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विमका व्याख्योपेता
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वृष में डेढ़ महीना और खर में दो महीना और गज में तीन महोना, ध्वांक्ष में अयन ( छ महीना ) कहना ।। १७ ।।
अथ धातु - जीव- मूलचिन्ता - प्रश्नः
ध्वजे धूम्रे धातुचिन्तां गजे सिंहे च मूलकम् ।
श्वाने खरे वृषे ध्वांक्षे जीवचिन्तां वदेद् दुधः ॥ १८ ॥
इसके अनन्तर धातु-जीव - मूल का विचार लिखते हैं- जो प्रश्न समय में ध्वज और धूम्र हो तो कहना कि प्रश्नकर्ता को धातु की चिन्ता है और गजसिंह हो तो मूल की चिन्ता कहना और श्वान - खर- वृष-ध्वांक्ष में प्रश्नकर्त्ता को जीव की चिन्ता पण्डित कहे ॥ १८ ॥
अथ सुवर्णादिधातु विचारः
ध्वजे सुवर्णकं ज्ञेयं धूम्रे रौप्यं तथैव च । सिंहे ताम्रं च विज्ञेयं श्वाने लोहं तथैव च ॥ WWW वृषे कांस्यं खरे नागं कथितं सीसकं गजे । कथितं गणकोत्तमः ॥ २० ॥
ध्वांक्षे पित्तलकं ज्ञेयं ध्वजे आभूषणं मून धूम्रे तु मुखभूषणम् । कण्ठस्याभूषणं सिंहे श्वाने च कर्णयोरिवम् ॥ २१ ॥ वृषे हस्तादिकं ज्ञेयमंगुलीभूषणं खरे | गजे च कटिसूत्रं च ध्वांक्षे पादादिगं तथा ॥ २२ ॥ तदनन्तर धातु विचार लिखते हैं-ध्वज में सुवर्ण जानना, धूम्र में रजत कहना और सिंह में ताम्र जानना और श्वान में लोहा जानना ॥ १९ ॥
१९ ॥
वृप में कांस्य और खर में नाग अर्थात् रांगा जानना और गज में सीसा कहा है और ध्वांक्ष में पीतल जानना - ऐसा गणकोत्तम कहते हैं ॥ २० ॥
वृष में हाथ का भूषण, खर में अंगूठी, गज में saiक्ष में चरण आदि का भूषण कहना ॥ २२ ॥
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धातु ज्ञान के अनन्तर भूषणादि का ज्ञान लिखते हैं-- ध्वज आय में मस्तक का आभूषण अर्थात् गहना कहना - धूम्र में मुख का आभूषण कहना - सिंह आय में कंठ का भूषण, श्वान में कर्णों का भूषण कहना ॥ २१ ॥
कटिसूत्र अर्थात् करधनी,
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