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________________ प्राक्कथन अप्रत्यक्षाणि शास्त्राणि विवादस्तेषु केवलम् । प्रत्यक्षं ज्योतिष शास्त्रं चन्द्राौं यत्र साक्षिणी ।। तथा च शुभक्षणक्रियारम्भजनितापूर्वसम्भवाः । सम्पदः सर्वलोकानां ज्यौतिषस्य प्रयोजनम् ॥ शुभ लक्षण में किये हुए आरम्भ कर्मों से उत्पन्न पुण्य के द्वारा सकल प्राणियों की सम्पत्तियों की प्राप्ति 'ज्योतिष शास्त्र के ही अनुग्रह से होती है । 'ज्यौतिष' के समान प्रत्यक्ष शास्त्र दूसरा कोई नहीं है, सूर्य-चन्द्रमा इसके साक्षी हैं । ज्योतिष शास्त्र के मुख्य तीन स्कन्ध ( भेद ) हैं। १. गणित स्कन्ध, २. होरा स्कन्ध और ३. संहिता स्कन्ध । गणित स्कन्ध के द्वारा-भूगोलखगोल आदि का ज्ञान होता है। होरा स्कन्ध में जातक, ताजक और प्रश्न यह तीन प्रकार हैं और संहिता स्कन्ध में गर्गादि संहिता, रमल के ग्रन्थ, स्वरशास्त्र, शकुनग्रन्थ, सामुद्रिक, वास्तु विद्या और मुहूर्त के ग्रन्थ हैं। यद्यपि 'ज्योतिष' के सब विषय के ग्रन्थ को पढ़ना आवश्यक है, परन्तु 'प्रश्नफल गणना' यह विषय ऐसा है कि-इसके बिना किसी धर्मावलम्बी का क्षण-मात्र भी कार्य नहीं चल सकता। प्रतिदिन अनेकों प्रकार के 'प्रश्न फल' जानने की आवश्यकता पड़ती रहती है, अतः सर्वसाधारण के हितार्थ 'षडङ्गवेद' का 'नेत्रभूत' ज्योतिःशास्त्रान्तर्गत 'प्रश्न' ग्रन्थ ही तात्कालिक अद्भुत फल कहने में प्रधानतया सर्वोपरि विराजमान है। प्राचीन उत्तम-उत्तम प्रश्न के बृहद् ग्रन्थ जैसे षट्पञ्चाशिका १, प्रश्नप्रदीप २, भुवनदीपक ३, प्रश्नभैरव ४, प्रश्नसिन्धु ५, प्रश्नशिरोमणि ६, प्रश्नचण्डेश्वर ७, प्रश्नमार्ग ८, प्रश्नज्ञानप्रदीप ९, प्रश्नदीपिका १०, प्रश्नभूषण ११ आदि अनेकों ग्रन्थ उपलब्ध है एवम् इस प्राचीन
SR No.009846
Book TitleJyotish Prashna Falganana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDayashankar Upadhyay
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1975
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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