 15/
आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. * संपादक * * सह संपादक * * संपादन सहयोगी * हिरेन किशोरभाई दोशी रामप्रकाश झा राहुल आर. त्रिवेदी
ज्ञानमंदिर परिवार १५ सितम्बर, २०१९, वि. सं. २०७५, भाद्रपद कृष्ण-१
अन आराध
तकन्न
महावीर
कोबा
अमृत
एतं तु विद्या
पात्र
সুকাই आचार्य श्री कैलाससागरसरि ज्ञानमंदिर
(जैन व प्राच्यविद्या शोध-संस्थान एवं ग्रन्थालय)
श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फैक्स : (079) 23276249, वॉट्स-एप 7575001081 Website : www.kobatirth.org Email : gyanmandir@kobatirth.org
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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१९
अनुक्रम १. संपादकीय
रामप्रकाश झा २. गुरुवाणी
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी 3. Awakening
Acharya Padmasagarsuri ४. ज्ञानसागरना तीरे तीरे
डॉ. कुमारपाल देसाई ५. अप्रगट त्रण लघु गुरुगुण स्वाध्याय गणि सुयशचंद्रविजयजी ६. २० स्थानकतप सज्झाय साध्वी काव्यनिधिश्रीजी ७. गुजराती माटे देवनागरी लिपि के
हिन्दी माटे गुजराती लिपि हिन्दवी ८. श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य
श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का योगदान
राहुल आर. त्रिवेदी ९. पुस्तक समीक्षा
डॉ. हेमन्तकुमार १०. समाचार सार
प्राण पुत्र दोन्यु बडे, जग में चतुर सुजान। सो दशरथ दोन्युं तजे, कुनि बचन न दीजो जान ॥
प्रत क्र.५४२९६ भावार्थ- इस संसार में चतुर और ज्ञानी व्यक्ति के लिए प्राण और पुत्र दोनों ही प्रिय हैं, परन्तु राजा दशरथ को दोनों का ही त्याग करना पड़ा। अतः बिना L सोचे समझे किसी को वचन नहीं देना चाहिए।
* प्राप्तिस्थान * आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर तीन बंगला, टोलकनगर, होटल हेरीटेज़ की गली में
डॉ. प्रणव नाणावटी क्लीनिक के पास, पालडी अहमदाबाद - ३८०००७, फोन नं. (०७९) २६५८२३५५
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SHRUTSAGAR
September-2019 संपादकीय
रामप्रकाश झा पर्यषणपर्व की समाप्ति और सांवत्सरिक क्षमापना के पश्चात् निर्मल हुई आत्मा ज्ञान की आराधना में विशेष रूप से तत्पर हो जाती है। ऐसे अवसर पर पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के ८५वें वर्षप्रवेश की शुभ घड़ी में हमारा अन्तर्मन हर्षित और प्रफुल्लित हो रहा है। श्रुतसागर के प्रस्तुत अंक में अप्रकाशित व दुर्लभ सज्झायादि से सम्बन्धित कृतियों को स्थान दिया गया है।
प्रस्तुत अंक में सर्वप्रथम “गुरुवाणी” शीर्षक के अन्तर्गत इष्टसिद्धि हेतु श्रद्धा की अनिवार्यता को एक कठियारे के दृष्टान्त से सिद्ध करते हुए आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा. के विचार प्रस्तुत किए गए हैं। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से संकलित किया गया है, जिसमें अनेकांतवाद
और स्यादवाद पर प्रकाश डाला गया है। “ज्ञानसागरना तीरे तीरे” नामक तृतीय लेख में डॉ. कुमारपाल देसाई के द्वारा आत्मा की विलक्षणता के विषय में पूज्य आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजी के अनुभवों का वर्णन किया गया है।
अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम पूज्य गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित “त्रण अप्रगट सज्झायो” के अन्तर्गत गुरुगुण से सम्बन्धित तीन लघु सज्झायों हेमविमलसूरि, हेमसोमसूरि तथा लक्ष्मीकल्लोलगणि के स्वाध्याय को प्रकाशित किया गया है। द्वितीय कृति के रूप में पूज्य साध्वी काव्यनिधिश्रीजी के द्वारा सम्पादित “२०स्थानक तप सज्झाय” कृति में तपागच्छीय विद्वान दीपविजयजी ने २० स्थानकों तथा प्रत्येक स्थानक के गुणों का संक्षिप्त वर्णन किया है, अन्त में २०स्थानक तप की विधि भी बतलाई गई है।
पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत बुद्धिप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक-८२, अंक-२ में प्रकाशित “गुजराती माटे देवनागरी लिपि के हिंदी माटे गुजराती लिपि” नामक लेख में गुजराती भाषा को देवनागरी लिपि में अथवा हिन्दी भाषा को गुजराती लिपि में लिखे जाने की उपयोगिता और औचित्य पर प्रकाश डाला गया है।
पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत आचार्य श्री कीर्तियशसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा रचित “आगमनी ओळख” पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है। इस कृति में अबतक प्रकाशित विविध आगमग्रंथों की टीका-विवेचन आदि का परिचय प्रस्तुत किया गया है।
गतांक से चल रहा “श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर का योगदान” लेख प्रकाशित किया जा रहा है। इस अंक में कार्यकर्ताओं को दिलाए गए हस्तप्रत संरक्षण से सम्बन्धित विश्वस्तरीय प्रशिक्षण का वर्णन किया गया है।
हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे।
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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१९ गुरुवाणी
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी मंत्रसिद्धि के आत्मसिद्धि श्रद्धा विना अशक्य (संवत् १९६८ ना आशो शुदि २ ने शनिवार. ता. १२ मी अक्टोंबर १९१२.)
श्रद्धा विना कार्यनी सिद्धि थती नथी। श्रद्धाथी आत्मामां कार्य करवानी शक्ति वधे छे। श्रद्धा विना आत्मानी हानि थाय छे । मंत्रना आराधनमां पण श्रद्धा विना इष्ट सिद्धि थती नथी। पुत्रनी पिताना उपर श्रद्धा होय छे तो पिताना हाथे पुत्रनुं भलं थाय छ । पुत्रीनी माता उपर श्रद्धा होय छे तो पुत्री- हित करवामां मातानी लागणी प्रेराय छ। भक्तोनी गुरु उपर श्रद्धा होय छे तो गुरुना उपदेश वडे तेओर्नु कल्याण थाय छे। शिष्यनी गुरु उपर श्रद्धा होय छे तो गुरुनी वाणीनी असर सारी थाय छे अने गुरुना सदुपदेश प्रमाणे शिष्य प्रवर्ते छे, अने तेथी ते आत्मोन्नति करी शके छे । संशयशील आत्मा हणाय छे अने श्रद्धाशील आत्मामां उदय थाय छे। श्रद्धाना उपर एक शेठy अने कठीयारानुं दृष्टांत नीचे प्रमाणे समजवु -
एक नगरमा एक साधु रहेतो हतो, तेनी सेवा एक वणिक शेठ करतो हतो । गुरुने दररोज देवतानी साधना माटे विनंति करतो हतो पण गुरु तेने योग्य जाणता नहोता। एक दिवसे तेणे साधुने कां के मने मंत्र आपो। आप्या विना छूटको थवानो नथी। साधुए तेने मंत्र आपीने कडं के गामनी बहार एक वडतळे धूळनो ढगलो करी तेना उपर तरवार घोंचीने तुं झाड उपर चढीने मंत्र भणी भूशको मार के जेथी तने देवता तुरंत प्रत्यक्ष थशे। पेलो वाणियो गामनी बहार वडना झाड नीचे तरवार घोंची झाड उपर चढ्यो। मनमां विचारवा लाग्यो के शं आ वात खरी हशे? आ तो मारा नाशनो उपाय लागे छ । एम चिंतवी नीचे उतर्यो, पाछो वृक्ष उपर चड्यो अने पडवानी तैयारी करतां विचारवा लाग्यो के आ काळमां देवता क्यांथी आवे ? देवता हशे के केम ? साधुने भ्रान्ति थइ हशे अथवा तेओनुं वचन असत्य हशे ? आ प्रमाणे विचार करीने उतरतो हतो अने पाछो चढतो हतो । दश-बार वार एम चढ्यो ने उतर्यो । एवामां त्यां एक कठियारो भारी लेइने आव्यो तेणे शेठने बधुं वृत्तांत पूछ्युं । कठीयाराए ते कार्य करवानुं माथे लीधुं अने मंत्र शीखी वृक्ष पर चढीने मंत्र बोली पड्यो के तुरंत वचमांथी देवताए झीली लीधो अने इष्ट वर आप्यु।अने देवता जवा लाग्यो त्यारे शेठ कहेवा
(अनुसंधान पृष्ठ क्रमांक. २४ पर)
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September-2019 Awakening
Acharya Padmasagarsuri (from past issue...)
Just as a swan drinks only milk discarding water; a wise man should imbibe good qualities and discard bad qualities. But an unwise man retains bad qualities and discards good qualities like a sieve which retains stones and other useless things letting all the grain fall through its holes. The Lord propounded the famous Syadwad (a system of thought) in order to bring peace to the disturbed and distracted world; to solve the various problems of life; and in order to disseminate true wisdom and knowledge. Anekantvad is the name given to Syadvad. The same was called the theory of Relativity by Einstein, the great scientist.
Syadvad teaches us to see the same object from various points of view. This philosophy teaches us that to understand the nature of an object accurately and comprehensively, we should see it not only with our eyes but also through the eyes of others. That means we an understand the nature of an object accurately and thoroughly only if we see it from different points of view.
“एकस्मिन्वस्तुन्यविरूद्धनानाधर्मस्वीकारो हि स्याद्वादः। Ekasminvastunyaviruddhananadharmasvikaro hi syadvadah
Syadvada is the philosophical attitude of believing that the same object may have many qualities which are not contradic
tory.
A great priest said to his wife, “Get me a little cheese. It increases hunger.” The wife said, “Dear, there is no cheese in our house. How can I give it to you?”
The priest said, “It is very good that there is no cheese because it weakens the gums of the teeth”.
The wife said, “You have expressed two separate and opposite views about cheese. According to one view cheese is good and according to the other cheese is bad. Which shall I accept as true of these two?"
(continue...)
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सितम्बर-२०१९ ज्ञानसागरना तीरे तीर (योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज:३)
डॉ. कुमारपाल देसाई (गतांकथी आगळ..)
आत्मानुभव विलक्षण होय छे । एनी विलक्षणता संवत १९७१ना पोष सुद १०नी राने थयेला अनुभवमां नजरे पडे छे। आ अनुभव घणो गहन होय छे अने तेओ पोताना आत्मानुभवने शास्त्रीय परिभाषाथी प्रगट करतां कहे छे -
“पोष सुदि दशमनी रात्रे आत्मा अने परमात्मानी एकताना ध्याननो दीर्घकाल, सतत प्रवाह रह्यो अने तेथी जे आत्मानंद प्रगट्यो तेनुं वर्णन करी शकाय तेम नथी। आत्मानी निष्काम दशाना सत्यसुखनो अपूर्व साक्षात्कार खरेखर अनुभवमां भास्यो ते वखते रागद्वेषनी उपशमता विशेषतः प्रकटेली देखाई। एकलारा गाममां निवृत्ति स्थल वगेरे कारणोथी अपूर्व आत्मसुख अनुभवायु । उपाधि रहित दशामां शुद्धोपयोगे सहज सुख अनुभववामां आवे छे।” ___ पछीनी रात्रिनो अनुभव लखतां तेओ कहे छे :
“देशोत्तरमा रात्रिना वखतमां आत्मानी अपूर्व समाधिमां विशेष काल वीत्यो।” ए पछी पोष वद १ना दिवसे ईडरगढना विहार दरमियान तेओ लखे छे –
“रणमल्लनी चोकी पासेनी धूणीवाळी गुफामां अग्निना चोतरा पर अडधो कलाक ध्यान धर्यु तेथी आत्मानी स्थिरता संबंधी अपूर्वभाव प्रकट्यो अने तेथी अपूर्व सहजानंद प्रकट्यो। आवी ध्यानस्थितिमां सदा रहेवाय ए ज आंतरिक उत्कट भावना छे एवो अधिकार प्राप्त थाओ।”
नवा वर्षनी मंगलयात्राना आरंभे आ आत्मज्ञानीनी जे भावनाओ भाळी हती, एनो वर्षने अंते हिसाब पण तेओ करे छे, अने वर्षभरनी प्रवृत्तिमांथी ज्ञान अने ध्याननी प्रवृत्तिने ज जीवनपथना विकासनी निदर्शक माने छे, आथी वर्षने अंते आ प्रवृत्तिनी प्रगतिनो हिसाब तेओ लखे छे -
“आजरोज भाव दिवाळीनो अंतरमां अनुभव थयो।
“संवत १९७१नी साल धार्मिक जीवनमा प्रशस्य नीवडी। विहार, यात्रा वगेरेथी आत्मानी स्थिरतामा वृद्धि करी, रागद्वेषनी खटपटमां कोईनी साथे उतरवार्नु थयु
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September-2019 नथी। उत्तरोत्तर आ वर्षमां धर्मप्रवृत्ति करतां कंईक विशेषकाल अंतरमा ध्यानादिनी निवृत्तिथी गयो। पेथापुरमा चोमासु रहेतां आत्मसमाधिमां विशेषकाल गयो। धर्मप्रवृत्ति करतां धर्मनिवृत्तिनुं जीवन हवे वृद्धि पामे छे अने आत्मसमाधिमां विशेष जीवन व्यतीत करवानी प्रबळ स्फुरणा थया करे छ । संवत १९६०-६१-६२नी पेठे आ सालमां योगसमाधिमां विशेष रहेवायु। सर्व जीवोनी साथे आत्मैक्यभावनानी अने मैत्रीभावनानी वृद्धि थया करे छे एम अनुभव आवे छे । ईडर, देशोत्तर, वडाली, खेडब्रह्मा, कुंभारिया, आबुजी, मंडार, सिद्धपुर वगेरे स्थळे आत्मध्यान धरतां अंतरमां सहजानंदनो, पूर्व सालो करतां, विशेष प्रकारे अनुभव थयो। सरस्वती नदीना कांठानो निर्जन प्रदेश खरेखर बाह्यसमाधिए अंतरमा विशेष सहज समाधि करावनारो अनुभवायो । वैशाख वदि १०, पेथापुरमा प्रवेश थयो । रूदनचोतरा तरफना टेकरा उपर अने आघां कोतरोमां विशेष स्थिरताए आत्मध्यानमा मस्त थवायु । आत्मानी अनुभव खुमारीमा विशेषतः मस्तदशा अनुभवाय छ। आत्मज्ञान-ध्याननी परिपक्वतामा वृद्धि थया करे छे एवो अनुभव आवे छे।
हवे विशेषतः निवृत्तिरूप ज्ञानध्यानरमणतामां करवानी खास स्फुरणा उठे छे, अने तेमां विशेष प्रवृत्त कराय छे । छ मासथी झीणा ज्वरयोगे धार्मिक लेखनप्रवृत्तिमां मंदता थाय छे । तथापि कंई कंई प्रवृत्ति थया करे छ। उपशम, क्षयोपशमभावनी आत्मिक दिवाळीनी ज्योतिनुं ध्यान अने तेनो अनुभव-स्वाद आव्या करे छे । नवीन वर्षमां आत्मगुणोनी विशेष खिलवणी थाओ। ॐ शांति।"
सन्निष्ठ अने लोकप्रिय योगीनी बाह्यप्रवृत्ति तरफ विरक्ति अने आंतरिक साधनाने लगता संकल्पो अने उच्चाशयोनुं अहीं दर्शन थाय छे। गुजराती साहित्यमां लेखको, राजकीय नेताओने समाज सेवकोए रोजनीशीओ लखी छे, परंतु धार्मिक नेताओ अने योगीसंन्यासीओए एवी नोंधो राखी होय एवं खास प्रकाशमां आव्यु नथी। कदाच ए प्रकारनी घणी नोंधो ए महानुभावोना खानगी आत्मगत उद्गारोरूपे लखाई होय तो पण ए काळना उदरमां स्वाहा थई गई होवानो संभव छ। आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजीनी रोजनीशीओनु पण एम ज थयु लागे छे। परंतु एमांथी बचेली एक वर्षनी आ नोंध एक योगीना आंतरजीवनमां डोकियु करवानी तक आपे छे ने तेमना देशाटन तेम ज आंतरविकास दर्शावता आध्यात्मिक प्रवासनी झांखी करावीने जिज्ञासुने ए दिशामां आगळ जवानी प्रेरणा आपे छे ते दृष्टिए पण तेनुं मूल्य घणु छ।
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सितम्बर-२०१९ अप्रगट त्रण लघु गुरुगुणस्वाध्याय
___ गणि सुयशचंद्रविजयजी प्रस्तुत अंकमां आपणे त्रण अप्रगट लघु गुरुतत्व- वर्णन करती सज्झायो जोईशुं । लणे पूज्यो तपागच्छनी सोमसुंदरसूरिजीनी परंपराना वाहक छ । स्वप्रतिभाना बळे जिनशासननी जाहोजलालीने जाळवी राखवामां आ लणे महापुरुषोनुं खूब ज सारं योगदान छ। अहीं आपणे कृतिना आधारे तेमनो आंशिक परिचय मेळववा प्रयत्न करीशुं । जो के त्रणमांथी पू. हेमविमलसूरिजी तथा पू. हेमसोमसूरिजीना जीवन चरित्रनी वातो तो अन्य स्थळे पण मळे छ । ज्यारे पू. लक्ष्मीकल्लोल गणिना जीवन चरित्र पर प्रकाश पाथरती कदाच आ प्राप्त प्रथम कृति हशे। खास तो संपादनार्थे आ त्रणे कृतिओनी हस्तप्रत उपलब्ध कराववा बदल श्री नेमि-विज्ञान-कस्तूरसूरिजी ज्ञानमंदिर (सुरत) ना व्यवस्थापकोनो खूब खूब आभार।
हेमविमलसूरि स्वाध्याय अप्रतिम प्रतिभाना धणी एवा पू. हेमविमलसूरिजी महाराज प्रस्तुत कृतिना चरित्रनायक तो छे ज, साथे साथे “वादीय टोडरमल्ल” बिरुदने धरनार समर्थवादी पण छे, जिनशासनमां आनंदविमलसूरि-सोमविमलसूरि आदि ५०० श्रमण-श्रमणीओनी भेट श्रीसंघने आपनार पुण्यपुरुष छे, तो “कमल” शब्द श्लेषमय पार्श्वजिन स्तवनादि ग्रंथोना रचयिता पण छे, वळी म्लेच्छोवडे करायेली एक जैनाचार्यनी कदर्थनाने वर्णवती “जवामींनो जुवाळ” नामनी नोवेल(वार्ता)ना कथानायक पण तओश्री ज खरा। जो के हजु पण तेमना माटेना घणा पासा खोली शकाय, पण तेवू न करता आपणे कृतिने आधारे ज तेमना व्यक्तितत्वनो परिचय मेळवीशुं । ___कविए अहीं प्रथम पद्यनुं मंगलाचरण 'मां' शारदाना तथा स्वगुरुना नामोच्चार पूर्वक कर्यु छ। कृति नानी होई विगत वर्णन पण टुंकमां ज करवू तेवी टेक साथे जाणे कविए बीजीथी छट्टी गाथा सुधीमां तो चरित्रनायकना माता-पिता-ग्रामादिकना नामोल्लेखथी लईने, बाळसहज क्रीडा, विद्याध्ययन, धर्माभ्यास, लक्ष्मीसागरसूरिजीना शिष्य सुमतिसाधुसूरि पासे संयम ग्रहण कर्यानी वात गुंथी काढी छ । आ ज द्रुतगतिमां निरुपणने आगळ वधारता कवि त्यारपछीना पद्योमां मुनि हेमविमलना ज्ञानाध्ययननी तथा मांडवगढनी वादसभामां विजय मेळवी ‘वादीय टोडरमल्ल' बिरुद प्राप्त कर्यानी विगतो रजू करे छ।
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September-2019 आगळना ५ पद्योमां कवि वागडदेशना पलासईनगर(?)मां श्रावक साह पोता वडे करायेल महोत्सवमां पू. सुमतिसाधुसूरि वडे मुनि हेमविमलजीने आचार्यपद आप्यानी तथा काळांतरे इडरना राठोड शासक रायभाणना राज्यमां कोठारी सायर तेमज सहजपाल वडे करायेला महोत्सवमां गणधरपद प्रदान कर्यानी ऐतिहासिक विगतो आलेखे छे। ते पछी त्यांथी विहार करी अनुक्रमे खंभात पधारता “श्रीसंघ सहित शलुंजयतीर्थनी यात्राए पधार्या हता” तेवी पद्य क्रमांक १३नी नोंध तथा सिरोहीना तेमज आबुना राजा जगमाल वडे तेमने गुरु तरीके मान आप्यानी पद्य क्रमांक १४नी विगत पण काव्यनी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक नोंध छे । अहीं काव्यांतमां रचयितानुं नाम नथी तेथी तेमना विशेनी अटकळ करवाने कोइ अवकाश नथी।
॥१॥
॥२॥
॥३॥
श्री हेमविमलसूरि स्वाध्याय
idou ॥ श्रीगुरुभ्यो नमः॥ पहिलं सरसति प्रणमुंपाय, कहीइं कविजन केरी माय । श्रीगुरु हेमविमलसूरिराय, गुण गाउं तसु लही पसाय महीअलि मोटो मारू देस, दीसइं अधिको पुन्य निवेस। तिहां गढ मढ मंदिर अभिराम, नामिं नयर अछई वडगाम वसई वड-विवहारीअ-वीर, गंगाराज तिहां गुणह गंभीर । गंगादे तसु घरणी सार, जायो पुत्र हिव हादकुमार सुत वाधइं तेजइं जिम सूर, पुहविं पुण्य तणो अंकूर। लीलारंगि रामिती रमइ, जे जोई तेहनइं अति गमइ भणिओ गणिओ सुत लीलविलास, धुरि लगइं धर्म तणो अभ्यास । चित्त धरई संवेग अभंग, संयमसिरी-रमणीस्युं रंग श्रीगुरु लखमीसागरसूरि, सहिगुरु पासि मनोरथ पूरि। हादकुमर लिई संयम सार, हेमविमल मुनि नाम उदार हेला शास्त्र सवे अभ्यसइं, जेह मुखि सरसति वासई वसइं। मंडवगढि जेह बिरू(रु)द प्रमाण, वादीय टोडरमल्ल सुजाण
॥४॥
॥५॥
॥६॥
॥७॥
१. रमत, २. पहेलाथी, ३. झडपथी, ४. घरमां.
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॥८॥
॥९॥
॥१०॥
॥११॥
॥१२॥
॥१३॥
श्रुतसागर
सितम्बर-२०१९ वागड देस मनोहर ठाम, पलासइं साह पातो नाम । आचारयपद ओ(उ)त्सव करइं, हेमविमलसूरि जयसिरि(री) वरइं श्रीगुरु सुमतिसाधुसूरिंद, सूरिमंत्र दिइ अति आणंद । गुरु-भगति ते थयो प्रमाण, गुरु-लोपिं विद्या अप्रमाण श्रीगुरु हेमविमलसूरिंद, रूपिं मोहणवेली(लि)कंद। करता देस विदेस विहार, आव्या ईडर नयर मझारि सरगपुरीनो खरो निवेस, जिहां राजा राठोड नरेस। हींदू(हिंदु)-राय तणो सुलताण, राज करइं राया रायभाण कोठारी सायर सुविचार, सहजपाल पिण सहजि उदार। तिहां अनोपम ओ(उ)त्सव करई, श्रीगुरु गणधरपदवी वरइ जिहां जिहां श्रीगुरु करई विहार, तिहां तिहां ओ(उ)त्सव रंग अपार । खंभनयरि गुरुवचन-अभंग, श्रीश@जययात्रा जंग सीरोही आबूनो राय, जेहनई भूपति प्रणमइं पाय। रायाराय जगमाल नरेस, जेह गुरु मान दीइं सविसेस सुमतिसाधुसूरि सीस सुजाण, एह गुरु जिनशासनिं सुलताण। श्रीगुरु हेमविमलसूरीस, कवि कहिं प्रतपो कोडि वरीस ॥ इति श्रीहेमविमलसूरि स्वाध्यायः॥॥ लिखितः सूर्यपुरे ॥ परोपकाराय ॥
श्रीसद्भ्यः स्तात् ॥
हेमसोमसूरि सज्झाय प्रस्तुत कृति आ. श्रीहेमसोमसूरिजीना जीवन चरित्र पर लखायेली ऐतिहासिक रचना छ। अहीं पण कविए काव्यनी शरूआत चरित्रनायकना माता-पिता तथा ग्रामादिकनो नामोल्लेख करवा पूर्वक करी छ । आ ज वर्णन क्रममा आगळ वधतां कविए पंचविषयसुख भोगवता ते दंपत्तिने शुभ दिवसे शुभ स्वप्नथी सूचित तथा प्रशस्त दोहलाओथी सिंचित कोई पुण्य पुरुष गर्भमां पुत्ररूपे अवतर्यानी तेमज पूरे मासे जनम्यानी विगत काव्यना पद्य क्रमांक चोथां-पांचमामां गुंथी छे । ते पछीनी ढाळमां पुत्रना जन्मप्रसंगे कराता तत्कालिन समाज व्यवहारने दर्शावता कविए स्वजन
॥१४॥
॥१५॥
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SHRUTSAGAR
September-2019 वर्ग संतोष्यानी, नाम स्थाप्यानी तेमज विद्याध्ययन कराव्यानी वातो रजू करी छ।
पछीना आनुक्रमिक पद्यो दुहा-चोपाई-ढाळना क्रमवाळा छे। आ पद्योनी वर्णनानो थोडो भाग वडगाममां गुरु सोमविमलसूरिजी म.सा.नी पधरामणी थता तेमनी धर्मदेशनाथी वैराग्यवासित थयेला चारित्रनायकना संयम ग्रहण करवानी अभिलाषानुं वर्णन करवामां रोकायेलो छे, ज्यारे शेष भाग गुरु भगवंत द्वारा वर्णवायेल संयम जीवनना कष्टोनु तथा माता-पिता वडे अपायेल दीक्षानुमतिनी वर्णनामां रोकायेल छे। जो के आ पद्यमांनी हरखकुमार वडे ‘नहीं दिउ तोहइ वेरसो रि' ए शब्दो वडे माता-पिताने अपायेल अल्टीमेशननी(altimation), तेमज दिवस आठनो दीक्षा महोत्सव कर्यानी नोंध काव्यनी महत्वपूर्ण विगतो छ।
छेल्ली ढाळ काव्यमांनी ऐतिहासिक सामग्रीने रजू करती महत्वपूर्ण ढाळ छ । अमदावाद विहार करी पधारेला आ श्रीसोमविमलसूरिजीने श्रावक लखमण वडे “तेओ भविष्यमां पद कोने सोपशे?” ते अंगे पृच्छा कराता तेना जवाबमां आचार्यश्री वडे सर्व शिष्योमा हरखकुमार (मुनि नाम नथी)ने पद योग्य कही, स्वहस्ते ज सूरिमंत्रना प्रदान पूर्वक हेमसोमसूरिना नवा नामे सं.१६३६ ना वैशाख वद २ ना स्वपदे स्थापन कर्यानी विगत शरूआतना ५ पद्योमा कवि आलेखे छ।
वळी ते प्रसंगे श्रावक लखमण वडे ज द्रव्य खरच्यानी विगत नोंधी शेष २ काव्यो तथा कळशबद्ध पद्य द्वारा सूरि गुण स्तवना तथा स्व परंपरोल्लेख पूर्वक कवि काव्यनुं समापन करे छे। अहीं काव्यांतमां कवितुं नाम नथी परंतु लेखन प्रशस्तिमां करायेल विद्याविमलजीनो कर्ता तरीकेनो उल्लेख प्रस्तुत कृति तेमनी रचना होवानुं सूचन करे छे। कृतिकार
पं. विद्याविमलजी म.सा. - आपणी कृतिमां मळती नोंध मुजब तेओ सुमतिमंडण गणिना शिष्य छ । जो के जै. परं. इति. भाग.३/पृ.४२५नी नोंधमां तेओ माटे “विजयविमल गणि” ना शिष्य होवानी के बीजा “विद्या गणिना" शिष्य होवानी अटकळ करायेली छे।
वळी ते बधी ज व्यक्तिओनो समयगाळो पण एक साथेनो छे तेथी जो कोइ विशेष नोंध मळे तो ते अंगे योग्य खुलासो थई शके। ते छता पण अमारी सामान्य समजण मुजब तेओ हेमविमलसूरि म.सा.नी परंपरामा विजयविमल गणिना शिष्य
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सितम्बर-२०१९
श्रुतसागर सुमतिमंडन गणिना शिष्य होवानुं वधारे समजाय छ।
॥१॥
श्री हेमसोमसूरि सज्झाय
on [छंद ?] सरसति माता पाय प्रणमी करी, श्रीपूज्य केरा गुण हुँ मनि धरी।
[टक ?] मनि धरी सहिगुरु तणा गुण, जे गाईइ आणंदसिउं। श्रीहेमसोमसूरि उदयवंता, नामि सवि सुख पामसिउं
[छंद ?] गुर्जरमाहिं देस सोहामणउ, धाणधार नामइं दीसइ अभिनवउ।
[टक ?] अभिनवू दीसइ दुर्भिख्य न दीसइ, देससिरोमणि जाणीइ । वडगाम नयरह तेह मध्यइं, नगरमाहिं वखाणीइ
[छंद ?] पोरूआड वंसिइ दीसइ गुणनि(नी)लु, साह जोधराजह रूपइं अति भलु ।
बटक ?] अति भल रूपइं जगह मोहन. नारि तेहनइं दीपती। रूडीअ नामि नहींअ कूडी, सीलई सीता जीपती
छंद ?] पंच विषयसुख जे संसारना, विलसइं ऊलटि छइ धर्मवासना।
[टक ?] वासना धर्मह नहीं कुकर्मह, पुण्य गर्भह अवतरिउ। भले डोहले सुपन सूचित, पूरे दिन पुत्रह जणिउ
॥२॥
॥३॥
॥४॥
ढाल
पुत्र प्रसव हूओ जेतलई, जनम महोच्छव तेतलई। १. दोहलाथी,
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September-2019
॥५॥
॥६॥
SHRUTSAGAR एतलइं धवल मंगल गाइं भामिनी ए अशुचि कर्म सवि सोषीअ, निअ सज्जन संतोषीअ। पेखीअ हरख घणउ सहू मनि धरई ए हरखकुंमार दीउं नाम ए, गुणे करी अभिराम ए। पामइ ए विद्या सघली अणभणी' ए कला गुणे करी दीपतुं, रूपइं रतिपति जीपतुं । ऊगतुं जाणे पुं(पू)निम चंदलु ए
॥७॥
॥८॥
दुहा
इणि अवसरि तसुजे हूउ, सुणज्यो भवीअण-वृंद। पूरव पुण्य पसाउलइ, ते करइ दुरीअ निकंद
॥९॥
___ चोपई
तपगच्छ गयणि उदयु दिणंद, श्रीगुरु सोमविमलसूरिंद। प्रणमइं सुर नर मुनिवर-वृंद, वारइ विरूआ सघला दंद
॥१०॥ चिंति धरइ को हुइ सुजाण, वयरसामि परि जाणइ नाण। वुहि(विह?)री दिउं पद दीपइ भाण, महीअलि वाधइ अधिकुं वान ॥११॥
ढाल भविकजन पडिबोहता, गुरुजी करइ विहार रे। रयणि पंच नयरि रहइ, गामइं एक ज रात्रि रे
॥१२॥ भलई भलई गुरुजी वंदीइ, सहु धरइ हरख अपार रे। ठामि ठामि आग्रह करइं, नवि रहइ दोइ एक मास रे ॥१३।। भलई...(द्रुपद) आग्रह करतां पहुतला, वडगाम नयरि मझारि रे। चउविह संघ साहा(ह)मइं मिलइ, नयरि कीउ परवेस रे ॥१४॥ भलइं... गुरुजी देसना तिहां दीइ, वाणी अमृतरेलि रे। हरखकुमार मनि बूझीआ, चारित्र हु अज' लेसि रे
॥१५॥भलइं...
ढाल चुविह संघ सहु देखतां, पभणइ हरखकुमार। २. भण्या वगर, ३. मनमां, ४. विहार करी, ५. अमृत वर्षा, ६. आज,
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॥१६॥
॥१९॥पाय...
श्रुतसागर
सितम्बर-२०१९ तुमची वाणि[इ] भेदीउ, दिउ मझ चारित्र सारो रि पायकमल नमइ कर जोडीनइ, वीनवइ स्वामी अथिर संसार । पूज्य चरण सेवा करुं, ए मझ लाभ अपारो रि
॥१७॥पाय...(द्रुपद) श्रीअ पूज्य वलतुं इम भणइ, वछ तुम नाहनी वेस। चारित्र छइ अति दोहिलं, हवडां अह्मचु नहीं आसो रि ॥१८॥पाय.. चारित्र-रयण ऊमाहीओ, छांडउ एह ज वात । जहा सुख गुरुजी इम कहइं, पूछउ तुह्मचा वली तातो रि माय ताय पूछयां वली, दिउ मुझनइं आदेश। जु देशो तुहइ धरुं, नहीं दिउ तोहइ वरेसो रि
॥२०॥पाय... एक मना जांणी करी, अनुमति दीधी रे ताय । गुरुचरणे आवीअनइ, मागइ चारित्र धरी भावो रि
॥२१॥पाय... पंच महाव्रत ऊचर्या, लीधउ संयमभार। दोष बइतालीस परिहरइ, नहीं लवलेस प्रमादो रि
॥२२॥पाय... आठ दिवस मु(म)हुच्छव करइ, हरखइं कुटंब अपार । दीख्या वरीनइ चालीआ, वांदीनइ वलइं परिवारो रि
॥२३॥पाय...
ढाल
॥२४॥
॥२५॥
लघुपणि जे छइ सोभागी, धर्म तणी मति जागी। वहि(विह)री पुहुता ए जाम, अमदावादई ए ताम संघवी लखमण इम कहइ, पूज्य केरी पदवीअ जे लहइ। ते सिष्य हीअडइ निरधारू, जे छइ मुद्राइं सारू सिष्य सवे मनि निरख्या, हरखकुमार वली परख्या। लक्षण मुद्राइं सोहइं, जोया शुकन ते होइ संवत सोल छत्रीसइ (१६३६), वैशाख वदि बीज दीसइ । महरत अतिहि उदार, श्रीसोमविमल गणधार दीधुं सूरिमंत्र सार, महोच्छव मांडिउ विस्तार । ७. नानी, ८. अमने, ९. आतुर थयेलो, १०. तो पण, ११. लईश,
॥२६॥
॥२७॥
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September-2019
॥२८॥
॥३०॥
SHRUTSAGAR रूडं नाम ठवीजइ, श्रीहेमसोमसूरि कहीजइ संघवी लखमण विरचइ, वित्त घणां तिहां खरचइ । पद हवं मोटइ मंडाणि, सुललित जेहनी छइ वाणि
॥२९॥ भविअ(य)ण जन मन मोहइ, पुण्यवंत पडिबोहइ । तपगच्छि दीपंतु दिणयर, सोम गुणेइं जे छइ ससिहर युगप्रधान ए गुरु सुखकर, महीतलि-मंडन दुखहर । पाय नमइ सहु सुर नर, आज्ञा मानइं ते मुनिवर
कलश श्रीसोमविमल रयण निम्मल, तासु सीसह वांदीइं, श्रीहेमसोमसूरि मेरु सायर, तेह परि जे नांदीइं१४। एकमनां जे गुणह गावइ, लहइ सुख ते अति घणां, श्रीसुमतिमंडन-सीस पभणउ, तासु हरख वधामणां
॥३२॥ ॥श्रीहेमसोमसूरि सज्झाय ॥ पं. विद्याविमल गणि कृत॥ चेली सो. कनकलक्ष्मी,
श्रीलक्ष्मी भणनार्थम् ॥
॥३१॥
पंडित श्रीलक्ष्मीकल्लोल गुरुस्वाध्याय
उपरोक्त प्रथम कृतिमां आपणे जोइ गया के पू. हेमविमलसूरिजी म. मूळे तो पू. लक्ष्मीसागरसूरिजीनी पट्टपरंपराना साधु छ। प्रस्तुत कृतिमां आपणे ते ज लक्ष्मीसागरसूरिजीनी पट्टपरंपरामां थयेला पंडित हर्षकल्लोलजीना जीवन चरित्रनो परिचय करीशुं । जेमां सौ प्रथम तेमनी गुरु पट्टपरंपरा जैन परंपरानो इतिहास भा.३ना आधारे जोईए।
तपा. लक्ष्मीसागरसूरि-->सोमदेवसूरि-->रत्नमंडणसूरि-->आगममंडणसूरि -->पंडित हर्षकल्लोलजी-->पंडित लक्ष्मीकल्लोलजी। कृति परिचय __ आगळनी बन्ने कृतिओनी जेम प्रस्तुत कृतिकारे अहीं पण पूज्यश्रीनी बाल्यावस्थाथी लई दीक्षा ग्रहण कर्या सुधीनी अने त्यारपछी पण तेमना पद प्राप्त १२. तैयारी (रचना) पूर्वक, १३. शिष्य, १४. आनंदित थq.
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श्रुतसागर
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सितम्बर-२०१९ कर्याथी पुण्यप्रभावना सुधीनी विगतो संक्षेपमां आलेखी छे । आपणे ते ज वात पद्योना उपक्रमे जोइए तो कृतिकारे काव्यनुं मंगलाचरण चोवीस जिनने तथा 'मां' सरस्वतीने नमन करवा द्वारा कर्यु छे। अहीं मंगलाचरणमां विशेष रूपे देखाती मंगल चतुष्टयनी उपस्थिति कृतिकारनी सुंदर कवित्वशक्तिनी निशानी छे । नहीं तो प्रायः आवी नानी रचनाओमां मंगल चतुष्टय ओछु जोवा मळे छ।
कृतिनी प्रथम ढाल आगळनी कृतिनी जेम ज अहीं पण कविए चारित्रनायक माता-पिता-ग्रामादिकना नामो, दांपत्यसुखना, पुत्रजन्मोत्सवना, नामकरणना, विद्याध्ययनना निरूपणमां फाळवी छे । आ ढाळमां विशेष रूपे पद्य क्र. ८मां करायेली १२ दिवस पछी जन्मोत्सव कर्यानी नोंधने तत्कालिन रीत-रिवाजनी परिपालना कही शकाय। सद्गुरुना उपदेशथी मात्र नव वर्षनी लघुवयमां वैराग्यवासित थयेला रतनकुमारना माता साथे थयेलो संवाद त्यारपछीनी ढाळनो पूर्वार्ध छे। ज्यारे उत्तरार्ध संयमना परिणाममां राचतो ते बाळक माता-पिता पासेथी संयम ग्रहण करवानी अनुमति पाम्यो तेनी अने दीक्षा ग्रहण कर्या बाद समता, कषायविजयादि गुणोने धारण करनारा एवा ते मुनिश्रीने पद योग्य जाणी सं. १५८१मां श्रीहेमविमलसूरिजी वडे स्वहस्ते उपाध्याय पद अपायानी विगत वर्णनानो छे।।
त्यार पछीनी एटले के काव्यनी अंत्य ढाळ मुख्यतया उपा. श्रीना गुणवैभवने दर्शावती कडीओ छ। विशेषमा अहीं पद्य क्रमांक २७मां कवि वडे जणावाएली पू. सौभाग्यहर्षसूरिजी वडे उपा. लक्ष्मीकल्लोलजीने पंडित पद अपायानी काव्यनी ऐतिहासिक सामग्री छे। तेमांय खास तो उपाध्याय पद अपाया पछी पंडित पद अपायानी नोंध तत्कालिन साधुसमाजना पद व्यवहार- कथन करती वधु महत्वपूर्ण बीना गणाय । छेल्ले काव्यांतमां कविए काव्यना पठन-पाठनथी थता लाभोने वर्णवी स्व-नामोल्लेख पूर्वक काव्यनं समापन कर्यं छे। काव्यमां तेमज अन्य ठेकाणे कविश्रीना जीवन अंगे विशेष परिचय मळतो नथी। तेथी तेनी तपास करवी घटे।
पंडित श्री लक्ष्मीकल्लोल-गुरुसज्झाय
IIGON
चउवीसइ जिन मनि धरी, सरसति समरुं नाम । गोयम गणधर वीनवं, सहिगुरु करुं प्रणाम मनशुद्धि पंडित प्रवर, गाइसु धरी उल्लास।
॥१॥
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September-2019
॥२॥
SHRUTSAGAR प्रणमइ सहूइ पदकमल, मुनिवर मानइ जास एकमनां सहू सांभलु, गुरु श्रीलखिमीकल्लोल। तेह तणा गुण गाइतां, ऋद्धि वृद्धि रंगरोल
॥३॥
ढाल
॥६॥धन..
वडथल नयर सुहामणुं, तिहां वसई बहु श्रीवंत। वायडा वंश सुहाकरू', साह नाईउ रे तिहां सुख विलसंत कि॥
धन धन ए मनिराज सखी आज रे, मझ सकल दिणिंद कि, जिम तेजिइं रे, दीपइ सूरिज चंद कि। जसु समरईरे, भाजइ भवदंद कि, जसु वंदिईरे, अति परमाणंद कि ॥४||धन धन..(आंचली) तेह तणइ घरि स्त्री अछइ, रूपिइं करी अभिराम। शीलवंति(वती) सीता समी, मृगनयणी रे नागलदे नाम कि ॥५॥धन... प्रीयस्युं रंगि रमइ घणुं, भोगवइ लीलविलास। पिउ पसाई मन तणी, वली नित नित पुहचइ सवि आस कि पुत्ररत्न जिणि जनमीउ, रूपिइं अनोपम इंद। लोचन अमीअ कचोलडां, मुख सोहइ रे जिस्यु पूनिम चंद कि ॥७॥धन... बार दिवस वउल्या जिसिइं, अति करिउ उछव ताम। फईयर सवि मिली, तव दीधउं रे तस रतन सुनाम कि
॥८॥धन... नान्हपणि विद्या भणी, सीख्या ति सघला अंक। हीइ सुमति अछइ घणी, तव लीधा रे सवि लिपिना लंक कि लक्षण बत्रीसइ भलां, सोहइ ति सघले अंगि। कुंअर ते क्रीडा करइ, बहु मित्रस्युं रे तव मननइ रंगि कि ॥१०॥धन... नव वरस वउल्यां इम रमंता, जोउ इणि प्रस्तावि। मिल्यु योग सहिगुर(रु) तणउ, तव कुंअर रे वंदइ मनभावि कि ॥११॥धन...
___ ढाल वयण सुणी सहिगुरु तणां ए, हीअडइ हूउ वयराग कि । लाग नहीं संसार ए, साधिसु जिनधर्म-माग' कि। १. सोभाने करनार, २. गया, ३. फोइ, ४. (अक्षरोना) मरोड, ५.मार्ग,
॥९॥धन...
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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१९ घरि आवी माइनइं कहइ ए, ए संसार असार कि। सार संयम हुं आदरु ए, जिम पामुं भवपार कि
॥१२॥आंचली.. मात नागलदे इम भणइ ए, संभलि कुलआधार कि। चारित्र किणि परि पालसिउ ए, ए छइ खांडाधार कि
॥१३॥घरि... मीण तणे दांते करी ए, किम लोह चिणा चवाइ(य) कि। पंच सुमति छइ दोहिली ए, गुपति त्रिणि कहिवाय कि ॥१४॥घरि... बावीस परी(रि)सह जीपवा ए, वछ तुं किम बलवंत कि। यती(ति)पंथ छइ दोहिलु ए, सांभलि सुत गुणवंत कि ॥१५॥घरि... कुंअर कहइ अम्हे पालस्युं ए, चारित्र चोखइ भावि(व) कि। ऊलट आणी अति घणुं ए, अनुमति दिउ मझ माय कि ॥१६॥घरि... तव माता वलतुं भण[इ] ए, सुणि रे माहरा पू(पु)त्र कि। ताहरइ मनि आरति नहीं ए, किम रहसिइ घरसूत्र कि ॥१७॥घरि... मात म कहिस्यु अति घणुं ए, लेस्युं संयमभार कि। असुख घणां संसारनां ए, कहितुं(ता) न लहुं पार कि
॥१८॥घरि... परि परि अति घणुं प्रीछविउ ए, कहिउ न मानइ बोल कि। रीस वशि(सि)इं माता कहइ ए, वछ तुं नींटण(नीठर) [नि]टोल कि ॥१९||घरि... जणणी(ननी)-पगि लागी रहिउ ए, दिउ अनुमति मोरी मात कि। वात म कहुं संसारनी ए, लेसिउ सुगुरु संघात कि
॥२०॥घरि... मात पिता वलतुं भणइ ए, संभलि रतनकुमार कि। जउ तुझ मनि मति अति अछइ ए, तउ लइ चारित्र सार कि ॥२१॥घरि... तव कुंअर मनि हरखीउ ए, भेटिआ(या) सहिगुरुराय कि। संयम समता आदरी ए, जीता च्यारि कषाय कि
॥२२॥घरि... श्रीहेमविमलसूरीसरू ए, सइं० हथि थापइ वास कि। संवत पनरएकासीइ (१५८१) ए, आणी अति उल्लास कि ॥२३॥घरि... पुण्य-पसाइं पामीआ ए, श्रीहर्षकल्लोल उवझाय कि। भण्या गुण्या पंडित थया ए, ते सवि सुगुरु पसाय कि
॥२४॥घरि...
६. पीडा, ७. समजाववं, ८. निष्ठुर, ९. निर्लज्ज, १०. पोताना,
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September-2019
SHRUTSAGAR
ढाल भल भाविइं रे, भविका जन सह सांभलइ रे, ए गुरु छइ गुणभंडार । सोहाकरू रे, जाणइ तत्वविचार, ए मुनिवरू रे।।
एहवा रूडा रे पंडितनइं वांद सह रे (आंकणी..)॥२५॥ मुखि भाखइ रे, अंग अग्यार ति अति भला रे, वली बार उपांग अपार । जाणइ कही रे, विद्या रे'} सघली ईणइ गुरि लही रे} वली सकलागम सार पभण्यां सही रे'
॥२६।।एहवा... गछपति रे, सौभाग्यहर्षसूरीसरू रे, दिइं पंडित पद उल्लास। हरखिइं धरी रे, मृगनयणी दिइ भास, मंगल करी रे
॥२७।।एहवा'... हेला रे, जीता वादी वादडा२रे, कुमती(ति)ना गाल्यां मान। विद्या बलिइंरे, जगि सघलइ वलिउ वान, ए गुरु तणउ रे ॥२८॥एहवा... इणि परि रे, सुंदर साधु सुहामणा रे, गुण नवि लाभइ पार। हरखिइं थुण्या रे, जसु गातां हुइ जयकार, मंगल घणां रे ॥२९।।एहवा... कर जोडी रे, सौभाग्यकल्लोल इम वीनवइ रे, अमृत वाणि विशाल । गुरुजी तणी रे, सुणतां हर्ष अपार, ए मुनि भणी रे
॥३०॥एहवा... ॥ इति श्रीमद्गुरुणां स्वाध्यायः॥ पं. सौभाग्यकल्लोल गणि कृतः, लिखितश्च।
नन्दरबारे ॥
११.ते, १२. वाद. 1.आ रे पाठ वधारानो लागे छे, 2. अहीं रे पाठ वधारानो लागे छे, 3. पद्य क्रमांक.२५, २६ तथा २७मी रचना वांचता कंईक अंशे काव्य(ढाळ) रचनाना माळखा बहारी गइ होय तेवू लागे छे. बनवा जोग छे कोई वधाराना शब्दो लखाय गई होय.
___ क्या आप अपने ज्ञानभंडार को समृद्ध करना चाहते हैं ?
आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा में विभिन्न प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित बहुमूल्य पुस्तकों का अतिविशाल संग्रह है, जो हम ज्ञानभंडारों को भेंट में देते हैं। यदि आप अपने ज्ञानभंडार को समृद्ध करना चाहते हैं, तो यथाशीघ्र संपर्क करें । पहले आने वाले आवेदन को प्राथमिकता दी जाएगी।
ग्रंथपाल
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श्रुतसागर
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सितम्बर-२०१९ दीपविजयकृत २० स्थानकतपसज्झाय
___ साध्वी काव्यनिधिश्रीजी वीशस्थानक तपना आराधनथी अविचळ, शाश्वत, अनुपमेय मुक्तिरूपी सुखनी प्राप्ति थाय छे। दरेक अवसर्पिणी काळना चोवीस तीर्थंकर भगवंतोए पोताना पूर्व भवोमां आ वीशस्थानक तपनी आराधना करीने ज जिन नाम कर्मर्नु उपार्जन कर्यु हतुं । जे कोई सम्यग् रीते वीशस्थानक तपनुं आराधन करे, ते अवश्य श्री जिनेश्वर भगवंतनी अद्भुत लक्ष्मीने प्राप्त करे छे । आ वीशस्थानक तप घणो ज प्रसिद्ध छे तेमज ते करवानो प्रचार पण सर्वत्र सारी रीते जोवामां आवे छे। कृति परिचय
प्रस्तुत कृति श्री दीपविजयजी द्वारा मारुगुर्जर भाषामां पद्यबद्ध रचायेली छे। आ कृतिमां वीशस्थानक तपना वीशस्थानको तेमज प्रत्येक स्थानकना गुणोनुं संक्षिप्त वर्णन जोवा मळे छ । कर्ताए कृतिना प्रारंभे 'सरसत्ती निजगुरु ने सदा, हो जी प्रणमू जुगल चरणे' कहीने सरस्वतीदेवी तेमज गुरुना नामनुं मंगलस्मरण कर्यु छ । त्यारबाद विषय वडे भाव धरीने वीशस्थानक तप वर्णवे छ । ___ गाथा क्रमांक २ थी ११ सुधी मां अरिहंत, सिद्ध, प्रवचन आदि वीशस्थानकोना नाम अने गुणोनुं वर्णन छे। तेमां गाथा क्रमांक ९मां सोळमुं पद जिननुं वर्णन छे अने त्यारबाद सत्तरमा संयम पदना उल्लेख जोवा मळतो नथी। १०मी गाथामां अढारमां पद ज्ञान- वर्णन करेल छे । आम, गाथा क्रमांक ९ अने १०नी वच्चे एक गाथा रही गयेल होय एq लागे छे।
तदपरांत प्रतिलेखक द्वारा हस्तप्रतमां गाथा क्रमांक ११ पछी गाथा क्रमांक १२ ने बदले १३ आपवामां आवेल छ । परंतु अहीं कृति अधूरी लागती नथी आथी क्रमांक लखवामां भूल थयेल होवानी संभावना लागे छे । आम, कृतिनी अंतिम गाथा क्रमांक १४ आपेल होवा छतां कृति १३ गाथानी छे। ___ अंतिम बे गाथाओमां वीशस्थानक तपनो विधि तेमज महिमा वर्णवेल छ। ॐ ह्रीं मंत्राक्षरथी संयुक्त प्रत्येक पदना नामनी वीस नवकारवाळी, जे पदना जेटला गुण तेटला लोगस्सनो काउस्सग्ग करवानुं दर्शाव्यु छ । फक्त एक ज पदनी आराधनाथी पण
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September-2019 देवपाल विगेरे सुखी थयानुं विधान छे, तो आवो वीशस्थानक तप सौए आदरवो जोईए। कर्ता परिचय
आ कृतिना कर्ता तपागच्छीय विद्वान कृष्णविजयजीना शिष्य पं. दीपविजयजी छ । तेमनी अन्य रचनाओ पण मळे छे, जेमां सीमंधरजिन स्तुति, शांतिजिन स्तवन, २४ जिन स्तवन अने सम्यक्त्वविचारगर्भित महावीरजिन स्तवन आदि। रचना संवत् १८७७ मळे छे। जैन गुर्जर कविओ भाग-६ पृष्ठ २९७-२९८ पर एमनो संक्षिप्त परिचय आपेल छे। प्रत परिचय
प्रस्तुत कृतिनुं संपादन कार्य आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरनी एकमात्र हस्तप्रत क्रमांक-५२५५३ ना आधारे करवामां आव्यु छे। आ प्रति मात्र एक पत्रनी छे, प्रतना अक्षर सुंदर अने सुवाच्य छ। आ कृति पत्रांक-१अ थी १आ पर आवेली छ । प्रतमां १२ पंक्तिओ छे अने प्रत्येक पंक्तिमा ३६ थी ४२ अक्षरो छे । हस्तप्रतनी लेखन शैली अने पत्रना आधारे प्रतनुं लेखन वर्ष १९वीं अनुमानित मानी शकाय छे ।
on ॥ काली में पीली वादली ए देशी॥ सरसती(ति) निज गुरुनें सदा, हो जी प्रणमू जुगल चरणेण। विसथानक व(?) तपविध भणु, हो जी भाव धरी विनयेण भवि कीजें रे मन रीजें रे, अक्षय सूख लेवा कारणे ए तप सोय ए आंकणी ... प्रथम पदें अरिहंतना, हो जी बार चोवीस सुप्रतिष्ठ । ध्यावो सिद्ध बीजें पदें, हो जी आठ एकत्रीस सूसीष्ठ
॥२।।भ०... पवयणस पद त्रीजें नमो, हो जी सात तथा नवमीष्ट ।
आयरीयाणं चोथे पढ़ें, हो जी धारो छत्रीस गुण इष्ट नमो थिराणं पंचमें, हो जी धारक दश गुण सोय । उवज्झायाणं पद छठे, हो जी गुण पचवीस जस जोय सातमें पदें सव्वसाहूणं, हो जी एकवीस तिम सगवीस । नमो नाणस वली आठमें, हो जी गुण एकावन सुजगीस नवमें दंसण पद ध्याइइं, हो जी सडसठ करी मनरंग। विनयस्स पद दसमें भजो, हो जी दस गू(गु)ण हृदयसु चंग ॥६॥भ०...
॥१॥
॥३॥भ०...
॥४॥भ०...
॥५॥भ०...
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सितम्बर-२०१९
|७||भ०...
॥८॥भ०...
॥९॥भ०...
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24 चारित्र इग्यारमें गणो, हो जी छ सत्तर सूविचार। बंभवयस गणो बारमें, हो जी नव अढार श्रीकार तेरमें किरियाणं पदे, हो जी तेर अधीक पचवीस। नमो तव सपद बारमें, हो जी बार भेद मन इस पद पनरमें गोयमस, हो जी अठ्ठावीस गुणधार। जिणाणं नमो सोलमें, हो जी गणो वीस करी मन सार अढार में नाणस्स भलो, हो जी पचगुणे सोहंत। ओगणीसमें पदे सूअस्स, हो जी पिस्तालीस मोहंत वीसम(में)द पदें ध्यावो तित्थस्स, हो जी पंचगुणनो निधान । वीसनाम ए तप तणां, हो जी धारी करो बहूमान ॐ ह्री मंत्राक्षर संजू(यु)क्ते, हो जी गणो जपमाला वीस । एकेक पद गू(गु)ण संग्रही, हो जी लोगस काउसग इस एकेक पदें सूखीया थया, हो जी देवपालादि राजान। कृष्णविजय गुरु नामथी, हो जी दीपें सदा निज ज्ञान
॥ इति श्री विसथानक सज्झाय छे ।
॥१०॥भ०...
॥११॥भ०...
॥१२॥भ०...
॥१४||भ०...
(अनुसंधान पृष्ठ क्रमांक. ६ से) लाग्यो के हे देव उभा रहो ! हवे हुं मंत्र भणी झाड परथी पडु छु । देवताए कडं के हवे माथाकूट न कर! हवे पडीश तो मरी जइश । ए तो विश्वासथी कार्य थाय छे। आ प्रमाणे कही देवता अन्तर्धान थइ गयो। आ दृष्टांत उपरथी समजवायूँ के श्रद्धाथी दैवीशक्तियो खीले छे, श्रद्धाथी नानुं बाळक माताना खोळामां रमे छे अने तेनुं पोषण थाय छे । श्रद्धा विना कोइ पण कार्य करी शकातुं नथी। श्रद्धा विना दुनियानो व्यवहार चाली शके नहीं। परोक्ष एवा परमात्मा उपर पण श्रद्धा विना भक्ति रहे नहि। श्रद्धा एज धर्मनु मूळ छे।
धार्मिक गद्य संग्रह भाग.१
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September-2019 गुजराती माटे देवनागरी लिपिके हिन्दी माटे गुजराती लिपि?
हिन्दवी (गतांकथी आगळ..) ___ लखवामां देवनागरी लिपि आपणी करतां वधारे काळजी मागे अने वधारे वखत ले एवी छ । गुजराती लिपि इटालिकना जेवो ज ‘करन्ट हेन्ड (current hand)' छ । बंगाळी आ गुणमां ऊतरे; देवनागरी घणी ऊतरे।
सुवाच्यतामां देवनागरी लिपिनी बीजी कोईपण पुत्री गुजरातीने समोवड छे नहीं । बंगाळी लिपि पण ऊतरती छे । उर्दु अने मोडी तो छेकज उतरती छे। ____ लखाणमां मरोड अथवा वैयक्तिकताना संभवनो गुण एटलो महत्वनो छे के तेने जदो गणवो उचित छे। गुजरातीमां तेम इटालिकमां दरेक सारा लहियानो मरोड जुदो पडी आवे एटली बधी सजीवनता छ । बंगाळीमां पण आ वैयक्तिक मरोड जोई शकाय छे । देवनागरी तो जडतानी मूर्ति छ।
पण गुजराती लिपिना लाभनी सौथी वधारे महत्त्वनी दलील हजी हवे आपुं छु। लिपिओनी समुत्क्रांति (इवोल्यूशन evolution) केम थई ते पण ध्यानमां लेवानुं छे ए ज मुख्य ध्यानमा राखवा- छे । केम जे समुत्क्रांतिना कुदरती क्रमथी ऊलटां पगलां भरवा इच्छा करीए ते वृथा। ज°४; च य; क 3; फई; ब; झॐ; अ ; (जूनी आकृति) अ नवी :--
एटलां बीबां अन्योन्य सरखावो. वधारे दाखलानी जरूर नथी। लखतां लखतां, चालती लेखणे, लेखणने उपाडवी न पडे अने वेगमां ज आकृतिओ लखाई जाय, ते लिपिनी सरलता वा प्रवाहिता। उपलां जोडकांओमां डाबी (देवनागरी) आकृतिने जमणी (गुजराती) साथे सरखावो। देवनागरी लखतां घणा लहिया माथां बांधता पछी, अने एकसाथे, ए उपर नोंधाई गयुं छे । छुटां छटां माथां एम एकसाथे बांधवाने बदले आखी लीटी दोरी लेवानी रीत (गुजराती अने मोडी कहीए छीए ते लिपिओना आदिकालमां) कोईकने स्फुरी अने सुगमता कोने न गमे एटले फेलाई।
(क्रमशः)
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सितम्बर-२०१९ श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का योगदान
राहुल आर. त्रिवेदी (गतांक से आगे) हस्तप्रत संरक्षण/Restoration हेतु विश्वस्तरीय प्रशिक्षण
अति प्राचीनकाल से ही अंकन, लेखन, रेखाचित्रण आदि के लिए मानव द्वारा ताड़पत्र, अगरपत्र (साचीपत्र) व हस्तनिर्मित (Hand Made) कागजों का उपयोग किया जाता रहा है। भारत भर के अनेक ज्ञानभंडारों में प्रत्येक काल एवं क्षेत्र में लिखित ऐसी सामग्रियाँ, जो मानव के इतिहास तथा विकास को समझने में सहायक हैं, विपुलमात्रा में अमूल्य विरासत के रूप में विद्यमान हैं। इन्हें पाण्डुलिपि के नाम से भी जाना जाता है, पर्याप्त संरक्षण तथा देख-रेख के अभाव में ये पाण्डुलिपियाँ प्रायः नष्ट होती जा रही हैं। इस दुर्लभ विरासत के संरक्षण तथा इसकी सुरक्षा के ऊपर विशेष ध्यान देना अति आवश्यक है।
भारत में इन पाण्डुलिपियों के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन' की स्थापना की गई है। उस संस्था के द्वारा पाण्डुलिपियों का रख-रखाव एवं उसका संरक्षण किया जाता है ऐसी संस्थाओं को आर्थिक सहायता भी करते हैं और इस हेतु विशेष रूप से प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन करके प्रशिक्षण भी दिया जाता है। राष्ट्रिय पाण्डुलिपि मिशन के निदेशक श्री प्रतापानंद झाजी अपने सहकर्मियों के साथ, आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में पधारे थे। वे हमारे भंडार में संग्रहित दो लाख से अधिक पाण्डुलिपियों की विरासत एवं यहाँ संचालित सूचिकरण आदि कार्यों को देखकर बहुत प्रभावित हुए और यहाँ के कार्यकर्ताओं को राष्ट्रिय पाण्डुलिपि मिशन द्वारा आयोजित हस्तप्रत संरक्षण प्रशिक्षण कार्यशाला(Manuscript Conservation Workshop) में सम्मिलित होकर प्रशिक्षण प्राप्त करने का प्रस्ताव दिया। उनके द्वारा सामने से दिए गए प्रस्ताव से संस्था गौरवान्वित हुई और उसे स्वीकार किया।
संस्था ने इस प्रस्ताव को ध्यान में रखकर ज्ञानमन्दिर के दो कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण प्राप्त करने हेतु भारत के दो अलग-अलग स्थानों में आयोजित कार्यशालाओं में भेजने का निर्णय लिया और एक व्यक्ति को हिमसाको नैनीताल, उत्तरांचल व दूसरे को इन्टैक लखनऊ, उत्तरप्रदेश भेजने की व्यवस्था की गई। हस्तप्रत संरक्षण प्रशिक्षण कार्यशाला में अलगअलग प्रदेशों से प्रशिक्षणार्थीओं को बुलाया गया था। प्रशिक्षण देने हेतु भी अलग-अलग स्थानों से विशेषज्ञों-प्रशिक्षकों को बुलाया गया था।
यहाँ से भेजे गए कार्यकर्ताओं के साथ भंडार में से जीर्ण-शीर्ण पत्र, चिपके हुए पत्र, जले हुए पत्र, स्याही फैले हुए पत्र, खराब स्याहीवाले पत्र, फफूंदग्रस्त पत्र तथा टूट जानेवाले पत्रों को प्रायोगिक तौर पर भेजा गया था। इन कार्यशालाओं में हमारे भंडार से भेजे गए
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September-2019 अधिकांश पाण्डुलिपियों पर प्रयोग किए गए। साथ ही प्रशिक्षण अन्तर्गत खराब हालत में रही हस्तप्रतों को किन-किन प्रकारों से सुरक्षित किया जा सकता है, उन सारी प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी दी गई। उसमें प्रत की स्थिति को देखकर निर्णय लिया जाता है कि किन प्रतों में किस प्रकार के केमिकल का प्रयोग किया जाएगा, चिपके पत्रों को कैसे अलग किया जाता है, टूटने योग्य पत्रों को बहुमूल्य टिश्यु पेपर से आधार (स्ट्रेन्थ) देकर उन्हें कैसे सुरक्षित रखा जाता है, जिससे उन पत्रों की आयु बढ़ सके और विशेष रूप से हस्तप्रत की खराब स्थिति को देखकर उसे अधिक नुकसान पहुँचाए बिना उसका उपचार कैसे करना चाहिए, इन सभी विषयों से सम्बन्धित प्रशिक्षण दिया गया।
पाण्डुलिपिसंरक्षण के प्रशिक्षण अंतर्गत कुछ मुख्य कार्यों का उल्लेख निम्नलिखित है१) स्टोरेज हेन्डलींग, २) मेकेनिकल क्लिनिंग (ड्राय ब्रश, सूई वगेरे.) ३) सोल्वेन्ट क्लिनिंग (दाग-धब्बे, सेलोटेप को हटाया जाता है) ४) एक्वास (पानी) क्लिनिंग (PH पेपर से इन्क टेस्ट कर डिएसीडिफिकेशन करना), ५) कागज के टूटे भागों पर मेन्डिंग करना ६) बटकने योग्य प्रतों पर टिश्यु पेपर से लाईनिंग करना, ७) ह्युमीडिटी फायर मशीन से चिपके पत्रों को अलग करना ८) तब्दीले ए बदहवासी (कमजोर किनारीयों को आधार देना) ९) नेब्यूलाईजर द्वारा कागज के प्रतों को नमी देना व गोरेटेक्स विधि से भी चिपके हुए पत्रों को अलग करना १०) कागज में अगर छिद्र हों तो उनको पल्पिंग करना ११) टूटे हुए ताड़पत्रों को जोड़ना. १२) कमजोर ताड़पत्रों पर इनकेप्च्यूलेशन करना। इस तरह सुसज्जित रूप से कन्जर्वेशन का प्रशिक्षण दिया गया। कार्यकर्ताओं ने इन कार्यशालाओं में बहुत ही अच्छी तरह से प्रशिक्षण प्राप्त किया है।
कार्यकर्ताओं द्वारा प्राप्त किए गए प्रशिक्षण एवं वहाँ संरक्षित की गई पाण्डुलिपियों की अद्यतन स्थिति देखकर संस्था की प्रबंधन समिति बहुत प्रभावित हुई है। उनके द्वारा इस विषय पर गहन विचार-विमर्श के बाद निकट भविष्य में संस्था में ही आधुनिक तकनीकि सुविधाओं से युक्त प्रयोगशाला (लैब) के निर्माण का निर्णय किया गया है। जिसमें ज्ञानभंडार में नष्ट हो रही पाण्डुलिपियों तथा पुस्तकों का विधिवत उपचार किया जा सकेगा
और उनका जीवन काल बढाने का उत्तम प्रयास किया जा सकेगा। जिससे संस्था में संगृहीत दुर्लभ-अमूल्य विरासत को भावि पीढ़ी के लिए सुरक्षित एवं संरक्षित किया जा सकेगा।
उपर्युक्त सभी क्षेत्रों में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का निरन्तर योगदान रहा है और भविष्य में भी रहेगा। आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की व्यवस्था को देखकर अन्य संस्थाओं ने इसकी अनुमोदना की है। जिसमें राष्ट्रिय पांडुलिपि मिशनदिल्ली, भारतीय अभिलेखागार-दिल्ली, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान-नई दिल्ली/लखनऊ एवं संस्कृत भारती-दिल्ली का समावेश है। भविष्य में समाज के कल्याण हेतु अन्य महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं पर भी काम किया जाएगा।
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सितम्बर-२०१९
28 पुस्तक समीक्षा
डॉ. हेमन्त कुमार
पुस्तक नाम -
कर्ता
प्रकाशक
आगमनी ओळख आचार्य श्री कीर्तियशसूरिजी म. सा. सन्मार्ग प्रकाशन, अहमदाबाद वि.सं. २०७३ १००/
प्रकाशन वर्ष - मूल्य -
भाषा
गुजराती
आगम जैन धर्म का संविधान है एवं सबकुछ है। आगम को आप्तवचन कहा गया है। आप्तपुरुष वे हैं जिन्होंने राग, द्वेष और अज्ञानरूपी दोषों पर विजय प्राप्त कर लिया है। इन तीनों दोषों को जीतने वाले अरिहंत परमात्मा आप्तपुरुषों की श्रेणी में सर्वोच्च स्थान पर विराजित हैं। उन अरिहंत परमात्मा के वचन होने से इसे आगम कहा जाता है। आगम साहित्य भारतीय साहित्य का प्राण है, तो आध्यात्मिक जीवन की जन्मभूमि एवं आर्य संस्कृति का मूल्यवान कोश भी है। भगवान महावीर के पश्चात् ८४ आगमों का अध्ययनअध्यापन श्रुत परम्परा से होता रहा। वर्तमान में ४५ आगम उपलब्ध हैं। काल प्रभाव से शेष आगम लुप्त न हो जाए इस हेतु से विभिन्न स्थल एवं विभिन्न काल में ४ आगम वाचनाएँ हुई, जिसमें आगमों को संकलित किया गया। अन्तिम वाचना देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण की निश्रा में गुजरात के वल्लभीपुर में हई, जिसमें आगमों के पाठों की विविध धाराओं का संकलन करके उन्हें स्थिर किया गया एवं कहा जाता है कि लिपिबद्ध भी किया गया।
जिनशासन के आधार स्तम्भों में जिनवाणी-श्रुतज्ञान का अद्वितीय स्थान है। आगमों को जिनवाणी के नाम से भी जाना जाता है। श्रुतज्ञान का आधार जिनागम ही है। जैन आगमों का परिचय सामान्य जनों को भी सरलता से प्राप्त हो इस हेतु से गुजराती, हिन्दी आदि देशी भाषाओं के साथ ही विदेशी भाषाओं में भी संक्षिप्त एवं विस्तृत आगम परिचय संबंधित अनेक ग्रंथों का प्रकाशन महात्माओं तथा विद्वानों द्वारा समय-समय पर किया जाता रहा है। यहाँ उनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत कर रहा हूँ।
जैन प्रवचन किरणावली- श्री पद्मसूरिजी महाराज साहब द्वारा लिखित यह ग्रंथ ५ विभागों के २८ प्रकाशों में विभाजित है। प्रथम विभाग के अन्तर्गत १३ प्रकाशों में १२ अंगों के विषयों का विस्तारपूर्वक विवरण दिया गया है, दूसरे विभाग के अन्तर्गत १४ से २० प्रकाशों में १२ उपांगों के विषयों, तीसरे विभाग के प्रकाश २१ में १० प्रकीर्णकों के विषयों का, चौथे विभाग के प्रकाश २२ से २५ में ४ मूलसूत्रों, प्रकाश २६ से २७ में २ चुलिका तथा
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September-2019 पांचवें विभाग के प्रकाश २८ में ६ छेदसूत्रों के विषयों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। इस ग्रंथ का प्रथम प्रकाशन ईस्वी सन् १९४७ में हुआ था। उसके लगभग ४० वर्ष पश्चात् ईस्वी सन् १९८७ में इस ग्रंथ की महत्ता एवं उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए श्री शीलचंद्रसूरिजी महाराज ने पुनः संपादन करके प्रकाशित करवाया। फिर ईस्वी सन् २०१४ में भी इसकी अन्य आवृत्ति प्रकाशित करने की आवश्यकता आ पडी, जो इस ग्रंथ की उपयोगिता सिद्ध करती है। इसका पुनः प्रकाशन जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर द्वारा वि. सं. २०७० में किया गया है। यह पुस्तक संभवतः इस शृंखला की सर्वप्रथम पुस्तक है।
४५ आगम परिचय वाचना- श्री देवेन्द्रसागरसूरिजी महाराज साहब द्वारा विक्रम संवत २०७० के अहमदाबाद के चातुर्मास में दिए गए व्याख्यानों को संकलित करके प्रकाशित किया गया है। इस ग्रंथ में ४५ आगमों का संक्षिप्त किन्तु विषयानुसार क्रमशः विवरण दिया गया है। प्रत्येक आगम का परिचय प्रारम्भ करने के पूर्व उन-उन आगमों की विशेषता बतलाने हेतु चित्र दिए गए हैं। आगमों के सार को जानने हेतु बहुत उपयोगी ग्रंथ है। इसका प्रकाशन कंचनगिरि जैन आराधना भवन, पालीताणा द्वारा वि. सं. २०७२ में किया गया है।
आगम संक्षिप्त परिचय- श्री दीपरत्नसागरजी महाराज साहब द्वारा लिखित यह ग्रंथ अपने-आप में अनुपम है। इसका कारण यह है कि इस ग्रंथ में प्रत्येक आगम का परिचय प्रारम्भ करने से पूर्व आगमपुरुष (यंत्रपट्ट) का चित्र दिया गया है, उस चित्र में सिर से पैर तक के विभिन्न अंगों एवं उसके चारों ओर अंकों के माध्यम से प्रत्येक आगम का स्थान निर्दिष्ट है। प्रत्येक आगम का संक्षिप्त परिचय देते हुए आगमों के नाम, स्कंधों, अध्ययनों, सूत्रों, गाथाओं आदि की संख्या दी गई है। इसके पश्चात् उन-उन आगमों में रहे हुए विषयों आदि का परिचय दिया गया है। इस ग्रंथ के वांचन से ४५ आगमों का संक्षिप्त किन्तु स्पष्ट परिचय प्राप्त हो जाता है। इसका प्रकाशन पार्श्वविहार जैन देरासर, ठेबा, जामनगर द्वारा वि. सं. २०७३ में किया गया है। ___ आगम विषय दर्शन (विषयानुक्रम)- श्री दीपरत्नसागरजी महाराज साहब ने प्रत्येक आगमों के विषयों की स्पष्टता हेतु इस ग्रंथ का निर्माण किया है। पूज्यश्रीजी द्वारा संपादित ४५ आगम मूल एवं उनकी टीकाएँ प्रकाशित की गई हैं। उन-उन आगमों में कौन-कौन सा विषय किस पृष्ठ पर उपलब्ध है इसकी संपूर्ण जानकारी इस ग्रंथ में दी गई है। उसके पश्चात् इस ग्रंथ में सभी आगमों के स्कंधों, उद्देशकों, अध्ययनों आदि के क्रमानुसार विषयों का प्रतिपादन किया गया है। यह ग्रंथ सभी आगमों के सूक्ष्मतम विषय की जानकारी हेतु बहुपयोगी है। इसका प्रकाशन आगम श्रुत प्रकाशन अहमदाबाद द्वारा वि. सं. २०५६ में किया गया है।
आगम परिचय वाचना- श्री जितरत्नसागरजी (राजहंस) महाराज साहब द्वारा अठवालाइन्स जैन संघ, सुरत में ४५ आगमों पर दिए गए व्याख्यानों को संग्रहित करके
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सितम्बर-२०१९ प्रकाशित किया गया है। इस ग्रंथ में ४५ आगमों के विषयों को बहुत ही सन्दर ढंग से विवेचित किया गया है। प्रत्येक आगम परिचय के प्रारम्भ में चित्र दिया गया है, जिसमें उन-उन आगमों में रही हुई विशिष्टताएँ पूर्व में ही समझ में आ जाती हैं। प्रत्येक आगमों के विषयों तथा संबंधित कथाओं का सार भी दिया गया है। इसका प्रकाशन रत्नसागर प्रकाशन निधि, इन्दौर द्वारा वि.सं. २०५८ में किया गया है।
अमृतागमम्- विक्रमसेनविजयजी महाराज साहब द्वारा संपादित इस ग्रंथ में आगमों का संक्षिप्त परिचय एवं आगमों की पूजा आदि का संकलन है। हिन्दी भाषा में आगमों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। आगमों के परिमाण एवं विषयों का बहुत ही संक्षेप में वर्णन किया गया है। इसके अध्ययन से आगमों की संक्षिप्त जानकारी प्राप्त हो जाती है। इसका प्रकाशन पंचदशा ओसवाल संघ, पुणे द्वारा किया गया है। प्रकाशन वर्ष का कोई उल्लेख प्रकाशन में उपलब्ध नहीं है।
आगमनी सरगम- श्री हेमचंद्रसागरसूरिजी महाराज साहब द्वारा संपादित इस ग्रंथ में आगम की वाचनाओं, आगमोद्धारक श्री आनन्दसागरसूरिजी द्वारा प्रदत्त वाचनाओं के साथ सभी आगमों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। सभी आगमों से संबंधित अलग-अलग रंगीन चित्र भी दिए गए हैं। चित्रों के माध्यम से भी संबंधित आगम के विषय में बहुत सी बातें स्पष्ट हो जाती हैं। इसका प्रकाशन आगमोद्धारक प्रतिष्ठान, भावनगर द्वारा वि. सं. २०६५ में किया गया है।
ऊपर में हमने देखा कि जिनशासन के प्राणरूप आगमों से जन-जन को परिचित कराने की उत्तम भावना से अभिभूत होकर अनेक महापुरुषों ने समय-समय पर विभिन्न विषयों एवं स्वरूप में अनेक ग्रंथों का निर्माण किया, जिससे आज पर्यन्त आमजन लाभान्वित हो रहे हैं। इसी शृंखला में आचार्य श्री कीर्तियशसूरिजी महाराज साहब द्वारा लिखित आगमनी ओळख का भी नाम उल्लेखनीय रूप से जुड़ रहा है।
जैसा कि पुस्तक के नाम से ही पता चलता है कि इस ग्रंथ में वर्तमान में उपलब्ध ४५ आगमों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। सामान्य जनों हेतु बहुपयोगी ग्रंथ है। इस ग्रंथ में सभी आगमों का संक्षिप्त किन्तु सरल व स्पष्ट भाषा में परिचय दिया गया है, जिससे अल्पमति वाले भी लाभान्वित होंगे। प्रत्येक आगम परिचय के अन्त में दिए गए उन-उन आगमों के कुछेक अंश भी परिचय व तत्त्वबोध में सहायक सिद्ध हो रहे हैं.।।
पुस्तक की छपाई बहुत सुंदर ढंग से की गई है। आवरण भी कृति के अनुरूप बहुत ही आकर्षक बनाया है। श्रीसंघ, विद्वद्वर्ग व जिज्ञासु इसी प्रकार के और भी उत्तम प्रकाशनों की प्रतीक्षा में हैं। भविष्य में भी जिनशासन की उन्नति एवं इतिहास सर्जन के उपयोगी ग्रन्थों के प्रकाशन में इनका अनुपम योगदान प्राप्त होता रहेगा, ऐसी प्रार्थना करते हैं।
पूज्य आचार्यश्री के इस कार्य की सादर अनुमोदना के साथ कोटिशः वंदन ।
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September-2019
समाचारसार
अदाणी-शांतिग्राम, अहमदाबाद में परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के
८५वें जन्मदिवस के शुभअवसर पर भव्य आयोजन राजनगर-अहमदाबाद, श्री अदाणी-शान्तिग्राम के पावन परिसर में जिनशासन के महानायक, प्राचीन श्रुत-तीर्थोद्धारक राष्ट्रसंत परम पूज्य आचार्य श्रीमद पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के ८५वें जन्मवर्ष के शुभ अवसर पर दि. ८ से १० सितम्बर २०१९ तक त्रिदिवसीय महोत्सव अहमदाबाद स्थित श्री आदिनाथ तपागच्छ श्वे. मू. शान्तिग्राम जैन संघ में लोकहितार्थ हर्षोल्लास के साथ “सेवा दिन” के रूप में मनाया गया।
प्रवचन प्रभावकता, व्यवहार कौशल्य, निर्भयता एवं दुरदर्शिता से समग्र भारतवर्ष में अपार लोकप्रियता प्राप्त कर जिनशासन के गौरव को बढाने वाले राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के ८५वें जन्मदिवस के निमित्त आयोजित सेवादिन के अपलक्ष में आ. श्री अमृतसागरसूरीश्वरजी महाराज, आ. श्री अरूणोदयसागरसूरिजी म. सा., आ. श्री हेमचन्द्रसागरसूरिजी म.सा., आ. श्री अजयसागरसूरिजी म.सा., कुशल मार्गदर्शक गणिवर्य श्री प्रशांतसागरजी म. सा., मुनि श्री पुनीतपद्मसागरजी, श्री भुवनपद्मसागरजी, श्री ज्ञानपद्मसागरजी, श्री हर्षपद्मसागरजी, श्री ऋषिपद्मसागरजी, श्री पार्श्वपद्मसागरजी म. सा. आदि श्रमण भगवंतों एवं योगनिष्ठ पू. आ. श्रीमद बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म. सा. की समुदायवर्तिनी पूज्य साध्वीवर्या श्री कल्पगुणाश्रीजी, श्री कल्परत्नाश्रीजी तथा श्री हर्षनंदिताश्रीजी म. सा. आदि श्रमणी भगवंतों की पावन उपस्थिति थी।
इस शुभ अवसर पर गुजरात राज्य के शिक्षामन्त्री माननीय श्री भूपेन्द्रसिंह चूडासमा, गृहमन्त्री श्री प्रदीपसिंह जाडेजा, विधायक श्री राकेश शाह, प्रसिद्ध उद्योगपति श्री गौतमभाई अदाणी, आणंदजी कल्याणजी पेढी के ट्रस्टी श्री श्रीपालभाई शाह, जैनतत्त्व चिन्तक पद्मश्री डॉ. कुमारपाल देसाई, श्रेष्ठीवर्य श्री श्रीयकभाई, लोकप्रिय सीरियल “तारक मेहता का उल्टा चश्मा” का बाल कलाकार “टप्पू" भव्य गांधी, सीमन्धरस्वामी जैन देरासर, महेसाणा के प्रमुख श्री कीर्तिभाई, कोबातीर्थ का ट्रस्टी परिवार, नेमनाथ भगवान की जन्मभूमि शौरीपुर तीर्थ, आगरा के प्रमुख श्री सुरेन्द्रभाई (मुन्नाबाबु), राजनगर-अहमदाबाद के विविध संघों से पधारे हुए महानुभाव, गुरुभक्त श्री दशरथभाई पटेल, महुडी संघ के ट्रस्टी, भायंदर(मुंबई)बावन जिनालय के प्रमुख श्रीमांगीलालजी शाह, भायंदर क्षेत्र के मन्त्री श्री आसिफ शेख, “साईन शो” के प्रकाशक श्री दशरथभाई पटेल तथा अनेक श्रीसंघों के पदाधिकारीगण एवं विशिष्ट महानुभाव और मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली, मध्यप्रदेश आदि भारतभर के विविध राज्यों से अनेक गुरुभक्तों ने पूज्यश्री के इस जन्मोत्सव में विशेष रूप से उपस्थित रहकर
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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१९ पूज्यश्री के आशीर्वाद प्राप्त किए साथ ही इनके प्रति अपनी उद्गार भरी शुभकामनाएँ प्रकट की।
दि. ८-९-२०१९ रविवार को पूज्य राष्ट्रसन्तश्री का ८५वाँ जन्मदिवस उपकारपर्व के रूप में भव्य महोत्सव के साथ मनाया गया। प्रातः ९:३० बजे संचालक श्री उत्तमभाई छेडा तथा संगीतकार राजीव विजयवर्गीय के द्वारा संगीत के सुरों के साथ गुरुवन्दना की गई। पूज्यश्री ने मांगलिक सुनाया और उसके बाद संगीतकार के द्वारा गुरुभक्ति गीत से कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया।
पूज्य गुरुदेवश्री के ८५वें जन्मदिवस के अवसर पर इनके शिष्य-प्रशिष्यों ने अपने गुरुदेव के गुणों का स्मरण करते हुए विभिन्न शैली में गुणानुवाद कर गुरुवन्दना की। मुनि हर्षपद्मसागरजी म. सा. के द्वारा अपने वक्तव्य में गुरु तथा शिक्षा के विषय का समन्वय कर गुरु की महत्ता दर्शाई गई। पूज्य आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी म. सा. ने अपनी गुरुपरम्परा का स्मरण करते हुए पूज्यश्री का गुणानुवाद किया तथा आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर की विशेषताओं व उपलब्धियों का परिचय कराया। पूज्य आचार्य श्री हेमचन्द्रसूरिजी म.सा. के द्वारा पूज्यश्री के दीर्घ संयम पर्याय की अनुमोदना करते हुए गुरु गुणानुवाद किया गया। पूज्य अरुणोदयसागरसूरिजी म. सा. के द्वारा यह बतलाया गया कि पूज्यश्री तो वचनसिद्ध पुरुष हैं, उनका वर्णन करने के लिए शब्द कम पड़ते हैं।
पूज्य गणिवर्य श्री प्रशान्तसागरजी म. सा. के द्वारा यह बतलाया गया कि गुरु का अर्थ होता है काष्ठ की नौका, जो स्वयं भी तैरती है और दूसरों को भी पार उतारती है। उन्होंने स्वयं को भाग्यशाली मानते हुए कहा कि यह उनका सौभाग्य है कि पूज्यश्री के सान्निध्य में उनकी परछाई के समान २५ वर्षों तक उनके साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। गुजरात के शिक्षामन्त्री श्री भूपेन्द्रभाई चुडासमा ने अपने वक्तव्य में बताया कि पूज्यश्री का १००वाँ जन्मदिवस भी हम सभी इसी प्रकार एकत्र होकर मनाएँ, यही प्रभु से प्रार्थना है। गुजरात के गृहमन्त्री श्री प्रदीपसिंह जाडेजा ने बतलाया कि जब हम सुख में होते हैं, तब तो ठीक है, परन्तु जब हम दुःख में होते हैं, तब भी पूज्यश्री का आशीर्वाद हमें अवश्य मिलता है। पद्मश्री डॉ. कुमारपाल देसाई के द्वारा यह बतलाया गया कि नेपालनरेश, जो दशहरे के सिवाय अपनी प्रजा को वर्ष में कभी भी दर्शन नहीं देते थे, उन्होंने भी पूज्यश्री के दर्शन हेतु पधारकर अपनी धन्यता का अनुभव किया था। पूज्यश्री के आशीर्वाद और प्रेरणा से स्थापित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर वर्तमान में जैन समाज तथा देश-विदेश के विद्वानों के लिए विशेष रूप से जो श्रुतभक्ति करता है, वैसी श्रुतभक्ति कहीं नहीं होती है। कोई भी विदेशी विद्वान भारत आते है तो इस ज्ञानभंडार का दर्शन करने के लिए वे अवश्य उत्सुक होते हैं। गुरुभगवन्तश्री की गुरुभक्ति के विषय में उन्होंने बतलाया कि वे और पूज्यश्री २०दिनों तक रात के २-२ बजे तक चर्चा करके उन्होंने दादा गुरुदेव ग. प.
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SHRUTSAGAR
September-2019 श्री कैलाससागरसूरिजी म. सा. का जीवनचरित्र तैयार किया और उसे “आतमज्ञानी श्रमण कहावे” के नाम से प्रकाशित किया। पूज्यश्री की निःस्पृहता के विषय में उन्होंने बतलाया कि श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र में उनके नाम का उल्लेख कहीं नहीं मिलेगा।
सकल दिल्ली जैनसंघ की तरफ से ट्रस्टी श्री किशोरजी कोचर के द्वारा अत्यन्त भावपूर्वक एक बार पुनः चातुर्मास हेतु दिल्ली पधारने की विनती की गई। कोबा तीर्थ के ट्रस्टी श्री श्रीपालभाई तथा श्री कल्पेशभाई वी. शाह के द्वारा पूज्यश्री की सरलता के सम्बन्ध में बतलाया गया कि संसार की सभी नदियाँ समुद्र की तरफ जाती हैं, उसी प्रकार आज से कुछ वर्षों पूर्व पालिताणा में हुए श्रमण सम्मेलन में अनेकों आचार्यों तथा गच्छाधिपतियों की उपस्थिति के बावजूद पूज्यश्री को उसका अध्यक्षस्थान दिया गया। (आगामी वर्ष २०२० में) पूज्यश्री कोबातीर्थ में चातुर्मास करें, ऐसी हार्दिक विनती की गई। ट्रस्ट के सभी ट्रस्टियों तथा श्री रणजीतमलजी नानालालजी जैन, बाघरेचा परिवार के द्वारा इसका समर्थन कर कोबा को चातर्मास का लाभ प्रदान करने की भावना व्यक्त की। अनेक संघों की विनती होते हुए भी पूज्यश्री ने कोबा में चातुर्मास हेतु सहर्ष स्वीकृति प्रदान की। वहाँ उपस्थित सभी गुरुभक्तों ने हर्षोल्लास पूर्वक राष्ट्रसन्त पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी, जापमग्न आचार्यदेव श्री अमृतसागरसूरीश्वरजी, ज्योतिर्विद् आचार्यदेव श्री अरुणोदयसागरसूरिजी तथा गणिवर्य श्री प्रशान्तसागरजी आदि ठाणा के कोबातीर्थ में आगामी चातुर्मास हेतु “जय” बोलाई गई थी। उसी समय संघों की विनती से गांधीनगर, सेक्टर-२२ के लिए आचार्य श्री हेमचन्द्रसागरसूरीश्वरजी तथा श्री पुष्पदन्त जैनसंघ, सेटेलाईट, अहमदाबाद के लिए आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा. के आगामी चातुर्मास के लिए भी जय बोलाई गई।
पूज्य राष्ट्रसन्तश्रीजी की प्रेरणा से निर्मित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर के कार्यकर्ता पंडित डॉ. हेमन्तकुमारजी के द्वारा ज्ञानमन्दिर की विशिष्ट उपलब्धियों के विषय में जानकारी दी गई। ___ विश्वप्रसिद्ध श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, कोबातीर्थ के द्वारा हस्तप्रतों के विवरणों को प्रकाशित करनेवाले कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची, भाग-२८ का विमोचन उपस्थित महानुभावों के करकमलों से किया गया। इसके अतिरिक्त अप्रकाशित बोधगर्भित कृतियों को प्रकाशित करनेवाले रास पद्माकर, भाग-४ का भी विमोचन किया गया।
इस शुभ अवसर पर पारसमणि जैनसंघ, अहमदाबाद तथा सीमंधरस्वामी जैनसंघ, मेहसाणा में प्रतिष्ठा हेतु भी शुभ मुहूर्त प्रदान किया गया।
अन्त में पूज्य राष्ट्रसन्तश्री ने कहा कि आप सभी उपस्थित महानुभाव मेरे लिए ऐसी शुभकामना दें कि मेरा जन्म-मृत्यु का चक्र पूर्ण हो जाए और मैं मुक्तिपद को प्राप्त करूँ ।
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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१९ उन्होंने बतलाया कि जन्मदिवस मनाना तो एक व्यवहार मात्र है, परन्तु वास्तव में इसके निमित्त जीवदया, अनुकम्पा तथा श्रुतभक्ति जैसे महान कार्य होते हैं, इसलिए मैं मौन सहमति देता हूँ। उन्होंने गद्गद स्वर में अपने गुरुदेव के उपकार को स्मरण करते हुए कहा कि ये जो भी सुकृत हो रहे हैं, उनमें पूज्य गुरुश्री की कृपा का ही प्रभाव है। अन्त में उन्होंने उपस्थित सभी गुरुभक्तों को अन्तर्हृदय से आशीर्वाद प्रदान किया।
पूज्यश्री के जन्मदिवस के निमित्त राजनगर के विभिन्न संघों के जिनालयों में प्रभुजी की भव्य आंगी, जीवदया, अनुकम्पा तथा अभयदान आदि की विविध प्रवृत्तियाँ, विद्यार्थियों को अभ्यास हेतु अध्ययन सामग्री का वितरण, लोकोपकार के कार्य आदि का सुन्दर आयोजन किया गया था।
आज के ८५वें जन्मदिवस को “सेवादिन” के रूप में मनाने के उद्देश्य से निःशुल्क नेत्रकैम्प का आयोजन किया गया था, जिसमें अनेक लोगों ने लाभ लिया था। छोटे-बड़े गाँवों में २०हजार से अधिक वस्त्रों का वितरण किया गया, सरकारी स्कूलों तथा अस्पतालों में फलों तथा मिठाईयों के पैकेट बाँटे गए। साथ ही अनाज के किटों का भी वितरण किया गया। इसके अतिरिक्त अभयदान के द्वारा जीवदया के क्षेत्र में भी सुन्दर कार्य किए गए।
इस सम्पूर्ण महोत्सव का मुख्य लाभ मातुश्री शांताबेन शांतिलाल भूदरमल अदाणी परिवार तथा विशिष्ट सहयोगी के रूप में श्री भरत कुमारपाल कांकरिया, श्री किरणकुमार जयकुमार परम बेंगानी, श्री मदनलालजी ओटमलजी वेदमूथा, रेवतडा, बैंगलोर के द्वारा लिया गया। मुख्य लाभार्थी गुरुभक्त मातुश्री शांताबेन शांतिलाल भूदरमल अदाणी परिवार की तरफ से उपस्थित मेहमानों के लिए नवकारशी तथा समारोह के अन्त में स्वामिवात्सल्य का लाभ लिया गया इसके साथ ही लाभार्थी व गुरुभक्त परिवार की तरफ से उपस्थित सभी को तिलक कर संघपूजन किया गया। दि. ९-९-२०१९ को अनुष्ठानपर्व के रूप में जिनालय में “संतिकरं स्तोत्र अभिषेक अनुष्ठान” किया गया।
कोबा में पर्युषणपर्व की भव्य आराधनाजापमग्न प.पू.आचार्य श्री अमृतसागरसूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रा में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र में पर्युषण की आराधना हेतु अलग-अलग संघों-गाँवों में से तथा कोबा व कुडासण के आसपास बने नये फ्लेट व सोसायटियों में से काफी मात्रा में आराधक पधारे थे। महावीरजन्मवांचन के दिन १४ स्वप्न व अष्टमंगल के चढावे, जीवदया, साधारण की टीप वगेरा में अभिवृद्धि नजर आई भी। क्षमापना के साथ सांवत्सरिक प्रतिक्रमण की आराधना भी अच्छी हुई थी।
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पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के
८वें जन्मदिवस समारोह की झलकियाँ
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गुजरात राज्य के गृहमंत्री श्री प्रदीपसिंह जाडेजा का बहुमान करते हुए श्री गौतमभाई अदाणी
पद्मश्री डॉ. कुमारपाल देसाई
का बहुमान करते हुए श्री वसंतभाई अदाणी
अदाणी-शान्तिग्राम में प्रतिष्ठित मूलनायक आदीनाथ भगवान का अभिषेक-पूजन
करते हुए भक्त
समारोह में उपस्थित
जनसमुदाय
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Registered Under RNI Registration No.GUJMUL/2014/66126 SHRUTSAGAR (MONTHLY). Published on 15th of every month and Permitted to Post at Gift City so, and on 20th date of every month under Postal Regd. No. G-GNR-334 issued by SSP GNR valid up to 31/12/2021. कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची, भाग-२८ व रास पद्माकर, भाग-४ का विमोचन करते हुए गृहमंत्री श्रीप्रदीपसिंह जाडेजा, शिक्षामंत्री श्री भूपेन्द्रसिंह चुडासमा, प्रसिद्ध उद्योगपति श्री गौतमभाई अदाणी, पद्मश्री डॉ. कुमारपाल देसाई, श्री पंकजभाई गांधी आदि विशिष्ट महानुभाव BOOK-POST / PRINTED MATTER प्रकाशक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा जि. गांधीनगर 382007 फोन नं. (079) 23276204, 205, 252 फेक्स (079) 23276249 Website : www.kobatirth.org email: gyanmandir@kobatirth.org Printed and Published by : HIREN KISHORBHAI DOSHI, on behalf of SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.&Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. And Printed at : NAVPRABHAT PRINTING PRESS, 9, Punaji Industrial Estate, Dhobighat, Dudheshwar, Ahmedabad-380004 and La Published at : SHRI MAHAVIR JAIN ARADHANA KENDRA, New Koba, Ta.& Dist. Gandhinagar, Pin-382007, Gujarat. Editor : HIREN KISHORBHAI DOSHI For Private and Personal Use Only