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श्रुतसागर
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सितम्बर-२०१९ कर्याथी पुण्यप्रभावना सुधीनी विगतो संक्षेपमां आलेखी छे । आपणे ते ज वात पद्योना उपक्रमे जोइए तो कृतिकारे काव्यनुं मंगलाचरण चोवीस जिनने तथा 'मां' सरस्वतीने नमन करवा द्वारा कर्यु छे। अहीं मंगलाचरणमां विशेष रूपे देखाती मंगल चतुष्टयनी उपस्थिति कृतिकारनी सुंदर कवित्वशक्तिनी निशानी छे । नहीं तो प्रायः आवी नानी रचनाओमां मंगल चतुष्टय ओछु जोवा मळे छ।
कृतिनी प्रथम ढाल आगळनी कृतिनी जेम ज अहीं पण कविए चारित्रनायक माता-पिता-ग्रामादिकना नामो, दांपत्यसुखना, पुत्रजन्मोत्सवना, नामकरणना, विद्याध्ययनना निरूपणमां फाळवी छे । आ ढाळमां विशेष रूपे पद्य क्र. ८मां करायेली १२ दिवस पछी जन्मोत्सव कर्यानी नोंधने तत्कालिन रीत-रिवाजनी परिपालना कही शकाय। सद्गुरुना उपदेशथी मात्र नव वर्षनी लघुवयमां वैराग्यवासित थयेला रतनकुमारना माता साथे थयेलो संवाद त्यारपछीनी ढाळनो पूर्वार्ध छे। ज्यारे उत्तरार्ध संयमना परिणाममां राचतो ते बाळक माता-पिता पासेथी संयम ग्रहण करवानी अनुमति पाम्यो तेनी अने दीक्षा ग्रहण कर्या बाद समता, कषायविजयादि गुणोने धारण करनारा एवा ते मुनिश्रीने पद योग्य जाणी सं. १५८१मां श्रीहेमविमलसूरिजी वडे स्वहस्ते उपाध्याय पद अपायानी विगत वर्णनानो छे।।
त्यार पछीनी एटले के काव्यनी अंत्य ढाळ मुख्यतया उपा. श्रीना गुणवैभवने दर्शावती कडीओ छ। विशेषमा अहीं पद्य क्रमांक २७मां कवि वडे जणावाएली पू. सौभाग्यहर्षसूरिजी वडे उपा. लक्ष्मीकल्लोलजीने पंडित पद अपायानी काव्यनी ऐतिहासिक सामग्री छे। तेमांय खास तो उपाध्याय पद अपाया पछी पंडित पद अपायानी नोंध तत्कालिन साधुसमाजना पद व्यवहार- कथन करती वधु महत्वपूर्ण बीना गणाय । छेल्ले काव्यांतमां कविए काव्यना पठन-पाठनथी थता लाभोने वर्णवी स्व-नामोल्लेख पूर्वक काव्यनं समापन कर्यं छे। काव्यमां तेमज अन्य ठेकाणे कविश्रीना जीवन अंगे विशेष परिचय मळतो नथी। तेथी तेनी तपास करवी घटे।
पंडित श्री लक्ष्मीकल्लोल-गुरुसज्झाय
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चउवीसइ जिन मनि धरी, सरसति समरुं नाम । गोयम गणधर वीनवं, सहिगुरु करुं प्रणाम मनशुद्धि पंडित प्रवर, गाइसु धरी उल्लास।
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