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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१९ गुरुवाणी
आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरिजी मंत्रसिद्धि के आत्मसिद्धि श्रद्धा विना अशक्य (संवत् १९६८ ना आशो शुदि २ ने शनिवार. ता. १२ मी अक्टोंबर १९१२.)
श्रद्धा विना कार्यनी सिद्धि थती नथी। श्रद्धाथी आत्मामां कार्य करवानी शक्ति वधे छे। श्रद्धा विना आत्मानी हानि थाय छे । मंत्रना आराधनमां पण श्रद्धा विना इष्ट सिद्धि थती नथी। पुत्रनी पिताना उपर श्रद्धा होय छे तो पिताना हाथे पुत्रनुं भलं थाय छ । पुत्रीनी माता उपर श्रद्धा होय छे तो पुत्री- हित करवामां मातानी लागणी प्रेराय छ। भक्तोनी गुरु उपर श्रद्धा होय छे तो गुरुना उपदेश वडे तेओर्नु कल्याण थाय छे। शिष्यनी गुरु उपर श्रद्धा होय छे तो गुरुनी वाणीनी असर सारी थाय छे अने गुरुना सदुपदेश प्रमाणे शिष्य प्रवर्ते छे, अने तेथी ते आत्मोन्नति करी शके छे । संशयशील आत्मा हणाय छे अने श्रद्धाशील आत्मामां उदय थाय छे। श्रद्धाना उपर एक शेठy अने कठीयारानुं दृष्टांत नीचे प्रमाणे समजवु -
एक नगरमा एक साधु रहेतो हतो, तेनी सेवा एक वणिक शेठ करतो हतो । गुरुने दररोज देवतानी साधना माटे विनंति करतो हतो पण गुरु तेने योग्य जाणता नहोता। एक दिवसे तेणे साधुने कां के मने मंत्र आपो। आप्या विना छूटको थवानो नथी। साधुए तेने मंत्र आपीने कडं के गामनी बहार एक वडतळे धूळनो ढगलो करी तेना उपर तरवार घोंचीने तुं झाड उपर चढीने मंत्र भणी भूशको मार के जेथी तने देवता तुरंत प्रत्यक्ष थशे। पेलो वाणियो गामनी बहार वडना झाड नीचे तरवार घोंची झाड उपर चढ्यो। मनमां विचारवा लाग्यो के शं आ वात खरी हशे? आ तो मारा नाशनो उपाय लागे छ । एम चिंतवी नीचे उतर्यो, पाछो वृक्ष उपर चड्यो अने पडवानी तैयारी करतां विचारवा लाग्यो के आ काळमां देवता क्यांथी आवे ? देवता हशे के केम ? साधुने भ्रान्ति थइ हशे अथवा तेओनुं वचन असत्य हशे ? आ प्रमाणे विचार करीने उतरतो हतो अने पाछो चढतो हतो । दश-बार वार एम चढ्यो ने उतर्यो । एवामां त्यां एक कठियारो भारी लेइने आव्यो तेणे शेठने बधुं वृत्तांत पूछ्युं । कठीयाराए ते कार्य करवानुं माथे लीधुं अने मंत्र शीखी वृक्ष पर चढीने मंत्र बोली पड्यो के तुरंत वचमांथी देवताए झीली लीधो अने इष्ट वर आप्यु।अने देवता जवा लाग्यो त्यारे शेठ कहेवा
(अनुसंधान पृष्ठ क्रमांक. २४ पर)
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