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ज्योतिषप्रश्नफलगणना
अनन्तर वृष्टि का प्रश्न-धूम्र-वृष-गज-श्वान में उत्तम वृष्टि कहना और सिंह-ध्वज में विलम्ब से, ध्वांक्ष-खर में वृष्टि नहीं कहना ।। ३२ ।।
अथ नक्षत्रगर्भविचारः अश्विन्याद्यभमारभ्य नक्षत्रं दशकं तथा । तस्मात् पञ्चनक्षत्रं गर्भपातस्य चिन्तयेत् ॥ ३३ ॥ गर्भपाते तथा वृष्टिानिर्भवति निश्चिता।
गर्भपृष्ठे तथा वृष्टिर्यथा भवति चोत्तमा ॥ ३४ ॥ तदनन्तर प्रश्न-अश्विन्यादिनक्षत्रों से गर्भ का विचार करते हैं--अश्विन्यादि दश नक्षत्र गर्भ के पृष्ठ नक्षत्र हैं, जिसमें आगे पाँच नक्षत्र गर्भ नक्षत्र है, इनसे गर्भपात का विचार करना ।। ३३ ।।
गर्भपात के नक्षत्र-प्रश्न समय में आवे तो वृष्टि में हानि निश्चय कर के कहना और गर्भ के पृष्ठ जो दश नक्षत्र हैं वे आवें तो उत्तम वृष्टि कहना ॥३४॥ WWW.AD अथ दिनादिनप्रश्नः1 . Com.
धूने सप्तदिनं प्रोक्तं वृषे दिग्भिस्तथैव च । श्वाने च विशतिर्जेया गजे च सप्तविंशतिः ॥ ३५॥ सिंहे ध्वजे च व्योमाब्धी खरे ध्वांक्षे ऋतुस्तथा ।
वर्षाकाले च विज्ञयं कथितं गणकोत्तमैः ॥ ३६॥ तदनन्तर दिन का नियम-वर्षा प्रश्न में धूम्र आवे तो सात दिन में कहना और वृष में दश दिन, इवान में बीस दिन, गज में सत्ताईस दिन ॥ ३५ ॥
सिंह-ध्वज में चालीस दिन, खर-ध्वांक्ष में दो महीना । इस तरह वर्षा काल में काल जानना गणकोत्तमों ने कहा है ॥ ३६ ॥
अथ स्त्रीलाभप्रश्नः ध्वजे च सिहे च वृषे च लाभः स्त्रियं सुरूपां लभते सुलीलाम् ।
श्वाने खरे ध्वाक्ष-गजे च धूम्र कार्यस्य हानिः कलहस्तथैव ॥ ३७॥ इसके अनन्तर ( स्त्रा-लाभ का प्रश्न-ध्वज-सिंह-वृष में सवृत्त-सदाचार युक्त स्वरूपवती-स्त्री का लाभ कहना और श्वान-पर-ब्यांक्ष गज धूम्र में कार्य को हानि और कलह कहना ॥ ३७॥
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