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SHRUTSAGAR
September-2019 संपादकीय
रामप्रकाश झा पर्यषणपर्व की समाप्ति और सांवत्सरिक क्षमापना के पश्चात् निर्मल हुई आत्मा ज्ञान की आराधना में विशेष रूप से तत्पर हो जाती है। ऐसे अवसर पर पूज्य राष्ट्रसन्त आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराजा के ८५वें वर्षप्रवेश की शुभ घड़ी में हमारा अन्तर्मन हर्षित और प्रफुल्लित हो रहा है। श्रुतसागर के प्रस्तुत अंक में अप्रकाशित व दुर्लभ सज्झायादि से सम्बन्धित कृतियों को स्थान दिया गया है।
प्रस्तुत अंक में सर्वप्रथम “गुरुवाणी” शीर्षक के अन्तर्गत इष्टसिद्धि हेतु श्रद्धा की अनिवार्यता को एक कठियारे के दृष्टान्त से सिद्ध करते हुए आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी म.सा. के विचार प्रस्तुत किए गए हैं। द्वितीय लेख राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के प्रवचनों की पुस्तक 'Awakening' से संकलित किया गया है, जिसमें अनेकांतवाद
और स्यादवाद पर प्रकाश डाला गया है। “ज्ञानसागरना तीरे तीरे” नामक तृतीय लेख में डॉ. कुमारपाल देसाई के द्वारा आत्मा की विलक्षणता के विषय में पूज्य आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजी के अनुभवों का वर्णन किया गया है।
अप्रकाशित कृति प्रकाशन के क्रम में सर्वप्रथम पूज्य गणिवर्य श्री सुयशचन्द्रविजयजी म. सा. के द्वारा सम्पादित “त्रण अप्रगट सज्झायो” के अन्तर्गत गुरुगुण से सम्बन्धित तीन लघु सज्झायों हेमविमलसूरि, हेमसोमसूरि तथा लक्ष्मीकल्लोलगणि के स्वाध्याय को प्रकाशित किया गया है। द्वितीय कृति के रूप में पूज्य साध्वी काव्यनिधिश्रीजी के द्वारा सम्पादित “२०स्थानक तप सज्झाय” कृति में तपागच्छीय विद्वान दीपविजयजी ने २० स्थानकों तथा प्रत्येक स्थानक के गुणों का संक्षिप्त वर्णन किया है, अन्त में २०स्थानक तप की विधि भी बतलाई गई है।
पुनःप्रकाशन श्रेणी के अन्तर्गत बुद्धिप्रकाश, ई.१९३४, पुस्तक-८२, अंक-२ में प्रकाशित “गुजराती माटे देवनागरी लिपि के हिंदी माटे गुजराती लिपि” नामक लेख में गुजराती भाषा को देवनागरी लिपि में अथवा हिन्दी भाषा को गुजराती लिपि में लिखे जाने की उपयोगिता और औचित्य पर प्रकाश डाला गया है।
पुस्तक समीक्षा के अन्तर्गत आचार्य श्री कीर्तियशसूरीश्वरजी म. सा. द्वारा रचित “आगमनी ओळख” पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है। इस कृति में अबतक प्रकाशित विविध आगमग्रंथों की टीका-विवेचन आदि का परिचय प्रस्तुत किया गया है।
गतांक से चल रहा “श्रुतसेवा के क्षेत्र में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर का योगदान” लेख प्रकाशित किया जा रहा है। इस अंक में कार्यकर्ताओं को दिलाए गए हस्तप्रत संरक्षण से सम्बन्धित विश्वस्तरीय प्रशिक्षण का वर्णन किया गया है।
हम यह आशा करते हैं कि इस अंक में संकलित सामग्रियों के द्वारा हमारे वाचक अवश्य लाभान्वित होंगे व अपने महत्त्वपूर्ण सुझावों से हमें अवगत कराने की कृपा करेंगे।
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