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SHRUTSAGAR
September-2019 देवपाल विगेरे सुखी थयानुं विधान छे, तो आवो वीशस्थानक तप सौए आदरवो जोईए। कर्ता परिचय
आ कृतिना कर्ता तपागच्छीय विद्वान कृष्णविजयजीना शिष्य पं. दीपविजयजी छ । तेमनी अन्य रचनाओ पण मळे छे, जेमां सीमंधरजिन स्तुति, शांतिजिन स्तवन, २४ जिन स्तवन अने सम्यक्त्वविचारगर्भित महावीरजिन स्तवन आदि। रचना संवत् १८७७ मळे छे। जैन गुर्जर कविओ भाग-६ पृष्ठ २९७-२९८ पर एमनो संक्षिप्त परिचय आपेल छे। प्रत परिचय
प्रस्तुत कृतिनुं संपादन कार्य आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरनी एकमात्र हस्तप्रत क्रमांक-५२५५३ ना आधारे करवामां आव्यु छे। आ प्रति मात्र एक पत्रनी छे, प्रतना अक्षर सुंदर अने सुवाच्य छ। आ कृति पत्रांक-१अ थी १आ पर आवेली छ । प्रतमां १२ पंक्तिओ छे अने प्रत्येक पंक्तिमा ३६ थी ४२ अक्षरो छे । हस्तप्रतनी लेखन शैली अने पत्रना आधारे प्रतनुं लेखन वर्ष १९वीं अनुमानित मानी शकाय छे ।
on ॥ काली में पीली वादली ए देशी॥ सरसती(ति) निज गुरुनें सदा, हो जी प्रणमू जुगल चरणेण। विसथानक व(?) तपविध भणु, हो जी भाव धरी विनयेण भवि कीजें रे मन रीजें रे, अक्षय सूख लेवा कारणे ए तप सोय ए आंकणी ... प्रथम पदें अरिहंतना, हो जी बार चोवीस सुप्रतिष्ठ । ध्यावो सिद्ध बीजें पदें, हो जी आठ एकत्रीस सूसीष्ठ
॥२।।भ०... पवयणस पद त्रीजें नमो, हो जी सात तथा नवमीष्ट ।
आयरीयाणं चोथे पढ़ें, हो जी धारो छत्रीस गुण इष्ट नमो थिराणं पंचमें, हो जी धारक दश गुण सोय । उवज्झायाणं पद छठे, हो जी गुण पचवीस जस जोय सातमें पदें सव्वसाहूणं, हो जी एकवीस तिम सगवीस । नमो नाणस वली आठमें, हो जी गुण एकावन सुजगीस नवमें दंसण पद ध्याइइं, हो जी सडसठ करी मनरंग। विनयस्स पद दसमें भजो, हो जी दस गू(गु)ण हृदयसु चंग ॥६॥भ०...
॥१॥
॥३॥भ०...
॥४॥भ०...
॥५॥भ०...
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