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'विमला' व्याख्योपेता
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ज - काराक्षर हो तो द्रव्य की हानि - कार्य का विनाश हो - मित्रों के साथ विरोध और झगड़ा हो ॥ २४ ॥
झ - कार में द्रव्य का और अनेक रत्नों का लाभ - सौभाग्य की सफलता हो । ञ -कारे शोकसंतापो बन्धनं च भविष्यति ।
इष्टैः सह विरोधश्च मृत्युश्चैव न संशयः ॥ २६ ॥ ट-कारे दृश्यते लाभो विजयश्च भविष्यति । प्राप्नोति सफलं काय नून सर्वार्थसाधनम् ।। २७ ।। ठ - का रे सर्वसिद्धिश्च धनं धान्यं तथैव च । आरोग्यं सफलं कायं जायते नात्र संशयः ॥ २८ ॥ ड-कारे लभते सिद्धि वर्द्धमानां तथैव च । सत्यं च क्षेममारोग्यं लभते नात्र संशयः ॥ २९ ॥ ढ -कारे बम्बनं व्याधिः शोकसताप एव च । मनसा चिन्तितं यद्यत्तत्सवं निष्फलं भवेत् ॥ ३० ॥ -कारे सकलाविद्या सौभाग्यमतुल भवेत् आरोग्यं च धनं धान्यं सर्वं चैव सदा भवेत् ॥ ३१ ॥
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ब- कार में चित्त में शोक-सम्यक् ताप हो, बन्धन, मित्रों के साथ विरोध और मृत्यु हो ।। २६ ।।
ट - कार में लाभ हो-विजय हो - कार्य सफल हो और निश्चय करके सर्व अर्थ का साधन हो ।। २७ ।।
ठ - काराक्षर में सर्वसिद्धि, घन की और धान्य की सिद्धि, शरीर रोगरहित और निःसन्देह कार्य सफल हो ।। २८ ।।
ड - काराक्षर में वृद्धि को प्राप्त हो । जो सिद्धि है वह मिले और कुशलपूर्वक शरीर में आरोग्यता निःसन्देह सत्य करके प्राप्त हो ।। २९ ।।
ढ - काराक्षर में बन्धन और रोग-शोक, चित्त में ताप हो और मन में जोजो विचारे सो सब व्यर्थ हो ।। २० ।।
- कार में सब विद्या, अतुल सौभाग्य हो, शरोर में आरोग्य, धन-धान्य सब हो ।। ३१ ।।
त-कारे चार्थलाभश्च सौभाग्यमपि जायते । अपरेण भवेत्सिद्धिः सर्वकामार्थसाधनम् ॥ ३२ ॥
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