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श्रुतसागर
सितम्बर-२०१९ ज्ञानसागरना तीरे तीर (योगनिष्ठ आचार्य श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी महाराज:३)
डॉ. कुमारपाल देसाई (गतांकथी आगळ..)
आत्मानुभव विलक्षण होय छे । एनी विलक्षणता संवत १९७१ना पोष सुद १०नी राने थयेला अनुभवमां नजरे पडे छे। आ अनुभव घणो गहन होय छे अने तेओ पोताना आत्मानुभवने शास्त्रीय परिभाषाथी प्रगट करतां कहे छे -
“पोष सुदि दशमनी रात्रे आत्मा अने परमात्मानी एकताना ध्याननो दीर्घकाल, सतत प्रवाह रह्यो अने तेथी जे आत्मानंद प्रगट्यो तेनुं वर्णन करी शकाय तेम नथी। आत्मानी निष्काम दशाना सत्यसुखनो अपूर्व साक्षात्कार खरेखर अनुभवमां भास्यो ते वखते रागद्वेषनी उपशमता विशेषतः प्रकटेली देखाई। एकलारा गाममां निवृत्ति स्थल वगेरे कारणोथी अपूर्व आत्मसुख अनुभवायु । उपाधि रहित दशामां शुद्धोपयोगे सहज सुख अनुभववामां आवे छे।” ___ पछीनी रात्रिनो अनुभव लखतां तेओ कहे छे :
“देशोत्तरमा रात्रिना वखतमां आत्मानी अपूर्व समाधिमां विशेष काल वीत्यो।” ए पछी पोष वद १ना दिवसे ईडरगढना विहार दरमियान तेओ लखे छे –
“रणमल्लनी चोकी पासेनी धूणीवाळी गुफामां अग्निना चोतरा पर अडधो कलाक ध्यान धर्यु तेथी आत्मानी स्थिरता संबंधी अपूर्वभाव प्रकट्यो अने तेथी अपूर्व सहजानंद प्रकट्यो। आवी ध्यानस्थितिमां सदा रहेवाय ए ज आंतरिक उत्कट भावना छे एवो अधिकार प्राप्त थाओ।”
नवा वर्षनी मंगलयात्राना आरंभे आ आत्मज्ञानीनी जे भावनाओ भाळी हती, एनो वर्षने अंते हिसाब पण तेओ करे छे, अने वर्षभरनी प्रवृत्तिमांथी ज्ञान अने ध्याननी प्रवृत्तिने ज जीवनपथना विकासनी निदर्शक माने छे, आथी वर्षने अंते आ प्रवृत्तिनी प्रगतिनो हिसाब तेओ लखे छे -
“आजरोज भाव दिवाळीनो अंतरमां अनुभव थयो।
“संवत १९७१नी साल धार्मिक जीवनमा प्रशस्य नीवडी। विहार, यात्रा वगेरेथी आत्मानी स्थिरतामा वृद्धि करी, रागद्वेषनी खटपटमां कोईनी साथे उतरवार्नु थयु
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