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September-2019
॥५॥
॥६॥
SHRUTSAGAR एतलइं धवल मंगल गाइं भामिनी ए अशुचि कर्म सवि सोषीअ, निअ सज्जन संतोषीअ। पेखीअ हरख घणउ सहू मनि धरई ए हरखकुंमार दीउं नाम ए, गुणे करी अभिराम ए। पामइ ए विद्या सघली अणभणी' ए कला गुणे करी दीपतुं, रूपइं रतिपति जीपतुं । ऊगतुं जाणे पुं(पू)निम चंदलु ए
॥७॥
॥८॥
दुहा
इणि अवसरि तसुजे हूउ, सुणज्यो भवीअण-वृंद। पूरव पुण्य पसाउलइ, ते करइ दुरीअ निकंद
॥९॥
___ चोपई
तपगच्छ गयणि उदयु दिणंद, श्रीगुरु सोमविमलसूरिंद। प्रणमइं सुर नर मुनिवर-वृंद, वारइ विरूआ सघला दंद
॥१०॥ चिंति धरइ को हुइ सुजाण, वयरसामि परि जाणइ नाण। वुहि(विह?)री दिउं पद दीपइ भाण, महीअलि वाधइ अधिकुं वान ॥११॥
ढाल भविकजन पडिबोहता, गुरुजी करइ विहार रे। रयणि पंच नयरि रहइ, गामइं एक ज रात्रि रे
॥१२॥ भलई भलई गुरुजी वंदीइ, सहु धरइ हरख अपार रे। ठामि ठामि आग्रह करइं, नवि रहइ दोइ एक मास रे ॥१३।। भलई...(द्रुपद) आग्रह करतां पहुतला, वडगाम नयरि मझारि रे। चउविह संघ साहा(ह)मइं मिलइ, नयरि कीउ परवेस रे ॥१४॥ भलइं... गुरुजी देसना तिहां दीइ, वाणी अमृतरेलि रे। हरखकुमार मनि बूझीआ, चारित्र हु अज' लेसि रे
॥१५॥भलइं...
ढाल चुविह संघ सहु देखतां, पभणइ हरखकुमार। २. भण्या वगर, ३. मनमां, ४. विहार करी, ५. अमृत वर्षा, ६. आज,
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