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॥ श्रीः ॥ विद्याभवनसंस्कृतग्रन्थ ाला
६३ com
।। श्रीः
॥
ज्यौतिष-प्रश्न-फलग ना
'विमला'हिन्दाव्याख्योपेता
व्याख्याकार और सम्पादक :दैवज्ञ श्रा ५० दयाशङ्कर उपाध्याय ( काशिराज-ज्योतिपो, रामनगर, वाराणसी )
चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-१
.
१९७५
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प्राक्कथन
अप्रत्यक्षाणि शास्त्राणि विवादस्तेषु केवलम् । प्रत्यक्षं ज्योतिष शास्त्रं चन्द्राौं यत्र साक्षिणी ।।
तथा च शुभक्षणक्रियारम्भजनितापूर्वसम्भवाः ।
सम्पदः सर्वलोकानां ज्यौतिषस्य प्रयोजनम् ॥ शुभ लक्षण में किये हुए आरम्भ कर्मों से उत्पन्न पुण्य के द्वारा सकल प्राणियों की सम्पत्तियों की प्राप्ति 'ज्योतिष शास्त्र के ही अनुग्रह से होती है । 'ज्यौतिष' के समान प्रत्यक्ष शास्त्र दूसरा कोई नहीं है, सूर्य-चन्द्रमा इसके साक्षी हैं ।
ज्योतिष शास्त्र के मुख्य तीन स्कन्ध ( भेद ) हैं। १. गणित स्कन्ध, २. होरा स्कन्ध और ३. संहिता स्कन्ध । गणित स्कन्ध के द्वारा-भूगोलखगोल आदि का ज्ञान होता है। होरा स्कन्ध में जातक, ताजक और प्रश्न यह तीन प्रकार हैं और संहिता स्कन्ध में गर्गादि संहिता, रमल के ग्रन्थ, स्वरशास्त्र, शकुनग्रन्थ, सामुद्रिक, वास्तु विद्या और मुहूर्त के ग्रन्थ हैं।
यद्यपि 'ज्योतिष' के सब विषय के ग्रन्थ को पढ़ना आवश्यक है, परन्तु 'प्रश्नफल गणना' यह विषय ऐसा है कि-इसके बिना किसी धर्मावलम्बी का क्षण-मात्र भी कार्य नहीं चल सकता। प्रतिदिन अनेकों प्रकार के 'प्रश्न फल' जानने की आवश्यकता पड़ती रहती है, अतः सर्वसाधारण के हितार्थ 'षडङ्गवेद' का 'नेत्रभूत' ज्योतिःशास्त्रान्तर्गत 'प्रश्न' ग्रन्थ ही तात्कालिक अद्भुत फल कहने में प्रधानतया सर्वोपरि विराजमान है।
प्राचीन उत्तम-उत्तम प्रश्न के बृहद् ग्रन्थ जैसे
षट्पञ्चाशिका १, प्रश्नप्रदीप २, भुवनदीपक ३, प्रश्नभैरव ४, प्रश्नसिन्धु ५, प्रश्नशिरोमणि ६, प्रश्नचण्डेश्वर ७, प्रश्नमार्ग ८, प्रश्नज्ञानप्रदीप ९, प्रश्नदीपिका १०, प्रश्नभूषण ११ आदि अनेकों ग्रन्थ उपलब्ध है एवम् इस प्राचीन
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( २ )
'प्रश्नफल गणना' में 'प्रश्न' के अनेक तरह के फलादेश के लिये षट् प्रकार से वर्णन है और परिशिष्ट में श्री महादेव-देवी का संवाद वर्णन है । जो मुष्टिकादि प्रश्न- ज्ञान के लिये अद्भुत है । इसमें सर्वसाधारण मनुष्यमात्र के लिये सरल, सुबोध भाषा टीका में ज्योतिष शास्त्र के तीन स्कन्धों का तत्त्वभूत है ।
से
महर्षि प्रणीत नाना प्रश्न ग्रन्थों का सार रूप 'प्रश्नफल गणना' नाम ग्रन्थ प्रकाशित किया गया है । आशा है समस्त सज्जन इससे लाभ उठायेंगे और इसमें जहाँ-कहीं त्रुटि, अशुद्धि हो उसको सुधार कर क्षमा करेंगे ।
मकर संक्रान्ति वि० सं० २०१९
}
निवेदकदयाशकंर उपाध्याय
यह
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विषय-सूची
...
प्रथमं प्रकरणम्
चर-स्थिर-द्विस्वभावप्रश्नः द्वितीयं प्रकरणम्
केरलीप्रश्नः तृतीयं प्रकरणम्
बीजप्रश्नः चतुर्थं प्रकरणम्
ध्वजादिसर्वोपयोगिप्रश्नफलम् ध्वजादिस्वामिनः अस्ति-नास्तिप्रश्न: लाभाऽलाभप्रश्न: नष्टलाभालाभप्रश्न: दिक्षुनष्टवस्तुज्ञानम् नष्टस्य स्थानान्तरगतज्ञानम् प्रवासि-कुशलप्रश्नः प्रवासि-चर-स्थिरप्रश्नः प्रवास्यागमनप्रश्नः प्रवास्यागमनकालनिर्णयः धातु-जीव-मूलचिन्ताप्रश्नः सुवर्णादिधातुविचारः मुष्टिप्रश्नः मुष्टिगतवस्तुवर्णज्ञानम् कन्यापुत्रजन्मप्रश्नः आयुःप्रमाणम्
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( २ )
शत्रोरागमनप्रश्नः जय-पराजय-प्रश्नः वृष्टिप्रश्नः नक्षत्रगर्भविचारः दिनादिनप्रश्नः स्त्रीलाभप्रश्नः व्यवहारप्रश्न: नौकाप्रश्नः राज्यप्राप्तिप्रश्नः अधिकारप्राप्तिप्रश्न: ग्रामप्राप्तिप्रश्नः कार्यसिद्धिप्रश्नः वन्दिमोचनप्रश्नः W कालनियमप्रश्न:
देवपूजाप्रश्न:
ग्रहदानवस्तुनामानि पञ्चमं प्रकरणम् : प्रश्नाष्टकम्
ध्रुवांकाः
अक्षरांकध्रुवाः षष्ठं प्रकरणम्
अर्कमूलाधारेण शुभाशुप्रश्नः परिशिष्टम्
मुष्टिकादिप्रश्नज्ञानम्
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11 77: 11
ज्यौतिष - प्रश्न - फलग पना
१. मेष - चर
२. वृष - स्थिर
३. मिथुन - द्विस्वभाव ४. कर्क
-चर
अथ प्रथमं प्रकरणम्
चर - स्थिर - द्विस्वभाव-विधायकचक्रम्
६. कन्या - 1
- द्विस्वभाव
१२. मीन - द्विस्वभाव
चरे लग्ने घरे सूर्ये चरराशौ तदा सिद्धिफलं नूनं वक्तव्यं
शशी यदा । गणकोत्तमैः ॥ १ ॥
जिस समय प्रश्न करने वाला कोई मनुष्य किसी कार्य विषय का प्रश्न करे:- उस काल में मेष - कर्क इत्यादि कोई चर लग्न वर्त्तमान हो और इन राशियों में अर्थात् चर ही राशि में सूर्य हो और चन्द्रमा भी चर ही राशि का हो तो कार्य की सिद्धि निश्चय करके कहना चाहिये ॥ १ ॥
चरलग्ने घरे सूर्ये स्थिरे राशौ शशी भवेत् । तदा सिद्धिनं वक्तव्यमशुभं च भविष्यति ॥ २ ॥ यदि प्रश्न काल में लग्न चर हो और चर राशि में चन्द्रमा हो तो कार्य की सिद्धि नहीं कहना ।। २ ।। चरलग्ने स्थिरे सूर्ये चन्द्रमा स्थिर एव I कार्यभ्रंशो न सख्यं लग्न चर हो कार्य का नाश
च विग्रहं च पदे पदे ॥ ३ ॥
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प्रश्न काल में ही लग्न में हो तो
७. तुला — चर
८. वृश्चिक - स्थिर
९. धनु - द्विस्वभाव
१०.
मकर-चर
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राशि का सूर्य हो और स्थिर
और स्थिर में सूर्य हो और चन्द्रमा भी स्थिर कहना और यदि मित्रता का प्रश्न हो तो
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ज्यौतिषप्रश्नफलगणना
किसी का उस समय चर लग्न हो, स्थिर में सूर्य-चन्द्रमा हो तो सहय नहीं कहना पद-पद में विग्रह कहना ॥ ३ ॥
चरलग्ने स्थिरे सूर्ये चरभावे शशी यदा ।
तदा लाभो धनं धान्यं वृद्धिभावश्च दृश्यते ॥ ४ ॥
और प्रश्न समय का लग्न चर हो और स्थिर में सूर्य हो और चर राशि के जो चन्द्रमा हो तो लाभ धन, धान्य की वृद्धि कहना ॥ ४ ॥
चरलग्ने द्विस्वभे सूर्ये चरे वा चन्द्र एव च । महदुःखं महाभयम् ॥ ५ ॥
बन्धनं च महाक्लेशो
प्रश्न काल में लग्न घर हो और द्विस्वभाव जो मिथुन- कन्या आदि उसमें सूर्य हो और चन्द्रमा चर राशि का हो तो बन्धन महाक्लेश-दुःख-भय कहना ॥५॥ चरलग्ने द्विस्वभे सूर्ये द्विस्वभावेषु चन्द्रमाः ।
बन्धनं द्रव्यनाशं च चित्तमुद्वेगकारकम् ॥ ६ ॥
जो प्रश्न लग्नचर हो और द्विस्वभाव मे सूर्य हो और चन्द्रमा भी हिस्वभाव का होतो तो बन्धन : व्य का नाश चित्त में उद्वेग करे || ६ || WWW
Com
मध्यमं तं विजानीयात् फलसिद्धिर्न दृश्यते ॥ ७ ॥ प्रश्न का लग्न चर हो और स्थिर मे सूर्य हो और द्विस्वभाव में चन्द्रमा हो तो मध्यम फल कहना - कार्य की सिद्धि न करेंगे ॥ ७ ॥
चरलग्ने द्विस्वभे सूर्ये स्थिरराशी गतः शशी ।
मध्यमं च विजानीयात् फलसिद्धिर्न दृश्यते ॥ ८ ॥
जो प्रश्न लग्न चर हो और द्विस्वभाव में सूर्य हो और चन्द्रमा स्थिर राशि में हो तो भी मध्यम फल कहना - फल की सिद्धि न करेंगे ॥ ८ ॥
चरलग्ने चरे सूर्ये द्विस्वभावेषु चन्द्रमाः । क्षेमं सौख्यप्रसिद्धिश्व पुत्रवृद्धिर्धनागमः ॥ ९॥
प्रश्न लग्न चर हो और चर राशि में सूर्य स्थित हो और द्विस्वभाव में चन्द्रमा वर्तमान हो तो क्षेम सुख की सिद्धि, पुत्र की वृद्धि - धनागम
करेंगे ॥ ९ ॥
१० ॥
स्थिर लग्ने द्विस्वभावे शशी सूर्यो यदा भवेत् । जयप्राप्ति समाप्नोति सिद्धिः सौख्यं शुभं भवेत् ॥ प्रश्न लग्न स्थिर हो और द्विस्वभाव में चन्द्रमा प्राप्त हो और सूर्य भी द्विस्वभाव में हो तो जय की प्राप्ति और सम्यक् प्राप्ति हो -- सब कार्य की सिद्धि सुख और कल्याण की प्राप्ति हो ।। १० ।।
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'विमला' म्याग्योपेण स्थिर लग्ने द्विस्वभे सूर्ये घरे चन्द्रः प्रवर्तते ।
क्लेशः शरीरचिन्ता च धनहानिस्तु निषितम् ॥ ११ ॥ प्रश्न लग्न स्थिर हो और द्विस्वभाव में सूर्य हो और चर में चन्द्रमा स्थित हो तो शरीर में क्लेश हो, चिन्ता हो और धन को हानि निश्चय हो ।। ११ ॥
स्थिरलग्ने चरे सूर्ये स्थिरे चन्द्रो भवेत्तदा ।
मित्रबन्धुविनाशं च न स्त्रीसौख्यं न चात्मनः ॥ १२॥ जो प्रश्न लग्न स्थिर हो और चर लग्न में सूर्य वर्तमान हो और चन्द्रमा स्थिर में हा तो मित्र-बन्धु का विनाश हो और न तो स्त्री को और न तो अपने शरीर को सुख हो ।। १२ ।।
स्थिरलग्ने चरे सूर्ये द्विस्वभावे निशाकरः ।
सर्वसौख्यं महासिद्धिाभसौख्यं धनागमः ॥ १३ ॥ जो प्रश्न लग्न स्थिर हो और चर राशि में सूर्य हो, द्विस्वभाव में चन्द्रमा हो तो सर्व कार्य का सुख, महासिद्धि, लाभ का सौख्य, धनागम हो ॥ १३ ॥
स्थिरलग्ने चरे सूर्ये चन्द्रमाः स्थिर एव च । /WV सर्वकार्ये भवेत सिद्धिर्धनः-धर्मप्रवर्द्धनम् ॥ १४॥ OLLL
जो प्रश्न लग्न स्थिर हो और चर राशि में सूर्य प्राप्त हो और चन्द्रमा भी स्थिर ही में हो तो सर्व कार्य की सिद्धि और धन-धर्म की वृद्धि हो ॥ १४ ॥
स्थिरलग्ने द्विस्वभे सूर्य स्थिरे चन्द्रः प्रवर्तते ।
राज्यप्राप्तिर्धनप्राप्तिः सर्वसौख्यं जयङ्करः ॥ १५॥ जो प्रश्न लग्न स्थिर हो, द्विस्वभाव में सूर्य स्थित हो और चन्द्रमा भी स्थिर ही में वर्तमान हो तो राज्य की प्राप्ति, धन की प्राप्ति, सर्वविषयक सुख और जय को देनेवाला हो ॥ १५ ॥
स्थिरलग्ने स्थिरे सूर्य द्विस्वभावे निशापतिः ।
चतुष्पदानां हानिः स्याद् व्याधिक्लेशं ध्रुवं भवेत् ॥ १६ ॥ प्रश्न लग्न स्थिर हो और स्थिर में सूर्य स्थित हो और द्विस्वभाव में चन्द्रमा हो तो चतुष्पादों की हानि, व्याधि और क्लेश निश्चय कहना ।। १६ ॥
द्विस्वभावे व लग्ने च द्विस्वभेऽर्के चरे शशी।
भूलाभः स्थानलाभश्च स्वजनैः सह संपदः ॥१७॥ जो प्रश्न लग्न द्विस्वभाव हो और द्विस्वभाव ही में सूर्य हो और चर राशि में चन्द्रमा हो तो पृथ्वी का लाभ, स्थान का लाभ स्वजनों से सम्पत्ति हो ॥१७॥
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ज्यौतिषप्रश्नफलगणना द्विस्वभावे यदा लग्नं चरे के द्विस्वभे शशी।
सुतलाभो मनस्तुष्टिविद्यालाभो धनागमः ॥१८॥ यदि लग्न द्विस्वभाव हो और चर राशि में सूर्य हो और चन्द्रमा द्विस्वभाव में हो तो पुत्रलाभ, मन को प्रसन्नता, विद्यालाभ और धनप्राप्ति हो ॥ १८ ॥
द्विस्वभावेषु लग्नेषु सूर्यो वा स्थिरराशिष ।
द्विस्वभावे मृगांकश्चेत् पुत्रनाशो भवेद्धृवम् ॥ १९ ॥ जो लग्न द्विस्वभाव हो और सूर्य स्थिर राशि का हो और चन्द्रमा द्विस्वभाव का हो तो पुत्र का नाश निश्चित हो ॥ १९ ॥
द्विस्वभावेषु लग्नेषु चन्द्रसूर्यों चरस्थिरौ ।
लाभयोगं विजानीयान्मनः सिद्धिः सदा सुखम् ॥ २० ॥ जो लग्न प्रश्नकाल में द्विस्वभाव का हो, और चन्द्रमा-सूर्य क्रमशः चर राशि स्थिर राशि में हो तो लाभ का योग जानना चाहिए और मनोकामना की सिद्धि हो और हमेशा सुख प्राप्त हो ॥ २० ॥
द्विस्वभावं या लग्नं चरेऽर्क: स्थिरचन्द्रमाः ।। WWWमहालाभं महासौख्यं यशःसौभाग्यसम्पदः ॥२१॥Com
प्रश्न लग्न द्विस्वभाव का हो और सूर्य चर राशि का हो और चन्द्रमा स्थिर राशि का हो तो महालाभ, महासोल्य, यश, सौभाग्य, धन, सम्पत्ति हो ॥२१॥
द्विस्वभावं यदा लग्नं स्थिर वा रविचन्द्रमाः ।
सर्वसौख्यं विजानीयाल्लाभयोगो महाफलम् ॥ २२ ॥ यदि प्रश्नकालीन लग्न द्विस्वभाव हो और सूर्य-चन्द्रमा दोनों स्थिर राशि में प्राप्त हों तो सर्व विषयक सुख जानना-लाभ का योग और अत्यन्त फलकारी हो ॥ २२ ॥
द्विस्वभावे यदा लग्ने द्विस्वभावे शशी रविः ।
अशुभ शकुनं चैव हानिरुद्वेगकारकम् ॥ २३ ॥ यदि प्रश्न का लग्न द्विस्वभाव हो और द्विस्वभाव में सूर्य-चन्द्रमा भी प्राप्त हो तो शकुन अशुभकारक होगा और हानि तथा उद्वेगकारक होगा ॥ २३ ॥
द्विस्वभावं यवा लग्नं स्थिरेऽके च निशाकरे।
पान्यस्यागमन शीघ्रं सर्वसौख्यं जयसूरः ॥ २४ ॥ यदि प्रश्न लग्न स्विभाव हो और स्थिर राशि में सूर्य-चन्द्रमा दोनों प्राप्त हों तो पथिक का आगमन शीघ्र करे और सर्व सौख्य, जयकारक हो ॥ २४ ॥
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अथ द्वितीयं प्रकरणम्
अथ केरलीप्रश्नः केरलीपञ्चचक्रम्
ॐ ह्रीं श्रीं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा ॐ सिद्धिः ॥ इति मंत्रेण त्रिवारमभिमंत्र्य पूगीफलं पृच्छकहस्ते दत्त्वा पञ्चाविति वदेत् ॥ भो पृच्छक पूगीफलं पञ्चकानां मध्ये क्षेप्यं पुनद्वितीयपञ्चके क्षिप्यताम उभयोरंकवोर्मेलने कृते यदि,११ तदा वदेत भो पृच्छक तव वांछितफलं भविष्यति न संदेहः स्थानान्तरे ततो विदेशे कार्य कृत्वा समागमिष्यसि गमने कृषिवागिज्यादिगुविणोरोगिप्रश्नादौ सिद्धिर्वाच्या ॥१॥
जिस समय प्रश्नकर्ता मनुष्य आकर प्रश्न करे उस समय एक पूर्गः फल उपर्वक्त मंत्र से अभिमंत्रण करके अर्थात् फंक के पूछने वाले के हाथ में देकर पीछे यह कहे कि इस पूगीफल को पहिले पाँच कोठों में से किसी कोठे में रखो फिर दूसरे पाँचों कोठों में भी इसी तरह रखाये अनन्तर दोनों कोठों के अंक को मिलाये अर्थात् पहिले पांचों में से जिस कोठे में सुपारी उसने धरी हो उसका अंक और दूसरी बार नीचे पांचों में से 'जस कोठे में घरी हो उम कोठे का अंक मिलाने से ग्यारह हो तो कहे कि, हे पच्छक ! तुम्हारा मनोरथ सफल होगा निःसन्देह, परन्तु दूसरे स्थान में तदनन्तर विदेश में कार्य करके आगमन होगा। गमन प्रश्न में, कृषि-वाणिज्य वगैरह गर्विणी-रोगी प्रश्नादि में ११ इस अंक के आने पर सर्वत्र सिद्धि कहना ॥१॥
याकमेलने १२ तदा देवकावं कुरु विलंबात्कार्यसिद्धिः ॥ २॥ यदि १३ तदा वदेत् तव कार्य बहवो विघ्नाः सन्ति अन्यच्चितय ॥३॥
यदि १४ तवा वदेत् त्वया यन्मनसि चिन्तितं तत्सर्व भविष्यति नात्र संदेहः सर्वत्र वृद्धिः ॥ ४॥
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ज्योतिषप्रश्नफलगणना यदि १५ तवाभीष्टसिद्धिः, संदेहं माकुर, सोत्साहो भव ॥५॥
यचंकमेलने २१ तदा तव कार्ये कापि चिन्तोत्पन्ना द्वेषा कार्ये मतिर्जाता तो दूरीकुरु कार्य भविष्यति जीववृद्धिः ॥ ६॥
जो दोनों कोष्टों के अंक मिलाने से १२ बारह हो तो प्रश्नकर्ता से कहे कि देवतासम्बन्धी कार्य पूजन वगैरह करो, विलंब से कार्य की सिद्धि होगी ॥२॥
जो दोनों कोटों के अंक मिलाने से १३ अंक हो तो प्रश्नकर्ता से कहे कि तुम्हारे कार्य में बहुत से विघ्न हैं दूसरे की चिन्ता करो ।। ३ ।। ___ जो दोनों अंक के संयोग करने से १४ हो तो प्रश्नकर्ता से कहे जो तुमने मन में विचारा है वह सब निःसन्देह होगा जो जो प्रश्न करे सर्वत्र वृद्धि कहना ।। ४।
जो अंक १५ हो तो कहना कि तुम्हारा अभीष्ट सिद्ध होगा। सन्देह मत करो, चित्त में उत्साह करो ॥ ५ ॥
जो दोनों के अंक मिलाने से २१ हो तो कहना कि तुम्हारे कार्य में कोई चिन्ता उत्पन्न हुई है अर्थ में दो तरह की जो बुद्धि हुई है उसे दूर करो कार्य होगा, जीव की वृद्धि होगी ॥६॥
यदि २२ तवा स्वबाहुबलात् कार्यसिद्धिः । कश्चित्पुरुषः स्त्री वा कार्य प्रतिबध्नाति तं निजित्य कायं भविष्यति तस्य हानिः ॥७॥
यदि २३ तवा कार्य सविघ्नं प्रश्नो न शोभनः ॥ ८ ॥
यवि २४ सर्वकार्येषु मंगलं गमनागमनसेवायां जीवने मरणे तथा व्यापाराविष कार्येषु सिद्धिर्भवति नान्यथा ॥९॥
यदि २५ तदा तव मनोरथा अत्युच्चाः सिद्धिर्भविष्यति अन्येषां विश्वासं मा कुर स्वबाहुबलात् कार्यसिद्धिः ॥ १०॥
यद्यंकमेलने ३१ तदा यच्चिन्तितं तद्भविष्यति सर्वकार्ये सिद्धिः व्यापारे लाभः ॥११॥
जो दोनों अंक के संयोग से २२ हो तो कहे कि अपने बाहुबल से कार्य की सिद्धि होगी और कोई पुरुष या स्त्री सभी कार्य में विघ्न करता है उसकी जीत करके कार्य होगा। उसकी हानि होगी ॥७॥ ___जो दोनों मिलाने से अंक २३ हो तो कहना कि इस कार्य में विघ्न है यह प्रश्न अच्छा नहीं है ॥ ८॥
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TA
'विमला' म्याल्योपेता जो मिलाये हुए अंक २४ हों तो सब कार्य में मंगल होगा। जाने में, आने में, सेवा में, जीवन-मरण में और व्यापारादिक कार्य में सिद्धि होगी॥९॥
जो २५ हो तो कहना कि तुम्हारे मनोरथ बहुत बड़े हैं सिद्धि होगी औरों का विश्वास मत करो, अपने बाहुबल से कार्य करो॥१०॥
जो अंक मिलाने से ३१ हो तो कहना कि जो विचारा है सो होगा, सर्व कार्य में सिद्धि और व्यापार में लाभ होगा ॥११॥
यदि ३२ तदा कार्य विनष्टं परन्तु सकलं भविष्यति ॥ १२ ॥ यदि ३३ एतत प्रश्ने भव्यं न दृश्यते कार्यमा कुर॥ १३ ।
यदि ३४ यत् किचित्करोषि उद्विग्नमते शृणु तव कार्य भविष्यति उद्यमपरो भव ।। १४॥
यदि ३५ अस्मिन् प्रयाणे उद्यमे अन्यत्प्रारम्भे जयेः ॥ १५ ॥ याकमेलने ४१ तव कार्य भविष्यति नात्र सन्देहः ॥ १६ ॥ यवि ४२ उद्यमपरो भव कार्ये स्वयमेव ध्रुवं सिद्धिः ।। १७ ॥ Om यदि ४३ सिद्धिः सर्वत्र लभ्यते ॥ १८॥
जो अक संयोग करने से ३२ हो तो कार्य का नाश कहना परन्तु पीछे से सकल कार्य की सिद्धि होगी ऐसा कहना ॥ १२ ॥
जो ३३ हो तो कहना कि इस प्रश्न में कल्याण नहीं देखते हैं इससे यह काम मत करो ॥ १३॥
जो ३४ हो तो कहे कि हे उद्विग्न चित्तवाले सुनो, जो कुछ करोगे वह सब तुम्हारा कार्य होगा, उद्यम करो ।। १४ ।। , यदि अंक मिलाने से ३५ हो तो कहना कि इस यात्रा में और उद्यम में कार्यसिद्धि नहीं होगी दूसरी बार प्रारम्भ करने से जय होगा ॥ १५ ॥ ___ अंक मिलाने से ४१ हो तो कहना कि तुम्हारा कार्य होगा इसमें सन्देह नहीं ।। १६ ॥
जो अंक ४२ हो तो कहिये उद्यम करो, कार्य को स्वयं करने से निश्चय सिद्ध होगा ॥ १७ ॥ ___ जो अंक ४३ हो तो कहे कि तुम्हारे सब कार्य में सिद्धि देखते हैं कार्य होंगे ॥ १८ ॥
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ज्योतिषप्रश्नफलगणना
यदि ४४ स्वल्पायासन कार्यसिद्धिःपश्चिमोत्तरतः ॥ १९ ॥ यदि ४५ कार्येषु महत्त्वम् अन्यहस्तगतं वर्तते ॥ २० ॥ यचंकमेलने ५१ तदा कार्यसिद्धिः सर्वत्र शुभम् ॥ २१ ॥ यदि ५२ वाम्छासिद्धिः ॥ २२ ॥ यदि ५३ तव कार्य गोप्यं कुर भाग्यदिवसाः समागताः सिद्धिः ॥ २३ ॥ यदि ५४ अस्मिन् कार्ये विरोधिनो दृश्यन्ते किंचित्कालं स्थित्वा कार्य कर कार्यसिद्धिः ॥ २४ ॥ यदि ५५ तव कायं शोभनं सर्वत्र सिद्धिः ॥ २५ ॥
जो ४४ हो तो कहना कि थोड़े परिश्रम से कार्य होगा, पश्चिम-उत्तर दिशा से ॥ १९॥ ___जो अंक ४५ हो तो कहना कि तुम्हारा कार्य बहुत बड़ा है, दूसरे के हाथ में है ॥ २० ॥
जो अंक मिलान करने से ५: हो तो कार्य की सिद्धि, सब जगह कल्याण कहना ॥ २१ ॥
जो अंक मिलाने से ५२ हो तो कहे कि तुम्हारा मनोरथ सिद्ध होगा ॥२२॥
जो अंक मिलाने से ५३ हो तो कहना कि तुम कार्य को गोपन करो, अर्थात् पाओ तुम्हारे भाग्य उदय के दिन आ गये, सब को सिद्धि होगी ॥ २३ ॥
जो संयोग करने से अंक ५४ हो तो कहना कि तुम्हारे कार्य में बहुत विरोधी देख पड़ते हैं, इससे कुछ काल ठहर के कार्य करो, कार्य की सिद्धि होगी।॥ २४ ॥
जो अंक संयोग करने पर ५५ हो तो कहना कि तुम्हारा कार्य बहुत अच्छा है, सब में सिद्धि होगी ॥ २५ ॥
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अथ तृतीयं प्रकरणम्
अथ बीजप्रश्नः बीजप्रश्नचक्रम्
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प्रकारे विनयं विद्याधनप्राप्तिस्तथैव च । सिध्यन्ति सर्वकार्याणि पुत्रलाभस्तथा ध्रुवम् ॥ १॥ आकारे शोकसंतापो विरोषः सर्वजन्तुषु ।।
आवर्तसंभवो व्याधिदु:खं चैव न संशयः ॥ २ ॥ जिस समय मनुष्य कोई शकुन कराने के निमित्त आवे तो उसके हस्त से पूगीफलादिक कोई शुभ द्रव्य इन अकारादिक वर्णों पर स्थापन करावे अर्थात् उससे कहे कि तुम इन कोठों में से किसी कोठे के अक्षर पर घरो-वह अपनी इच्छा से जिस वर्ण पर स्थापन करे तो अकारादिक के क्रम से उसका शुभाशुभ फल कहे। प्रश्नाक्षर जो षकार हो तो विजय, धन की प्राप्ति जानना सर्व कार्य की सिद्धि, पुत्र का लाभ निश्रय करके हो ॥१॥
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ज्योतिषप्रश्नफलगणना आकाराक्षर में घरे तो शोक-सम्यक् ताप, सब प्राणियों से विरोध आवतजन्य रोग, क्लेश कहना ॥ २ ॥
इकारे परमं सौख्यं सिद्धिश्चैव प्रजायते । नश्यन्ति सर्वदुःखानि धनं धान्यं प्रजायते। ३ ॥ ईकारे पुत्रलाभश्च धनलाभस्तथैव च।। सिध्यन्ति सर्व कार्याणि सौभाग्यमतुलं भवेत् ॥ ४ ॥ उकारे शोकसंतापो वियोगश्च भवेद् ध्रुवम् । दुःखं चैव भवेद्धौरमापच्चैव न संशयः ॥ ५ ॥ ऊकारे लभ्यते स्थान प्रतिष्ठा चैव शोभना । सिध्यन्ति सर्वकार्याणि यच्चिन्तयति तद्भवेत् ॥ ६ ॥ ऋकारे प्रोतिरतुला स्वर्णलाभश्च नित्यशः ।
सिध्यन्ति सर्वकार्याणि लाभश्चात्र न संशयः ॥ ७ ॥ इकार में परम सुख, सर्व कार्यों की सिद्धि, सर्व दुःखों का नाश, धन-धान्य की वृद्धि कहना ॥ ३॥ - -
ईकार में धन, पुत्र का लाभ, सर्व कार्योकी सिद्धि सौभाग्य अत्यंत हो ॥४॥
उकाराक्षर में शोक सम्यक्ताप चित्त में निश्चय कर के वियोग हो और बड़ा दुःख हो निःसंदेह विपत्ति हो ॥ ५ ॥
ऊकार में स्थान का लाभ हो, अच्छी प्रतिष्ठा सर्व कार्यों की सिद्धि और जोजो चित्त में चिन्तन करे सो हो ।। ६ ।।
ऋकार मे अत्यन्त प्रीति, स्वर्ण का नित्य ही लाभ, सर्व कार्य सिद्ध हो, लाभ निःसंदेह हो ।। ७ ।।
ऋकारे जायते व्याधिदु:खसंताप एव च। मित्रः सह विरोधश्च जायते नात्र संशयः ॥ ८॥ लकारे लभते सिद्धि मित्रः सह समागमम् । आरोग्यं जायते नित्यं राजसन्मानमेव च ॥ ९॥ लकारे दृश्यते हानिाधिश्चैव भविष्यति । संपत्तिहरणं नित्यं कार्यहानिनं संशयः ॥१०॥ एकारे वृश्यते सिद्धिमित्रः सह समागमः । ततश्च लभते स्थानं सुखं चैव न संशयः ॥ ११ ॥
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'विमला' व्याख्योपेता
ऐकारे बन्धनं मित्रेविरोषश्च भविष्यति ।
विप्रहश्च भवेन्नूनं मृत्युश्चैव न संशयः ॥ १२ ॥ ओकारे दृश्यते सिद्धिदुःखशोकविनाशनम् । सिध्यन्ति सर्वकार्याणि निर्भयं च न संशयः ॥ १३ ॥ ॠकार में व्याधि की उत्पत्ति, दुःख, सन्ताप हो और मित्रों के साथ विशेष निःसंदेह उत्पन्न हो ॥ ८ ॥
लृकार में सब कार्य की सिद्धि, मित्रों के समागम, शरीर में आरोग्य से राजकृत सन्मान हो ॥ ९ ॥
लकार में सर्वविषयक हानि, रोग की उत्पत्ति, सम्पत्ति का हरण, कार्यं की हानि 'नि:संदेह हो ॥ १० ॥ एकार में कार्य की सिद्धि, मित्रों के साथ समागम हो, स्थान का लाभ, शरीर में सुख और कल्याण हो ।। ११ ।।
ऐकार में बन्धन, मित्रों के साथ विरोध, औरों से भी विग्रह, निःसंदेह मृत्यू वा मृत्यु समान कष्ट हो ।। १२ ।।
१,
ओ-कार में सिद्धि का दर्शन, दुःख, शोक का विनाश, सर्वकार्य सिद्ध हो और भय न हो, इसमें संशय नहीं ॥ १३ ॥
औ-कारे सर्वकार्याणि नैव सिध्यन्ति सर्वदा ।
मित्रः सह विरोधश्च शोकसंताप एव च ॥ १४ ॥ अं-कारे च महाहानिबंन्धनं च भविष्यति । महादु खं महाक्लेशो भयं चैव न संशयः ॥ १५ ॥ अ-कारे लभते सिद्धि प्रतिष्ठां चैव शोभनाम् । पुत्रलाभो महासौख्यं जायते नात्र संशयः ॥ १६ ॥ क- कारे राजसन्मानं सर्वार्थ प्रियदर्शनम् । कल्याणं च भवेन्नूनं सिद्धिश्चैव न संशयः ॥ १७ ॥ ख-कारे शोकसंतापो द्रव्यनाशस्तथैव च । शरीरे च ज्वरव्याधिर्जायते नात्र संशयः ॥ १८ ॥ ग-कारे चितितं कार्यं सिद्धिश्चैव प्रजायते । सुसोभाग्यमवाप्नोति मित्रः सह समागमः ॥ १९ ॥ औ - काराक्षर में सर्वकार्य की सिद्धि न हो, मित्रों के साथ विरोध और शोकसंताप हो ॥ १४ ॥
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ज्योतिषप्रश्न फलगणना
जो शकुनाक्षर मं-कार हो तो महाहानि, बधन, महादुःख, क्लेश, भय,
निःसन्देह हो ।। १५ ।। प्रश्न में बः - अक्षर
हो तो कार्य की सिद्धि - प्रतिष्ठा-पुत्र का लाभ - महासुख निःसन्देह प्राप्त हो ।। १६ ।।
क - कार में राजकृत सन्मान व अर्थ की सिद्धि-प्रिय का समागम और कल्याण निश्चय करके हो ।। १७ ।।
ख - काराक्षर में शोकः सन्ताप और द्रव्य का नाश शरीर में ज्वरजनित व्याधि निःसंदेह हो ॥ १८ ॥
ग - काराक्षर में जो कार्य विचारे उसकी सिद्धि हो- सौभाग्य की प्राप्तिमित्रों के साथ समागभ होगा ।। १९ ।।
घ-कारे कार्यसिद्धि च लभते प्रियदर्शनम् ।
सौभाग्यं च भवेत्सम्यक् कल्याणं च प्रजायते ॥ २० ॥ ङ -कारे कार्यनाशश्च सिद्धिर्भवति निष्फला । अर्थनाशो विपत्तिश्च निष्फलं कार्यमेव च ॥ २१ ॥ WWW-कारे विजयः कार्ये राजसन्मानमेव च ।
१२
लाभं चैव सदार्थस्य जाय नात्र संशयः ।। २२ ।। छ-कारे सर्वकार्याणि रत्नानि विविधानि च । आरोग्यं क्षेममानन्दं सौभाग्यमतुलं भवेत् ॥ २३ ॥ ज-कारे द्रव्यहानिः स्यात्कार्यं चैव विनश्यति । मित्रः सह विरोषश्च कलहं लभते नरः ॥ २४ ॥ झ-कारे स्वर्थलाभश्च रत्नानि विविधानि च ।
सौभाग्यमथं प्राप्तिश्च कार्यं च सफलं भवेत् ॥ २५ ॥ घ - काराक्षर मे सर्व कार्य की सिद्धि, प्रिय,
com
समागम का लाभ भली-भाँति
सौभाग्य और कल्याण हो ।। २० ।।
ङ - कार में कार्य का नाश, सिद्धि की निष्फलता, अर्थ का नाश - विपत्तिसर्वकर्म निष्फल हो ॥ २१ ॥
च - काराक्षर में सर्व कार्य के विषय में विजय हो -राजकृत सन्मान, सदा द्रव्य का लाभ निःसंदेह प्राप्त हो ।। २२ ।
छ - काराक्षर हो तो सर्व कार्य हो, अनेक तरह के रत्न मिलें - शरीर में आरोग्यता रहे, कुशल, आनन्द और सौभाग्य का अतुल लाभ हो ॥ २३ ॥
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'विमला' व्याख्योपेता
१३
ज - काराक्षर हो तो द्रव्य की हानि - कार्य का विनाश हो - मित्रों के साथ विरोध और झगड़ा हो ॥ २४ ॥
झ - कार में द्रव्य का और अनेक रत्नों का लाभ - सौभाग्य की सफलता हो । ञ -कारे शोकसंतापो बन्धनं च भविष्यति ।
इष्टैः सह विरोधश्च मृत्युश्चैव न संशयः ॥ २६ ॥ ट-कारे दृश्यते लाभो विजयश्च भविष्यति । प्राप्नोति सफलं काय नून सर्वार्थसाधनम् ।। २७ ।। ठ - का रे सर्वसिद्धिश्च धनं धान्यं तथैव च । आरोग्यं सफलं कायं जायते नात्र संशयः ॥ २८ ॥ ड-कारे लभते सिद्धि वर्द्धमानां तथैव च । सत्यं च क्षेममारोग्यं लभते नात्र संशयः ॥ २९ ॥ ढ -कारे बम्बनं व्याधिः शोकसताप एव च । मनसा चिन्तितं यद्यत्तत्सवं निष्फलं भवेत् ॥ ३० ॥ -कारे सकलाविद्या सौभाग्यमतुल भवेत् आरोग्यं च धनं धान्यं सर्वं चैव सदा भवेत् ॥ ३१ ॥
www
com
ब- कार में चित्त में शोक-सम्यक् ताप हो, बन्धन, मित्रों के साथ विरोध और मृत्यु हो ।। २६ ।।
ट - कार में लाभ हो-विजय हो - कार्य सफल हो और निश्चय करके सर्व अर्थ का साधन हो ।। २७ ।।
ठ - काराक्षर में सर्वसिद्धि, घन की और धान्य की सिद्धि, शरीर रोगरहित और निःसन्देह कार्य सफल हो ।। २८ ।।
ड - काराक्षर में वृद्धि को प्राप्त हो । जो सिद्धि है वह मिले और कुशलपूर्वक शरीर में आरोग्यता निःसन्देह सत्य करके प्राप्त हो ।। २९ ।।
ढ - काराक्षर में बन्धन और रोग-शोक, चित्त में ताप हो और मन में जोजो विचारे सो सब व्यर्थ हो ।। २० ।।
- कार में सब विद्या, अतुल सौभाग्य हो, शरोर में आरोग्य, धन-धान्य सब हो ।। ३१ ।।
त-कारे चार्थलाभश्च सौभाग्यमपि जायते । अपरेण भवेत्सिद्धिः सर्वकामार्थसाधनम् ॥ ३२ ॥
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१४
ज्यौतिषप्रश्न फक्षगणना
थ-कारे अर्थहानिश्च स्थानविच्छेद एव च । . अतिसम्भ्रमरोगश्च भवेदेवं न संशयः ॥ ३३ ॥ ब-कारे धर्मलाभश्च सुखमारोग्यमेव च । मुक्तिश्चैव सुखं नित्यं लभते नात्र संशयः ॥ ३४ ॥ -कारे धनलाभश्च सुखमारोग्यमेव च ।
प्राप्नोति भाग्यमतुलं मानवो नात्र संशयः ॥ ३५ ॥ न-कारे भोगसम्प्राप्तिः सर्वलाभो भविष्यति । आरोग्यं सफलं कार्य भवेदत्र न संशयः ॥ ३६ ॥
त - काराक्षर में अर्थ का लाभ निश्चय करके हो, सोभाग्य और दूसरे के द्वारा सब काम का अर्थसाधन हो ।। ३२ ।।
थ - काराक्षर में अर्थ की हानि, स्थान का विच्छेद, विशेष कर के भ्रम रोग की उत्पत्ति हो ॥ ३३ ॥
द- काराक्षर में धन का लाभ, सुख शरीर में हो, निरोगता, अनेक प्रकार के भोग का सुख नित्य ही प्राप्त हो ।। ३४ ।
Wi-Fi का लाभ शरीर में सुख, आरोग्यता हो,
मनुष्य को निःसन्देह अतुल भाग्य अर्थात् बड़े ऐश्वर्य की प्राप्ति हो ।। ३५ ।। न-कारक्षर में अनेक भोग की प्राप्ति, सब वस्तु का लाभ, शरीर में आरोयता, कार्य की सफलता निःसन्देह हो ॥ ३६ ॥
प-कारे धननाशश्च व्याधिबन्धनमेव च ।
उद्वेगः कलहो नित्यं जायते नात्र संशयः ॥ ३७ ॥ फ-कारे धनसम्प्राप्तिः सर्वसम्पत्तथैव च । सर्वकार्याणि सिध्यन्ति नैरुज्यं लभते सुखम् ॥ ३८ ॥ ब-कारे बन्धनं नाशो भविष्यति नृणां ध्रुवम् । प्राप्नोति मरणं नित्यं व्याधिश्चैव विनिविशेत् ॥ ३९ ॥ भ-कारे दृश्यते हा निर्लाभश्चैव भवेत्पुनः । पुत्रो मनोरथप्राप्तिर्भविष्यति न संशयः ॥ ४० ॥ म-कारे निधनं नूनमापदा परमा स्मृता । न च भोगो भवेत्तस्य सर्वं भवति निष्फलम् ॥ ४१ ॥ य-कारे चार्थमाप्नोति धनधान्यसमं फलम् । - सुशोभनं भवेत्तस्य सर्वलाभो भविष्यति ॥ ४२ ॥
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'विमला' ग्याल्योपेता
१५ प-काराक्षर में धन का नाश, रोग और बन्धन हो । चित्त में उद्वेग, नित्य ही कलह निःसन्देह हो ॥ ३७ ।।
फ-काराक्षर में धन की और सब सम्पत्ति की प्राप्ति और सब कार्य की सिद्धि, शरीर में निरोगता, सुख लाभ हो ।। ३८ ॥ .
ब-काराक्षर में बन्धन, धन का नाश और रोगी के प्रश्न में मरण में निस्म व्याधि कहना ।। ३९ ॥
भ-काराक्षर में पहिले तो कार्य की हानि अनन्तर लाभ हो और पुत्र-प्राप्ति, मनोकामना की सिद्धि होती है इसमें संशय नहीं ।। ४० ।।
म-काराक्षर में निश्चय करके मृत्यु, परम आपत्ति कहना, भोग की प्राप्ति न हो, सर्व कर्म निष्फल हो ।। ४१ ।।
य-काराक्षर में अर्थ की प्राप्ति, धन-धान्य की सम प्राप्ति हो, शोभा हो, सर्व वस्तु का लाभ हो ॥ ४२ ॥ ww र-कारे सभयं कार्य विरोध: स्वजनैः सह ।
नित्यं च जायते हानिमरणं दुःखमेव च ॥ ४३ ॥ ल-कारे धनसम्प्राप्तिाभश्चापि भवेत्पुनः । विपुलं च महाभोग्यं लभते नात्र संशयः ॥ ४४ ।। वकारे कार्यनाशश्च धनहानिश्च जायते । दुःखं शोकं च सन्तापं महाभयमुपस्थितम् ॥ ४५ ॥ श-कारे कार्यसिद्धिश्च सफलं च दिने दिने । अर्थलाभो भवेन्नित्यं सर्व कार्य भविष्यति ॥ ४६ ॥ ष-कारे धन-धान्यं च सर्व कार्य च सिध्यति ।
कुशलं च सदा नूनं सर्व तस्य शुभं भवेत् ॥ ४७ ।। र-काराक्षर में भययुक्त कार्य और स्वजनों के साथ विरोध, निश्चय ही मरणदुःख हो । ४३ ॥
ल-काराक्षर में धन की सम्यक् प्राप्ति और वस्तुओं का लाभ, विपुल अर्थात् बड़े भोग का लाभ निःसन्देह हो ॥ ४४ ॥
व-काराक्षर में कार्य का नाश, धन की हानि हो, दुःख-शोक, चित्त में खेद भोर महान् भय प्राप्त हो ॥ ४५ ॥
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ज्योतिषप्रश्नफलगणना
प्रश्नाक्षर शकार हो तो कार्य को सिद्धि, दिन-दिन सफल हो और अर्थ का लाभ, निश्चय ही सर्व कार्य हो ॥ ४६ ॥
१६
ष - काराक्षर में धन-धान्य की ओर सर्व कार्य की सिद्धि हो, निश्वय करके सदा कल्याण और सर्वदा शुभ हो ।। ४७ ।।
स-कारे निष्फलं नित्यं चिन्तां च लभते नरः । मनसा चिन्तितं कार्य सर्वमेव विनश्यति ॥ ४८ ॥ ह-कारे च महासिद्धिः सर्वकार्य फलप्रदा ।
सिध्यन्ति सर्वकार्याणि नात्र कार्या विचारणा ॥ ४९ ॥ क्ष-कारे राजसन्मान विद्यालाभस्तर्थव च । स्थानं च शोभनं तस्य रुद्रवाक्ये न संशयः ॥ ५० ॥ इति
स- कार में सब कार्य निष्फल हो, जो विचार करें वह सब नष्ट हो ।। ४८ ।।
अनेक चिन्ता मनुष्य को हो और मन में
indi
com
ह - कार में सब काम और फलों को देने वाली महासिद्धि हो, सब कार्य सिद्ध हो, इसमें कुछ विचार नहीं करना ।। ४९ ॥
क्ष - काराक्षर में राजसम्मान, विद्या का लाभ, स्थान का लाभ और कल्याण उसका हो, यह शिवजी का वाक्य है । इसमें सन्देह नहीं करना ।। ५० ।।
इति बीजप्रश्नः ।
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अथ चतुर्थं प्रकरणम् अथ ध्वजादिसर्वोपयोगि-प्रश्नफलम्
आयचक्रम
सू । मं
शुबु, बृ : श
चं
रा! इति वर्गग्रहाः
अ
क
ट
त
प
य
श
इति वर्गवर्णाः
ग . मा । स स्वा नाम मृ । मे इति वर्गदेवता ध्वज धूस ह । श्वान दय " गज ध्वाक्ष ,
आयाष्टध्वजादयः | १ । २.३ . ४ ... ५. ६ ...
- भूत-भावे-वर्तमानप्रश्नज्ञानं ज्योतिष्कृतम् ।। WWWध्यप्रउनममं गन्यं चमत्कतिकरं परम ॥ COLLL
_उच्चारितफलनामाद्यक्षरवशतो ज्ञात्वा अकारादिवर्गः कोष्टानि पूरयित्वा ध्वजादयोऽष्टायाः कल्पनीयाः । ते यथा
ध्वजो धूम्रश्च सिंहश्च श्वानो वृषखरौ गजः ।
ध्वांक्षस्त्वायाष्टकं जेयं शुभाशुभमिदं स्फुटम् ॥ २॥ यह जो आय नामक प्रश्न ग्रन्थ है, मो बहुत चमत्कार करने वाला और भूत अर्थात् हुआ, भावी अर्यात होने वाला, वर्तमान जो कि बीत रहा है। ऐसे प्रश्नों का ज्ञान जिससे होता है ? जो प्रश्नकर्ता मुख से वर्ण उच्चारण करे या 'किसी फल का नाम ग्रहण कराये। पहले अक्षर से अकारादिक जो आठ वर्ग है उन कोष्ठों की पूर्ति करे और उन वर्गों पर से ध्वजादिक जो आठ आय हैं उनकी भी कल्पना करे, इसका मतलब यह है कि अकारादिक वर्गों में जो वर्ण पहिले उच्चारित हुआ है उसको प्रथम कोष्ठ में स्थापन करे । उसी क्रम से ध्वजादिकों में जो उस वर्ग का स्वामी हो उसको आदिक्रम से स्थापन करे। इस प्रकार आय लिखते हैं, ध्वज, धूम्र, सिंह, श्वान, वृष, खर, गज, ध्वांक्ष ये आठ आय हैं, इनके द्वारा शुभ-अशुभ फल प्रत्यक्ष कहना ॥ १-२॥
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ज्योतिषप्रश्न फलगणना
अथ ध्वजादि - स्वामिनः
ध्वजे सूर्यश्च विज्ञेयो धूम्रे - भोमस्तथैव च । सिंहे शुक्रश्च विज्ञेयः श्वाने सौम्यस्तथैव च ॥ ३ ॥ वृषे गुरुश्च विज्ञेयः खरे सूर्यसुतस्तथा ।
गजे ध्वांक्षे चन्द्रराहू एते च पतयः स्मृताः ॥ ४ ॥
आर्यों के स्वामी - ध्वज के स्वामी सूर्य, धूम्र के मंगल हैं । सिंह के अधि शुक्र को जानना, श्वान के बुध हैं || ३ ||
१८
वृष के स्वामी बृहस्पति को जानना । सर के स्वामी शनैश्वर हैं । गज के चन्द्रमा स्वामी हैं, ध्वांक्ष के राह ये सब इनके स्वामी हैं ॥। ४ ॥ अथास्ति नास्ति प्रश्नः
कुअर सहेषु वृषे चास्ति विनिश्वितम् ॥
11
यं
तदनन्तर है या नहीं हैं इसका विचार - ध्वज, कुञ्जर, सिंह और वृष प्रश्न में आवें तो कहना है कि इनमे भिन्न जो चार हैं वे
तो
कि
। इनका प्रयोजन गुर्विणी आदि के प्रश्न में अस्ति नास्ति का विचार करना है ।। ५ ।।
अथ लाभालाभप्रश्नः
ध्वजे गजे वृषे सिहे शीघ्रं लाभो भवेद् ध्रुवम् ।
ध्वांक्षे श्वाने खरे धूम्रे नाशश्च कलहप्रदः ॥ ६ ॥
इसके अनन्तर लाभालाभ का प्रश्न कहते हैं । ध्वज, गज, वृष, सिंह ये आय प्रश्न के समय आत्रें तो शीघ्र ही निश्चय करके लाभ करे, ध्वांक्ष, दवान, स्वर और घूम्र में लाभ का नाश और कलह कहना ॥ ६ ॥
अथ नष्ट-लाभालाभप्रश्नः
ध्वजे गजे वृषे सिंहे गतलाभो भवेद् ध्रुवम् । ध्वांक्षे धूम्रे खरे श्वाने हानिर्भवति निश्चितम् ॥ ७ ॥ ध्वजे च ब्राह्मणचौरो धूम्रे क्षत्रिय एव च । सिंहे वैश्यश्च विज्ञेयः खरे च सेवकस्तथा ॥ ८ ॥ गजे वासी च विज्ञेया ध्वांक्षे च नायकस्तथा । वृषे श्वाने ज्ञेयश्वौरश्वान्त्यज संभवः ॥ ९ ॥
तथा
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'विमला' ग्याख्योपेता
१९ इसके अनन्तर गई हुई चीज मिलने न मिलने का प्रश्न-ध्वज में गज में और वृष-सिंह में गई चीज का निश्चय करके लाभ कहना और ध्वाक्ष-धूम्र-खर श्वान में निश्चय से हानि अर्थात् अलाभ कहना ॥७॥
नष्ट वस्तु अथात् खो गई वा चोरी हो गई चीज किस जाति ने लिया है उसको लिखते हैं। ध्वज में ब्राह्मण को चोर कहना, धूम्र में क्षत्रिय को, सिंह में वैश्य को खर में सेवक को कहना ॥८॥
गज में दासी को, ध्वांक्ष में स्वामी को अर्थात् मालिक को चोर कहना, वृष में श्वान में अंत्यज अर्थात् शूद्र को चोर कहना ॥ ९ ॥
अथ दिक्षु नष्टवस्तुज्ञानम् ध्वजे पूर्वगतं चैव धूम्र आग्नेय-दिग्गतम् । सिंहे च दक्षिणे चैव नैऋते श्वान एव च ॥ १०॥
पश्चिमे वृषभे ज्ञेयं वायव्यां खरभे तथा। www उत्तरे कुअरे द्रव्यमैशान्यां ध्वांक्षके तथा ॥ ११॥om
इसके अनन्तर प्रश्न करने वाला पूछे कि किस दिशा में नष्ट वस्तु गई है, उसके जानने के लिये लिखते हैं-वक्ष संज्ञक आय हो तो पूर्व दिशा में गत वस्तु कहना, धम्र हो तो अग्नि कोण में, सिंह में दक्षिण दिशा में जानना, 'श्वान' संज्ञक आय में नैऋत्य कोण में कहना ॥ १०॥
वृष संज्ञक आय में पश्चिम दिशा में कहना, खर में वायव्य कोण में कहना और कुञ्जर अर्थात् गज संज्ञक आय में उत्तर दिशा में द्रव्य कहना, ध्वांक्ष में ऐशान कोण में कहना ॥ ११ ॥
अथ नष्टस्य स्थानान्तरगतज्ञानम् ऊषरे च ध्वजे नष्टं धने चाग्निगृहे तथा ।
गतं सिहे तथाऽरण्ये श्वाने स्थानान्तरेऽपि च ॥ १२ ॥ इसके अनन्तर नष्ट वस्तु दूसरे स्थान में किस जगह पर है सो विचार लिखते हैं-ध्वज संज्ञक में ऊसर भूमि में नष्ट वस्तु कहना-धून संज्ञक में अग्निगृह अर्थात् रसोई गृह में कहना, सिंह में गत वस्तु वन में रखा है-ऐसा कहना, श्वान में दूसरे के घर में रखा है ऐसा कहना ॥ १२ ॥
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ज्यौतिषप्रश्नफलगणना
अथ प्रवासि-कुशलप्रश्नः सिंहे वृषे ध्वजे चैव कुअरे कुशलप्रदः।
ध्वाक्षे श्वाने खरे धूने नास्तीति कुशलं वदेत् ॥ १३॥ इसके अनन्तर प्रवासी का कुशल प्रश्न लिखते हैं, प्रश्न के समय में सिंहवृष-ध्वज-कुखर हो तो परदेशी का कुशल कहना और ध्वांक्ष-श्वान-खर-धूम्र हो तो कुशल नहीं कहना ॥ १३ ।।
अथ प्रवासि-चरस्थिरप्रश्नः ध्वजे गजे स्थिरश्चैव श्वाने सिंहे च चञ्चला।
वृषे धूने प्रयाणस्थं खरे ध्वाक्षे च कष्टकम् ॥ १४ ॥ तदनन्तर प्रवासी स्थिर है या चंचल है, इस प्रश्न का विचार लिखते हैंध्वज गज-प्रश्न समय में हो तो प्रवासी को उभी स्थान में 'स्थिर' कहना और श्वान-सिंह में हो तो चंचल कहना और वृप-धूम्र में प्रयाणार्थ अर्थात् चलने की तैयारी में और खर-ध्वांक्ष हो तो कष्ट कहना ॥ १४ ॥ ।
..com - अथ प्रवास्यागमन प्रश्नः । ध्वजे धूने समीपस्थं दूरस्थं गजसिंहयोः ।
वृषे खरे च मार्गस्थं ध्वांक्षे श्वाने पुनर्गतम् ॥ १५ ॥ तदनन्तर प्रवासी के गमन प्रश्न का विचार लिखते हैं-ध्वज और धूम्र में समीप में कहना और गज-सिंह में दूर कहना और वृप, खर में कहना कि मार्ग में अर्थात् राह में और ध्वांक्ष, श्वान में हो तो कहना कि कुछ दूर आकर पुनः फिर गया ॥ १५ ॥
__ अथ प्रवास्यागमनकालनिर्णयः ध्वजे पक्षमिति प्रोक्तं धूने सप्तदिनं तथा । एकविंशश्च सिहे च श्वाने मासं तथैव च ॥ १६ ॥ वृषे तु सार्द्धमासं च खरे मासद्वयं तथा ।
गजे मासत्रयं प्रोक्तं ध्वाक्षे ह्ययनसम्मितम् ॥ १७ ॥ कब तक आवेंगे इसका काल नियम लिखते हैं-ध्वज आय में पक्ष १५ दिन में आने का काल कहना और धूम्र में ७ दिन और सिंह में २१ दिन कहना, श्वान में मास भर कहना ।। १६ ॥
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विमका व्याख्योपेता
२१
वृष में डेढ़ महीना और खर में दो महीना और गज में तीन महोना, ध्वांक्ष में अयन ( छ महीना ) कहना ।। १७ ।।
अथ धातु - जीव- मूलचिन्ता - प्रश्नः
ध्वजे धूम्रे धातुचिन्तां गजे सिंहे च मूलकम् ।
श्वाने खरे वृषे ध्वांक्षे जीवचिन्तां वदेद् दुधः ॥ १८ ॥
इसके अनन्तर धातु-जीव - मूल का विचार लिखते हैं- जो प्रश्न समय में ध्वज और धूम्र हो तो कहना कि प्रश्नकर्ता को धातु की चिन्ता है और गजसिंह हो तो मूल की चिन्ता कहना और श्वान - खर- वृष-ध्वांक्ष में प्रश्नकर्त्ता को जीव की चिन्ता पण्डित कहे ॥ १८ ॥
अथ सुवर्णादिधातु विचारः
ध्वजे सुवर्णकं ज्ञेयं धूम्रे रौप्यं तथैव च । सिंहे ताम्रं च विज्ञेयं श्वाने लोहं तथैव च ॥ WWW वृषे कांस्यं खरे नागं कथितं सीसकं गजे । कथितं गणकोत्तमः ॥ २० ॥
ध्वांक्षे पित्तलकं ज्ञेयं ध्वजे आभूषणं मून धूम्रे तु मुखभूषणम् । कण्ठस्याभूषणं सिंहे श्वाने च कर्णयोरिवम् ॥ २१ ॥ वृषे हस्तादिकं ज्ञेयमंगुलीभूषणं खरे | गजे च कटिसूत्रं च ध्वांक्षे पादादिगं तथा ॥ २२ ॥ तदनन्तर धातु विचार लिखते हैं-ध्वज में सुवर्ण जानना, धूम्र में रजत कहना और सिंह में ताम्र जानना और श्वान में लोहा जानना ॥ १९ ॥
१९ ॥
वृप में कांस्य और खर में नाग अर्थात् रांगा जानना और गज में सीसा कहा है और ध्वांक्ष में पीतल जानना - ऐसा गणकोत्तम कहते हैं ॥ २० ॥
वृष में हाथ का भूषण, खर में अंगूठी, गज में saiक्ष में चरण आदि का भूषण कहना ॥ २२ ॥
Com
धातु ज्ञान के अनन्तर भूषणादि का ज्ञान लिखते हैं-- ध्वज आय में मस्तक का आभूषण अर्थात् गहना कहना - धूम्र में मुख का आभूषण कहना - सिंह आय में कंठ का भूषण, श्वान में कर्णों का भूषण कहना ॥ २१ ॥
कटिसूत्र अर्थात् करधनी,
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२२
ज्यौतिषप्रश्नफलगणना
अथ मुष्टिप्रश्न:
ध्वजे पत्रं च विज्ञेयं धूम्र पुष्पं प्रकीर्तितम् । सिंहे फलं च विज्ञेयं श्वाने काष्ठादिकं तथा ॥ २३ ॥ वृषे धान्यं तथा प्रोक्तं खरे तृणं निगद्यते । गजे बीजं च विज्ञेयं तुषं ध्वांक्षे तथा स्मृतम् ॥ २४ ॥
तदनन्तर मुष्टि प्रश्न लिखते है- ध्वज में किसी की पत्ती कहना - धूम्र में पुष्प कहना - सिंह में फल कहना, श्वान में कोई काष्ठ समझना ॥ २३॥
वृष में कोई अन्न कहना, खर में तृण कहना, गज में कोई बीज कहना, ध्वांक्ष में तुष अर्थात् भूसा किसी चीज का कहना ।। २४ ॥
अथ मुष्टिवस्तुवर्ण ज्ञानम्
कुसुम्भं च ध्वजे ज्ञेयं धूम्रे श्वेतं तथैव च । लोहितांगं भवेत् सिंहे श्वाने पांडुरनीलकम् ॥ २५ ॥ पीतवर्णों वृषे ज्ञेयः खरे धूम्रश्च वर्णकः ।
WWW
तदनन्तर मुष्टि में क्या वस्तु है इसे जानने के कुसुंभ जानना, धूम्र में सफेद वस्तु कहना, सिंह में पांडुर नकुल सदृश वा नील वर्ण कहना ।। २५ ।।
लिये लिखते हैं
लाल वस्तु कहना, श्वान में
Com
- ध्वज में
वृष में पीत वर्णं जानना, खर में धूम्र वर्ण कहना, गज में श्याम वर्ण कहना, saiक्ष में मिश्र वर्ण - मिला हुआ कहना ।। २६ ।।
अथ कन्यापुत्रजन्मप्रश्नः
ध्वजे वृषे गजे
सिंहे गुवणीपुत्रमादिशेत् ।
धूम्र श्वाने खरे ध्वांक्षे कन्याजन्म विनिर्दिशेत् ॥ २७ ॥
तदनन्तर गर्भवती को कन्या वा पुत्र का जन्म होगा इसका विचार - ध्वज में वृष, गज और सिंह में गुर्विणी को पुत्र का जन्म कहना और धूम्र, श्वान, खर, ध्वांक्ष में पुत्री का जन्म कहना ।। २७ ।।
अथ आयु:प्रमाणम्
ध्वजे सिंहे शतं प्रोक्तं गजे व्योमगजस्तथा । वृषे च षष्टिवर्षाणि खरे ध्योमाब्धिसंज्ञकम् ॥ २८ ॥
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'विमला'व्याख्योपेता आयु का प्रमाण-ध्वज-सिह में शत १०० वर्ष का आयुर्बल कहना, गज में व्योम कहे-शून्य-गज-आठ ( अस्सी वर्ष ) का आयुर्बल कहना, वृष में साठ ६० वर्ष की आयु, खर में व्योमाब्धि अर्थात् चालीस ४० वर्ष का कहना ॥ २८ ॥
श्वाने च विशतिः प्रोक्ता ध्वांक्षे च षोडशस्तथा।
धूम्र वर्षमिति संयमित्यायुश्च विचिन्तयेत् ॥ २९ ॥ श्वान में बीस वर्ष की आयुर्बल कहना, ध्वाक्ष में १६ वर्ष का, धूम्र में एक वर्ष जानना, इस तरह आयुर्बल का विचार करना ।। २९ ॥
अथ शत्रोरागमनप्रश्न: उपश्रुतिः स्याद्भक्तीति सत्या ध्वजे गजे सिंह-वृषे च प्राहुः ।
श्वाने खरे ध्वांक्ष-धूम्र एवमुपश्रुतिः स्याद्भवतीति मिथ्या ॥ ३० ॥ तदनन्तर शत्रु के आगमन की वार्ता सत्य वा मिथ्या है, इसका प्रश्न, ध्वज-गज-सिंह वृष में सुनी हुई शत्रु के आने की वार्ता सत्य कहना-ऐसा आचार्य कहते हैं और श्वान मे खर-ध्वांक्ष-धूम्र में शत्रु के आने की वार्ता मिथ्या कहना ॥ ३० ॥
अथ जय-पराजयप्रश्नः गजे ध्वजे वषे सिंहे स्थायिनो जयसम्भवः ।
खरे श्वाने तथा धने ध्वांक्षे तु यायिनो जयः ॥ ३१॥ इसके अनन्तर स्थायी के जीतने-हारने का प्रश्न-~-यदि प्रश्न में गज-ध्वजवृष-सिंह आवे तो स्थायी का जय कहना ( स्थायी वह है जो कि अपने देश में कोट इत्यादि बनवा के संग्राम करे ) और उसी प्रकार खर में श्वान, धम्र और ध्वांक्ष में यायी का जय कहना ( यायी वह है जो कि दूसरे देश से चढ़ाई कर के आवे ) और स्थायी-यायो के जय के विषय में जो गज, ध्वज इत्यादि आय कहे है उनसे भिन्न जो उनके विषय में आवे तो संधि अर्थात् मेल कहना । इसी प्रकार कोट ग्रामादि में विचार करना ॥ ३१ ।।।
__ अथ वृष्टिप्रश्नः धूम्र वृषे गजे श्वाने वृष्टि भवति चोत्तमा। सिंहे ध्वजे विलम्बं च ध्वांक्षे खरे न सिद्धचति ॥ ३२ ॥
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२४
ज्योतिषप्रश्नफलगणना
अनन्तर वृष्टि का प्रश्न-धूम्र-वृष-गज-श्वान में उत्तम वृष्टि कहना और सिंह-ध्वज में विलम्ब से, ध्वांक्ष-खर में वृष्टि नहीं कहना ।। ३२ ।।
अथ नक्षत्रगर्भविचारः अश्विन्याद्यभमारभ्य नक्षत्रं दशकं तथा । तस्मात् पञ्चनक्षत्रं गर्भपातस्य चिन्तयेत् ॥ ३३ ॥ गर्भपाते तथा वृष्टिानिर्भवति निश्चिता।
गर्भपृष्ठे तथा वृष्टिर्यथा भवति चोत्तमा ॥ ३४ ॥ तदनन्तर प्रश्न-अश्विन्यादिनक्षत्रों से गर्भ का विचार करते हैं--अश्विन्यादि दश नक्षत्र गर्भ के पृष्ठ नक्षत्र हैं, जिसमें आगे पाँच नक्षत्र गर्भ नक्षत्र है, इनसे गर्भपात का विचार करना ।। ३३ ।।
गर्भपात के नक्षत्र-प्रश्न समय में आवे तो वृष्टि में हानि निश्चय कर के कहना और गर्भ के पृष्ठ जो दश नक्षत्र हैं वे आवें तो उत्तम वृष्टि कहना ॥३४॥ WWW.AD अथ दिनादिनप्रश्नः1 . Com.
धूने सप्तदिनं प्रोक्तं वृषे दिग्भिस्तथैव च । श्वाने च विशतिर्जेया गजे च सप्तविंशतिः ॥ ३५॥ सिंहे ध्वजे च व्योमाब्धी खरे ध्वांक्षे ऋतुस्तथा ।
वर्षाकाले च विज्ञयं कथितं गणकोत्तमैः ॥ ३६॥ तदनन्तर दिन का नियम-वर्षा प्रश्न में धूम्र आवे तो सात दिन में कहना और वृष में दश दिन, इवान में बीस दिन, गज में सत्ताईस दिन ॥ ३५ ॥
सिंह-ध्वज में चालीस दिन, खर-ध्वांक्ष में दो महीना । इस तरह वर्षा काल में काल जानना गणकोत्तमों ने कहा है ॥ ३६ ॥
अथ स्त्रीलाभप्रश्नः ध्वजे च सिहे च वृषे च लाभः स्त्रियं सुरूपां लभते सुलीलाम् ।
श्वाने खरे ध्वाक्ष-गजे च धूम्र कार्यस्य हानिः कलहस्तथैव ॥ ३७॥ इसके अनन्तर ( स्त्रा-लाभ का प्रश्न-ध्वज-सिंह-वृष में सवृत्त-सदाचार युक्त स्वरूपवती-स्त्री का लाभ कहना और श्वान-पर-ब्यांक्ष गज धूम्र में कार्य को हानि और कलह कहना ॥ ३७॥
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'विमला'ग्याख्योपेता
अथ व्यवहारप्रश्नः ध्वजे गजे वर्ष सिंहे व्यवहारः शुभावहः ।
ध्वांक्षे श्वाने खरे धूने कलहायशुभप्रदः ॥ ३८॥ अनन्तर व्यवहार का प्रश्न- ध्वज-गज-वृष-सिंह में व्यवहारविषयक शुभ कहना और वांक्ष-श्वान-खर-धूम्र में कलहादि-अशुभ कहना ॥ ३८ ॥
अथ नौकाप्रश्नः ध्वज-कुंजर-सिंहेषु वृषे च कुशलप्रदः ।
ध्वाक्ष धने खरे श्वाने नौका मज्जयति ध्रुवम् ॥ ३९ ॥ तदनन्तर नौका का प्रश्न-ध्वज-कुञ्जर-सिंह-वृष इनमें नाव के विषय में कल्याण कहना और ध्यांक्ष-धूम्र-खर-श्वान में नाव जल में निश्चय डूब जाय ॥ ३९ ॥
अथ राज्यप्राप्तिप्रश्नः WWW गजे ध्वजे चिरं प्राप्तिर्वषे सिहे च शीघ्रता। COLLL
श्वाने खरे न च प्राप्तिः शत्रुगृह्णाति सत्त्वरम् ॥ ४० ॥ ध्वांक्षे धूम्र पदं नास्ति कलहो भ्रातृजैः सह ।
राजयोगविचारेषु कथितो गणकोत्तमैः ॥ ४१ ॥ तदनन्तर राज मिलने का प्रश्न-ध्वज-गज में चिरकाल में प्राप्ति कहना और वृष-सिंह में शीघ्र ही प्राप्ति कहना और श्वान-खर में प्राप्ति न हो प्रत्युत शीघ्र ही शत्रु ग्रहण कर ले ।। ४० ।।
ध्वांक्ष-धूम्र में पद न हो-भाई के साथ झगड़ा हो। इस प्रकार राजयोग का विचार गणकोत्तम कहते हैं ।। ४१ ।।
अथाऽधिकारप्राप्तिप्रश्नः ध्वजे-गजे स्थिरं प्राप्तिवृषे सिंहे च शोघ्रतः ।
कलहश्च तथा श्वाने नास्ति च ध्वांक्ष-धूम्रयोः ॥ ४२ ॥ तदनन्तर अधिकार मिलने का प्रश्न-ध्वज-गज में विलम्ब से प्राप्ति कहना और वृष-सिंह में शीघ्र ही प्राप्ति कहना और खर-श्वान में झगड़ा कहना और प्राप्ति में विलम्ब और ध्वाक्ष-धूम्र में प्राप्ति नहीं कहना ॥ ४२ ॥
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२६
ज्योतिषप्रश्नफलगणना
ध्वाध
1
अथ ग्रामप्राप्तिप्रश्नः ध्वजे वृषे गजे सिहे ग्रामप्राप्तिश्च निश्चिता।
श्वाने खरे तथा ध्वांक्षे धूम्र नास्तीति निश्चितम् ॥ ४३ ॥ अनन्तर ग्राम मिलने का प्रश्न.-ध्वांक्ष-वृष-सिंह और गज में ग्राम की प्राप्ति निश्चय करके कहना। और श्वान-खर-ध्वाक्ष-धूम्र में निश्चय करके नहीं कहना ।। ४३ ॥
अथ कार्यसिद्धिप्रश्नः गजे ध्वजे स्थिरं कायं त्वरितं वृष-सिंहयोः ।
दीर्घकाले खरे दाने ध्वांक्षे धूम्र न सिध्यति ॥ ४४ ॥ तदनन्तर-कार्य सिद्धि का प्रश्न-ज-ध्वांक्ष में विलम्ब से कार्य कहना और वृष-सिंह में शीघ्र कार्य को सिद्धि कहना, खर-इवान में बहुत दिनों में और ध्वांक्ष-धूम्र में कार्य की सिद्धि नहीं कहन। ।। ४४ ।। ।।
Com अथ वन्दिमोचनप्रश्न: धूमे श्वाने खरे ध्वक्षि वन्दी शीघ्रं प्रमच्यते।
वृषे गजे ध्वजे सिंहे वन्दिकष्टं समादिशेत् ॥ ४५ ॥ अनन्तर कैदी के छूटने का प्रश्न-धूम्र-श्वान-खर-ध्वाक्ष में बन्दी शीघ्र छुटे-वृष-गज-ध्वज-सिंह में बंदी को कष्ट हो, ऐसा कहना ।। ४५ ॥
अथ कालनियमप्रश्नः ध्वजे सप्तदिनं ज्ञेयं सिंहे पक्षं तथैव च । वृषे मासश्च विज्ञेयो गजे मासत्रयं तथा ॥ ४६ ॥ श्वाने खरे च षण्मासं धूळे ध्वांक्षे च वर्षकम् ।
इति कालं वदेत् प्रश्ने सर्वकार्येषु चिन्तयेत् ॥ ४७ ॥ इसके अनन्तर-काल-नियम का प्रश्न-ध्वज में सात दिन जानना-सिंह में पक्ष भर १५ दिन और वृष में मास जानना, गज में तीन मास कहना ॥४६॥
श्वान-खर में छ मास कहना-और ध्वांक्ष-धूम्र में वर्ष भर कहना-इस तरह प्रश्न में काल-नियम कहना (सर्व कार्य के विषय में चिन्तन करके ) ॥४७॥
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'विमला'म्याल्योपेता
अथ देवपूजाप्रश्नः ध्वजे भैरवपूजा स्याद् धूने च जगदम्बिकाम् । सिंहे च सूर्यभक्ति च श्वाने वायुसुतस्तथा ॥४८॥ वृषे रुद्रार्चनं चैव खरे वागीश्वरी तथा।
गणेशं गजराजाख्ये ध्वांक्षे च पितृपूजनम् ॥ ४९ ॥ अनन्तर देवपूजन रोगादिक में विचार के लिये-ध्वज में-भैरव का पूजन और धूम्र में जगन्माता की, सिंह में सूर्यदेव की आराधना करना और श्वान में वायुसुत श्री हनुमान जी की ।। ४८ ।।
वृष में शिव जी का पूजन, खर में वागीश्वरी देवी का और गज में गणेश जी का पूजन और ध्वांक्ष में पितृ गणों का पूजन करना ॥ ४९ ॥
अथ ग्रह-दानानि - . WWW
गोधमा वजे दद्याद धमे चैव तिलप्रदः। COLLL
पीतवस्त्रं च सिंहे च श्वाने च बलिविस्तरम् ॥ ५० ॥ तदनन्तर ग्रहों के दान-ध्वज में गोधूम ( गेहूँ ) का दान, धूम्र में तिल. सिह में पीला कपड़ा, श्वान में बलिदान विस्तार पूर्वक ।। ५० ।।
वृषे च तण्डुलं प्रोक्तं खरे च चणकं तथा ।
गजे गुडं सदा देयं ध्वांक्षे च यवनालकम् ॥ ५१॥ वृष में चावल दान करना, खर में चना दान, गज में गुड़ देना, ध्वांक्ष में यवनाल देना ।। ५१॥
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अथ पञ्चमं प्रकरणम्
अथ प्रश्नाष्टकं, तत्र प्रथमध्रुवांकाः लाभालाभो बाहुवेदी ४२ । जीवनमरणे खवेदौ ४०। सुखदुःखे बाणवह्नौ ३५ । गमनागमने वेदाग्नी ३४ । जयपराजय बाणाग्नी ३५ । वर्षाप्रश्ने युग्माग्नी ३२ । यात्राप्रश्ने बाणाग्नी ३५ । गुपिणीप्रश्ने युग्माग्नी ३२ । इति ध्रुवांकाः ।
जैसे किसी ने पूछा कि हमें लाभ होगा या नहीं ? इन दोनों प्रश्नों में बाहु कहिये दो बंद नाम चार दोनों मिलाने से ४२ हुए 'अंकानाम् वामतो गतिः' इस प्रकार अंकों की वाम भाग से गणना होती है। इससे इस प्रश्न में इतने ध्रुवांक हुए । और जीने मरने के प्रश्न में ख कहिये शून्य वेद चार दोनों मिलाने से ४० इस प्रश्न में ध्रुवांक होते हैं । सुख-दुःख के प्रश्न में बाण ५ वह्नि ३ दोनों ३५, गमन और आगमन इसमें वेद चार ४ अग्नि ३ दोनों अंक मिलाने से ३४ हए, और जय-पराजय के प्रश्न में बाण ५ अग्नि ३ दोनों अंक मिलाने से ३५ हुए । वृष्टि होगी या नहीं उसके युग्म २ अग्नि ३ दोनों के योग से ३२ होते हैं, यात्रा के प्रश्न में बाणाग्नो बाण ५ अग्नि ३ अर्थात् ३५ अंक होते हैं, गर्भवती के प्रश्न में युग्माग्नी युग्म २ अग्नि ३ यानी ३२ ध्रुवांक होते हैं ।
__ अथाक्षरांकध्रुवाः अ २४ आ २१ इ १२ ई १८ उ २५ ऊ २२ ए १९ ऐ २९ ओ १९ औ २५ अं १० अः २२ । क २१ ख ३१ ग १० घ १८ ङ २१ च २७ छ १६ ज ३४ झ २५ ब २६ ट २१ ठ ३५ ड १३ ढ १४ ण १७ त २७ थ १३ द २६ ध १८ न १८ प २८ फ २७ ब २१ भ २६ म १६ य ४२ र ११ ल ९ व ७ श २५ ष ११ स २५ ह १२ क्ष ५ इत्यक्षरांकाः ।
__ इसके अनन्तर-अकारादिक स्वरों का और ककारादिक वर्णों का ध्रुवांक लिखते हैं । अकार का २४ चौबीस अंक होता है । आकार का २१ एकइस होता है । ह्रस्व इकार का १२ बारह, दीर्घ ईकार का १८ अठारह, उकार का २५
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'विमला' व्याख्योपेता
ऊकारका २२ । एकार का १९, ऐकार का २९, ओकार का १९ औकार का २५, अंकार का १०, अःकार का २२, स्वरांक के अनन्तर वर्णांक को लिखते हैं। क कारका २१ ख कारका ३१ ग कारका १० घ कारका १८ ङ कारका २१ च २७ छ १६ ज ३४ झ २५ न २६ ट २१ ठ ३५ ड १३ ढ १४ ण कारका १७ त २७ थ १३ द २६ ध १८ न १८ प २८ फ २७ ब २१ भ २६ म १६ य ४२ र ११ ल ९ व ७ श २५ ष ११ स २५ ह १२ क्ष कारका ५ ध्रुवांक होते हैं।
प्रातःकाले बालकद्वारा वृक्षस्य नामग्रहणं कारयितव्यम् । मध्याह्न तरुणद्वारा पुष्पस्य नामग्रहणम् ।
अपराले वृद्धद्वारा फलस्य नामग्रहणम् । अक्षरांकं प्रत्येक गृहीत्वा यथोदितध्रुवांके योजयत्वा म्वस्वभाग्यशेषांकन फलं वदेत् । तथाहि लाभालाभे त्रिभिर्भागः। एकेन लाभः, द्वाभ्यां स्वल्पलाभः, शन्ये हानिः ॥ १ ॥ जीवनमरणे त्रिभिर्भागः एकेन जीवनम्, द्वाभ्यां कष्टसाधनम्, शून्ये मृत्युः ॥ २ ॥ सुखदुःखे द्वाभ्यां भागः, एकेन सुखम्, दःभ्यां दुःखम् ॥ ३ ॥ गमनागमने त्रिभिर्भागः, एकेन गमनं, द्वाभ्यां स्थितिः, शून्ये मृत्युः ॥ ४॥
प्रातःकाल के विषय मे बालक के मुख से किसी वृक्ष का नाम कहलाना, मध्याह्न समय में युवा पुरुष के मुख में किसी पुष्प का नाम ग्रहण कराना।
सायंकाल में वृद्ध के मुख मे फल का नाम ग्रहण कगना, तदनन्तर जो-जो अक्षर कहे उन अक्षरों के जो-जो अंक हैं उन अंकों को एक में जोड़ दे, अनन्तर लाभादि विषय में जिस विषय का प्रश्न हो उन के जो ध्रुवांक हैं उनमें ये जो इकट्ठे किये हुए अंक हैं उनको मिलाये, पीछे अपने-अपने भाग के अंकों से भाग देने पर शेष जो बचे उससे फल कहे-भाग के अंक लिखते हैं । लाभालाभ के प्रश्न में तीन का भाग देना, एक बचे तो लाभ, दो बचे तो थोड़ा लाभ, शून्य बचे तो हानि कहना ॥ १॥ और जीवन-मरण के प्रश्न में तीन का भाग दे। एक बचे तो जीवन कहे, दो बचे तो कष्टसाध्य, शून्य बचे तो मृत्यु कहना ॥२॥ सुख-दुःख के प्रश्न में दो का भाग दे। एक बचे तो सुख, दो बचे तो दुःख कहना ॥३॥ गमन होगा या नहीं ? ऐसे प्रश्न में तीन का भाग देना । एक बचे तो गमन, दो बचे तो गमन नहीं, शुन्य बचे तो गमन में मृत्यु हो ।। ४ ।।
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३०
ज्योतिषप्रश्नफलगणना
जयपराजये त्रिभिर्भागः एकेन जयः, द्वाभ्यां सन्धि , शून्ये भंग. ॥५॥ वर्षाकाले त्रिभिर्भागः । एकेन वर्षा, द्वाभ्यां स्वल्पवर्षा, शून्येष्वनावृष्टिः ॥ ६॥ यात्राप्रश्ने त्रिभिर्भागैः एकेन सुयात्रा, द्वाभ्यां मध्यमा, शून्ये मरणम् ॥७॥ गुविणी. प्रश्ने त्रिभिर्भागैः । एकेन पुत्रः, द्वाभ्यां कन्या, शून्ये मरणम् ॥८॥
जय-पराजय के प्रश्न में तीन का भाग दे। एक बचे तो जय कहना, दो बचे तो मेल कहना, शून्य बचे तो पराजय कहना ॥ ५ ॥ वर्षा के प्रश्न में तीन का भाग देना। एक बचे तो वृष्टि, दो बचने से थोड़ी वृष्टि, शून्य बचने से अनावृष्टि कहना ॥ ६ ॥ यात्रा के प्रश्न में तीन का भाग देना। एक बचे तो भलीभाँति यात्रा हो, दो बचे तो मध्यम यात्रा, शून्य बचे तो यात्रा में मृत्यु कहना ।। ७ ।। गर्भ के प्रश्न में तीन का भाग देना। एक बचे तो पुत्र कहना, दो बचे तो कन्या, शून्य बचे तो गर्भवती का नाश कहना ॥८॥
हति
प्र
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अथ षष्ठं प्रकरणम् अर्कमूलाधारण शुभाशुभप्रश्नः महादेवं नमस्कृत्य केवलं ज्ञानभास्करम् ।
वक्ष्ये सद्गुरुणादिष्टं ज्ञेयं शुभमथाऽशुभम् ।। १॥ ज्ञान के सूर्य, महादेवजी को केवल नमस्कार करके जानने योग्य शुभ और अशुभ फल कहूँगा, जो कि सद्गुरु ने बताया है ।। १ ।।
अर्कवारे अर्कमूलमुत्पाटय तस्योपवास कृत्वा अवजदादि तस्मिन् विलिख्य प्रश्नकर्ता मन्त्रेण सम्मन्त्र्य त्रिवारं भूमो सिपेत्--ॐ नमो भगवति कूष्माण्डिनि देवि सर्वकार्यप्रसायिनि सर्वनिमित्तप्रकाशिनि एहि एहि वरदे हिलि हिलि मातङ्गिनि सत्यं ब्रूहि स्वाहा ।
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ज्यौतिषप्रश्न फलगणना
रविवार के दिन अर्क ( मन्दार ) को जड़ उखाड़ कर चार पहल का पासा बनावे और उसी दिन उसका व्रत करके यानी पासे का पूजन करे । उस पर पहले के क्रम मे ये चार, अ, व, ज, द अक्षर लिख दे । प्रश्नकर्त्ता 'ॐ नमो भगवति कूष्माण्डानि इत्यादि मंत्र को पढ़कर पासे को अभिमंत्रित करके भूमि पर तीन बार फेंके और जो अक्षर आवे उनका फल पुस्तक में देख कर कहे । ( १ ) अ, अ, अ - - सुनो पृच्छक ! जो काम तुम सोचते हो उस कार्य में बहुत सन्तोष होगा, मन में धीरज धरो, आपही काम सिद्ध हो जायगा, सन्देह नहीं ।
૨૨
( २ ) अ, अ, द - सुनो पृच्छक ! जो तुम सोचते हो, वह कार्य सम भाग है, बहुत सुख से शून्य कार्य है, वह सत्य हो जायगा, सन्देह नहीं ।
( ३ ) अ, ज द -- सूनो पृच्छक ! जो पुत्र कार्य सोचते हो वह सब होगा, तू इसको छोड़ दे, और कार्य कर, दूसरी चिन्ता कर, उसी में लाभ होगा । ( ४ ) अ, व, द - सुनो पृच्छक ! जिनका तुम चिन्तन करते हो, वह कार्य बहुत दिनों में होगा. गायत्री देवी का ३ष्ट करो, कार्य सम भाग है परन्तु अर्थ का लाभ होगा ।
दगा गायत्री देवी का ट करी,
कार्य
(५) अ, द, व - सुनो पृच्छक ! जो तुम चिन्तन करते हो उसमें तुमको लक्ष्मी की प्राप्ति होगी, और सहज बन्धुओं से सन्तोष होगा । तुम्हारे आगे शत्रु लोग शिर नवावेगं, सन्देह की कोई बात नहीं, इसे सत्य नमझो ।
( ६ ) अ, व, अ--- सुनो पृच्छक ! जो तुम सोचते हो नो कार्य कठिन है, जिससे तुम बात करते हो, वह तुम्हारा शत्रु है । अपना काम सावधानी से करो । ( ७ ) अ, व, ज - सुनो पृच्छक ! तुम को चिन्ता बहुत है, तू अकेला है, भार बहुत है, तुझ अकेले से कार्य बन जावेगा, सब शोक छोड़. कल्याण होगा, पहले तेरे साथी लोगो ने जो सलाह दी है, उसे मत मान ।
( 4 ) अ, द, अ - सुनो पृच्छक ! जो तू सोचता है, वह कार्य सम भाग है, तू अर्थ लाभ चाहता है, शीघ्र कार्य सिद्ध होगा ।
( ९ ) अ, अ, व -- जो तू मन में सोचते हो, उस कार्य में बहुत विलम्ब है, तू किसी की शिक्षा मत मान, केवल अपनी रक्षा करता रह |
(१०) अ, द, द - सुनो पृच्छक ! जो तू सोचता है, उसमें विलम्ब बहुत है, मति ठीक नहीं है, कुबुद्धि है, इस कारण से तेरा कार्य कठिन है उसमें भला न होगा ।
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३
'विमला' व्याख्योपता
३३
( ११ ) अ, द, ज - सुनो पृच्छक ! जो तुम सोचते हो, वह काम रामजी के कार्य के समान होगा, राम मंत्र का जप करते रहो, अपना मन दृढ़ करो, धैर्य से सफलता प्राप्ति होगी ।
( १२ ) अ, ज, ज - सुनो पृच्छक ! जो तू सोचता है सो कार्य सफल होगा, तुम कुबुद्धि को छोड़ दो, सुबुद्धि धारण करो, तब प्रसन्नता से सब काम बनेगा. अब दिन अच्छे हैं ।
(१३) अ, व, व सुनो पृच्छक ! जिस कार्य के निमित्त पूछते हो, वह काम मफल होगा, तुम्हारे शत्रु भला नहीं होने देते, उनसे सतर्क रहना - शत्रु का बुरा होगा, तुम किसी का बुरा मत करो, परमेश्वर भला करेगा ।
(१४) अ, अ ज - सुनो पृच्छक ! जिस कार्य के निमित्त पूछते हो, वह कार्य कठिन है, जैसे असवार घोड़े पर चढ़ भाग निकले, वैसा कार्यं तुम्हारा है, कुछ थोड़ा सा सहज में होगा ।
( १५ ) अ, ज, अ - सुनो पृच्छक ! जो तू सोचता है, वह कार्यं सफल होगा।wwwwwwco com
( १६ ) अ, ज, व- - सुनो पृच्छक ! जो तू सोचता है, उसमें भगवान्
भला करेंगे, तेरे मन का भ्रम दूर होगा, उद्यम करो, तत्काल सिद्ध होगा ।
(१७) व, व, व - सुनो पृच्छक ! तेरा कार्य तत्काल सफल होगा, तुम अपने इष्टदेवता की पूजा करो ।
(१८) व व, अ - सुनो पृच्छक ! जो तू सोचता है, सो कार्य तत्काल होगा, किसी का विश्वास नहीं करना, जो लोग तेरी बड़ाई करते हैं, पोछे शत्रु भाव रखते हैं, उनका कहना कभी न मानना, चिन्ता मत करो, इच्छा के अनुसार फल मिलेगा ।
( १९ ) व, व, ज - सुनो पृच्छक ! जो तू सोचता है, सो जाना चाहते हो, जाने से अर्थलाभ होगा, कार्य की चिन्ता मत करो ।
(२०) व, द, व - सुनो पृच्छक ! जो तू सोचते हो उस कार्य में मन लगाकर उपाय करो, तो वह कार्य आनन्द से पूर्ण होगा और बहुत लाभ भी होगा ।
(२१) व, ज, व - सुनो पृच्छक ! जो तू सोच रहा है, उस कार्य में
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ज्योतिषप्रश्नफलगणना तुम्हारा मन बहुत चञ्चल हो रहा है, मन को शान्त करो, चिन्ता-सन्देह दूर होगा, कुछ धर्म कार्य करो ।
(२२ ) व, व, द-सुनो पृच्छक ! जो तू सोच करता है, उससे बन्धुओं में प्रीति होगी।
(२३)व, द, द-सुनो पृच्छक ! जो तू सोचता है, उसको परमेश्वर पूरी करेगा। तेरे बन्धु-मित्र भला नहीं चाहते हैं । भगवान् का स्मरण करते रहो।
( २४ ) व, ज, द-सुनो पृच्छक ! तुम जो चित्त में सोचते हो वह अर्थ का है, धन प्राप्त होगा, कुछ अल्प कष्ट होगा, अन्त में परमेश्वर भला करेगा।
( २५ ) व, द, ज-सूनो पृच्छक ! जो तू सोचता है, उस कार्य का कुछ अंश सिद्ध होगा. सुख आनन्द बहुत प्राप्त होगा, चिन्ता मत करो।
(२६ ) व, ज, अ-सुनो पृच्छक ! जो तुम सोचते हो, सो कार्य कठिन है, उसका उद्योग मत करो, करने से नहीं होगा।
(२७) व, अ, व-सुनो पृच्छक ! तुम्हारे कार्य का एक शत्रु है, वह बरा शाहता है, शत्रु आप ही दूर हो जायेगा. वह कार्य पांच पंचों से मिलकर सिद्ध होगा।
(२८ ) व, अ, ज-सुनो पृच्छक ! जो तू चिन्ता करते हो, उस कार्य के बहत शप हैं, किसी का विश्वास नहीं करना, कार्य अधिकता से सिद्ध नहीं होगा, और जो तू इस कार्य में हठ करेगा तो कष्ट प्राप्त होगा।
(२९) व, अ, ज-सनो पृच्छक ! यह कार्य बहन कष्ट का है, लाभकारी थोड़ा है, जैसे लोहे की नाव से समुद्र तरा चाहे वैसा ही तेरा कार्य है, इसका यत्न मत करो, सिद्ध नहीं होगा।
(३०) व, ब, अ-सुनो पृच्छक ! तेरे कार्य में विलम्ब है, समय पाकर होगा। जैसे जल की मछली जल बिना पल भर में हाथ आ जाती है और जल बिना मर जाती है, इसी प्रकार यह कार्य बडे प्रयत्न बोर यत्न से सिद्ध होगा, परन्तु नाश तत्काल हो जायेगा, इससे यत्न मत करो।
(३१) व, अ, द-सुनो पृच्छक ! जो तू सोचते हो सो कार्य नहुन शीघ्र सिद्ध होगा, चित्त को दृढ़ करो, जानना सैर करना छोड़ दो, कार्य का विचार करो। वह सफल होगा । चिन्ता मत करो।
(३२) व, ज, ज-सुनो पृच्छक ! जो तू सोचता है, वह तुरन्त सिद्ध होगा । परमेश्वर की कृपा से अर्थलाभ भी होगा, इसकी शीघ्रता करो।
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'विमला' व्याख्योपेता
३५
( ३३ ) द, व, द - सुनो पृच्छक ! इस कार्य का उद्यम मत करो । यह भाई-बन्धु, मित्र- कुटुम्बियों के बल से सफल होगा, अकेले की बात ही क्या है, इससे मिलकर करो ।
( ३४ ) द, ज, द सुनो पृच्छक ! जो तू सोचता है, सो जानना चाहता है । इसका उद्यम करने से अर्थ लाभ होगा, इससे मिलकर करो ।
(३५) द, द, ज - सुनो पृच्छक ! जो तू सोच करता है, सो मिलना कठिन है. इसे छोड़ दे, अन्य सब सिद्ध होगा ।
( ३६ ) द, द, अ - सुनो पृच्छक ! जो तू चिन्तन करता है, सो कार्य दूर है, जैसे काम अभागे का कार्य भाग्य से सन्तोष से सिद्ध होगा ।
( ३७ ) द, ज, अ - सुनो पृच्छक ! जो तू कार्य चिन्तन करता है । उसके बहुत शत्रु हैं, तुम्हारा बुरा चाहते हैं, उनके भरोसे पर कार्य मत करो, क्षेत्र सन्तोषपूर्वक काम सिद्ध होगा ।
सफल
( ३८ ) द, अ, अ - सुनो पृच्छक ! जो तुम चिन्तन करते हो वह काम होगा। । अब तुम्हारा भाग्य उदय होगा । कुछ पुण्य करते रहो, शीघ्र ही पुत्र, लक्ष्मा, यश मिलेगा । कुशलता के साथ प्रसन्नता होगी ।
( ३९ ) द, व, द - सुनो पृच्छक दुष्ट आप है, इस काम से कुछ प्राप्त तो से मेल परस्पर करो, विरोध करना छोड़ (४०) द, अ, द - सुनो पृच्छक ! तुम मन का किया चाहते हो, इस कारण से कर्म के ऊपर ध्यान धरो, तुमको आनन्द प्राप्त होगा ।
!
जो तुम चिन्तन करता है वह कार्य होगा, परन्तु तुम अपने भाई-बन्धुओं दो, काम सफल होगा ।
( ४१ ) द, द, व - सुनो पृच्छक ! इस कार्य के होने पर आपत्ति बहुत है पर तेरे शत्रु भला नहीं चाहते, विश्वास मत करना अफल होगा ।
(४२) द, ज, व सुनो पृच्छक ! जो तू इच्छा करता है, उसे छोड़कर अपने कार्य का उद्योग करो, सिद्ध होगा ।
( ४३ ) द, व, ज - सुनो पृच्छक ! जो तुम चिन्तन करते हो, उससे अर्थ लाभ होगा । पुत्र लाभ, यश अधिक प्राप्त होगा, कामना पूर्ण होगी ।
(४४ ) द, अ, ज - सुनो पृच्छक ! तुम उद्यम किया चाहते हो मोर कार्य का चिन्तन करो, तुम्हारे मनुष्य मनके शुद्ध नहीं हैं । इस काम का अच्छा फल है ।
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ज्योतिषप्रश्नफलगणना (४५)द, व, अ-सुनो पृच्छक ! तेरे उद्यम के दिन है, तेरा कार्य सर्व सिद्ध होगा । कुछ पुण्य कर्म करते रहो ।
(४६ ) द, अ, व-सुनो पृच्छक ! तुम्हारे लिये सब वस्तु मिलेगी, धैर्य करो, पुण्य से सब कार्य सिद्ध होगा, चिन्ता मत करो।
(४७ ) द, व, व-सुनो पृच्छक ! तेरे तो क्षेत्रपाल का उधम है, उसकी पूजा करो, अन्त में कार्य की सिद्धि होगी।
(४८) द, ज, ज-सुनो पृच्छक ! जो तुम सोचते हो, सो कार्य में भला न होगा, छोड़ दो, पुण्य ( जप, पूजा-पाठ, दान) करो तब सब कार्य सिद्ध होंगे।
(४९ ) ज, ज, ज-सुनो पृच्छक ! सर्व सिद्धि होगी, जैसे द्वितीया की चन्द्रमा की कला दिन दिन बढ़ता है, इस प्रकार तेरा काम दिन-दिन सिद्ध होगा।
(५०) ज, ज, द-सुनो पृच्छक ! तुम इष्टदेवता का स्मरण किया करो, मनोकामना सिद्ध होगी, सर्वजन की रक्षा होगी।
(५१) ज, द, द-सुनो पृच्छक ! तेरे काम का एक शत्रु है, उसे बहुत बली राहु समझना. विश्वास नहीं करना, दिन पाय के कार्य सफल होगा।
(५२) ज, द, व-मनो पच्छक ! जो कार्य तुम सोचते हो, सो कार्य सहज में होगा । इष्टदेवता की पूजा करो।
(५३) ज, व, द-सुनो पृच्छक ! जो तू चिन्ता करता है सो कार्य कठिन है, तुम्हारे मित्र कपटी हैं, उनका कहना न मानना--अपने भाई-मित्रों को देखते रहना, तब कार्य सफल होगा।
(५४ ) ज, ज, व-सुनो पृच्छक ! जो तू सोचता है। उस कामना को परमेश्वर भला करेगा, तुम्हारे बुरे दिन गये, भले दिन आये हैं।
( ५. ) ज, द, ज-सुनो पृच्छक ! यह कार्य करने से तुम को सिद्धि होगी, कुछ जप-होम आराधना करो।
(५६) ज, अ, द-सुनो पृच्छक ! तुम और की आशा करते हो । आशा भगवान् को करनी चाहिये, उद्यम करने से कार्य सिद्ध होगा, चिन्ता मत करो।
(५७ ) ज, व, ज-सुनो पृच्छक ! तेरा कार्य तत्काल होगा परन्तु तुम धेयं करो, धैर्य करने से सुख मिलेगा।
(५८) ज, म, व-सुनो पृच्छक ! तेरा मन भ्रम में है, जिस कार्य का उद्यम करते हो उसमें बहुत श्रम है, इसे छोड़ और काम करो, होगा।
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'विमला' ब्याख्योपेता (५९) ज, ज, अ-सूनो पृच्छक ! तुम अर्थ की चिन्ता करते हो, उसका फल तुम शीघ्र ही पाओगे, पहिले तो तुम अधिक उद्यम किये थे परन्तु अब जो उद्यम करोगे तो सब कार्य सिद्ध होगा।
(६० ) ज, द, अ-सुनो पृच्छक ! जो तुम चिन्ता करते हो सो कार्य विपरीत है यदि आगम चाहते हो तो, इष्टदेवता की पूजा करो, कार्य सफल होगा।
(६१) ज, व, ब-सुनो पृच्छक ! यह कार्य भला नहीं, दीपक के समान है। जब तक तेल भरा रहता है, तब तक जलता है, और जब वन का प्रचण्ड पवन लग जाय तो बुझ जाता है, इस प्रकार तेरा कार्य है-विश्वास किसी पर मत करना, उद्यम करते रहना, कार्य सफल होगा।
(६२) ज, अ, ज-सुनो पृच्छक ! यह कार्य तेरा कठिन है, बिना कष्ट के न होगा, तेरे शत्रु कार्य को बिगाड़ते हैं, उनका विश्वास न करना, अन्त में भला होगा।
(६३ ) ज, व, अ-सुनो पृच्छक ! जो तू सोचते हो, उसका क्षण में बनाव और क्षण में बिगाड़ दीख पड़ता है, कार्य को हुआ कहते हो, परन्तु होता नहीं, कुछ प्रयोग बिना यह काम सिद्ध न होगा, इससे कुछ गायत्रो का जपहोम,स्तोत्र पाठ करो, तब इसकी सिद्धि होगी। (६४) ज, अ, अ-सुनो पृच्छक ! यह कार्य कठिन है ।
इति प्रश्न-फल-गणना समाप्त ।
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परिशिष्ट
अथ मुष्टिकादिप्रश्नज्ञानम् धनुएमीन१२श्च मिथुनं३ कन्यागर्म इति स्मृतः । अनाकर्क तुला चैव मकरं द्वारकं स्मृतम् ॥.n वृषरवृश्चिकःसिंहे च ५कुंभे११ बाह्य इति स्मृतः। द्विस्वभावानि श६९।१२गर्माणि चराणि १।७।१०द्वारमानि च ॥२॥ स्थिराणि २।५बाह्यमावानि ज्ञातव्यं सूक्ष्मदृष्टिमिः । मुष्टिचिन्तनवेलायां हस्तयोरुभयोरपि ॥३॥ द्वारभे गर्भभे चैव हस्ते सव्ये विनिर्दिशेत् । com ब्राह्मभे वामहस्ते तु वस्तुनिष्ठां विनिर्दिशेत् ॥ ४ ॥ गर्ने तु १० रक्तवर्ण स्याद् द्वारे२०श्वेतं विनिर्देशोत। गर्मान्ते ३.कृष्णवर्ण स्यादिति ते गर्मलक्षणम् ॥ ५ ॥ द्वारादौ श्वेत..मित्याहुरिमध्ये ३० तु रक्तकम् । द्वारान्ते पीत३०वर्ण स्थादित्येते द्वारलक्षणम् ॥ ६॥ बायादौ १०रक्तवर्ण स्याद् बाह्यमध्ये२०तु श्यामलम् । बाबान्ते ३०चित्रवर्ण स्यादित्येते बाह्यलक्षणम् ॥ ७ ॥ गर्भ तु लवणं विद्याद् बाझे तु मधुरं तथा । द्वारे क्षारं विजानीयादित्येतद् द्वारलक्षणम् ॥ ८ ॥ गौ तु जीवचिन्ता स्याद् बाये मूलमितं स्मृतम् । द्वारभे भातुचिन्ता स्याज्ज्ञातव्यं सूक्ष्मदृष्टिमिः ॥ ९ ॥ प्रगमें वर्तुलं विद्याद् वाद्ये चैव त्रिकोणकम् । चतुःकोणपरे द्वारे ज्ञातव्यं गणकोत्तमैः ॥१०॥ गर्मचिन्तनवेलायां गर्म गर्म विनिर्दिशेत् । पुत्रो भवति पाये च द्वारमे कन्यका बदेव ॥१॥
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"विमना' व्याख्योपेता अपत्यस्यायुषो वृद्धिर्बाह्यभे च प्रकीर्तिताः । गर्मे तु रोगयुक्तः स्याद् द्वारेऽल्पायुर्विनिर्दिशेत् ॥ १२ ॥ विद्याचिन्तनवेलायर्या द्वारे विद्या भविष्यति । विस्मृतिर्बाह्यमे चैव गर्ने विद्या विनश्यति ॥५॥ गृहचिन्तनवेलायां शुभं भवति गर्मभम् । द्वारभे जयमाप्नोति बाझे रोगं विनिर्दिशेत् ॥ १४ ॥ युद्धचिन्तनवेलायां युद्धं भवति बाह्यमे । द्वारेणाल्पं विजानीयात्सन्धिर्भवति गर्भभे ॥ १५ ॥ जयप्रश्नस्य वेलायां गर्मे पराजयो भवेत् ।। स्वस्थानं जयते बाझे द्वारे तु समरो भवेत् ॥ १६ ॥ अर्थचिन्तनवेलायां बाह्ये चार्थस्य सम्मवः । सामथ्र्य गर्मभे चैव अनर्थ द्वारमं स्मृतम् ॥ १७ ॥ यात्राचिन्तनवेलायां गर्भे यात्रा न जायते । रोगश्च जायते बाझे द्वारे सा न भविष्यति ॥ १८॥ OLLL कूपचिन्तनवेलायां गर्मे चैव तु निर्जलम् । द्वारे पूर्णजलं विद्याद् बाटे चैव शिलाजलम् ।। १९ ॥ बन्धमोक्षणवेलायां गर्भ बन्धं विनिर्दिशेत् । द्वारभे मुच्यते शीघ्रं बाह्ये पूर्णफलं भवेत् ।। २० ॥ प्रोक्तं मध्यफलं द्वारे गर्भ वित्तविनाशनम् । नष्टद्रन्यस्य वेलायां द्वारे गर्ने च लभ्यते ॥ २१ ॥ न लभ्यते बाह्यभे तु स्त्रीहस्ते द्वारमे भवेत् । गर्भ तु बाह्यमे चैव नरहस्ते विनिर्दिशेत् ॥ २२ ॥ बाह्यमे बायग्रामे तु द्वारभे च समागमः । चौरचिन्तनवेलायां गमें जातिसाम्यतः ॥ २३ ॥ बाझे चैव तु ग्रामीणो द्वारमे च विदेशगः । चौरोजतचिन्तायां गमें कुब्जं विनिर्दिशेत् ॥ २४ ॥ बाममे चोमतं विद्यासमं द्वारे विनिर्दिशेत् । नष्टजीवस्य चिन्तायां द्वारमे शीघ्रदर्शनम् ॥ २५ ॥
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80
ज्यौतिषप्रश्न फलगणना
गर्भे जीवस्य रोगः स्यान्नष्टं च बाह्यभे तथा । क्रय चिन्तनवेलायां मूळमायाति गर्मभे ॥ २६ ॥
माझे तु द्विगुणं वृद्धिर्द्वारे मूलस्य नाशनम् । रोगचिन्तनवेलायां गर्भे रोगो विनिर्दिशेत् ॥ २७ ॥
बाझे विचिन्तयेन्मुक्ति द्वारभे मरणं ध्रुवम् । प्रभुचिन्तनवेलायां द्वार शीघ्रदर्शनम् ॥ २८ ॥ गर्भे रोग विजानीयात् नष्टं चैव तु बाह्यभे । वृष्टिचिन्तनवेलायां द्वारे नीरं च वर्षति ॥ २९ ॥ गर्मे चैव अनावृष्टिर्षा चैव तुषारकम् ।
स्थैर्य प्रश्नस्य वेलायां द्वारभे तु स्थिरा मवेत् ॥ ३० ॥ बाह्ये षण्मासमात्रे तु गर्भे भेदः पृथक् पृथक् ॥
उपर्युक्त श्लोकों का सार वा मूकादि प्रश्नों का चक्र
१,४,७,१०
द्वारसंज्ञकलग्न
विषय - गर्भसंज्ञकलग्न
( द्विस्वभाव ) मुष्टिचिन्तन दाहिनी
रस
गर्भ
वर्ण १० अंश तक लाल २० अंश तक श्वेत
३० लाल
दशा
विद्या
गृहचिन्ता
युव
जीत-हार
नमकीन, जीव गोल क्षार, धातु,
गर्भ
कन्या
अल्पायु
विद्याप्राप्ति
जय
अल्पयुद्ध
तुमुलयुद्ध
रोगी
नाश
(चर )
दाहिनी
शुभ
सन्धि
पराजय
चौकोर
बाह्यसंज्ञकलग्न
( स्थिर ) बायीं
com
१० अंश तक लाल
२० अंश तक काला
३० अंश तक चितकबरा
मीठ,
मूल तिकोना
पुत्र
आयुवृद्धि
विस्मृति
रोग
युद्ध
जीत
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'विमला ग्याल्योपेता
अर्थ
रोग
लाभ अनर्थ
सम्भव यात्रा
नहीं होगी, नहीं होगी कूपजल निर्जल
पूर्णजल
अल्पबल बंधमोक्ष बन्धन
शीघ्रमुक्ति
विलम्ब से फल चिन्ता विनाश
मध्यमफल
पूर्णफल नद्रव्य मिलेगा मिलेगा
नहीं मिलेगा पुरुषचोर स्त्री पोर
पुरुष सभागत
गाँव के बाहर सामान्य विदेशी
गांवका नाट जीव रोगी
शोघ्र दर्शन खरीद मूल लाभ मूल नाश
दूना लाभ रोग रोगी मरण
रोगमुक्ति प्रभुचिन्ता रोगी
शीघ्रदर्शन वृष्टि W सुखार 01 वर्षा no ओला (पत्थर)m 'स्थिरता चिंतन भेद ( छिन्न-भिन्न ) स्थिर
छः महीना इति श्रीमहादेव-देवीसंवादे प्रश्नकल्पलता समाप्ता।
नष्ट
नष्ट
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