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सितम्बर-२०१९
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श्रुतसागर
24 चारित्र इग्यारमें गणो, हो जी छ सत्तर सूविचार। बंभवयस गणो बारमें, हो जी नव अढार श्रीकार तेरमें किरियाणं पदे, हो जी तेर अधीक पचवीस। नमो तव सपद बारमें, हो जी बार भेद मन इस पद पनरमें गोयमस, हो जी अठ्ठावीस गुणधार। जिणाणं नमो सोलमें, हो जी गणो वीस करी मन सार अढार में नाणस्स भलो, हो जी पचगुणे सोहंत। ओगणीसमें पदे सूअस्स, हो जी पिस्तालीस मोहंत वीसम(में)द पदें ध्यावो तित्थस्स, हो जी पंचगुणनो निधान । वीसनाम ए तप तणां, हो जी धारी करो बहूमान ॐ ह्री मंत्राक्षर संजू(यु)क्ते, हो जी गणो जपमाला वीस । एकेक पद गू(गु)ण संग्रही, हो जी लोगस काउसग इस एकेक पदें सूखीया थया, हो जी देवपालादि राजान। कृष्णविजय गुरु नामथी, हो जी दीपें सदा निज ज्ञान
॥ इति श्री विसथानक सज्झाय छे ।
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(अनुसंधान पृष्ठ क्रमांक. ६ से) लाग्यो के हे देव उभा रहो ! हवे हुं मंत्र भणी झाड परथी पडु छु । देवताए कडं के हवे माथाकूट न कर! हवे पडीश तो मरी जइश । ए तो विश्वासथी कार्य थाय छे। आ प्रमाणे कही देवता अन्तर्धान थइ गयो। आ दृष्टांत उपरथी समजवायूँ के श्रद्धाथी दैवीशक्तियो खीले छे, श्रद्धाथी नानुं बाळक माताना खोळामां रमे छे अने तेनुं पोषण थाय छे । श्रद्धा विना कोइ पण कार्य करी शकातुं नथी। श्रद्धा विना दुनियानो व्यवहार चाली शके नहीं। परोक्ष एवा परमात्मा उपर पण श्रद्धा विना भक्ति रहे नहि। श्रद्धा एज धर्मनु मूळ छे।
धार्मिक गद्य संग्रह भाग.१
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