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'विमला' व्याख्योपेता
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( ३३ ) द, व, द - सुनो पृच्छक ! इस कार्य का उद्यम मत करो । यह भाई-बन्धु, मित्र- कुटुम्बियों के बल से सफल होगा, अकेले की बात ही क्या है, इससे मिलकर करो ।
( ३४ ) द, ज, द सुनो पृच्छक ! जो तू सोचता है, सो जानना चाहता है । इसका उद्यम करने से अर्थ लाभ होगा, इससे मिलकर करो ।
(३५) द, द, ज - सुनो पृच्छक ! जो तू सोच करता है, सो मिलना कठिन है. इसे छोड़ दे, अन्य सब सिद्ध होगा ।
( ३६ ) द, द, अ - सुनो पृच्छक ! जो तू चिन्तन करता है, सो कार्य दूर है, जैसे काम अभागे का कार्य भाग्य से सन्तोष से सिद्ध होगा ।
( ३७ ) द, ज, अ - सुनो पृच्छक ! जो तू कार्य चिन्तन करता है । उसके बहुत शत्रु हैं, तुम्हारा बुरा चाहते हैं, उनके भरोसे पर कार्य मत करो, क्षेत्र सन्तोषपूर्वक काम सिद्ध होगा ।
सफल
( ३८ ) द, अ, अ - सुनो पृच्छक ! जो तुम चिन्तन करते हो वह काम होगा। । अब तुम्हारा भाग्य उदय होगा । कुछ पुण्य करते रहो, शीघ्र ही पुत्र, लक्ष्मा, यश मिलेगा । कुशलता के साथ प्रसन्नता होगी ।
( ३९ ) द, व, द - सुनो पृच्छक दुष्ट आप है, इस काम से कुछ प्राप्त तो से मेल परस्पर करो, विरोध करना छोड़ (४०) द, अ, द - सुनो पृच्छक ! तुम मन का किया चाहते हो, इस कारण से कर्म के ऊपर ध्यान धरो, तुमको आनन्द प्राप्त होगा ।
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जो तुम चिन्तन करता है वह कार्य होगा, परन्तु तुम अपने भाई-बन्धुओं दो, काम सफल होगा ।
( ४१ ) द, द, व - सुनो पृच्छक ! इस कार्य के होने पर आपत्ति बहुत है पर तेरे शत्रु भला नहीं चाहते, विश्वास मत करना अफल होगा ।
(४२) द, ज, व सुनो पृच्छक ! जो तू इच्छा करता है, उसे छोड़कर अपने कार्य का उद्योग करो, सिद्ध होगा ।
( ४३ ) द, व, ज - सुनो पृच्छक ! जो तुम चिन्तन करते हो, उससे अर्थ लाभ होगा । पुत्र लाभ, यश अधिक प्राप्त होगा, कामना पूर्ण होगी ।
(४४ ) द, अ, ज - सुनो पृच्छक ! तुम उद्यम किया चाहते हो मोर कार्य का चिन्तन करो, तुम्हारे मनुष्य मनके शुद्ध नहीं हैं । इस काम का अच्छा फल है ।
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