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'विमला'व्याख्योपेता आयु का प्रमाण-ध्वज-सिह में शत १०० वर्ष का आयुर्बल कहना, गज में व्योम कहे-शून्य-गज-आठ ( अस्सी वर्ष ) का आयुर्बल कहना, वृष में साठ ६० वर्ष की आयु, खर में व्योमाब्धि अर्थात् चालीस ४० वर्ष का कहना ॥ २८ ॥
श्वाने च विशतिः प्रोक्ता ध्वांक्षे च षोडशस्तथा।
धूम्र वर्षमिति संयमित्यायुश्च विचिन्तयेत् ॥ २९ ॥ श्वान में बीस वर्ष की आयुर्बल कहना, ध्वाक्ष में १६ वर्ष का, धूम्र में एक वर्ष जानना, इस तरह आयुर्बल का विचार करना ।। २९ ॥
अथ शत्रोरागमनप्रश्न: उपश्रुतिः स्याद्भक्तीति सत्या ध्वजे गजे सिंह-वृषे च प्राहुः ।
श्वाने खरे ध्वांक्ष-धूम्र एवमुपश्रुतिः स्याद्भवतीति मिथ्या ॥ ३० ॥ तदनन्तर शत्रु के आगमन की वार्ता सत्य वा मिथ्या है, इसका प्रश्न, ध्वज-गज-सिंह वृष में सुनी हुई शत्रु के आने की वार्ता सत्य कहना-ऐसा आचार्य कहते हैं और श्वान मे खर-ध्वांक्ष-धूम्र में शत्रु के आने की वार्ता मिथ्या कहना ॥ ३० ॥
अथ जय-पराजयप्रश्नः गजे ध्वजे वषे सिंहे स्थायिनो जयसम्भवः ।
खरे श्वाने तथा धने ध्वांक्षे तु यायिनो जयः ॥ ३१॥ इसके अनन्तर स्थायी के जीतने-हारने का प्रश्न-~-यदि प्रश्न में गज-ध्वजवृष-सिंह आवे तो स्थायी का जय कहना ( स्थायी वह है जो कि अपने देश में कोट इत्यादि बनवा के संग्राम करे ) और उसी प्रकार खर में श्वान, धम्र और ध्वांक्ष में यायी का जय कहना ( यायी वह है जो कि दूसरे देश से चढ़ाई कर के आवे ) और स्थायी-यायो के जय के विषय में जो गज, ध्वज इत्यादि आय कहे है उनसे भिन्न जो उनके विषय में आवे तो संधि अर्थात् मेल कहना । इसी प्रकार कोट ग्रामादि में विचार करना ॥ ३१ ।।।
__ अथ वृष्टिप्रश्नः धूम्र वृषे गजे श्वाने वृष्टि भवति चोत्तमा। सिंहे ध्वजे विलम्बं च ध्वांक्षे खरे न सिद्धचति ॥ ३२ ॥
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