Book Title: Jinabhashita 2006 08
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनभाषित वीर निर्वाण सं. 2532 श्री सिद्ध क्षेत्र सोनागिरि जी जिला-दतिया (मध्यप्रदेश) श्रावण, वि.स. 2063 अगस्त, 2006 मूल्याGibrary.org Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधना स्वर्ग का साधन नहीं, मोक्ष का पथ है o आचार्य श्री विद्यासागर जी मानव ही महान् बनने की पात्रता रखता है। साधना स्वर्ग हुआ। वृक्ष के छत्ते से मधुरस की का साधन नहीं मोक्ष का पथ है । संसार, स्वर्ग और मोक्ष का अन्तर बूंदे टपक रही थीं। एक बूंद मधुरस यह है कि मोक्ष के जीवों को शारीरिक, मानसिक, वाचनिक से तृप्ति नहीं मिली। कुछ बूंदे और परिश्रम की आवश्यकता नहीं होती। स्वर्ग के देवों की आयु पी लूँ, फिर वाहन में सवार हो गमनागमन में व्यतीत होती है। वैभव का उपभोग एवं सुविधा का जाऊँ। मधुरस के मधुर स्वाद के भोग करने वाले दैवीय दम्पती की कामना मानवजन्म लेकर लिए आतुर संकटग्रस्त व्यक्ति को महान् बनने की रहती है। महान् बनने की क्षमता मानव में कुछ मधुमक्खियों ने काट लिया, विद्यमान है। अधर के देव धरा के जीवों के दुखों से द्रवित हो जाते किन्तु मधुरस का मोह टूट नहीं रहा। हैं। संसार कितना कष्टकारी है, चारों ओर मौत मँडरा रही है। वन से आ रहे गजराज ने वृक्ष पर सुख ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करने वाले देवों को, आयु सीमा प्रहार किया। लटों में झूल रहा पूर्ण होने के छ: माह पूर्व ज्ञान हो जाता है कि भोगों के छूटने का व्यक्ति गहन अंधकारमय कुएँ में जा समय सन्निकट है। उदासी छा जाती है, आगामी जीवन की गिरा। जिन लटों में वह झूल रहा था, चिन्ता व्याप्त हो जाती है। सुदीर्घ जीवन सुखमय बीता, छह माह उन लटों को श्वेत और श्यामवर्ण के दो चूहे कुतर रहे थे। कुएँ में गिरते चिन्ता में। क्या मिलेगा, क्या मानव से महान बन सकूँगा ? क्या ही सहायता के लिए उत्सुक देव-दम्पती भी रवाना हो गए। मोह-लोभ मुक्ति मिलेगी ? संसार के वृक्ष से मोह का मधुरस टपक रहा है। के बंधन से सदा अंधेरे कुएँ में ही गिरना होता है। कोई बचाना चाहे तो मोह से मुक्त हों, तो मुक्ति पथ पर पग धरें। शिशु जन्म लेता है भी बच नहीं सकते। इस बंधन से मुक्त होते ही मुक्ति का पथ दिखने मुट्ठी बाँधकर,गए हाथ पसार कर। मुट्ठी में बंद अनेक संभावनाएँ लगता है। यह संसार उसी विशाल वृक्ष की भाँति है, जिसकी आयु की लेकर आए थे, लुटकर चले गए। तेल और बाती के बिना दीपक लटों में जीव लटक रहे हैं, इन लटों को काल मूषक काट रहे हैं। काला नहीं जलता, जलाने के सभी प्रयास व्यर्थ । प्राणरहित काया न मूषक कृष्ण पक्ष का तो श्वेत मूषक शुक्ल पक्ष का द्योतक है। विषयभोग टिकेगी,न डुलेगी, इसमें प्राण नहीं डाल सकते। जो चलता था वो के मधुरस की बूंदों में खोकर कालरूपी गजराज के प्रहार से बच नहीं चला गया, जो रह गया वह निरर्थक है। अर्थी में वे जाते हैं, अग्नि सकते। काल आता है, तो साथ लेकर जाता है। किसी रिश्वत से काल में समर्पित करने के पूर्व सभी वस्त्र आभूषण उतार लेते हैं, कुछ । को टाल नहीं सकते। काल अटल है। सुख की एक बूंद की लिप्सा भी साथ नहीं रहता। ज्येष्ठ पुत्र आग लगाता है। सारे सम्बन्ध सहायता की बार बार पुकार पर भारी पड़ती है। मधुरस की एक एक समाप्त हो गए, कोई नहीं रुका। तेरह दिन पश्चात् तेरा सो तेरा, बूंद की चाह ने संसारसागर में बाँध रखा है। शेष सभी मेरा । संसार ठहरता नहीं, चलता रहता है। आवागमन धन्य हैं वे महापुरुष, जिन्होंने संसार को समझा। संसार से मुक्त है। याद में कोई रोता है, तो समझाते हैं 'रोओ मत',बच्चों की ओर होकर, मुनियों को मुक्ति का पथ दिखाया। चिडिया द्वारा खेत चुगे जाने देखो, इनका ध्यान रखो। जो गया उससे क्या नाता। जब चलता के पूर्व प्रबंध करना चाहिए। फलेगा वही जो बोया जाएगा। जैसा फल था, तब परिवार को चलाता था, सो नाता था, अब चला गया तो चाहते हैं, वैसी ही फसल के लिए उपयुक्त बीज बोने की आवश्यकता नाते टूट गए। संसार का यह रूप,संयोग और वियोग, कोई वस्तु है। बीज बोने का क्रम जारी है। ऐसा बीज बोया जा सकता है कि बार नहीं, कर्मों की गति है। पराया अपना लगता था, लगना ही भ्रम । बार बोने की आवश्यकता न हो। असंख्यात जीवों का आवागमन जारी है, काया से आत्मतत्त्व पृथक् है। बार बार मरण काया का होता है, मोहबन्धन के विशाल वृक्ष की लटें चारों ओर फैली हुई । आत्मा अमर है। आत्मतत्त्व के अभाव में काया जड़ हो जाती है, न हैं। एक ओर गहरी खाई है, दूसरी ओर सघन अंधकार युक्त । हिलेगी न डुलेगी,न उठेगी। नामोनिशान मिट जाता है । नाम भी समाप्त, कुआँ । लटों से लटके व्यक्तित्व की दशा से द्रवित देवपत्नी ने पति नाम का निशान भी समाप्त। पुराणग्रन्थों से अनेक महान् आत्माओं की से सहायता करने का आग्रह किया। पत्नी के बारम्बार अनुरोध से गौरव गाथाओं का ज्ञान होता है, क्या जीवन था! गुणगान करते हैं, देवपति अपना वाहन,संकट से घिरे व्यक्ति के समीप ले गया एवं गौरव की अनुभूति होती है। अपने जीवन में इतना काम किया और ऐसा संकटग्रस्त को वाहन में सवार हो जाने का निमंत्रण दिया। एक काम किया कि क्रान्ति हो गई, कांति व्याप्त हो गई। बन्द मुट्ठी तो लाख बार, दो बार, अनेक निमंत्रण पर भी वह वाहन में सवार नहीं की,खुल गई तो राख की। राख होने के पहले जागना जरूरी है। है। Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . रजि. नं. UPHIN/2006/16750 अगस्त 2006 सम्पादक प्रो. रतनचन्द्र जैन कार्यालय ए/2, मानसरोवर, शाहपुरा भोपाल- 462039 (म.प्र.) फोन नं. 0755-2424666 सहयोगी सम्पादक पं. मूलचन्द्र लुहाड़िया, (मदनगंज किशनगढ़) पं. रतनलाल बैनाड़ा, आगरा डॉ. शीतलचन्द्र जैन, जयपुर डॉ. श्रेयांस कुमार जैन, बड़ौत प्रो. वृषभ प्रसाद जैन, लखनऊ डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती', बुरहानपुर शिरोमणि संरक्षक श्री रतनलाल कंवरलाल पाटनी (आर. के. मार्बल) किशनगढ़ (राज.) श्री गणेश कुमार राणा, जयपुर प्रकाशक सर्वोदय जैन विद्यापीठ 1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) फोन : 0562-2851428, 2852278 सदस्यता शुल्क शिरोमणि संरक्षक परम संरक्षक संरक्षक आजीवन वार्षिक 5,00,000रु. 51,000 रु. 5,000रु. 500 रु. 100 रु. एक प्रति 10 रु. सदस्यता शुल्क प्रकाशक को भेजें। मासिक जिनभाषित अन्तस्तत्त्व • प्रवचन साधना स्वर्ग का साधन नहीं, मोक्ष का पथ है : आचार्य श्री विद्यासागर जी स्तवन : मुनि श्री योगसागर जी • श्री सुमतिनाथ - स्तवन · श्री पद्मप्रभ-स्तवन सम्पादकीय : सत्यमेव जयते • लेख प्रारंभिक प्राच्यविदों की जैनधर्म के इतिहास विषयक भ्रान्तियाँ : स्व. डॉ. ज्योतिप्रसाद जी जैन • आदर्श श्रावक : प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाश जी • छोटे बाबा का बड़ा काज : डॉ. सुधा मलैया • जिज्ञासा समाधान : पं. रतनलाल बैनाड़ा • कविता : समाचार वर्ष 5, आचार्य कुन्दकुन्द की दृष्टि में श्रमणाभास : स्व. डॉ. लालबहादुर जी शास्त्री • शास्त्र बने शस्त्र : धरमचन्द्र वाझल्य • अब डंक मत मारो : श्रीपाल जैन दिवा वर्षायोग : चातुर्मास 2006 लेखक के विचारों से सम्पादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है । जिनभाषित से सम्बन्धित समस्त विवादों के लिए न्याय क्षेत्र भोपाल ही मान्य होगा । अङ्क 8 पृष्ठ आ. पृ. 2 आ. पृ. 3 2 4 6 9 11 25 10 25 26 31-32, आ. पृ.4 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय सत्यमेव जयते केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा म.प्र. राज्य सरकार एवं कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी के विरुद्ध माननीय जबलपुर उच्च न्यायालय में प्रस्तुत याचिका पर न्यायालय ने प्रारंभ में दिए हुए स्थगनादेश को आंशिक रूप से हटाकर बड़े बाबा की मूर्ति के संरक्षण के लिए आवश्यक निर्माण की स्वीकृति प्रदान की थी। उच्च न्यायालय के उक्त निर्णय के विरुद्ध केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग ने पुनः माननीय उच्चतम न्यायालय में एस. एल. पी. प्रस्तुत की थी। श्रद्धालु श्रावकजनों के पुण्योदय से माननीय उच्चतम न्यायालय ने वह एस. एल. पी. स्वीकृति के स्तर पर ही निरस्त कर दी। इस निर्णय से यह प्रतिफलित हुआ है कि बड़े बाबा की मूर्ति के स्थानांतरण के पश्चात् उसकी सुरक्षा के लिए मंदिरनिर्माण को माननीय उच्चतम न्यायालय ने उचित ठहराया है। इस समस्त घटनाक्रम ने देश के सम्पूर्ण दि. जैन समाज के मन मस्तिष्क को आंदोलित किया है। किंतु कुछ लोग सार्वजनिकरूप से घटनाक्रम को तोड़-मरोड़कर विकृत रूप में प्रचारित कर समाज को भ्रमित करने का प्रयास करने में लगे हुए हैं। यहीं तक नहीं, अपितु कुछ लोग प्रच्छन्नरूप से न्यायालय में दिगम्बर जैन समाज के हितों के विरुद्ध विपक्ष की सहायता करने की सीमा तक भी चले गए हैं 1 वस्तुतः उक्त घटना दिगम्बर जैन समाज को एक बार फिर झकझोर कर अपने धर्मायतनों की सुरक्षा एवं अपनी अस्मिता के अस्तित्व के प्रश्न पर गहन चिंतन करने को विवश करती है । स्वतन्त्र भारत के इतिहास में दिगम्बर जैन समाज की अपने धर्मायतनों एवं धर्म तीर्थों के निर्माण, जीर्णोद्धार एवं पुनर्निर्माण की स्वतन्त्रता पर आक्रमण की यह प्रथम घटना है। दिगम्बर जैन समाज के स्वामित्व के 100 वर्ष से अधिक प्राचीन हजारों जिनालय एवं सैकड़ों तीर्थक्षेत्र आज भारत भूमि पर हैं, जिनकी सुरक्षा एवं अपनी आवश्यकतानुसार निर्माण अथवा पुनर्निर्माण करने तथा पूजा-अर्चना करने का अधिकार दिगम्बर जैन समाज को है और उसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप पुरातत्त्व विभाग द्वारा नहीं किया जा रहा है। कुंडलपुर तीर्थक्षेत्र पर भी प्रारंभ से दिगम्बर जैन समाज का स्वामित्व रहा है और उसकी सुरक्षा एवं देखरेख के लिए क्षेत्र कमेटी का गठन किया जाता रहा है। समय-समय पर क्षेत्र कमेटी समाज के हित में नव निर्माण, जीर्णोद्धार, पुनर्निर्माण करती रही है, जिसमें कभी भी पुरातत्त्व विभाग द्वारा कोई आपत्ति नहीं की गई है। पूर्व में कुंडलपुर के मंदिरों को केवल म. प्र. प्रांतीय राज्य की पुरासंपत्ति की सूची में अंकित किया गया था। किंतु केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा कभी भी विधिवत् उन्हें राष्ट्रीय संरक्षित मान्यूमैंट्स की परिधि में नहीं लाया गया और न वहाँ कभी नियमानुसार नीला बोर्ड लगाया गया और न विभागीय चौकीदार ही रखे गए। यह भी उल्लेखनीय है कि कुंडलपुर के मंदिरों के रख रखाव पर पुरातत्त्व विभाग ने कभी एक पैसा भी खर्च नहीं किया। कुंडलपुर तीर्थक्षेत्र के प्रति देश के दिगम्बर जैन समाज के आकर्षण का मुख्य कारण बड़े बाबा की विशाल, अतिशयकारी, भव्य मूर्ति रही है। उस भव्य मूर्ति के छोटे जीर्ण-शीर्ण मंदिर के जीर्णोद्धार एवं विस्तार के लिए क्षेत्र कमेटी एवं क्षेत्र से जुड़ा दिगम्बर जैन समाज गत अनेक वर्षों से चिंतित था । अनेक बार अनेक प्रकार की योजनाओं पर विचारविमर्श होता रहा । इसी बीच भूविज्ञानशास्त्र के विशेषज्ञों की राय भी ली गई और एक भूकंपरोधी विशाल भव्य नवीन मंदिर के निर्माण की योजना सामने आई। इस योजना को देश के सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज की विशाल सभा में सन् 2001 में अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी, अ.भा.दि. जैन विद्वत् परिषद्, शास्त्री परिषद् एवं समस्त दिगम्बर जैन समाज ने एक स्वर से नए मंदिर के निर्माण की योजना का समर्थन किया और साथ ही मध्यप्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री महोदय ने मंदिरनिर्माण का समर्थन करते हुए उसके लिए राज्य सरकार द्वारा आवश्यक सहयोग की घोषणा की। तभी नवीन विशाल मंदिर के निर्माण कार्य को प्रगति मिली। तथापि अत्यंत खेद की बात है कि यह नवीन भव्य मंदिर का निर्माण एवं क्षेत्र का विकास अपनों में से ही कुछ, Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किन्हीं कारणों से असंतुष्ट हो विद्वेष रखनेवाले, लोगों की आँखों की किरकिरी बन गया। उन लोगों ने पुरातत्त्व विभाग के अधिकारियों को शिकायत कर मंदिर के निर्माणकार्य को एवं बड़े बाबा की मूर्ति के स्थानांतरण को रुकवाने के लिए भारी दबाव डाला। परिणामस्वरूप पुरातत्त्व विभाग द्वारा जबलपुर उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत हुई। यद्यपि पुरातत्त्व विभाग को नवीन मंदिर के निर्माण एवं पुराने मंदिर से मूर्ति के स्थानांतरण को रोकने का कोई विधिसम्मत अधिकार नहीं है। इस संकट के अवसर पर दिगम्बर जैन समाज को क्या करना चाहिए यह महत्त्वपर्ण विचारणीय बिंद है। हमारे बीच किसी बात पर आंतरिक मतभेद हो सकते है, किंतु यदि कोई बाहरी शक्ति हमारे धर्मायतनों पर आक्रमण करे, तो क्या हम सबको एकजुट संगठित होकर पारस्परिक मतभेदों को गौण कर आक्रमणकर्ता से संघर्ष कर अपने धर्मायतनों की सरक्षा नहीं करनी चाहिए ? क्या हमारे आंतरिक विचार-भेदों के कारण हम अपने धर्मायतनों पर आक्रमण करनेवालों को सहायता देकर स्वयं के पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मार रहे हैं ? यह हमारा आत्मघाती कदम हमारे अस्तित्व एवं हमारी अस्मिता पर भारी संकट ला सकता है। तथापि कंडलपुर तीर्थ पर आए इस वर्तमान संकट पर विजयप्राप्ति के लक्षण उच्च न्यायालय द्वारा स्थगनादेश हटाने एवं उच्चतम न्यायालय द्वारा पुनः स्थगनादेश लगाने से इंकार करने का स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। कुंडलपुरक्षेत्रकमेटी सत्य पर है। कमेटी के समर्थन के देश के समस्त दिगम्बर जैन समाज की श्रद्धापूर्ण भावनाएँ हैं। एक दिन अवश्य ही जन-जन की भावनाओं के अनुकूल, बड़े बाबा की भव्यता के अनुरूप ही विशाल भव्य मंदिर पूरा होगा और हम सब उस मंदिर की छत के नीचे बैठकर बड़े बाबा के दर्शनपूजन कर पायेंगे। सत्य की विजय होती है। सत्यमेव जयते। मूलचंद लुहाड़िया अनुभूत रास्ता विहार करता हुआ पूरा संघ अकलतरा की ओर बढ़ रहा था। वहाँ जाने के लिए दो रास्ते थे- एक पक्की सड़क से होकर और एक कच्चे रास्ते से होकर जाता था। कच्चा रास्ता दूरी में कम पड़ता था। वहाँ पर अनेक लोगों ने अपने-अपने ढंग से रास्ता बताया। कुछ महाराज पहले ही बताये गये रास्ते से आगे निकल गये। एक वृद्ध दादा जी ने आकर बताया कि बाबाजी आप लोग तो सीधे इसी रास्ते से निकल जाइये, आप जल्दी पहुँच जायेंगे और रास्ता भी ठीक है। मैं इस रास्ते से अनेकों बार आया-गया हूँ। तब आचार्यश्री के साथ हम सभी मुनि उसी रास्ते पर चल दिये। आगे चलकर देखा रास्ता एकदम साफ-सुथरा था एवं दूरी भी कम थी। आचार्यश्री ने कहा - देखो उस वृद्ध का बताया हुआ रास्ता एकदम सही है, क्योंकि वह अनुभूत रास्ता है। इसी प्रकार मोक्षमार्ग में हर किसी के बताये रास्ते पर नहीं चलना चाहिए, बल्कि जो अनुभूत कर चुके हैं, ऐसे ही वीतरागी गुरु के बताये रास्ते पर चलना चाहिए। तभी हम जल्दी मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। मुनिश्री कुंथुसागर-संकलित 'संस्मरण' से साभार Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रारंभिक प्राच्यविदों की जैन धर्म के इतिहास-विषयक भ्रान्तियाँ डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन आधुनिक युग में जैनधर्म का इतिहास प्रारंभिक | निकाल लिया कि “यहाँ सिंहपुर में ही इन श्वेतवसन यूरोपवासी प्राच्यविदों के हाथ का चिरकाल पर्यन्त खिलौना | साम्प्रदायिकों के आद्य गुरु ने बोधि प्राप्त की थी और अपने बना रहा। इसका एक कारण यह रहा कि जैनधर्म और द्वारा आविष्कृत मत का प्रथम उपदेश दिया था।''2 सुदूर उसकी संस्कृति का अध्ययन करने के बहुत पूर्व ही वे लोग | चीन देश से आये सातवीं शती ईस्वी के इस बौद्ध तीर्थयात्री बौद्धधर्म का पूरी तरह, और हिन्दू (ब्राह्मण) धर्म की परम्परा | के उपरोक्त अस्पष्ट एवं चलतऊ कथन पर से उसके यात्राका भी पर्याप्त अध्ययन कर चुके थे। दूसरे, जैनधर्मविषयक | वृतांत के प्रसिद्ध आंग्ल अनुवादक टामस वाटर्स ने तथा जानकारी प्राप्त करने के लिए जो जैन पुस्तकें उन्हें प्रारंभ में | उसकी पुस्तक के सम्पादकों ने यह प्रतिपादित कर दिया कि उपलब्ध भी हुईं, वे नितांत अपर्याप्त, सदोष, सन्दिग्ध कोटि | "इस चीन यात्री के मतानुसार जैन-धर्म बौद्ध धर्म का परवर्ती की और अविश्वसनीय थीं। ब्राह्मण पंडितों ने भी साम्प्रदायिक | है और मुख्यतया उसी में से निकला विद्वेषवश जैनधर्म को समझने में उनकी कोई सहायता नहीं आश्चर्य की बात यह है कि यही चीनी यात्री अपने की। परिणाम यह हुआ कि वे प्राच्यविद् जैनधर्म को | वृत्तांत में अनेक स्थलों पर कियापिशि (कैप्सिया या काबुल) उत्तरकालीन बौद्धधर्म की एक शाखा अथवा विरोधस्वरूप | से लेकर कुमारी अन्तरीप और बंगाल एवं उड़ीसा से लेकर उससे कटकर अलग हुआ उसका एक सम्प्रदाय मात्र मान | पश्चिमी समुद्रतट पर्यन्त अपनी यात्रा में प्रायः सर्वत्र मिले बैठे। इस प्रकार कई दशकों पर्यन्त जैनधर्म की वास्तविक जिन प्राचीन निर्ग्रन्थों (लि. हि. अर्थात् निर्गन्थ परम्परा के ऐतिहासिक स्थिति अन्धकाराच्छन्न बनी रही। सुप्रसिद्ध जर्मन | दिगम्बर मुनियों) की, उनके देव मंदिरों की, अधिष्ठानों की प्राच्यविद् डॉ. हर्मन जैकोवी ने, गत शताब्दी के अन्त के और उनके अनुयायी नरेशों एवं जन-समुदायों की विद्यमानता लगभग, यह स्पष्ट रूप से स्वीकार किया था कि “हम का स्पष्ट उल्लेख करता है। उनका समीकरण तो उक्त लोग जैनधर्मविषयक वस्तुस्थिति की अभी हाल में ही ठीक- विद्वानों ने जैनों के साथ किया नहीं, और उसके द्वारा उल्लेखित ठीक समझ पाये हैं। उसके पूर्व यह विश्वास किया जाता था 'सिंहपुर के श्वेतवसन हेरेटिक्स' को ही वे तत्कालीन जैनों के कि वह बौद्धधर्म की ही एक शाखा है। कारण यह था कि एकमात्र प्रतिनिधि मान बैठे। उस समय पाश्चात्य विद्वान् बद्ध और बौद्धधर्म से भली संभवतया प्रोफेसर होरेस विल्सन ही वह विद्वान् था, भाँति परिचित हो चुके थे और क्योंकि उसकी जन्मभूमि जिसने उपर्युक्त लचर आधार को लेकर इस मत का सर्वप्रथम भारतवर्ष के बाहर अनेक एशियाई देश उस धर्म के अनुयायी प्रतिपादन किया कि जैनधर्म बौद्धधर्म की ही एक शाखा है, हैं, स्वभावतः उसे ही अन्य सदृश धर्मों का जनक मान जो सातवीं शती ई. में उस समय उदय में आई जबकि स्वयं लिया गया, और लगता था कि जैनधर्म भी उन्हीं में से एक बौद्धधर्म इस देश में द्रुतवेग से तिरोहित हो रहा था। -लेसन, बार्थ, हन्टर, वेबर तथा अन्य अनेक विद्वानों ने इस मत का जैन-धर्म को बौद्ध-धर्म की शाखा मान लेने पर यह अनुकरण किया। उनमें से कई ने तो यह भी स्पष्टतया प्रश्न उपस्थित हआ कि वह मूल (बौद्ध) धर्म से कब | स्वीकार किया कि जैनधर्म के सम्बन्ध में उनकी जानकारी पृथक होकर उदय में आया? इस प्रश्न का समाधान भी | अभी भी अपर्याप्त एवं अपर्ण थी उस मत के प्रभत प्रचार चीनी पर्यटक युवांनच्चांग (629-645 ई.) के यात्रा-वृत्तांत | का श्रेय सर रोपर लेथब्रिज की पुस्तक 'हिस्टरी ऑफ इंडिया' में सहज ही प्राप्त कर लिया गया। उत्तर भारत की अपनी | को है। इन प्रारम्भिक इतिहासकारों में से एलफिन्स्टन प्रभृति यात्रा में यह चीनी भिक्षु पंजाब में स्थित सिंहपुर नामक स्थान कई एक ने तो जैनधर्म के पूरे इतिहास को केवल पाँच में भी पहुँचा था, जहाँ संभवतया श्वेताम्बर जैन यतियों का | शताब्दियों के भीतर ही सीमित कर दिया, और कह डाला एक अधिष्ठान विद्यमान था। उनकी वेषभूषा, रहन-सहन | कि सातवीं शती ई. में इस धर्म का उदय हुआ, आठवींऔर आचार-विचार में अपने भारतीय सहधर्मियों (बौद्धों) नौवीं में इसका प्रचार और फैलाव हुआ, दसवीं शती में यह के साथ बाह्य साम्य लक्ष्य करके युवानच्वांग ने यह निष्कर्ष | अपनी उन्नति के चरम शिखर पर पहुँच गया, ग्यारवीं 4 अगस्त 2006 जिनभाषित Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बारहवीं शतियों में इसका पतन हो गया और तदनन्तर एक अस्तु डॉ. जैकोबी के तत्सम्बन्धी गवेषणा के क्षेत्र में छोटे से गौण सम्प्रदाय के रूप में प्राचीन बौद्धधर्म का उसकी | पदार्पण करने के समय तक यह मान्यता बन चली थी कि जन्मभूमि में प्रतिनिधित्व करता हुआ रहता आया है। जैनधर्म बौद्धधर्म से स्वतंत्र है और छठी शती ईसा पूर्व में हुए जैनधर्म बौद्धधर्म की शाखा है, इस मत को किस | वर्द्धमान महावीर इस धर्म के संस्थापक हैं, तथा यह भी कि प्रकार बल मिला, इस बात पर प्रकाश डालते हुए डॉ. | बौद्धधर्म की भाँति जैनधर्म भी तत्कालीन ब्राह्मणधर्म के जैकोबी कहते हैं कि "संस्कृत भाषा एवं प्राच्य विद्या के विरोध में उत्पन्न हुआ एक सुधारक धर्म था। जैकोबी ने आंग्ल पंडितों में सर्वप्रमुख कोलबुक ने जैनधर्म के विषय | अपनी खोजों से यह निर्विवाद सिद्ध कर दिया कि जैनधर्म में सही जानकारी दी थी। उसने स्वयं को उन निराधार | सर्वथा स्वतंत्र एवं अत्यन्त प्राचीन धर्म है। शनैः शनैः 23वें मतवादों से भी मुक्त रखा था, जिनमें भाषा-विज्ञान के क्षेत्र में | तीर्थंकर पार्श्वनाथ और 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ की भी कार्य करनेवाले उस काल के विद्वान् सहज ही ग्रस्त हो जाते ऐतिहासिकता स्वीकार कर ली गई और यह भी माना जाने थे। वस्तुतः वह ऐसा समय था जब कार्यकारी प्रतिपत्तियों, लगा कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ही इस परम्परा के प्रथम स्थापनाओं और मतों को लेकर चले बिना काम नहीं चलता | पुरस्कर्ता रहे प्रतीत होते हैं तथा यह कि उसकी प्राचीनता था। जैनधर्म और बौद्धधर्म के ऊपरी प्रत्यक्ष सादृश्य ने ही प्राग्वैदिक काल तक ले जाई जा सकती है।6 उपर्युक्त धारणा को जन्म दिया। होरेस विल्सन जैसे प्रमाणिक | पाद टिप्पणियाँ विद्वान् की तद्विषयक धारणा ने कि जैनधर्म बौद्धधर्म से 1. अंग्रेजी जैन गजट, 1914, पृ. 169 (राजकोट में अपेक्षाकृत बहुत पीछे पृथक् हुआ है, इस मत को आमतौर दिया भाषण) पर प्रचारित कर दिया। परन्तु स्वयं उसके गुरु अल्ब्रेरट वेबर 2. प्रोग्रेस रिपोर्ट, हिन्दू एंड बुद्धिस्ट मोनुमेंट्स, लाहौर ने विल्सन के मत में संशोधन करके बौद्धधर्म में से जैनधर्म 1920, पृ. 12 'के निकलने का समय चौथी शताब्दी ईसापूर्व निर्धारित किया 3. आन युवान च्वांग्स ट्रेवल्स इन इंडिया, लंदन, 1904 भाग 1 पृ. 252 था। निश्चय ही इस संशोधन का कारण यह था कि अशोक वही, दोनों भाग के शिलालेखों में, जो अब पढ़े जा चुके थे, जैन (निर्ग्रन्थ) 5. एच विल्सन, इंडियन बुद्धिज्म, सी. आर. IV, 1 धर्म का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होता है। इसके विपरीत, पृ. 241-281 मैक्समूलर और ओल्डलबर्ग यह मानते थे कि बौद्ध ग्रन्थों के बार्थ, रिलीजन्स आफ इंडिया, पृ. 148-150 निगंठनातपुत्त ही महावीर थे और वह बुद्ध के समसामयिक एलफिन्स्टन, हिस्टरी आफ इंडिया, पृ. 121 थे।1० फ्रांसीसी विद्वान डॉ. गेरीनाट ने वर्द्धमान और गौतम जैन गजट, जनवरी 1914, पृ. 8 कोलबुक मिस. बुद्ध के बीच पाँच भिन्नताओं की ओर विद्वानों की दृष्टि एस्सेज, II, पृ. 276, वेबर-हिस्टरी आफ इंडियन आकर्षित की, यथा दोनों के जन्म-विषयक वर्णन, दोनों की लिटरेचर (1882), पृ. 296-7 जननियों का निधन कैसे हुआ, दोनों के गृहत्याग, ज्ञानप्राप्ति 9. स्मिथ - अशोक, पृ. 192-193 10. मैक्समूलर, दी सिक्स सिस्टम्स आफ फिलास्फी और निर्वाण 1 वस्ततः जैसा कि डॉ. राधाकष्णन ने कथन नेचुरल, ओल्डेन वर्ग-दी बुद्धा रिलीजन किया है, “भारतीय परम्परा तो जैन और बौद्ध-दोनों धर्मों 11. गेरिनाट - दर जेनिस्मस । को सदैव से स्पष्टतया पृथक एवं स्वतंत्र मानती आई है। 12. इंडियन फिलास्फी, भा. 1, पृ. 291 हिन्दू शास्त्रों ने कभी भी उन दोनों को अभिन्न नहीं प्रतिपादित 13. दी वे टु निर्वाण, पृ. 67, किया। उक्त शास्त्रों के साक्ष्य की गेरिनाट, जैकोबी, बहूलर 14. मिस्सलेनियस एसेज, II, पृ. 276 प्रभृति अनेक विद्वानों के अन्वेषणों से पुष्टि होती है।"12 15. सेक्रेड बुक्स आफ दी ईस्ट, भा 22 एवं 45 की मोशियो पुशिन का तो विश्वास था कि 'जैन तो एक सशक्त भूमिकाएँ साधुसंघ था जिसका उदय अथवा पुनर्गठन शाक्यमुनि (बुद्ध) ज्योति प्रसाद जैन-जैनिजम, दी ओल्डेस्ट लिविंग के उदय के कुछ काल पूर्व ही हो चुका था। कोलबुक तो रिलीजन (वाराणसी, 1951) इस पुस्तक में जैकोबी की खोजों का तथा उससे आगे क्या बहुत पहले ही यह विश्वास प्रगट कर चुका था कि जैनधर्म प्रगति हुई, उस सबका विवेचन है। बौद्धधर्म का पूर्ववर्ती है, क्योंकि वह प्रायः प्रत्येक पदार्थ में जीव की सत्ता स्वीकार करता है। 4 'पं. सुमेरुचन्द्र दिवाकर अभिनन्दन ग्रन्थ' से साभार अगस्त 2006 जिनभाषित 5 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य कुन्दकुन्द की दृष्टि में श्रमणाभास डॉ. लालबहादुर शास्त्री, दिल्ली आचार्य कुन्दकुन्द अपने समय के युग- | करे, तो उसे पाप लगता है और वह मिथ्यात्व का भागी प्रतिष्ठापक आचार्य हो गये हैं। भगवान् महावीर की परम्परा | होता है। इसका सीधा अभिप्राय यह है कि कुन्दकुन्द के में अनुबद्धकेवलियों के बाद भारतीय आचार्यों की एक समय में कुछ श्रमण थे, जो स्वछन्द विचरण करते थे और लम्बी परम्परा रही है, जिनमें द्वादशाङ्ग के ज्ञाता, 11 अंग | उनके इस स्वच्छन्द विहार पर कुन्दकुन्द को आपत्ति थी। दश पूर्व के ज्ञाता, 11 अंगों के ज्ञाता, 11 अंग का एकदेश भावसंग्रह आदि ग्रन्थों में जिनकल्पी और स्थविरकल्पी ज्ञान रखनेवाले, आचारांङ्ग के ज्ञाता आदि अनेक महाऋषि | इस प्रकार श्रमणों के दो रूपों का वर्णन है। जिनकल्पी मुनि हुए हैं। इस अनुबद्ध परम्परा में यद्यपि आचार्य कुन्दकुन्द का | उत्तम संहनन के धारी होते हैं। पैर में काँटा अथवा आँख में नाम नहीं आता, फिर भी आचार्य कुन्दकुन्द ने श्रमण धर्म | रजकण जाने पर भी वे स्वयं नहीं निकालते, न किसी से की रक्षा के लिये जो अथक प्रयत्न किये हैं, इससे उनका | निकालने को कहते हैं, सदा एकलविहारी होते हैं। किन्तु अपना स्थान एक पृथक् ही है और वह पृथक्त्व इस बात से | स्थविरकल्पियों को यह आदेश है कि वे संघ में साथ रहकर सिद्ध होता है कि शास्त्र-प्रवचन के प्रारम्भ में जो लम्बा | विहार करें। इस पंचम काल में उत्तम-संहनन के धारी नहीं मंगलाचरण किया जाता है, उसके अन्त में मंगलस्तोत्र करते | होते, अतः स्थविरकल्पी बनकर रहना ही उनके लिये उचित हुए कहा गया है - मार्ग है। अतः जो इस मार्ग को छोडकर स्वच्छन्द विहार मङ्गलं भगवान् वीरो, मङ्गलं गौतमो गणी। करते हैं, वे आ. कुन्दकुन्द की दृष्टि में स्वेच्छाचारी हैं और _मङ्गलं कुन्कुन्दार्यो, जैनधर्मोस्तु मङ्गलम्।। स्वेच्छाचारियों के विषय में उन्होंने बहुत कुछ कहा है। आगे इसी पाहुड़ में उन्होंने सच्चे साधुओं का स्वरूप बतलाते हुए इस श्लोक में भगवान् महावीर एवं गौतम गणधर के पुनः उन श्रमणाभासों की ओर संकेत किया हैबाद आचार्य कुन्दकुन्द का नाम लिया गया है। 12 वर्ष के दीर्घकालीन दुर्भिक्ष के बाद दिगम्बर परम्परा में जो महाविकृति जस्स परिग्गहगहणं अप्पा वहयं च हवइ लिंगस्स। आ गई थी, उसे दूर करने कोई आचार्य सामने नहीं आये थे।। सो गरहिउ जिण वयणं परिगहरहिओ निरायारो॥19।। आचार्य कुन्दकुन्द ही थे जिन्होंने इस विकृतिका सामना अर्थ - जो साधु थोड़ा या बहुत परिग्रह रखता है, वह किया और पाहुड़ ग्रन्थों की रचनाकर मूल श्रमण धर्म को | निन्दनीय है, क्योंकि श्रमण सर्वथा परिग्रह रहित होता है। उजागर किया। यही कारण था कि कृतज्ञ समाज ने बाद में ___णवि सिज्झइ वत्थधरो जिणसासणे जइ वि होइतित्थयरो। आचार्य को मूल आम्नाय का प्रतिष्ठापक माना। णग्गो विमोक्खमग्गो, सेसा उम्मग्गया सव्वे॥ इन्हीं आचार्य कुन्दकुन्द ने अपने समय के अनेक अर्थ - जैनशासन में वस्त्रधारी कभी मोक्ष नहीं जा ऐसे जैन श्रमणों की, जिनकी चर्या शास्त्र के प्रतिकूल थी, सकता, भले ही वह तीर्थंकर क्यों न हो। केवल एक नग्नता आलोचना की है। उन्हें जैन शास्त्रों में श्रमणाभास नाम से ही मोक्षमार्ग है, शेष सब उन्मार्ग है। कहा गया है। उन्होंने अपने अष्ट पाहुड़ ग्रन्थ के अन्तर्गत आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा दिये गये ये प्रकरण बतलाते सूत्रपाहुड़ में निम्न प्रकार उल्लेख किया है - हैं कि कुछ श्रमण नग्नता के प्रतिकूल वस्त्रों को भी अपनाते उक्किट्ठ सीहचरियं वहुपरियम्मो य गरुयभारो य। | थे। सूत्रपाहुड़ में और भी ऐसे ही प्रकरण हैं, जिनसे उस जो विहरइ सच्छंदं पावं गच्छदि होदि मिच्छत्तं॥9॥ समय श्रमणाभासों की बहुलता का बोध होता है। अर्थ -- जिसकी उत्कृष्ट सिंहचर्या है, जो बहुपरिकर्मा इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे भी श्रमणाभास थे, जिनका है अर्थात् अनेक प्रकार सिंहनिष्क्रीडितादि तपश्चरणों को आगम में स्पष्ट वर्णन है और उनके लक्षण दिये हैं। आचार्य करता है, जिसके ऊपर गुरुभार है अर्थात् जो संघ को सब | कुन्दकुन्द ने भी उनकी ओर संकेत किया है। उनका भावपाहुड़ तरह से निश्चिन्त रखता है, यदि वह भी स्वच्छन्द विहार | देखिये, वे लिखते हैं 6 अगस्त 2006 जिनभाषित Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पासत्थ भावणाओ अणाइ कालं अणेय वाराओ । भाऊण दुहं पत्तो कुभावणा भाव बीएहिं ॥ 14 ॥ अर्थात् पार्श्वस्थ आदि भावनाओं को अनादि काल से अनेक प्रकार भाकर इस जीव ने कुभावना के फल से अनेक दुःख उठाये हैं । ऊपर जिस पार्श्वस्थ भावना की चर्चा की है, वह भावना 5 प्रकार की है - पार्श्वस्थ, कुशील, संसत्त, अवसन्न और यथाछंद। वास्तव में ये पाँच प्रकार के श्रमणाभास हैं, जिनकी प्रवृत्ति को यहाँ भावना रूप में उल्लिखित किया है। कुन्दकुन्द के समय में इनका भी पर्याप्त प्रचार था । इस सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन इस प्रकार है । अन्य भगवती आराधना आदि ग्रन्थों में इनका क्रम इस प्रकार है- अवसन्न, पार्श्वस्थ, कुशील, संसत्त, यथाछन्द । जैसा कि निम्न गाथा से प्रकट है किं पुण जो ओसण्णा णिच्चे जे बावि णिच्च पासत्था । जे वा सदा कुसीला संसत्ता वा जहाछंदा ॥ भ. आ. इस गाथा में पाँचों श्रमणाभासों का क्रम दिया है। इनमें अवसन्नसाधु उन्हें कहते हैं जो कीचड़ में फँसे हुए मार्गभ्रष्ट पुरुष की तरह आचरण करते हैं। ये उपकरणों में आसक्ति रखते हैं, वसतिका, आसन के प्रतिलेखन में, स्वाध्याय में, विहार भूमि के शोधन में, आहारशुद्धि में, ईर्यासमिति आदि के पालन में, स्वाध्यायकाल के अवलोकन में, स्वाध्याय के समाप्त करने में, चर्या में प्रमादी और अनुत्साहित रहते हैं, षड् आवश्यक पालन करने में आलसी रहते हैं। एकान्त या जनसमुदाय में उन आवश्यकों का पालन करते हुए भी, उन्हें केवल वचन और काय से करते हैं, भावपूर्वक नहीं करते। इस प्रकार चारित्र - पालन में जो कष्ट का अनुभव करते हैं, वे अवसन्न- साधु हैं । पार्श्वस्थ साधु का शब्दार्थ है- पास में स्थित अर्थात् जैसे कोई पथिक मार्ग को जानता हुआ भी उस मार्ग से हटकर उसके समानान्तर चले तो वह मार्ग-पार्श्वस्थ कहलाता है, वैसे ही यह पार्श्वस्थसाधु भी निरतिचार संयममार्ग को जानता है, तो भी उसपर नहीं चलता, किन्तु संयममार्ग के समीप चलता है। वह साधु एकान्ततः असंयमी भी नहीं है, और न निरतिचार संयम ही पालन करता है। वसतिका के निर्माता, उसका संस्कार करनेवाले तथा " आप ठहरिये " इस प्रकार कहकर साधु को वसतिका देनेवाले तीनों ही ► शय्याधर कहलाते हैं । उनके यहाँ नित्य आहार लेना (जो नहीं लेना चाहिये), आहार के पूर्व और पश्चात् दाता की प्रशंसा करना, उत्पाद एषणा आदि दोषों से दूषित आहार ग्रहण करना, नित्य एक ही वसति में रहना, एक ही संस्तर पर सोना, एक ही क्षेत्र में रहना, गृहस्थों के घर के या अन्दर बैठना, गृहस्थों के उपकरणों से अपना काम करना, दुःप्रमार्जित या अप्रमार्जित वस्तु ग्रहण करना, सुई, कैंची, नखच्छोटिका (नहनी), संडासी, सिल्ली, उस्तरा, कर्णमल निकालने की सींक, चमड़ा इत्यादि ग्रहण करना। सीना, धेना, झटकना, रंगना आदि कामों में लगे रहना, ये सब पार्श्वस्थसाधु के लक्षण हैं। जो क्षार, चूर्ण, सौवीर, नमक, घी आदि पदार्थों का अपने साथ रखते हैं, वे भी पाईवस्थ हैं । उपकरणबकुश साधु जो रात्रि में यथेष्ट शयन करते हैं, इच्छानुसार संस्तर का खूब उपयोग करते हैं, वे भी पाईवस्थ साधु हैं तथा दिन में सोनेवाले देहबकुश साधु भी पार्रवस्थ हैं। जो पैर धोते हैं, तेल की मालिश करते हैं, गण का पोषण कर आजीविका करते हैं, वे पार्रवस्थ साधु हैं। कुत्सितशीलवाले साधु कुशील कहलाते हैं। ये कुशील साधु अनेक प्रकार के होते हैं, इनमें कोई कौतुकशील साधु होते हैं, जो औषधि विलेपन एवं विद्याओं के प्रयोग से राजद्वारों पर कौतुक दिखाकर सौभाग्य प्राप्त करते हैं । कोई भूतिकर्मकुशील होते हैं, जो मंत्रित की गई भूति से, धूलि से, सरसों से, फूलों से, जल से किसी की रक्षा या किसी को वश में करते हैं। कोई प्रसेनिकाकुशील होते हैं, जो अंगुष्ठ प्रसेनिका, अक्षरप्रसेनी, प्रदीपप्रसेनी, शशिप्रसेनी, स्वप्नप्रसेनी आदि विद्याओं के द्वारा लोकरंजना करते हैं । कोई अप्रसेनिककुशील होते हैं, जो विद्या, मंत्र, औषध प्रयोगों से असंयमियों की चिकित्सा करते हैं। कोई निमित्त-कुशील होते हैं, जो अष्टांगनिमित्त ज्ञान से लोगों को फलादेश कहते हैं। कोई आजीवकुशील होते हैं, जो अपनी जाति व कुल का प्रकाश कर भिक्षादि प्राप्त करते हैं अथवा किसी के उपद्रव के कारण दूसरे की शरण में जाते हैं या अनाथशाला में प्रवेशकर अपनी चिकित्सा कराते हैं । इसी तरह और भी अनेक कुशील - साधु होते हैं, जो इन्द्रजाल, परद्रव्यहरण आदि के अनेक कौतूहल दिखलाते हैं । चौथे संसक्त-मुनि होते हैं, जिनकी दुतरफा प्रवृत्ति होती है अर्थात् चारित्रप्रिय मुनियों में चारित्रप्रेमी बन जाते हैं और अप्रियचारित्रवालों में अप्रिय - चारित्री बन जाते हैं। ये अगस्त 2006 जिनभाषित 7 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नट के समान अनेक रूपों को धारण करते हैं, पंचेन्द्रिय | यथाछन्द मुनि किसी समय भी ठीक आचरण पालनेवाले विषयों में आसक्त रहते हैं, ऋद्धिगारव, रसगारव एवं सातगारव | नहीं हो सकते, उनकी कुछ झाँकी मोक्षपाहुड़ में भी दी है। में आसक्त रहते हैं। स्त्री के विषय में संक्लिष्ट परिणाम | वे लिखते हैं कि "चारित्रमोह से युक्त, व्रत समिति से रहित, रखते हैं, गृहस्थों से अत्यन्त प्रेम करते हैं। अवसन्न मुनियों | शुद्ध भावों से भ्रष्ट कोई ऐसा कहते हैं कि यह काल ध्यान में अवसन्न, पाश्वस्थों में पाश्वस्थ, कुशीलों में कुशील और | के योग्य नहीं है। 'कोई अभव्य पुरुष जो सम्यक्वज्ञानहीन स्वच्छन्दों में स्वच्छन्द बन जाते हैं। यही इनका नट के | और मोक्षमार्ग से वियुक्त है तथा संसारसुखों में अनुरक्त है, समान आचरण है। कहता है यह काल ध्यान करने योग्य नहीं है। लेकिन यह यथाछन्द मुनि - जो आगम के विरुद्ध स्वेच्छाकल्पित | सब गलत है, क्योंकि आज भी भरतक्षेत्र, दुःषमाकाल में पदार्थों का निरूपण करते हैं अर्थात् वर्षा होने पर जल से आत्मस्वभावरत साधु के धर्मध्यान होता है, जो ऐसा नहीं भीग जाना असंयम है, छुरे या कैंची से केशों का कर्तन | मानता वह अज्ञानी है।" (मोक्ष पाहुड़ गाथा 73, 74, 75, कराना कोई दोष नहीं है, क्योंकि जानबूझकर अपने को | 76)। कष्ट देना आत्म-विराधना है, तृणपुंज में भूमिशय्या बनाकर इस तरह अवसन्न, पाश्वस्थ आदि साधु मनमाना उसमें रहने से जीवों को कोई बाधा नहीं होती, उद्दिष्ट भोजन आचरण कर रहे थे। उनके प्रतिरोध का कोई उपाय न था। में कोई दोष नहीं है। आहार के लिये सारे गाँव में घूमने से इन सब स्थितियों को देखकर आचार्य कुन्दकुन्द ने दो तरह जीवहिंसा होती है, अतः किसी एक घर में जाकर भोजन | से प्रयत्न किया। ये प्रयत्न विघटनात्मक और सृजनात्मक करने से साधु को कोई दोष नहीं है; पाणिपात्र से आहार | थे। चारित्र-भ्रष्ट, सम्यक्त्व-शून्य, विकृत वेष बनानेवाले करने से परिशातन दोष आता है, इत्यादि शास्त्र के विरुद्ध | तथा उन्मार्गप्रवृत्ति चलानेवालों की मान्यताओं का खण्डन निरूपण करते हैं। किया और व्यवहारधर्म की उचित व्यवस्था की, साथ ही इस प्रकार इन पाँच श्रमणाभासों के उल्लेख आगम | पंचास्तिकाय, समयसार और प्रवचनसारकी रचना कर में मिलते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द के समय में इनका अत्यधिक | सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र के स्वरूप का विकास प्रचार था। अतः कन्दकन्द ने पाश्वस्थ आदि भावनाओं से | विस्तार से किया। अनेक दुःखों का उठाना फल लिखा है। उक्त आचार्य जिस यथाछन्द श्रमणाभासों के वर्णन में यह लिख आये हैं कि ये 'बाबूलाल जैन जमादार अभिनन्दनग्रन्थ' से साभार फूल नहीं कांटे सर्दी का समय था। एक दिन प्रातःकाल आचार्यश्री के पास कुछ महाराज लोग बैठे हुए थे। ठण्डी हवा चल रही थी, ठण्ड लग रही थी, शरीर में कँपकँपी उठ रही थी। आचार्यश्री से कहादेखिए आचार्यश्री जी के शरीर से कांटे उठ रहे हैं। आचार्य श्री ने कहा- हाँ शरीर से काँटे ही उठते हैं फूल नहीं। शरीर दुख का घर है। इसके स्वभाव को जानो और वैराग्य भाव जाग्रत करो। शरीर को नहीं, बल्कि शरीर के स्वभाव को जानने से वैराग्य भाव उत्पन्न होता है। मुनिश्री कुंथुसागर-संकलित 'संस्मरण' से साभार 8 अगस्त 2006 जिनभाषित Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आदर्श श्रावक प्राचार्य श्री नरेन्द्रप्रकाश जैन आज से कोई एक सदी पहले तक उत्तर भारत में | सदगृहस्थ वह है, जो अपने कर्तव्य का पालन करता है। किसी निर्ग्रन्थ संत के दर्शन दुर्लभ थे। 1 जुलाई 1907 के | कर्तव्यपालन ही धर्म है। अपने धर्म का पालन करनेवाले "जैन गजट' अंक 24 में उसके तत्कालीन सुयोग्य सम्पादक गृहस्थ की आचार्य पद्मनन्दि ने 'पूज्यं तद् गार्हस्थ्यं' तथा स्व. श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार ने अपनी वेदना एक कविता | 'तेषां सदगृहमेधिनांगुणवतां धर्मोन कस्य प्रियः' कहकर प्रशंसा में व्यक्त की थी, जिसकी कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं - की है। वे कहते हैं कि धन्य है वह गृहस्थधर्म, जिसमें साधु का दर्शन कहीं पता नहीं, जिनेन्द्र और जिनवाणी की पूजा, मुनियों की विनय, धर्मात्माओं दिल दुःखी है दुःख सहा जाता नहीं। की सेवा एवं व्रतों का पालन किया जाता है। ऐसे पवित्र धर्म की चर्चा थी उनसे जा-ब-जा, गृहस्थधर्म का सम्यक् निर्वाह करते हुए हम अपनी श्रावक धर्म अब ढूँढ़े नजर आता नहीं। संज्ञा को सार्थक करें, इसी में हमारे जीवन की सफलता है। कौम की किश्ती भंवर में जा फँसी, हमारे पूज्य सन्तों की प्रेरणा से सन् 1985-86 की साधु तारक बिन तरा जाता नहीं। समयावधि को श्रावकाचार वर्ष' के रूप में मनाया गया था। जी में आता है कि मैं साधु बनूँ, उसमें यह कोशिश की गई कि गृहस्थ की एक निर्मलसाधु बिन साधू बना जाता नहीं। निष्कलुष छवि लोगों के सामने प्रस्तुत हो। इस दरम्यान पत्रयह हमारा सौभाग्य है कि वीतरागता के प्रतीक अनेक पत्रिकाओं में श्रावकाचार के सम्बन्ध में अनेक लेख लिखे संतों के दर्शन आज हमें सुलभ हैं। उनके निमित्त से हम गए और कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं। विद्वद्गोष्ठियों एवं चाहें तो अपना आत्मकल्याण कर सकते हैं। समाज में जो संचार माध्यमों से प्रचार-प्रसार भी खूब हुआ, किन्तु मनुष्य थोड़ा-बहुत संयम का प्रवाह आज जारी है, उसका सम्पूर्ण । के ढंग-ढरों में कुछ भी विशेष परिवर्तन दिखाई नहीं दिया। श्रेय हमारी जीवन्त साधु-संस्था को ही है। आदर्श श्रावक बनने का संकल्प यदि इस अवधि में पूरा हो इधर के कुछ वर्षों में साधुओं की संख्या तो बढ़ी है,। । बढ़ी है, | सका होता, तो यह गत शताब्दी की एक बड़ी सफलता मानी किन्त आदर्श श्रावकों का टोटा पड़ने लगा है। गलियों और | जाती। एक आदर्श श्रावक ही एक आदर्श नागरिक हो सकता सडको पर जो सैकड़ों की संख्या में चलते-फिरते हुए| है और आदर्श नागरिक ही किसी उन्नत राष्ट की पॅजी होते मानवाकार जीव दिखाई देते हैं, वे सब तो श्रावक कहलाने | हैं। के अधिकारी नहीं हैं। पण्डित-प्रवर आशाधरजी ने लिखा मानवजीवन पाकर सच्चा श्रावक बनने में ही इस है- श्रणोति गर्वादिम्योधर्ममिति श्रावकः अर्थात् जो श्रद्धापूर्वक पर्याय की सार्थकता है। स्व. महात्मा भगवानदीन ने आदर्श गुरु आदि से धर्म-श्रवण करता है, उसको श्रावक कहते हैं। | श्रावक बनने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण निर्देश इस प्रकार दिये यहाँ विचारणीय यह है कि क्या मात्र श्रवण करनेवाला ही | 'श्रावक' कहलाने का पात्र है ? नहीं! गुरुमुख से उपदेश 1. सच्चा श्रावक बनना है तो निर्भीक बनो। सुनकर जो विचारपूर्वक आचरण करता है, वास्तव में वह है 2. निर्भीक बनना है तो किसी की नौकरी मत करो, श्रावक ! एक आदर्श श्रावक में श्रद्धा, विवेक और आचरण अपना कोई रोजगार करो। का संगम दृष्टिगत होना चाहिए। 'योगशास्त्र' का कथन है - 3. रोजगार करते हुए संयम का पालन करो। अन्तरंगारिषड्वर्गं परिहारपरायणः, 4. संयम का पालन करना है, तो कुछ नीति-नियमों वशीकृतेन्द्रियग्रामो गृहिधर्माय कल्पते। से बँधो। लाभ के लिए लोभ की सीमा निर्धारित अर्थात् अन्तरंग शत्रुरूप षड्वर्ग (काम, क्रोध, लोभ, करो। सीमा से अधिक मुनाफा मत कमाओ। मान, मद और हर्ष) का परित्याग करनेवाला तथा इन्द्रियों 5. नीति-नियमों के सूत्र से तभी बँधे रह सकते हो, को वश में करनेवाला मनुष्य गृहस्थ धर्म का धारक होता है। जब किसी कर्तव्य से बँधोगे। लोकभाषा में गृहस्थ या श्रावक समानार्थक शब्द हैं। 6. कर्तव्य को ही अधिकार मानो। तत्त्ववेत्ताओं ने भी सद्गृहस्थ को ही श्रावक कहा है। एक 7. अधिकारी बनो, अधिकार के लिए मत रोओ। अगस्त 2006 जिनभाषित 9 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सागारधर्मामृत' में भी कहा गया है कि न्यायपूर्वक | ही, देश की भी इज्जत बढ़ेगी। भारत एक धर्मप्राण देश है। धन कमानेवाला, गुणानुरागी, हितमितप्रियभाषी, विवेकी, धर्म वही है, जो धारण किया जाता है। 'चारित्तं खलु धम्मो' सत्संगति-अनुरागी और जितेन्द्रिय ही श्रावक कहलाने का | के सूत्र में यही ध्वनि निहित है। नैतिक जागरण के लिए पुनः पात्र है। आचार्य कुन्दकुन्द ने दान और पूजा को श्रावक का | एक सुनियोजित अभियान चलाया जाना चाहिए। शराब तथा मुख्य कर्तव्य बताया है। पण्डित टोडरमलजी ने अपने | अन्य मादक द्रव्यों के प्रयोग, द्यूत-क्रीडा, जीवहत्या, शिकार, श्रावकाचार में लिखा है - "गृहस्थ के घर की शोभा धन से | मिलावट, भ्रष्टाचार आदि बुराइयों से अपने देश को एक और धन की शोभा दान से है। ---- कोई भी श्रावक किसी | आदर्श श्रावक बनकर ही बचाया जा सकता है। मजदूर से कसकर काम न ले, उसकी पूरी मजदूरी दे और | साधु-संगति से ही सज्जन और सदाचारी नागरिक कृपणता त्याग कर दुःखी-भूखों को सदा दान दे।" उन्होंने | बनने का मार्ग प्रशस्त होगा, ऐसा हमारा विश्वास है। एक जैन गृहस्थ के तीन चिह्न बताए हैं - (1) जिन-प्रतिमा के | अच्छा गृहस्थ या आदर्श श्रावक एक ढुलमुल साधु से लाख दर्शन किए बिना भोजन न करे, (2) रात्रि में न खाए और | दर्जे बेहतर है, करल काव्य के इस कथन से भी हम पूरी (3) अनछना पानी न पिये। आवश्यक है कि श्रावक का | तरह सहमत हैं - लक्ष्य तो ऊँचा हो ही, उसके लिए उपाय भी अच्छे अपनाये यो गृही नित्यमुधुक्तः परेषां कार्यसाधने। जायें। जैनदर्शन साध्य-साधन दोनों की पवित्रता पर समान स्वयं चाचारसम्पन्नः पूतात्मा सा ऋषेरपि।। रूप से जोर देता है। आइए, हम पहल स्वयं अपने से शुरू करें। स्वयं श्रावक या गृहस्थजन यदि उपरिलिखित आचार का | एक आदर्श श्रावक बनें। पालन करने लगें, तो इससे उनका आत्मविकास तो होगा 'चिन्तनप्रवाह' से साभार शास्त्र बने शस्त्र धरमचन्द्र वाझल्य खूटे से बँधे हुए पशु की भाँति इस संसार असार में, निस्सार जीवन जीते रहे हम। न जाने कितने युग परिवर्तन देखे, किन्तु निस्सारता का बोध कहीं गहरे पैठ नहीं पाया अब तक। तोते की तरह समयसार आता है समयसार शास्त्रों में खोजते-खोजते शास्त्रों को शस्त्र बना डाला है, किंतु एक निर्गन्थ ने भीतर ही रमण कर प्राप्त कर लिया है इसे और हम देखते रहे बस ! मोहवश निस्सार कर दिए जन्म सब। ए-92,शाहपुरा, भोपाल 10 अगस्त 2006 जिनभाषित Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छोटे बाबा का बड़ा काज डॉ. सुधा मलैया लेखिका उच्चशिक्षित व सक्रिय सामाजिक नेत्री हैं, आप छात्र जीवन से ही राजनीति, संस्कृति, पत्रकारिता व ऐतिहासिक शोधों से जुड़ी रही हैं, आप राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्या रही हैं तथा वर्तमान में ओजस्विनी' पत्रिका की संपादिका भी हैं। आपने कई किताबों का प्रकाशन भी किया है। कुंडलपुर पर आपका शोध महत्त्वपूर्ण है। सम्पादक बड़े बाबा की पुनःप्रतिष्ठा उदाहरण देश के अन्य संरक्षित स्मारकों की सुरक्षा की दृष्टि छोटे बाबा, आचार्य श्री विद्यासागर जी के नेत्रों से | से ठीक नहीं था। यक्ष प्रश्न है कि कानून का उल्लंघन अविरल भक्तिधारा बह रही थी, विचित्र और आश्चर्यजनक | किसके द्वारा हुआ ? मर्यादाएँ कब और किसने तोड़ी ? था यह दृश्य, नयनाभिराम भी। किसी ने राग-द्वेष से ऊपर | कर्तव्यों का किसने और कितना पालन किया ? जिम्मेदारियों वीतरागी साधुओं के नेत्रों में पानी कब देखा ? पर ये 17 ] का निर्वहन किसने किया ? यह जानने के लिए जरूरी है जनवरी 2006 को हुआ, क्योंकि एक बड़ा काज सम्पन्न | नये मन्दिर के निर्माण और बड़े बाबा की मूर्ति को स्थानांतरित हुआ, क्योंकि पूरी हुई उस दिन वर्षों की साध बड़े बाबा को | | करने की आवश्यकता को सम्यक् परिप्रेक्ष्य में जानना, उनकी गरिमा के अनुरूप, विशाल व भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित | कानूनी भू-स्वामित्व, सामाजिक, पुरातत्व विभाग व शासन, करने की। और विराजमान हो गये बड़े बाबा 2.36 मिनट | | प्रशासन की भूमिका आदि सभी दृष्टि से। पर, अपनी गरिमा और भव्यता के अनुरूप, नवनिर्माणाधीन | कुण्डलपुर क्षेत्र एवं मंदिरों/मूर्तियों की प्राचीनता 'मंदिर की भव्य विशाल वेदी पर, अक्षत, बिना किसी क्षति । 15 फुट ऊँची, 12 फीट चौड़ी, एक पत्थर में तराशी के, बड़े बाबा अर्थात् जटाधारी प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ, गई पद्मासन मुद्रा में आदिनाथ भगवान की यह मनोहारी अंतिम श्रीधर स्वामी की निर्वाण स्थली, कुण्डगिरि, पटेरा । प्रतिमा प्राचीनतम एवं विशालतम है। शैली के आधार पर तहसील, जिला दमोह, मध्यप्रदेश, की पहाड़ी पर स्थित लगभग 5 वीं - 6 वीं शती के आस-पास की इस मूर्ति के मुख्य मंदिर के मूल नायक, जन-जन के हृदय में बड़े बाबा बारे में प्रमाणिक रूप से कहना कठिन है कि यह कब बनी, के रूप में प्रतिष्ठित. किसने तराशी, किसने प्रतिष्ठित करवायी और किस पुण्यात्मा जब हजारों हजार लोगों ने उस विशाल प्रतिमा को | राजा, महाराजा ने उस भव्य विशाल मंदिर का निर्माण सोलह साल के सरदार बालक के द्वारा कुशलता से संचालित करवाया। न कोई अभिलेख उपलब्ध है और न ही आज पुष्पक विमान-सी सजी क्रेन के द्वारा हौले से ऊपर ही ऊपर | दिनांक तक कोई प्राचीन उल्लेख, जिससे पुष्टि की जा लहराते हुए विशाल वेदी पर सरलता से प्रतिष्ठित होते देखा, | सके। उस समय बुंदेलखंड में गुप्तों के मांडलिक कौन थे, तो भक्तों को यह घटना निश्चित ही किसी चमत्कार या | यह स्पष्ट नहीं है। अतिशय से कम नहीं लगी, और उनके लिए यह बड़े बाबा अंतिम केवली श्रीधर स्वामी की निर्वाणभूमि होने का फल के माफिक हल्के होकर आकाश मार्ग से उड़ना के कारण यह क्षेत्र अत्यंत प्राचीन काल से पवित्र रहा होगा लगा। भावविभोर श्रद्धालु और भक्तजनों के जयकारे से | और इसी कारण संभवतः यहाँ भगवान आदिनाथ व अन्य आकाश गूंज उठा। अतिशय हुआ या चमत्कार, निर्णय कौन तीर्थंकरों के मंदिरों का निर्माण हुआ। अन्य 63 मंदिरों में करे ? भक्तिभाव से सराबोर भक्तों ने गढ़ी नई उपमाएँ और | प्राप्त जिन-मूर्तियाँ लगभग 5 वीं शती से लेकर 16 वीं शती उपमान, आस्था की प्रतिष्ठा हुई और धर्म प्रभावना पुष्ट। | की हैं। किन्तु भारतीय पुरातत्त्व विभाग के लिए यह बड़ी वर्तमान मंदिर, कोई भी 300 वर्ष से अधिक प्राचीन दुर्घटना थी। प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्त्विक स्थल एवं | नहीं है। छ:घरिया वंदना मार्ग से पहाड़ पर वंदना को जाते अवशेष अधिनियम 1958 का खुला उल्लंघन था। उनके | समय दायें हाथ पर सपाट छतवाला मंदिर है, जो अम्बिकामठ अनुसार जैन समाज ने गैर कानूनी काम किया था, जिसका | के नाम से जाना जाता है, वह पूर्वगुप्तकालीन है। मंदिर अगस्त 2006 जिनभाषित 11 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निर्माण परम्परा में नागर शैली के शिखरमंदिरों के विकास | शिखरों को मजबूत करने की दृष्टि से कार्य किए गए। से पूर्व सर्वप्रथम सपाट छतवाले मंदिर के प्रमाण मिलते हैं । पूरे भारतवर्ष में इनकी संख्या अपेक्षाकृत बहुत कम है। साँची स्तूप के पास स्थित मंदिर, इस श्रेणी की प्रथम उदाहरण माना जाता है, और इस प्रकार के सभी मंदिर सम्पूर्ण भारतवर्ष में संरक्षित स्मारक हैं I किन्तु इस बीच बड़े मंदिर के परकोटे की जीर्णशीर्ण दीवारों, मंदिर के गर्भगृह तथा महामण्डप की दीवारों के उधड़े पलस्तर, टूटते स्तंभ, गिरती हुई छत की ओर ध्यान देना आवश्यक हो गया। आचार्य श्री विद्यासागर जी ने क्षेत्र की प्रबंध समिति को विशेषज्ञों से सलाह लेकर बड़े बाबा मंदिर के जीर्णोद्धार की योजना बनाने की प्रेरणा दी। मूल प्राचीन मंदिर कब नष्ट हुआ कह नहीं सकते। प्राप्त मूर्तियों तथा भग्नावशेषों से स्पष्ट होता है कि ये सुनोयोजित मुस्लिम आक्रमणों के तहत नष्ट किये गये मंदिर समूह नहीं थे. ऐसा कोई ऐतिहासिक प्रमाण, उल्लेख, अभी तक अप्राप्त है । भूकंप के प्रभाव व क्षेत्र में आनेवाले कुंडलपुर ग्राम में मंदिर निश्चित रूप से भूकंप से ध्वस्त हुए। अन्यथा मूर्तियों के मुख व अंग-भंग होते, जो मुस्लिम आक्रमणकारियों का हिन्दू बुतों को नष्ट करने का तरीका था। टीले के रूप में यह मंदिर न जाने कितनी शताब्दियों तक पहाड़ी के जंगलों के बीच ध्वस्त पड़ा रहा। इसीलिए यह कुंडलपुर ग्राम अनेक वर्षों तक मंदिरटीला ग्राम से जाना जाता रहा । इसके भाग्य खुले जब 1700 ई. में आचार्य सुरेन्द्रकीर्ति के शिष्य ब्रह्मचारी ने मिसागर ने जैन समाज के श्रावकों के दान व बुंदेलखण्डकेसरी महाराजा छत्रसाल 'शिवा को सराहो सराहो छत्रसाल को ' के सहयोग से यहाँ मंदिर का पुनः निर्माण करवाया, ओर बड़े बाबा की वर्षों बाद प्राणप्रतिष्ठा हुई। तीन सौ वर्षों में यहाँ अनेक मन्दिर बने, जिनमें वहीं प्राप्त प्राचीन मूर्तियों सहित 200-100 वर्ष पुरानी मूर्तियाँ भी प्रतिष्ठित हुईं और मन्दिरों की संख्या 1 से 64 तक जा पहुँची। क्षेत्र का भी विकास हुआ और कुंडलपुर क्षेत्र मध्यप्रदेश के 'तीर्थराज' के रूप में जाना जाने लगा। जीणोद्धार की आवश्यकता 1700 ई. में बड़ेबाबा - मंदिर के निर्माण के पश्चात् काल के प्रवाह में बड़ेबाबा मंदिर की भित्तियाँ जीर्णशीर्ण हुईं, महामण्डप में लगे स्तम्भ टूटने लगे. छत के गिरने का खतरा बढ़ा तथा पलस्तर उधड़ने लगे. समय-समय पर उसमें आवश्यकतानुसार मरम्मत की जाती रही। आचार्य श्री विद्यासागर जी 1976 में जब कुण्डलपुर आए तब उनका ध्यान इस ओर गया। उनकी प्रेरणा से साहू श्रेयांसप्रसाद जैन द्वारा बड़े बाबा मंदिर के जीर्णशीर्ण शिखर का जीर्णोद्धार कांक्रीट सीमेंट का शिखर बनाकर कराया गया। 1980 और 82 में भी तत्कालीन क्षेत्र प्रबंध समिति के द्वारा बड़े बाबा के वंदना मार्ग के द्वारों तथा अनेक मंदिरों के 12 अगस्त 2006 जिनभाषित 1995 में देश के कई ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञ, शिल्पकार, भूगर्भशास्त्री, वास्तुविशेषज्ञ आचार्य श्री के निमंत्रण पर कुण्डलपुर पधारे। केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग के श्री ए. के. सिन्हा भी, आचार्य श्री विद्यासागर जी से इस विषय में मेरे साथ मिलने गए थे। आचार्यश्री ने पुरातत्त्व विभाग को उचित सुझाव देने को कहा था ओर जैन समाज की मंदिर के जीर्णोद्धार करने की भावना से अवगत कराया था। श्री नीरज जैन, सतना भी उस चर्चा के समय वहाँ उपस्थित थे। विशेषज्ञों की सलाह के अनुरूप तथा प्रख्यात वास्तुविद् आर. पच्चीकर के निर्देशन में बड़ेबाबामंदिर को उसी स्थान पर मण्डप, महामण्डप एवं सिंहद्वारयुक्त भव्य मंदिर में परिवर्तित करने की योजना पर विचारा हुआ, और इस पर क्रियान्वयन प्रारम्भ हुआ। 31 मई 95 को सिंहद्वार हेतु शिलान्यास किया गया । इसी योजना में गर्भगृह का विस्तारीकरण भी सम्मिलित था । इस योजना को कार्यरूप देने के लिए तथा विशाल सिंहद्वार निर्माण के लिए, पर्वत के निरंतर क्षरण के चलते आवश्यक था कि नींव मजबूत की जाये, अतः पत्थरों की बहुत ही मजबूत नींव बनाई गयी जो सुंदर भी थी। इससे अनेक लोगों को यह भ्रम हुआ कि यही सिंहद्वार है । वास्तविकता यह थी कि वह नींव की दीवार है जो केवल पत्थरों की सपाट दीवार न होकर एक मेहराबदार आकर्षक आकार है । इसके मेहराबों के बीच के स्थानों का उपयोग, छोटे-छोटे कमरों के रूप में साधना हेतु किया जा रहा है। नवमंदिरनिर्माण की आवश्यकता व प्रस्ताव इस समय तक कभी भी बड़े बाबा के स्थानांतरण अथवा नवमंदिरनिर्माण की बात नहीं उठी थी । किन्तु इस बीच 1997 में जबलपुर - दमोह में आये भूकंप के झटकों से बड़ेबाबामंदिर की दीवारों में आयी दरारों ने जैन समाज को चिंतित किया । क्षतिग्रस्त मंदिर से बड़े बाबा की मूर्ति को भी क्षति पहुँच सकती है। नींव के निर्माण में आयी अनेक तकनीकी परेशानियों के कारण भी पूरी योजना पर पुनर्विचार Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किया गया। विशेषज्ञों के दल ने 1998 में कुण्डलपुर आकर | मुनिसंघ की उपस्थिति रही। 7 दिन में दमोह से, आस-पास पुनः बड़े बाबा मंदिर का पूर्ण अवलोकन किया। भूकम्प | के क्षेत्रों से, देश के कोने-कोने से, विदेशों से पधारे 10 पश्चात् पुरातत्त्व विभाग द्वारा किये गये एक सर्वे में भी 80 | लाख श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इनमें जैन-अजैन, बालप्रतिशत मन्दिर के जर्जर होने तथा मंदिर के 70 स्तम्भों में से | अबाल, स्त्री-पुरुष सभी थे। राजनैतिक दलों के मंत्रियों, 19 के अपना स्थान छोड़ने की बात आई। इसलिए वास्तुविद | सांसदों, विधायको ने शिरकत की ओर राज्य के राज्यपाल सी. बी. सोमपुरा, अहमदाबाद तथा विशेषज्ञों की सलाह पर भाई महावीर, केन्द्रीय मंत्री धनंजय कुमार तथ तत्कालीन आवश्यक समझा गया कि वर्तमान में वायव्यमुखी प्रतिमा मुख्यमंत्री मा. दिग्विजय सिंह ने अपने मंत्रियों के दल सहित को पूर्व या उत्तरमुखी करके वास्तुगत दोष को दूर करते हुए इस नवनिर्माण का अनुमोदन करते हुए भरसक सहयोग का मूर्ति वहाँ से हटाकर प्राचीन भारतीय पंचायतन शैली के नये आश्वासन दिया। मंदिर में, जो रिक्टर पैमाने पर 8 तीव्रता तक के भूकंप को इस अद्भुत व अभूतपूर्व समारोह के अंतिम दिन सह सके, स्थापित किया जाये। विशाल आयोजन स्थल और भगवान की वेदी प्रतिष्ठा के पाषाण निर्मित बिना सीमेंट और लोहे के उपयोग के चारों ओर बने परिक्रमामार्ग पर पाँच लाख व्यक्तियों के बननेवाले इस नये भव्य मंदिर निर्माण का प्रस्ताव आचार्य सम्मुख तीन विशाल, दो-दो हाथी वाले गजरथों के साथ श्री विद्यासागर तथा समाज के गणमान्य व्यक्तियों के समक्ष सात फेरी लगायीं आचार्यश्री सहित 189 मुनियों के सम्पूर्ण 14 फरवरी 99 को, विद्याभवन, कुण्डलपुर में पारित किया | संघ, 700 इंद्र-इंद्राणियों व गणमान्य नागरिकों ने। बडे बाबा गया। देश के मान्य प्रतिष्ठाचार्य पंडित नाथलाल शास्त्री. जितने ही बडे निराले कुण्डलपर के इस महामस्तकाभिषेक इंदौर, से भी विधि-विधान तथा शास्त्रसम्मत परामर्श करके | महोत्सव में, जिसके प्रबंधन में गायत्रीपरिवार से लेकर 3 मार्च 99 को नवमंदिर का शिलान्यास हुआ। सभी धर्मानुयायियों ने सहयोग दिया। न केवल दमोह जिला मंदिर के जीर्णोद्धार का सीधा संबंध अब इस नव निर्माण से भारतवर्ष के नक्शे पर आया, अपितु जैनधर्म की प्रभावना में हो गया था अर्थात् जो नवीन मंदिर अब बनेगा उसी में बड़े अत्यधिक विस्तार हुआ और कुंण्डलपुर बन गया जैनबाबा अब विराजेंगे। अजैन संस्कृति, राष्ट्रीय संस्कृति का अनूठा व अनुपम केन्द्र। नव मंदिर निर्माण की नींव महोत्सव की सफलता ने 10-12 करोड के प्रारंभिक बजट 1999 से 2001 तक निर्माणसमिति ने पुराने मंदिर के को 50 करोड़ तक पहुँचा दिया। पास की पहाड़ी काटकर 1,05,000 वर्गफुट जगह समतल | नव निर्माण कार्य जनवरी 2001-2006 की. रेतीली पहाड़ी पर भूकंप का असर न हो और नया फरवरी 2001 से प्रारंभ नव निर्माण कार्य निर्विघ्न मंदिर 1000-2000 वर्ष सुरक्षित रहे, इसलिए 387 गहरे | चलता रहा, जनवरी 2006 तक। साधुओं ने साधना की, गड्ढे खोदकर उनमें हजारों बोरी सीमेंट डालकर ग्राउंटिग अनेक दाताओं ने मुक्तहस्त से दान दिया, भक्तों ने भावना की गयी। वास्तुविद् सी. बी. सोमपुरा को मंदिर वास्तुशिल्प धारी, स्वयंसेवकों ने सेवा की एवं निर्माण समिति ने निर्माण का कार्यभार सौंपा गया। 2000 तक मंदिर की नींव पड कार्य को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाया। वर्तमान में 35 फुट ऊँचा आधे से अधिक गर्भगृह बन चुका है। मंदिर में प्रथम महामस्तकाभिषेक तथा नवमंदिरनिर्माण की | दानदाताओं का 9-10 करोड़ रुपया लग चुका है। अनुमोदना शासन प्रशासन व पुरातत्त्व विभाग के साथ संवाद सकल जैन समाज, शासन-प्रशासन के समक्ष नव क्षेत्रसमिति ने गुरुवर के आदेश को शिरोधार्य करते मन्दिर निर्माण की समस्त योजना की प्रस्तावना रखने एवं | हुए निर्माण को संभव बनाने हेतु शासन-प्रशासन एवं पुरातत्त्व अनमोदन लेने के लिए 2001 में बडे बाबा का प्रथम विभाग को विश्वास में लेने के हर संभव प्रयास किये। महामस्तकाभिषेक आयोजित किया गया। 21 फरवरी से 27 क्षेत्रसमिति व निर्माणसमिति ने इस दृष्टि से विशेषज्ञों, फरवरी तक चले आस्था के इस महाकुंभ में 51 दिगम्बर | पुरातत्त्वविदों तथा अधिकारियों के साथ कई बैठकें की। साधु, 114 आर्यिका माताजी, 4 ऐलक महाराज, 8 छुल्लक | पुरातत्त्व में जानकारी व रुचि रखने तथा कुंडलपुर पर महाराज तथा 1 छुल्लिका माताजी सहित 179 सदस्यों के | आधिकारिक पुस्तक लिखने के कारण एकाध बैठकों में गई। अगस्त 2006 जिनभाषित 13 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुझे भी आमंत्रित किया गया । क्षेत्र समिति का प्रतिनिधि मंडल जिलाधिकारियों तथा राज्य शासन से अनेक बार मिला। अंतिम बार 5 जनवरी 2006 को प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री को पुनः अपनी व आचार्यश्री की भावना से अवगत कराया। मा. श्री शिवराजसिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश ने जिला अधिकारियों व क्षेत्रसमिति, दोनों को कानून का उल्लंघन किये बिना कोई मध्यममार्ग निकालने व केन्द्र सरकार व भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के महानिदेशक से भी चर्चा करने की सलाह दी । तदनुरूप जैन प्रतिनिधि मंडल ने जनवरी के तृतीय सप्ताह में महानिदेशक केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय से मिलने का समय मांगा था और इस आशय की जानकारी श्री के. के. मोहम्मद से मिलकर पत्र द्वारा दी और पुरातत्त्व विभाग के सहयोग की भावना जताई। इससे पूर्व दिसम्बर में केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग के दावे को सही मानते हुए (जो बाद में झूठा ही सिद्ध हुआ), क्षेत्र समिति ने उन मूर्तियों को भी, पुरातत्त्व विभाग को, बावजूद आचार्य श्री की भावना के विरुद्ध इसलिये दिलवाया, क्योंकि जैन समाज पुरातत्त्व विभाग की उपेक्षा नहीं करना चाहता था और न ही छोटे विवादों में उलझकर ऊर्जा व समय नष्ट करना। सामने था बड़ा उद्देश्य बड़े बाबा की मूर्ति के स्थानांतरण का । किन्तु उसका दिन 16 जनवरी तय नहीं हुआ था । निश्चित रूप से 3 फरवरी से पहले तो नहीं। वह तो कारण व निमित्त ऐसे बन गये कि सब कुछ अप्रत्याशित रूप से हुआ। बड़े बाबा के स्थानांतरण का निर्णय 15 जनवरी 2006 बड़े बाबा का काज निराले ढंग से होना था। इसलिए होनी को कुछ और ही मंजूर था । अनेक लोगों ने प्रश्न किया कि जब 4 वर्ष से शांतिपूर्ण निर्माण कार्य चल रहा था, तब क्या जल्दी थी, थोड़ा और रुक जाते । विधिवत् भी यह कार्य किया जा सकता था, इसलिए जरूरी है यह पृष्ठभूमि जानना कि क्योंकर 15 से 17 तक होने वाले जप अनुष्ठान के स्थान पर 16 जनवरी को अप्रत्याशित रूप से मूर्ति स्थानांतरित करने का निर्णय लेना पड़ा। | छावनी बना देने की धमकी दे रहे हैं। साथ ही कह रहे हैं कि इसे अयोध्या नहीं बनने दूँगा। पुलिस चौकी स्थापित करूँगा । कांची के शंकराचार्य की गिरफ्तारी हो गयी, किसने क्या कर लिया ? आदिनाथ भगवान की मूर्ति भी शंकर भगवान की है। और विवादास्पद है आदि बातें कर रहे हैं। मैं आश्चर्यचकित रह गई । एक जिम्मेदार अधिकारी के मुख से, जिसके सर पर जिले की कानून व्यवस्था बनाए रखने तथा प्रशासन चलाने की जिम्मेदारी थी, के द्वारा वर्तमान में भारत के महानतम तपस्वियों में से एक दिगम्बर जैन साधु श्री आचार्य विद्यासागर जी के सम्मान में ऐसे गैरजिम्मेदार बयान अविवादास्पद विषय को विवाद की ओर ले जाने के थे, तो कितने खतरनाक परिणाम हो सकते थे । यह कल्पना करना कठिन नहीं है । मैंने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए फोन पर ही उन्हें कहा कि आप जैसा जिलाधीश कहते हैं, वैसा करिये, कानून हाथ में न लें, निर्माण कार्य कुछ दिन बन्द करने में कोई हर्जा नहीं है । बन्द कर दें और इस आशय का पत्र लिखकर उन्हें दे दें । निर्माण व क्षेत्र समिति ने ऐसा ही किया, स्थिति सुधर गई थी। किन्तु एक-दो घंटे के बाद वीरेश सेठ का दुबारा फोन आया कि एक दुर्घटना हो गई है। जिलाधीश के रुख से एवं पुलिस चौकी स्थापित करने की बात को लेकर आक्रोशित जैन युवकों ने जिलाधीश की गाड़ी के नीचे लेटकर अपना विरोध प्रदर्शन किया और जिलाधीश से पुलिस बल हटाने के लिए कहा, जिससे धार्मिक कार्य व जप में विघ्न न हो। इस बीच दल के साथ गये पत्रकार का कैमरा उत्तेजित जैन युवकों ने छीन लिया था। शायद इसके साथ छीनाझपटी भी हुई। इन युवकों को वीरेश सेठ ने जोर से फटकार कर किसी तरह स्थिति सँभाल कर जिलाधीश से माफी माँगते हुए उन्हें सुरक्षित निकालने के प्रबन्ध किये। जिलाधीश अत्यन्त आक्रोश में दमोह लौट गये। इस अप्रत्याशित घटनाक्रम ने उन्हें उत्तेजित कर दिया था । पत्रकार व प्रशासन के साथ यह घटना निश्चित रूप से निन्दनीय व गैरजरूरी थी। उसकी जितनी निन्दा की जाये कम है । किन्तु जिलाधीश जैसे जिम्मेदार व्यक्ति की भड़काऊ बयानबाजी किसी शांतिप्रिय व्यक्ति को भी विचलित व अस्थिर कर सकती थी, फिर यह तो धार्मिक भावनाओं में बह रहे युवकों का समूह था । जिलाधीश के इस कदम ने भय की भावना जैनसमुदाय मैं उस दिन उज्जैन में थी, रविवार, 15 जनवरी स्वदेशी मेला, उज्जैन के महिला सम्मेलन में भाग लेने के लिए। अचानक कुंण्डलपुर में श्री वीरेश सेठ का फोन आया कि श्री राघवेन्द्र सिंह, जिलाधीश, दमोह दल-बल सहित 1015 गाड़ियाँ लेकर कुंडलपुर पहाड़ पर चढ़ आये हैं और तुरंत मंदिर निर्माणकार्य बंद करने अन्यथा कुंण्डलपुर को के मन में भर दी और ऐसा लगा कि वे वहाँ पुलिस चौकी 14 अगस्त 2006 जिनभाषित Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिठा कर छावनी बना देंगे और सदा के लिए निर्माण कार्य | एक्सप्रेस से चलकर सुबह 8 बजे 16 तारीख को दमोह आ रूक जायेगा। सब कार्य अधूरे पड़े रहेंगे। जिलाधीश के गई। आते ही मैंने वीरेश से बात की। उन्होंने मुझे बताया जाने के दो-एक घंटे बाद वीरेश सेठ ने मुझे फोन किया गुरूओं के निर्देश से बड़े बाबा की मूर्ति हटाने का कार्य और कहा कि कलेक्टर के जाने के बाद स्थिति नियंत्रण के जिसे 'आपेशन मोक्ष' का नाम दिया गया। शुरू कर दिया बाहर जा रही है और काफी लोग एकत्र हो गए हैं। समाज गया है। इसे रोकना संभव नहीं रहा था। जिलाधीश कल उत्तेजित हैं, सँभालना कठिन है। मैंने बात संभालने की यहां पुलिस फोर्स ले आयेंगे। अब कोई और चारा नहीं था। कोशिश की और कहा बिल्कुल भी ऐसा कोई काम न करें मैंने उन्हें केवल इतना ही कहा कि कपया सभी कछ जिससे कि उद्देश्य भी पूरा हो और कानून का उल्लंघन हो जाये। मैं रात्रि दस बजे उज्जैन से भोपाल पहुँची और मलैया शांतिपूर्ण व अहिंसात्मक ढंग से करें। जैन समाज का कोई जी श्री जयंत मलैया मंत्री - स्थानीय विभाग, मध्यप्रदेश भी व्यक्ति प्रशासन से न टकराये, न संघर्ष करे। पुलिस शासन ग्वालियर में थे, उन्हें मैंने भी अवगत कराया। उन्होंने यदि बलप्रयोग करती भी है और संघर्षपूर्ण स्थिति बनती जिलाधीश दमोह को एक फेक्स किया तथा मुझे मुख्यमंत्री भी है, तो जैन समाज को यह अवसर है कि यह सिद्ध करे से मिलने को कहा। मैंने मुख्यमंत्रीजी को संपर्क की तुरंत कि वह अहिंसक है। गोलियाँ भी खानी पड़ें तो वह खाये। चेष्टा की। रात्रि 11 बजे उनसे मिल पाई। पूरी स्थिति की चर्चानुसार जैन साधु व साध्वी, बच्चे, औरतें आगे आकर गंभीरता बताकर त्वरित कार्यवाही की आवश्यकता जताई। क्षेत्र के मुख्य दरवाजे के बाहर आकर सड़क पर बैठ गये उन्होंने तुरंत अपने कार्यालय से फेक्स जिलाधीश के पास थे। मूर्ति स्थानांतरण हेतु तथा जर्जरित मंदिर की दीवारें व भिजवाया कि वे कुंडलपुर जाकर आचार्य श्री के चरणों में शिखर तोडने के लिए निर्माणकार्य में लगी क्रेनें वहाँ पहले निवेदन करें कि ऐसा कोई भी कार्य न किया जावे, जिससे से ही मौजूद थीं। जैन युवकों को किसी भी अप्रिय स्थिति कानून का उल्लंघन हो, राज्य सरकार, केन्द्र सरकार के से शांतिपूर्ण ढंग से निपटने के लिए सतर्क कर दिया गया साथ बातचीत करके इस समस्या का समाधान तलाशने में जैन समाज का सहयोगी करेगी, आवश्यकता होगी तो मुख्यमंत्री स्वयं प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली जायेंगे। ___ मैंने निश्चय किया कि मैं दमोह तो आ गई हूँ, जिलाधीश को यह फैक्स रात में ही मिल गया। लेकिन कुंडलपुर नहीं जाऊँगी। मैं कोशिश करूँगी कि मैं निश्चित हो गयी थी कि अचानक 12 बजे मुझे दमोह में रहकर ही यथासंभव शासन और समाज के बीच मुख्यमंत्री जी का फोन आया कि आप वहाँ जाएँ और समाज में टकराव की स्थिति को रोकूँ, जैसा कि मुख्यमंत्रीजी का निर्देश था। को समझाने की कोशिश करें, मैंने मुख्यमंत्री को निवेदन प्रशासन के सम्मुख कुंडलपुर के मंदिरों व मूर्ति के किया कि मेरा वहाँ जाना शायद उचित न होगा. किन्त संवेदनशील मुख्यमंत्री ने आग्रहपूर्वक कहा, 'मैं आपको बारे में भ्रमपूर्ण स्थिति थी। कुंडलपुर क्षेत्रसमिति कहती रही थी कि 300 वर्षों से कुंण्डलपर के मंदिर जैन समाज कह रहा हूँ, आप वहाँ जाएँ, कोई एक समझदार व्यक्ति तो वहाँ हो जिससे हम बात कर सकें और स्थितियाँ संतलन में के आधिपत्य में हैं और भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा रहें, कोई भी अप्रिय स्थिति को आप टाल सकेंगी। हमारी संरक्षित प्राचीन स्मारक नहीं है, केवल अम्बिका मठ संरक्षित मंशा साफ है कि हम जैन समाज की भावनाओं का सम्मान है और उधर भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग कहता रहा करते हैं, लेकिन निश्चित रूप से कानून की सीमाओं में।' कि वह संरक्षित स्मारक है और वहाँ से मूर्ति हटाकर मैं समझ गई कि यह प्रेरणा श्री हृदय मोहन जैन, विदिशा कानून का उल्लंघन किया जा रहा है। स्थिति नाजुक थी। द्वारा मुख्यमंत्रीजी को दी गई है। वे रात्रि में ही कुंण्लपर जा प्रशासन को कानूनन बाध्यता थी कि वह इसे रोकने का रहे थे और मुझसे चलने की कह रहे थे। मैंने मना कर दिया अपना कार्य करे और रोक पाने की स्थिति में वह था नहीं। मैंने जिलाधीश से सम्पर्क किया, वह उपलब्ध नहीं था। तब उन्होंने ब्रह्मास्त्र चलाया। हुए तो मैंने मुख्यमंत्री जी से सम्पर्क करने की कोशिश की। बड़े बाबा का काज 16-17 जनवरी 2006 मुख्यमंत्री भाग्यवशात् 16 जनवरी को मुख्य सचिव के मेरे पास कोई चारा नहीं था। मैं रात दो बजे कामायनी था। अगस्त 2006 जिनभाषित 15 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ जबलपुर दौरे में थे और कार्यक्रम में थे। मलैया जी के | स्थिति नियंत्रण में करने का आदेश दे दिया गया था। पूरे निर्देशों के कारण मैं कुँण्डलपुर नहीं जा सकती थी। पर मैं | कार्यक्रम में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक निर्णय यही सतत् सम्पर्क में थी, क्योंकि मुझे पल-पल की जानकारी | था। संदेश मुझे मिल गया। दोनों दो-ढाई बजे के करीब : देने के निर्देश थे। मुझे जानकारी मिली कि कलेक्टर ने दमोह सर्किट हाउस में पहुँचे। शासन के निर्देश पर मैं उनसे अतिरिक्त मुख्य सचिव से बात करके सागर से एस. ए. मिलने वहाँ पहुँची। पूर्ण स्थिति से अवगत कराया। एफ. बटालियन बुलवायी है, बल-प्रयोग से मूर्ति का | परिस्थितियों को देखते हुए और मुख्यमंत्री से हुई बातचीत स्थानंतरण रोकने के लिए, मेरी नजरों के सामने निहत्थे । | के आधार पर मलैया जी मुझे आई. जी. और कमिश्नर के साधु-साध्वियों पर अश्रुगैस, लाठीचार्ज और गोलीचालन साथ कुंडलपुर जाने को कहा, जिससे जैन समाज व प्रशासन का दृश्य घूम गया। क्यों ? मेरी आँखों से बेबसी, आक्रोश, | के बीच किसी भी तनावपूर्ण स्थिति को टाला जा सके और पीड़ा के आँसू बहने लगे। हमें अपने ही देश में इतनी प्रशासन को कोई अप्रिय निर्णय न लेना पड़े। आई.जी., बेवकूफियों से क्यों गुजरना पड़ता है। मेरे स्वतंत्र देश में ये कमिश्नर के साथ में साढ़े तीन-चार बजे के करीब कुंडलपुर कैसे कानून हैं? 30 अक्टूबर 1990 को निहत्थे कारसेवकों | पहुँची। 1000 से अधिक पुलिस फोर्स वहाँ खड़ी थी। क्षेत्र पर गोलियां चली थीं, क्या यहाँ पर निहत्थे जैन तपस्वियों / के मुख्य द्वार के बाहर ही सड़क पर, जैन मुनियों और जैन पर चलेंगी ? न यहाँ दो सम्प्रदाय के बीच का झगड़ा है, न | साध्वियों का दल समाज के एक हजार से अधिक लोगों के भू-स्वामित्व का। वास्तव में कोई झगड़ा तो था ही नहीं, मैं | साथ बैठा था, शांतिपूर्वक, बड़े बाबा का मंत्र जाप करते काँप गई। एसएएफ आने की बात से दमोह में आतंक और | हुए। अद्भुत नाकेबंदी थी वहाँ। जो जैन साधु व साध्वी भय का माहौल व्याप्त हो गया। मुझे दोनों की चिंता थी, | किसी सामाजिक कार्यक्रम में भी भाग नहीं लेते, वे आज सरकार को कोई आँच न आये, बड़े बाबा को कोई छू न | इस प्रकार बीच सड़क पर धरने पर बैठे थे, छोटे बाबा की । पावे, साधुसंतों की अवमानना न हो पाये, जैन समाज का व | आज्ञा से बड़े बाबा के काज के लिए। आई. जी. और प्रशासन का संघर्ष न हो। ऐसा हुआ तो बहुत खतरनाक | कमिश्नर ने निर्णय किया कि इन हालातों में कुछ नहीं होगा, दोनों ओर मरण होता। किया जा सकता। मैंने मलैया जी को संपर्क करके कहा, जिलाधीश लेकिन तनातनी बढ़ रही थी। सड़कमार्ग अवरुद्ध गोली चलाकर भी इस कार्य को रोकने के पक्ष में है, उसने | था और वे भोले-भाले ग्रामीण, जो बड़े बाबा को उतना ही एस.ए.एफ. सागर से बुलाई है, उसे रोकें, वरना अनर्थ हो | अपना आराध्य मानते थे, जितना कोई भी जैन, वहाँ देर से जाएगा। यहाँ कुछ हुआ, तो आगे देश भर में फैलेगी। जयंत | रुके हुए उत्तेजित हो रहे थे। उनको लग रहा था कैसे गाँव मलैया जी ने तुरंत मुख्यमंत्री जी व उनके साथ में उपस्थित | पहुँचे। एस.पी. ने स्थिति को भांपा और ग्रामीणों की परेशानी स्वास्थ्य मंत्री मा. अजय विश्नोई जी से बात की। उन्होंने | समझ मुझसे निवेदन किया “मैडम, कृपया आप मुनियों से मुख्यमंत्री जी को स्थिति की गंभीरता समझाकर जिलाधीश | निवेदन करें कि वे ग्रामीणों के जाने के लिए रास्ता छोड़ के हाथ से नियंत्रण लेने की बात की. विवेकशील मुख्यमंत्री | दें।" मैंने मुनि महाराज से निवेदन किया कि रास्ता बना दें जी समझ गये। मुख्य सचिव ने मुख्यमंत्री से कार्य रोकने के | और केवल इनके ट्रेक्टर, ट्राली गुजरने दें, गाँव को जाने लिए बलप्रयोग की आज्ञा माँगी, लेकिन मुख्यमंत्री ने पूछा | वाली बसों को जाने दें। इस कानून के उल्लंघन की सजा क्या है ? बताया गया रुपये इस बीच में कुछ अराजक तत्त्व सक्रिय हो गये थे 3000/- तथा तीन महीने की सजा। अब उन्होंने स्पष्ट निर्देश | और उत्तेजना फैलाने के मूड में थे। किन्तु मैंने केवल जैन दिया, यदि मेरी कुर्सी जाती है, तो जाए लेकिन गोली चलाने । | युवकों को समझाया, वे प्रतिक्रिया व्यक्त न करें। जो कार्य का आदेश निर्देषों और साधुओं पर नहीं दूंगा। बलप्रयोग प्रारंभ हुआ है उस कार्य को शांति से सम्पन्न हो जाने दें और नहीं होगा। न अश्रु गोले चलेंगे, न लाठी चार्ज होगा। उनको कोई विरोध बाहर से आवे भी, तो उसे भी सहर्ष स्वीकारें।। समझाने की कोशिश करें, मलैया जी वहीं जाकर उन्हें इस बात का परिचय दें कि आप अहिंसा के प्रतिपादक समझायेंगे, वे मेरा संदेश उनके पास लेकर जा रहे हैं। महावीर के अनुयायी हैं। स्थिति को बिगाडे नहीं, नियंत्रण में सागर से आई. जी. व कमिश्नर को दमोह पहुँचकर | रखें। प्रभाव हुआ, वे स्थिति की गंभीरता को समझे, रास्ता 16 अगस्त 2006 जिनभाषित Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बनाया और जो भीड़ इतनी देर से एकत्र थी वह छटने लगी। | से निवेदन किया और पहाड़ खाली करवाने को कहा। तभी उनमें कुछ शरारती तत्वों ने - जो यह चाहते थे | उन्होंने कहा जो निर्णय उचित लगे वो करो। वातावरण में कि किसी न किसी प्रकार से कोई अप्रिय स्थिति बने - | बहुत तनाव है। एक्सप्रेस न्यूज के सम्पादक श्री सनत जैन किसी के उकसावे पर 'बजरंग बली की जय', 'महादेव की | भी भोपाल से पधारे हुए थे। उन्होंने काफी सक्रियतापूर्वक जय' करना वहाँ शुरू कर दिया। इस जयकारे ने आज तक | समाज व प्रशासन के बीच संवाद करके संतुलन बनाये कभी जैन और हिन्दुओं में कोई प्रतिक्रिया पैदा नहीं की थी। | रखा। प्रमुख सचिव से बातचीत करवाई। उन्होंने कमिश्नर किंतु आज उसके अर्थ कुछ और थे। थोड़ी देर और यह | को गिरफ्तारियाँ करने के लिए कहा। कमिश्नर का फोन होता, तो स्थिति बिगड़ सकती थी। पुलिस व जैन युवकों के नहीं लग रहा था। मैं नीचे चली आयी और प्रमुख सचिव सहयोग से शीघ्रतापूर्वक ग्रामीणों को वहाँ से निकाला गया। | का संदेश उन्हें दिया। उन्होंने यह कहते हुए कि इन्होंने कोई मैं अभी तक नीचे क्षेत्र के बाहर नाकेबंदी के स्थान | अपराध नहीं किया है, किस बात के लिये गिरफ्तार करूँ? पर ही थी, पुलिस व अधिकारियों के साथ। तभी कमिश्नर | शांतिपूर्वक बैठे हैं, गिरफ्तारियाँ करने से इंकार कर दिया। ने निवेदन किया कि आप पहाड़ पर जा सकें, तो आचार्य श्री | लगभग 2.30 बजे तक सूचना आई कि मूर्ति पुराने मंदिर से के चरणों में निवेदन कर हमारी मुलाकात करवा दें। वे एक | निकाल ली गई है। साधु संत अभी भी नीचे बैठे थे। 4-5 बार जरूर जाकर शासन की मंशा और मुख्यमंत्री का संदेश बजे के लगभग यह संदेश आया कि सब नीचे से हट जायें, उन्हें बताना चाहेंगे। मैंने कहा, ठीक है किंतु मैं ऊपर नहीं | पुलिस को ऊपर आने दें। साधु संत और श्रद्धालु सभी जाना चाहती। उन्होंने कहा, 'आप जाइये और हम अभी | पहाड की ओर दौड पडे। अधिकारियों से भी ऊपर जाने इसलिए नहीं चलेंगे, क्योकि कहीं रास्ते में किसी ने कुछ | को कहा गया, किन्तु अब वे जाने को तैयार नहीं थे। एस.पी. कर दिया, तो स्थिति नाजुक हो जायेगी। मुझे भी बात समझ | ने स्पष्ट मना कर दिया कि अभी समाज उत्तेजित है, इसलिए में आयी। मैं सायं 5.30 के लगभग पहाड़ पर गई।' आचार्य | मैं अनुरोध करूँगा कि आई. जी., कमिश्नर भी ऊपर न श्री ध्यान में थे। ध्यान के पश्चात् मैंने व वीरेश ने उनसे जाएँ, कल शांति से आचार्य श्री से मिल लेंगे। वे नहीं गए। निवेदन किया, उन्होंने कहा ठीक है, ज्ञान साधना केन्द्र में मैं | ऊपर बड़े बाबा अपने नवीन आसन पर विराजमान हो चुके उनसे मिलने के लिए तैयार हूँ, पर जैसे ही मैंने नीचे संदेश | थे। छोटे बाबा का बड़ा काज सम्पन्न हो चुका था, लगभग भिजवाया, अधिकारियों का मन बदल गया और अगले दिन | निर्विघ्न, किन्तु दो छोटे दोषसहित। एक हुआ पत्रकार आजम सुबह जाने को कहा, अभी जाना ठीक नहीं है। उन्होंने खान का कैमरा छीने जाने का प्रकरण, जिसमें उसने मेरा पुलिस बल लौटा देने का भी निर्णय लिया, पुलिस बसें नाम अकारण उलझाया और दूसरा 12 वर्षीय बच्ची की लौटने लगी और पटेरा थाने आकर रुक गईं, कुछ दमोह | कुण्डलपुर ग्राम में बलात्कार की घटना, जिससे स्वार्थी गईं, आई.जी., कमिश्नर, कलेक्टर आदि पटेरा रेस्ट हाउस | | तत्त्वों ने राजनीतिक रोटियां सेंकी। पहुँच गये, मैं भी सात-आठ बजे तक दमोह लौट आई। | मंत्रीपत्नी ने कैमरा नहीं छीना, पत्रकार की जान बचायी मलैया जी सायं 6 बजे भोपाल से हैलीकाप्टर द्वारा दमोह सायं 6-7 बजे मैं ऊपर बड़े बाबा के पास पहुँचने के पहुँच गये थे, किन्तु आई.जी. कमिश्नर से बातचीत के बाद | लिए भीड़ के रेले में ही थी कि किसी ने मुझसे कहा कि उन्हें कुंडलपुर जाने की आवश्यकता नहीं लगी। राष्ट्रीय सहारा का प्रतिनिधि आजम खान फोटोग्राफी कर 17 जनवरी को सुबह मलैया जी वापस भोपाल चले | रहा है। जैन युवक उत्तेजित थे। अब वे उसे सबक सिखाने गये। 10 बजे उनका भोपाल से फोन आया, 'सबसे कहो, | के मूड में थे। शहर में वह पहले भी नादानियाँ कर चुका था, पहाड़ खाली कर दें।' रेपिड एक्शन फोर्स की दो बटालियनें | आज अवसर था। मैंने उन्हें तत्काल डाँटा और रोका। मुझे जबलपुर से निकल गई हैं। मैं 11 बजे के लगभग पुनः | अत्यधिक चिंता हुई। मैं नहीं चाहती थी कि अकारण विवाद कुण्डलपुर पहुँची। नीचे सूचना मिली कि बड़े बाबा की | की स्थिति बने कि पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार हो। मैं किसी मूर्ति निकालने का कार्य चल रहा है। मैं जैसे ही पहुँची, | तरह वेदी के पास पहुँची ही थी। किसी ने बताया उसका आई. जी. और कमिश्नर ने फिर आचार्यश्री से मिलने का | कैमरा किसी ने ले लिया है। पछने पर पता चला कि अभी आग्रह किया। मैं पुनः पहाड़ पर गई। वहाँ जाकर मैंने आचार्यश्री | | तक जैन साध, साध्वियाँ, सामान्यतः जिनको लोगों ने केवल अगस्त 2006 जिनभाषित 17 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शांत या ध्यानावस्था में देखा है, आज बड़े बाबा की सेवा में बलात्कार का राजनीतिकरण रत थे, व्यवस्था बना रहे थे। वे नहीं चाहते थे कि ऐसे समय | बडे बाबा के इस पवित्रकाज में एक अपवित्र घिनौना कोई फोटोग्राफी वहाँ करे। लेकिन कैमरा किसने लिया, | दोष लगा, निर्दोष 12 वर्षीय काछी समाज की मासूम बच्ची किसके पास है, कुछ पता नहीं चला। आजम खान को पूछने | के निर्मम बलात्कार से। कितने बजे हुआ, किसने किया, पर वह सामने आया, वह मंदिर की अनिर्मित दीवार पर | पुलिस आज तक अपराधियों को पकड़ नहीं पाई। कुछ का ऊपर खड़ा था। मैंने उससे केवल यही पूछा आजम तुम | कहना है कि बलात्कार कुण्डलपुर ग्राम में हुआ। अन्य सुरक्षित हो न ? उसने कहा हां मैं सुरक्षित हूँ। किन्तु मामला | लोगों का आरोप है कुण्डलपुर पहाड़ी पर हुआ। प्रमाणों के संवेदनशील था। आजम खान की उपस्थिति के वहाँ कुछ | अभाव में अभी भी पुलिस निर्णय पर नहीं पहुंची थी। और ही अर्थ थे। मैंने उससे चिंचित स्वरों में कहा आजम | कतिपय तत्त्व सक्रिय हो गये थे। जाने कब-कब का छुपा तुम्हें यहाँ नहीं आना था। उसने कहा 'भाभीजी मुझे मेरा | बैरी जातिगत विद्वेष फूटकर बाहर आने लगा। पुरानी शिकायतों कैमरा दिलवा दीजिए।' मैंने कहा, 'मुझे पता नहीं किसने | / शिकवों की आड़ में परोक्ष रूप से श्री जयंत मलैया के लिया, किसके पास है, पर पता लगाकर बताऊँगी।' उसे | विरुद्ध और अपरोक्षरूप से जैन समाज के खिलाफ भी साधुओं के पीछे बैठा दिया गया, जब तक कि कार्यक्रम | आरोप लगे कि जैन युवकों ने किया। प्रश्न यह नहीं रहा कि सम्पन्न न हो जाये। बात आई-गई हो गई। उस दिन मेरी | जो भी बलात्कारी है उसे पकड़कर सजा दी जाये। चाहे वह चिंता के विषय कुछ और थे कि रैपिड एक्शन फोर्स पहाड़ | किसी भी समाज वर्ग का हो। ग्रामीण या शहरी, स्थानीय या पर कब्जा कर सकती थी, कुछ मार-पिटाई न हो जाए। बाहरी, युवक या वृद्ध, अमीर या गरीब, नेतापुत्र या यद्यपि बाद में न पुलिस आई, ने रैपिड एक्शन फोर्स, न जाने | मजदूरपुत्र, कोई मेरा निकट स्वजन भी हो तो उसे भी मिले कौन प्रेरणा दे सबके मन में बैठा काम करा रहा था। कठोरतम सजा। क्योंकि इस भर्त्सनीय कृत्य की जितनी भी संध्या हो चुकी थी, मैं रात्रि में दमोह लौट आयी। 18 | निंदा की जाये थोड़ी है। सबने निंदा की भी, जैन अजैन जनवरी की सुबह को किसी ने फोन पर सूचना दी कि | समाज, सभी का एक ही रुख रहा। किन्तु सेंकनेवालों ने राष्ट्रीय सहारा चैनल पर आपके विषय में पट्टी चल रही है। राजनैतिक रोटियाँ सेंकनी शुरू कर दीं, दमोह जिले में महीने कि मंत्री पत्नी ने कैमरा छीना। मेरे लिए यह आश्चर्य और | भर के भीतर उनने इतने बंद करवा दिये, जो जिंदगी भर न पीड़ा का विषय था। सस्ता प्रचार पाने के लिए मीडिया | करवा सके थे, वह अब कर दिखाया। यह सक्रियता जिनकी कितना शरारती हो सकता है! वह चाहे तो दंगे करवा सकता | भी है, इतनी ही अपने उद्देश्य में शुभ होती, तो आगे भी वे है, चरित्र हनन कर सकता है। मंत्रीपत्नी का नाम लेने से ही | जिले में किसी भी बलात्कार को लेकर इतनी ही सक्रियता तो उसकी न्यूज चटपटी और सनसनीखेज बनती थी। बड़े | व चिंता दर्शाते, पर यहाँ तो दुर्भावना थी। वह समय दूर नहीं बाबा की मूर्ति विस्थापन के बारे में भी भ्रामक, तथ्यों को | जब दूध और पानी का पानी हो जायेगा। अपराधी निश्चित तोड़-मरोड़कर जानकारी दी गई। कुछ हुआ नहीं था, लेकिन कटघरे में होंगे। पर्याप्त झूठ प्रचारित किया गया। यहाँ तक कि | अम्बिका मठ व हनुमान मंदिर का सत्य आश्चर्यजनकरूप से आजम खान ने पटेरा थाने में 27 तारीख | कुछ पत्रकारों ने जान-बूझकर आग भड़काई थी, को मेरे खिलाफ कैमरा लूट प्रकरण में एफ.आई.आर. भी अफवाहों का बाजार गर्म किया था। जैन-हिंदू समाज में दर्ज कराई, यह स्वीकार करते हुए कि सुधा मलैया ने कहा | | खाई पड़ जाये, यही एकमात्र उद्देश्य था। कहा गया, था उसे कैमरा दिलवा दूंगी। विडम्बना यह थी कि 24 | | अम्बिका मठ तोड़ दिया गया। हनुमान जी की मंदिर खंडित तारीख को कैमरा की थाने के जब्ती थी, जिसे किसी ने वहाँ कर दिया गया आदि-आदि। दमोह शहर के हर समाज को जमा करवाया था। कानून का इससे बड़ा मखौल क्या था ? | सप्रयास उकसाया गया। भावनाओं को भड़काया गया, यहाँ सद्भावनापूर्वक किये गये व्यवहार का उसने कैसा सिला तक कि हिन्दुत्व के प्रबल समर्थक भी भ्रम में आ गये। दिया था। वह प्रशासन के कुछ जिम्मेदार लोगों के हाथ में अपने सम्पूर्ण राजनैतिक कार्यकाल में मेरा यह पहला अनुभव खेल रहा था, किन्तु साँच को आँच कहाँ ? . था, जब मैंने जातिगत विद्वेष के जहर को इस प्रकार अच्छेअपवित्र घिनौना, 12 वर्षीय बच्ची के दुर्भाग्यपूर्ण अच्छों की मति पलटाते देखा। मुझे गहरी पीड़ा हुई। शत्रु 18 अगस्त 2006 जिनभाषित Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हिन्दू अपना काम करे। ठीक है, किन्तु मित्र उनकी चालों में | कुंडलपुर संरक्षित स्मारक है या नहीं, पुरातत्त्व विभाग का आकर शत्रुवत् व्यवहार करें, यह पीड़ादायक था। शत्रु किसी | उस पर कितना अधिकार है, कब्जा किसका है, भू-स्वामी सीमा तक अपनी चाल में कामयाब हुए, किन्तु कुछ समय | कौन है ? इस संपूर्ण प्रसंग के परिणाम जैन समाज में, देश तक। कुछ लोगों से मैंने प्रश्न किया था - कभी देखा है | में व हिन्दू समाज में क्या होंगे ? स्थानांतरण में अतिशय में अम्बिका मठ ? 5 वर्ष पहले चोरी गई अम्बिका की मूर्ति | कमी आ गई इत्यादि। का विवाद उठाया गया। आरोप लगाया जैन समाज ने चोरी | पवित्रता स्थान से अधिक मूर्ति की है करवाई, विद्वेषपूर्ण परचे बाँटे कि विशेष समाज के द्वारा 17 वीं शती में निर्मित बड़े बाबा का पहला मंदिर न पहँचाई गई। किस पर आरोप लगा रहे तो मूलनायक प्रतिमा का मूल प्राचीन मंदिर था। न ही मूल थे वे? मालूम है अम्बिका देवी की मूर्ति जैन मूर्ति है, युगल । गर्भगृह । महत्त्व मूर्ति की पवित्रता, प्राचीनता एवं पूजनीयता मूर्ति है, भगवान नेमीनाथ के गोमेध यक्ष व यक्षिणी की ? | का अधिक है, स्थान का नहीं। जैन समाज अपनी ही मूर्ति को चोरी क्यों करवाना चाहेगा, | मंदिरों की परिसंस्कार परम्परा और बाकी दोनों उमा-महेश्वर एवं लक्ष्मीनारायण की मूर्तियाँ | | मथुरा में चौरासी के 200 वर्ष से अधिक प्राचीन अम्बिका मठ में सुरक्षित हैं ? हनुमान मंदिर तक गये हो | जिनालय में ऊपर चौबीस वेदियाँ बनाकर नवीन चौबीसी कभी? जैन समाज ने अपने स्वामित्व की भूमि वहाँ हनुमान विराजमान की जा रही है। आमेर के भगवान् नेमीनाथ मंदिर निर्माण के लिए दी है। जानते हो रुक्मणिमठ में वर्तमान | जिनालय में बीच की वेदी पूरी हटाकर, नवीन निर्माण में पूज्य मूर्ति तीर्थंकर की खंडित पद्मासन मूर्ति है ? उनके | किया गया। भगवान महावीर जिनालय, गोपाल जी का पास कोई जवाब नहीं था। हम यह समझे थे। हमें उसने | रास्ता, जयपुर में पुरानी वेदियाँ हटाकर नया हॉल निर्मित समझाया था। हम यह सोचकर उसमें थे कि खंडित मूर्ति है | किया जा रहा है। श्री महावीर जी अतिशय क्षेत्र के जिनालय ? उनके पास कोई जवाब नहीं था, हम पर यह समझे थे, | में नीचे भूतल का पूर्ण रूप से जीर्णोद्धार किया गया। इसी हमें उसने समझाया था, हम यह सोचकर उसमें शामिल थे | मन्दिर में से ऊपर कुछ प्रतिमाएँ लाकर अलग से विराजमान कि आंदोलन गलत लोगों के हाथों में न चला जाए। बौद्धिक | की गईं। शान्तिवीरनगर, महावीर जी के मन्दिर का आमूलचूल दीवालियेपन की काई सीमा न थी। वर्तमान में विदिशा | परिवर्तन किया गया। भगवान् पार्श्वनाथ मन्दिर, जग्गा की संग्रहालय में रखी, चोरी गई गोमध अम्बिका की मूर्ति भी | बावड़ी का पूरा प्राचीन निर्माण हटाकर नवीन निर्माण किया वापस अम्बिका मठ में आये और हनुमान मंदिर भी बने, गया। इन सभी प्रमाणों से यह स्पष्ट है कि प्राचीन मन्दिर में यही सबकी भावना है, सकल जैन समाज की भी शासन | भी आवश्यकतानुसार परिवर्तन-परिवर्धन होते रहे हैं, होते की भी। रहते हैं, होते रहेंगे। मीडिया ने पर्याप्त आग उगलने का कार्य किया। | बड़े काज में छोटे बाबा के भक्तों को भूमिका यदि सतर्कता न बरती जाती तो जैन-हिन्दू-दंगे हो सकते थे। जीवित मंदिरों के जीर्णोद्धार का प्रश्न हो अथवा नये शहर वातावरण तनावपूर्ण हो गया। ईश्वर की कृपा रही कि | मंदिरों के निर्माण का, इस प्रकार का कोई भी कार्य सदा से कुछ अनर्थ नहीं हुआ, सभी ने यथासंभव संयम बरता। बड़े | सर्वमान्य गुरुओं के आशीर्वाद एवं प्रेरणा से ही संभव हुआ। बाबा की कृपा से, छोटे बाबा की तपस्या से सभी कार्य | कुंडलपुर में आचार्य श्री विद्यासागर जी के प्रथम चातुर्मास निर्विघ्न सम्पन्न हो गये और 19 जनवरी को अपार जन- | 1976 से लेकर 1978 में शिखर के जीर्णोद्धार, प्रथम समुदाय के बीच मंत्रोच्चारण के साथ बड़े बाबा की विधिवत् | महामस्तकाभिषेक 2001 से लेकर 19 जनवरी 2006 को नये स्थान पर आचार्य श्री के निर्देशन में प्राण प्रतिष्ठा कर दी | बड़े बाबा की नये मंदिर में पुर्नप्रतिष्ठा तक जो भी कार्य हुआ, वह उन्हीं के निर्देश, आशीर्वाद व प्रेरणा से हुआ, किन्तु बात तो अब शुरू हुई थी, 16 जनवरी को ही | देशभर के सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज के धर्मानुरागियों ने केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग की ओर से केस जबलपुर स्थित | तन, मन, धन से सहभागिता दर्शायी। म.प्र. उच्च न्यायालय में चला गया, उनमें शंकाओं को जन्म इस सम्पूर्ण प्रकरण में आवश्यक है आचार्यश्री के दिया गया, भ्रामक प्रचार हुआ, सैकड़ों प्रश्न हवा में उछले, | समर्पित भक्तों का उल्लेख। कुंडलपुर क्षेत्र की प्रबंध समिति गई। अगस्त 2006 जिनभाषित 19 Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के अध्यक्ष श्री संतोष सिंघई, चौधरी रूपचंद जैन एवं महामंत्री | यह किसी समाजविशेष की मनमानी किये जाने का उदाहरण सत्यपाल जैन आदि पदाधिकारियों की सहनशीलता, कर्मठता | नहीं, अपितु पुरातत्त्व विभाग द्वारा अकारण हस्तक्षेप का का, जिन्होंने गुरु की आज्ञा मानने और पालन करने में कोई | उदाहरण है, जीवित मंदिरों को मृत स्मारकों में बदलने की कसर नहीं छोड़ी। यदि इस पूरे कार्यक्रम को सफल बनाने | साजिश है, जीवन को मुख्य धारा से काटकर, अलग-थलग का श्रेय आचार्य श्री के बाद किसी एक व्यक्ति को दिया जा | बन्द चारदीवारी में रखने के प्रयास हैं। हमारी धरोहर, हमारी सकता है तो वह है निर्माण समिति के प्रभारी वीरेश सेठ। विरासत, हमारे जीवन का अंग होना चाहिए, कोई अलग सा स्तुत्य है उसकी कर्मठता, अभिनंदनीय है उसका बड़े बाबा | हिस्सा नहीं। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण हमारे गर्व का विषय और छोटे बाबा के प्रति समर्पण, जिस प्रकार क होना चाहिए, दर्द का नहीं। प्राचीन मंदिरों.स्मारकों में जीवन ऑपरेशन मोक्ष को उन्होंने अंजाम दिया, बिना थके, बिना | की हलचल हो, उपयोगिता हो, वही उनका सबसे बड़ा रुके, न दिन देखा-न रात, इस योजना को सफल बनाने में | संरक्षण व रक्षण है। पुरातत्त्व विभाग की भावना स्पष्ट रूप योगदान दे सकने वाले हर व्यक्ति का सहयोग लेने में जिस | से सकारात्मक तथा राष्ट्र व समाज के हित में होनी चाहिए। प्रकार बुद्धिमत्तापूर्वक और किसी भी समय प्रत्येक अप्रिय | यह खेद का ही विषय है कि पुरातत्त्व विभाग ने अपनी स्थिति को टालने में समन्वयक का जो कार्य उन्होंने किया, | याचिका में बच्ची से बलात्कार का जिक्र किया। पुरातत्त्व उसे शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता है। छोटे बाबा का यह | विभाग के दायित्व क्या अब बदल गये हैं? यह चिंता का बड़ा-सा भक्त निश्चित रूप से ऐरावत हाथी जैसा | विषय है जिस पर सभी जागरूक लोगों को ध्यान देना तीक्ष्णबुद्धि-सम्पन्न एवं गुणयुक्त सिद्ध हुआ। सम्पूर्ण जैन | चाहिए। समाज को उन पर गौरव है। इस पूरे यज्ञ में अनेक दातारों ने | कुण्डलपुर की मंदिर व मूर्तियाँ संरक्षित की श्रेणी में मुक्त हस्त से आहुति दी। जैसा सेवा दल के युवकों ने | नहीं अपना श्रमदान दिया। अनेक विशेषज्ञों ने बिना मूल्य लिए 16 तारीख को केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग ने न्यायालय अपने सेवाएँ दीं। आई. आई. टी. इंजीनियरों का योगदान | | में याचिका दायर की और उस पर 16 तारीख को 3 सुनवाइयाँ सराहनीय था, जिसके कारण ही सभी जिनबिम्बों को निकाला | हुईं। उसको आगे बढ़ाते हुए 17 जनवरी को पुनः सुनवाई जा सका। किन्तु यह मानना होगा इस सम्पूर्ण प्रसंग में, इस | हुई और पुरातत्त्व विभाग की याचिका पर उच्च न्यायालय ने प्रदेश के मुख्यमंत्री की विवेकशीलता, संवेदनशीलता व | सायं 4.30 - 6.00 बजे यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दूरदर्शिता के कारण ही अप्रिय स्थितियों को टाला जा सका।| दिया, उसके पश्चात् 6 मार्च को सुनवाई हुई और फिर 24 शायद बड़े बाबा का काज उन्हीं के कार्यकाल में होना | अप्रैल को। भारतीय पुरातत्त्व विभाग का दावा था कि भगवान लिखा था। शासन के रुख के कारण ही वे प्रशासनिक | आदिनाथ की प्रतिमा प्राचीन सम्पदा है और बड़े बाबा का निर्णय नहीं लिये जा सके, जिसके कारण सैकडों जाने जा | मंदिर संरक्षित स्मारक। सकती थीं। भारतीय पुरातत्त्व विभाग का दावा 1904 के प्राचीन बड़े बाबा मूर्ति स्थानांतरण के परिणाम स्मारक संरक्षण अधिनियम के तहत दिनांक 16.07.1913 कतिपय बुद्धिमान् व्यक्तियों एवं पुरातत्त्व विभाग ने | तथा 13.11.1914 को मध्य प्रांत के मुख्य आयुक्त के बार-बार चिंता जतायी कि इस एक उदाहरण से सभी सम्प्रदाय अतिरिक्त सचिव द्वारा जारी दो अधिसूचनाओं पर आधारित अपने-अपने धार्मिक स्थलों के साथ मनमानी करने की छूट है, जिसको आधार बनाकर विभाग, प्राचीन एवं ऐतिहासिक चाहेंगे। पत्रकारों ने भी बार-बार यह चिंता जतायी। किन्तु | स्मारक, पुरातात्त्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 उदाहरण गलत दिये जा रहे हैं। प्रथमतः न यह संरक्षित | (1958 एक्ट) के प्रावधानों को कुंडलपुर के मंदिरों, मूर्तियों स्मारक है, न ही यहाँ पुरातत्त्व विभाग का कभी कोई आधिपत्य | के संदर्भ में लागू करना चाहता है। किन्तु वास्तविकता यह रहा, न प्रबंधन । इसकी तुलना केवल तिरुपति बालाजी, या | है कि 1958 एक्ट के प्रावधान कुंडलपुर पर लागू नहीं है, वैष्णो देवी, बांदकपुर आदि मंदिरों के ट्रस्ट से की जा सकती | इसके निम्न कारण हैं - है, ताजमहल व लाल किले से नहीं। रायसेन की मजार व । 1. भारत के समस्त प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्मारक अजमेर शरीफ से की जा सकती है, मस्जिद मोठ' से नहीं। | दो श्रेणियों में वर्गीकृत हैं। संघ सूची क्रमांक 67 के अंतर्गत 20 अगस्त 2006 जिनभाषित Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संसद द्वारा बनाये गये किसी कानून के द्वारा अथवा | के स्मारकों पर लागू करना गैरकानूनी और गैरसंवैधानिक अनुवर्तीसूची क्रमांक 40 के अंतर्गत घोषित राष्ट्रीय महत्त्व है, क्योंकि ऐसा करने से 1964 अधिनियम निष्क्रिय एवं के स्मारक तथा राज्य सूची क्रमांक 12 के अंतर्गत सम्मिलित | प्रभावहीन होगा। वे स्मारक जो राष्ट्रीय महत्त्व के नहीं हैं। 1958 एक्ट की 8. इन संदर्भो में 200-300 वर्षों से श्री देव पार्श्वनाथ धारा 2(1) केवल वे स्मारक संरक्षित हैं, जिन्हें इस कानून | जी मंदिर समिति, कुण्डलपुर 16 जुलाई 1913 की अधिसूचना के द्वारा राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया हो या जिन्हें के पूर्व मंदिरों का प्रबंधन, रखरखाव एवं मरम्मत तथा प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्मारक अधिनियम 1951, जो केवल जीर्णोद्धार करवाती रही और उसी के पास कुण्डलपुर के राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारकों की घोषणा के लिए बनाया गया, | मंदिरों का स्वामित्व एवं कब्जा रहा। के अंतर्गत राष्ट्रीय महत्त्व के घोषित किये गये हों, साथ ही 9.16 जुलाई 1913 एवं 13.11.1914 की अधिसूचना 1951 एक्ट में वही स्मारक राष्ट्रीय स्मारक घोषित किये गये | मध्यप्रांत मुख्य आयुक्त के अतिरिक्त सचिव द्वारा जारी की जो 1904 के अंतर्गत संरक्षित स्मारक घोषित किये गये थे। | गई थी, न कि केन्द्र सरकार के द्वारा, स्वतंत्रता पूर्व केन्द्र 2. प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्त्विक धरोहर व अवशेष । सरकार का अर्थ गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया की कार्यकारी एक्ट 1964, मध्यप्रदेश की धारा 38 के अनुसार प्राचीन समिति अर्थात् गवर्नर इन काउंसिल थी। केन्द्र सरकार ने स्मारक अधिनियम 1904 के प्रावधान मध्यप्रदेश राज्य के | कभी भी 1904 अथवा 1958 के तहत कुण्डलपुर के मंदिरों प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्मारकों एवं पुरातात्त्विक अवशेषों | को राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक घोषित नहीं किया, क्योंकि के संदर्भ में लागू नहीं हैं, केवल उन विषयों को छोड़कर | कुण्डलपुर के मंदिर धराहर जरूर हैं, स्मारक नहीं हैं, वे जिन पर के प्रावधान पहले लागू हो चुके हैं। पूजा के जीवन्त स्थल हैं। कुण्डलपुर के मंदिर प्रथमतः 3. 1904 अधिनियम के तहत जारी सभी संरक्षित | स्मारक नहीं, जीवित मंदिर हैं और द्वितीयतः ये 1958 एक्ट स्मारकों की अधिसूचना केवल केन्द्र अथवा राज्य सरकारों | के तहत नहीं आते हैं और इस दष्टि से भारतीय पुरातत्व के द्वारा ही जारी की जा सकती थी। सर्वेक्षण का कोई भी अधिकार मंदिरों पर नहीं है और न ही 4. 1904, 1951 व 1958 के अधिनियमों के अनुसार | वे संरक्षित स्मारक हैं। केवल राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक ही संरक्षित होंगे। इसके रदन काउंसिलदारा संरक्षित स्मारक अतिरिक्त जो भी प्राचीन व ऐतिहासिक स्मारक हैं, वे राष्ट्रीय स्मारक नहीं होंगे व 1964 के अधिनियम के तहत राज्य के 1913 और 1914 में जो अधिसूचना जारी की गई अधिकार क्षेत्र में आयेंगे। | थी, उसकी पुष्टि करने का अधिकार 1904 एक्ट की धारा 5. 1904 अधिनियम की धारा 3 में 1937 के एक 3 के अंतर्गत केवल गवर्नर इन कॉउंसिल को था, जो संशोधन द्वारा संरक्षित स्मारकों के संदर्भ में अधिसूचना कुंडलपुर के संदर्भ में नहीं हुआ। मध्यप्रांत के बारे में 1904 जारी करने का अधिकार केवल केन्द्र सरकार को दिया, जो | के बाद जारी सभी अधिसूचनाओं का गवर्नर इन कॉउंसिल इसके पूर्व स्थानीय सरकार को भी था। अतः 1958 एक्ट के द्वारा पुष्टि किया जाना आवश्यक था, जैसा कि निम्न उदाहरणों प्रावधान केवल उन अधिसूचनाओं पर लागू हैं जो केन्द्र | से स्पष्ट हैं - सरकार द्वारा 1937 के बाद जारी की गई या जिनके संदर्भ में | गवर्नर इन कॉउंसिल के पत्र क्रमांक C-72-A-Bकेन्द्र सरकार ने स्पष्ट अधिसूचना 1904 या 1958 के एक्ट | 358 दिनांक 11.04.1925 से स्पष्ट होता है कि उसमे संरक्षित के तहत सम्पूर्ण प्रक्रियाएँ पूरी करते हुए की हों। यदि ये | स्मारकों में कुण्लपुर के संदर्भ में केवल सपाट छत वाले अर्हताएँ पूरी नहीं होतीं, तो वह स्मारक राष्ट्रीय महत्त्व का | मंदिर का उल्लेख किया है। दिनांक 10.07.1916 की स्मारक नहीं माना जा सकता। अधिसूचना क्रमांक 180, जिसकी मुख्य आयुक्त ने भी पुनः 6. 1958 एक्ट के प्रावधान उन स्मारकों पर नहीं | पुष्टि अधिसूचना संख्या 932, दिनांक 27-8-1917 की थी, लागू हैं, जिनके संदर्भ में केन्द्र सरकार ने कोई अधिसूचना | उसे भी दुबारा गवर्नर इन काउंसिल में 1904 एक्ट ds-5-3 जारी नहीं की है। (3) के अंतर्गत पुनः कनफर्म किया गया। इसी प्रकार दिनांक 7. 1958 के प्रावधान को मानना गैर राष्ट्रीय महत्त्व 28.07.1916 की अधिसूचना क्रमांक 280, जिसकी पुनः अगस्त 2006 जिनभाषित 21 Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुष्टि अधिसूचना क्रमांक 234, दिनांक 27.08.1917 प्रमुख | एक भी छदाम पुरातत्त्व विभाग ने इन जैन मंदिरों पर खर्च आयुक्त ने की थी, को गवर्नर इन कॉउसिंल ने पुनः | नहीं की। उसका दृष्टिकोण कुछ ऐसा ही रहा कि बच्चे पर अधिसूचना क्रमांक P-72-A-B-358 तथा सूची क्रमांक 43 | अधिकार तो मेरा है, किन्तु जो उसे अपना मानते हैं वे उसे व 44 की पुष्टि अधिसूचना दिनांक 11.4.1925 से की। | अच्छे से पाल रहे हैं, इसलिए मुझे चिंता की जरूरत नहीं। अधिसूचना क्रमांक 19 की पुष्टि गवर्नर इन कौंसिल ने | सिद्ध है कि धर्म व पुरातत्त्व की सुरक्षा किन्हीं चंद अधिसूचना क्रमांक C-72-A-B-358 दिनांक 11.4.1925 | व्यक्तियों की नहीं, सम्पूर्ण समाज की चिंता का विषय थी, की सूची क्रमांक 48 पर की। उपर्युक्त प्रमाणों से स्पष्ट है | इस जीर्णोद्धार को समस्त मुनिसंघ और अधिकांश जैनसमाज कि कुण्डलपुर के मंदिर कभी भी संरक्षित घोषित नहीं हुए। | की स्वीकृति थी। यही कारण है कि समाज ने इसके विरोध पुरातत्त्व विभाग की भूमिका । पर तीखी, अनचाही और अनपेक्षित प्रतिक्रिया व्यक्त की, पर्याप्त दस्तावेजों के अभाव में एवं गलत जानकारियों | चाहे वह समाज के व्यक्ति द्वारा की गई अथवा पुरातत्त्व के कारण पुरातत्त्व विभाग इस सम्पूर्ण प्रकरण में अकारण | विभाग या प्रशासन के द्वारा । आचार्यों तथा देव, शास्त्र व गुरु उलझा, फिर भी प्रश्न केवल एक है कि जिस किसी भी | का अकारण विरोध न वंदनीय है, न स्तुत्य। सच पूछा जाये नोटीफिकेशन के आधार पर, जब कभी भी विभाग ने पाया | तो जिनकी चिंता का यह विषय रहा है और है, वे ही उसकी कि कुंडलपुर के पहाड़ी पर के मंदिर उसके संरक्षित स्मारक | चिंता करते रहे हैं, करते रहेंगे, धार्मिक, आध्यात्मिक, हैं, तो उसके बाद उसने किया क्या ? कौन सा दायित्वनिर्वहन, | व्यावहारिक दृष्टि से पूरे तत्त्वों - वास्तु, कलात्मकता, प्राचीन मंदिरों की सुरक्षा, रख-रखाव, मरम्मत, जीर्णोद्धार हेतु कब | संस्कृति, भव्यता, पवित्रता तथा सुरक्षा और अखण्डता का किया ? कितने आश्चर्य की बात है कि आज दिनांक तक ध्यान रखते हुए। भोपाल,म.प्र. इस संसार में धर्म ही एक ऐसी वस्तु है जो पर-भव में भी जीव के साथ जाता है, इसके अतिरिक्त अन्य सब वस्तुएँ उसी पर्याय में नाता तोड़ देती हैं। जैसे बंधुगण तो श्मशान तक ही साथ देते हैं, धन घर में ही पड़ा रह जाता है, और शरीर चिता की भस्म बन जाता है। In this world of transmigration, it is dharma alone that accomplanies the soul when it passes into another body. All things other than that, forsake company in this mode (paryaya) itself. Relatives, for instance, accompany upto the crematorium (smasana), wealth remains behind at home and body is reduced to ashes. हे आत्मन्! जबकि शरीर अचेतन, अनित्य और अपवित्र है, किन्तु तू सचेतन, नित्य और पवित्र है, तब तुम दोनों में अभेद (एकता) कैसे हो सकता है ? O soul! this body is unconscious, ephemeral and unholy while you are conscious, eternal and pure. How then can you two be one and the same? जैसे रात्रि में दुर्भेद्य सघन अंधकार को एक मात्र सूर्य ही नष्ट कर सकता है, अन्य कोई नहीं, वैसे ही जिनेन्द्र भगवान् के वचन एवं जिनागम को छोड़कर अन्य कोई भी पाप को नष्ट करने में समर्थ नहीं है। Just as the impenetrable darkness of night can be dispelled only by the sun, and by none else, similary nothing other than the words of Lord Jina and Jina scriptures are capable of destroying sin. वीरदेशना 22 अगस्त 2006 जिनभाषित - Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिज्ञासा-सामाधान पं. रतनलाल बैनाड़ा प्रश्नकर्ता - नमन कुमार गोधा, जयपुर। पूर्वकोटि मात्र भवस्थिति तक संयम का परिपालन करते हुए जिज्ञासा - क्या ऋद्धिधारी मुनि एक साथ अनेक रूप जो थोड़ी सी आयु के शेष रह जाने पर क्षपणा में उद्यत धारण कर सकते हैं ? होकर अन्तिम समयवर्ती छद्मस्थ-क्षीणकषाय गुणस्थान के समाधान - जो कामरूपित्व नामक ऋद्धि के धारक अन्तिम समय को प्राप्त हुआ है, वह क्षपितकर्मांशक कहलाता मुनिराज होते हैं, वे एक साथ अनेक रूप बनाने की शक्ति को रखते हैं। कामरूपित्व ऋद्धि की परिभाषा शास्त्रों में इस जिज्ञासा - वर्तमान में पद्मावती देवी की बहुत सारी प्रकार कही गई हैं - मर्तियाँ निर्मित हई हैं. जिनमें पद्मावती देवी के मस्तक पर भ. पार्श्वनाथ विराजमान हैं। तो क्या वास्तव में पद्मावती देवी ने तिलोयपण्णत्ति 4/1032 में इस प्रकार कहा है - भ. पार्श्वनाथ को उपसर्ग केसमय अपने मस्तक पर उठाया था ? "जुगवं बहुरूवाणि जं विरयदि कामरूवरिद्धी सा।" अथवा ये मूर्तियाँ काल्पनिक हैं ? अर्थ - जो एक साथ अनेक रूपों की रचना करती है, समाधान - भ. पार्श्वनाथ का प्राचीनतम जीवन-चरित्रवह कामरूपित्व नाम की ऋद्धि है। वर्णन उत्तर-पुराण से प्राप्त होता है। उत्तरपुराण सर्ग-73, पृ. तत्वार्थवार्तिक 3/36 में इस प्रकार कहा है - 438 पर इस प्रकार कहा गया है - "तदनन्तर जिस वन में "युगपदनेकाकाररूपविकरणशक्तिः काय-रूपित्व- दीक्षा ली थी उसी वन में जाकर तीर्थंकर पार्श्वनाथ देवदारु मिति।" नामक एक बड़े वृक्ष के नीचे विराजमान हुए। --- वे सात अर्थ - एक साथ अनेक आकारवाले रूप बनाने की दिन का योग लेकर धर्मध्यान को बढाते हुए विराजमान थे। शक्ति को कामरूपित्व ऋद्धि कहते हैं। इसी समय कमठ का जीव संवर नाम का असुर आकाश जिज्ञासा - क्षपितकर्माशिक किसे कहते हैं ? मार्ग से जा रहा था कि अकस्मात् उसका विमान रुक गया। जब उसने विभंगावधि ज्ञान से इसका कारण देखा, तो उसे समाधान - श्रीधवला पु. 10, पृ. 268 पर क्षपित अपने पूर्व भव का सब बैर-बंधन स्पष्ट दिखने लगा। फिर कौशिक का स्वरूप इस प्रकार कहा है-"जो जीवो क्या था, क्रोधवश उसने महागर्जना की, और महावृष्टि करना सुहमनिगोदजीवेसु --- जहण्णा।" शुरू कर दिया। इस प्रकार यमराज के समान अतिशय दुष्ट ___ अर्थ - जो जीव पल्योपम के असंख्यातवें भाग से उस दुर्बुद्धि ने सात दिन तक लगातार भिन्न-भिन्न प्रकार के हीन कर्मस्थितिकाल (70 कोड़ाकोड़ि सा.) तक सूक्ष्म निगोद | महाउपसर्ग किये। यहाँ तक कि छोटे-मोटे पहाड़ तक लाकर जीवों में रहकर अपर्याप्त व पर्याप्त भवों को यथाक्रम से उनके समीप गिराए। (134-138)। अवधिज्ञान से यह उपसर्ग अधिक व अल्प ग्रहण करता रहा है । इस प्रकार से परिभ्रमण | जानकर धरणेन्द्र अपनी पत्नी के साथ पथ्वीतल से बाहर करता हुआ वहाँ से निकलकर क्रम से बादर पृथिवीकायिक | निकला. उस समय वह धरणेन्द्र, जिस पर रत्न चमक रहे पर्याप्त, पूर्वकोटि प्रमाण आयु वाले मनुष्य, दस हजार वर्ष हैं,ऐसे फणारूपी मण्डप से सुशोभित था। धरणेन्द्र ने भगवान की आयु वाले देव, बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, सूक्ष्मनिगोद को सब ओर से घेरकर अपने फणाओं के ऊपर उठा लिया जीव पर्याप्त और बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, इन जीवों में | और उसकी पत्नी वज्रमय छत्र तानकर खड़ी हो गई।( 139उत्पन्न होकर यथायोग्य सम्यक्त्व व मिथ्यात्व आदि को आदि का | 140)। प्राप्त होता रहा। इस प्रकार नाना भवों में परिभ्रमण करता उपर्युक्त आगमप्रकरण से यह स्पष्ट होता है कि भ. हुआ आठ संयमकांडकों का पालन कर, चार बार कषायों | पार्श्वनाथ को धरणेन्द्र ने अपने फणाओं के ऊपर उठाया को उपशमाकर और पल्योपम के असंख्यातवें भाग मात्र | था। उसकी पत्नी ने तो भगवान के ऊपर वज्रमय छत्र ताना संयमासंयमकाण्डक व सम्यक्त्वकाण्डकों का परिपालन कर | | था। भ. पार्श्वनाथ की जो प्राचीन मूर्तियाँ छठी शताब्दी से अन्त में फिर से भी जो पूर्वकोटि आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न | दशवीं शताब्दी तक की प्राप्त होती हैं, उनमें भी धरणेन्द्र की हुआ व वहाँ सबसे अल्पकाल में योनिनिष्क्रमणरूप जन्म से | पत्नी को छत्र तानते हए ही दिखाया गया है। इन प्रकरणों से आठ वर्ष का होकर संयम को प्राप्त हुआ। वहाँ कुछ कम | स्पष्ट होता है कि पद्मावती द्वारा (उत्तरपुराणकार ने धरणेन्द्र अगस्त 2006 जिनभाषित 23 Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की पत्नी के रूप में पद्मावती का नाम नहीं लिखा है) भ. | है। निष्प्रयोजन परपीड़ादायक कुछ भी बकवास करना, पार्श्वनाथ को सिर पर उठाने का प्रसंग आगमसम्मत नहीं है। | अनर्गल प्रलाप करना वाचनिक अधिकरण है। बिना प्रयोजन अतः ऐसी मूर्तियों को आगमानुसार कैसे माना जाये ? | चलते हुए, ठहरते हुए, बैठते हुए, सचित्त एवं अचित्त पत्र, जिज्ञासा - सम्यक्त्वाचरण तथा स्वरूपाचरण चारित्र पुष्प, फलों का छेदन-भेदन, कुटन, क्षेपण आदि करना, क्या पर्यायवाची हैं या इनमें कुछ अन्तर है ? अग्नि, विष, क्षार आदि पदार्थ देना आदि जो क्रिया की जाती समाधान - स्वरूपाचरण नामक चरित्र का वर्णन किसी | है, वह कायिक अधिकरण है। ये सर्व असमीक्ष्याधिकरण भी आचार्य ने नहीं किया। यह तो पंचाध्यायीकार पाण्डे | हैं, अर्थात् मन-वचन-काय की निष्प्रयोजन चेष्टा राजमल जी की कल्पना मात्र है। आचार्य कुन्दकुन्द ने | असमीक्ष्याधिकरण है। (5)। चारित्रपाहुड़ गाथा 5 से 10 तक जो सम्यक्त्वाचरणचारित्र का जिज्ञासा - चतुर्गति-निगोद किसे कहते हैं ? वर्णन किया है, उसका संबंध सम्यक् चारित्र से बिल्कुल समाधान - इस शब्द की परिभाषा श्री धवला पु. 14, नहीं है। आचार्य कुन्दकुन्द ने 25 दोषों से रहित और अष्ट | पृष्ठ 236 पर इस प्रकार कही है - "जे देव-णेरइय-तिरिक्खअंग से सहित सम्यग्दर्शन को धारण करना सम्यक्त्वाचरण- | मणुस्सेसुप्पजियूण पुणो णिगोदेसु पविसिय अच्छंति ते चारित्र कहा है। सम्यक्चारित्र को संयमाचरणचारित्र नाम से | | चदुगइणिगोदा भण्णंति।" अलग कहा है। इस संयमाचरण चारित्र को धारण करने । अर्थ - जो निगोदजीव देव, नारकी, तिर्यंच और मनुष्यों वाला ही मोक्षमार्गी कहलाता है। जिसके पास सम्यक्त्वाचरण | में उत्पन्न होकर पुनः निगोद जीवों में प्रविष्ट होते हैं, वे चारित्र नहीं है, उसके पास सम्यग्दर्शन भी नहीं है, ऐसा | चतुर्गतिनिगोद कहलाते हैं। समझना चाहिए। शास्त्रों में स्वरूपाचरण नामक चारित्र तो जिज्ञासा - अरहन्त अवस्था में अन्तरायकर्म के क्षय नहीं कहा, पर ऐसा जरूर कहा है - "रागद्वेषाभावलक्षणं | हो जाने पर क्षायिक भोग, क्षायिक उपभोग आदि क्या होते परमं यथाख्यातरूपं स्वरूपेचरणं निश्चयचारित्रं भणंति।इदानीं | हैं? तदभावेऽन्यच्चारित्रमाचरन्तु तपोधनाः।" (परमात्मप्रकाश गाथा समाधान - इस संबंध में आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने 2, 39 टीका)। सवार्थसिद्धि टीका में इस प्रकार कहा है - अर्थ - रागद्वेष का अभाव जिसका लक्षण है, ऐसे | 1. सम्पूर्ण उपभोगान्तरायकर्म के क्षय से केवली परमयथाख्यातरूप स्वरूप में आचरण निश्चयचारित्र है। भगवान् को जो सिंहासन, चामर, और छत्रत्रय आदिरूप वर्तमान में उसका अभाव होने से मुनिगण अन्य चारित्र का | विभूतियाँ प्राप्त होती हैं, उन्हें क्षायिक अनन्त उपभोग कहते आचरण करें। सम्यक्त्वाचरण तो चतुर्थ गुणस्थान में होता है, परन्तु 2. सम्पूर्ण भोगान्तरायकर्म के क्षय से जो पुष्पवृष्टि स्वरूप में आचरणरूप चारित्र तो ग्यारहवें गुणस्थान में कहा | आदि रूप अनन्त भोग सामग्री प्राप्त होती है, उसे क्षायिक गया है, जैसा ऊपर प्रमाण है। सम्यग्दर्शन उत्पन्न होने के अनन्त भोग कहते हैं। साथ-साथ उसके अनुकूल आचरण भी होने लगता है, वही 3. वीर्यान्तराय कर्म का सर्वथा क्षय हो जाने से केवली सम्यक्त्वाचरण कहा गया है। के जो अनन्त शक्ति प्रकट होती है, उसे क्षायिक अनन्तवीर्य जिज्ञासा - तत्वार्थसूत्र में अनर्थदण्डव्रतों के अतिचार | कहते हैं। में असमीक्ष्याधिकरण' से क्या तात्पर्य है ? 4. दानान्तराय कर्म के सम्पूर्ण विनाश होने से समाधान - श्री राजवार्तिककार ने 'असमीक्ष्याधिकरण' त्रिकालवर्ती अनन्त प्राणियों का अनुग्रह करनेवाला क्षायिक शब्द का अच्छा स्पष्टीकरण किया है, जो इस प्रकार है - | अभयदान प्रकट होता है। बिना प्रयोजन आधिक्य करना अधिकरण है। अधिकरण | 5.सम्पूर्ण लाभान्तराय कर्म के क्षय से कवलाहारक्रिया शब्द में 'अधि' का अर्थ 'अधिकरूप' में है और करण का | से रहित केवलियों के क्षायिक लाभ होता है, जिससे उनके अर्थ अपूर्व प्रादुर्भाव है, अपूर्व के उत्पादन में बिना प्रयोजन | शरीर को बल प्रदान करने में कारणभूत, दूसरे मनुष्यों को आधिक्यरूप से प्रवर्तन करना अधिकरण कहलाता है। (4)। असाधारण अर्थात् कभी न प्राप्त होने वाले परम शुभ और मन, वचन और काय के भेद से अधिकरण तीन | सूक्ष्म ऐसे अनन्त परमाणु प्रतिमय संबंध को प्राप्त होते हैं। प्रकार का है। निरर्थक काव्य आदि का चिंतन मानस अधिकरण 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी आगरा (उ.प्र.) 24 अगस्त 2006 जिनभाषित Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब डंक मत मारो श्रीपाल जैन 'दिवा' मैंने बिच्छुओं से बहुत कहाअब डंक मत मारो। तन में खाली जगह बची नहीं है। वे मानते ही नहीं कहते हैं - आपका तन डंक मारने की सुरक्षित जगह है। इसलिए मारते हैं डंक। डंक तो अच्छे तन में ही मारा जाता है . हम से भी ज्यादा जहरीले तन को डंक मारने से क्या लाभ ? फिर उनके हाथ में जूता है तुम्हारे पाँव में है क्योंकि तुम आदमी हो। हम सब बिच्छू तुम से ज्यादा समझदार हैं तुम जैसे पर ही हम जिन्दा हैं तुम मना मत करो हमें जीने दो क्योंकि - तुम आदमी हो। शाकाहार सदन एल.75, केशर कुंज हर्षवर्द्धन नगर, भोपाल राग-द्वेष से रहित हो जाने पर समता भाव आविर्भूत होता है और इस समता भाव के प्रगट हो जाने से उनके आत्मबोध तथा इससे उनके कर्मों का वियोग होता है। With the departure of attachment and aversion, equanimity arrives, with this equanimity comes the knowledge of the self and then follows freedom from karma. महापापी मनुष्य ऐसा कोई भी पुण्य कार्य नहीं कर सकता है जो उसके लिए आत्महित-कारक हो। A sinner is incapable of performing such auspicious karmas as are in the interest of his soul. वीरदेशना अगस्त 2006 जिनभाषित 25 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्षायोग : चातुर्मास - 2006 साहित्यमनीषी ज्ञानवारिधि दिगंबर जैनाचार्यप्रवर श्री ज्ञानसागरजी महाराज के द्वारा दीक्षित-शिक्षित जैन श्रमणपरंपरा के आदर्श संतशिरोमणि जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज तथा उनके द्वारा दीक्षित शिष्यों का वीर निर्वाण संवत (2532, विक्रम संवत् 2063, सन् 2006 का चातुर्मास विवरण। 1. संत शिरोमणि आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी | (5) डॉ. सुनील जैन, डिंडोरी (फोन : 07644 महाराजः- मुनिश्री समयसागर जी, मुनि श्री योगसागर 234149) (6) मनीष जैन, बुढार (फोन : 07652जी, मुनिश्री प्रसादसागर जी, मुनिश्री प्रशस्तसागर जी, 250110,251120) मुनिश्री पुराणसागर जी, मुनिश्री प्रबोधसागर जी, मुनिश्री कटनी-बिलासपुर रेलखंड पर अमरकंटक के लिए प्रणम्यसागर जी, मुनिश्री प्रभातसागर जी, मुनिश्री चंद्रसागर निकटवर्ती रेलवे स्टेशन पेंड्रा रोड 45 किलोमीटर दूर जी, मुनिश्री संभवसागर जी, मुनिश्री अभिनंदनसागर है। बिलासपुर से 101, डिंडोरी से 80, बुढार से 85 जी, मुनिश्री सुमतिसागर जी, मुनिश्री पद्मसागर जी , किलोमीटर दूर अमरकंटक है। दक्षिण भारत से आनेवाले मुनिश्री पूज्यसागर जी, मुनिश्री विमलसागर जी, मुनिश्री यात्री नागपुर-बिलासपुर पेंड्रा रोड, उत्तर भारत/दिल्ली अनंतसागर जी, मुनिश्री धर्मसागर जी, मुनिश्री शांतिसागर आदि की ओर से आनेवाले यात्री बीना-कटनी-पेंड्रा जी, मुनिश्री अरहसागर जी, मुनिश्री मल्लिसागर जी , रोड होकर अमरकंटक पहुँच सकते हैं। भोपाल से मुनिश्री सुव्रतसागर जी, मुनिश्री वीरसागर जी, मुनिश्री | अमरकंटक एक्सप्रेस सायं 4 बजे छूटती है। क्षीरसागर जी, मुनिश्री धीरसागर जी, मुनिश्री उपसमसागर | 2. मुनिश्री नियमसागर जी, मुनिश्री उत्तमसागर जी, मुनिश्री जी, मुनिश्री प्रसमसागर जी, मुनिश्री महासागर जी, मुनिश्री | वृषभसागर जी, मुनिश्री नेमिसागर जी। विराटसागर जी, मुनिश्री विशालसागर जी, मुनि श्री चातुर्मास स्थली : श्री बाहुबली दिगम्बर जैन मंदिर, शैलसागर जी, मुनिश्री अचलसागर जी, मुनिश्री बोरगाँव तह, चिक्कोडी, जि. बेलगाँव (कर्नाटक)। पुनीतसागर जी, मुनिश्री अविचलसागर जी, मुनि श्री संपर्क सूत्र : 08338 - 231519 विशल्यसागर जी, मुनिश्री धवलसागर जी, मुनिश्री | 3. मुनिश्री क्षमासागर जी, मुनिश्री भव्यसागर जी, मुनिश्री सौम्यसागर जी, मुनिश्री अनुभवसागर जी, मुनि श्री अभयसागर जी, मुनिश्री श्रेयांससागर जी।। दुर्लभसागर जी, मुनिश्री विनम्रसागर जी, मुनिश्री चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर, आरौन, अतुलसागर जी, मुनिश्री भावसागर जी, मुनिश्री | जि. गुना (म. प्र.)। संपर्क सूत्र : निधि दीदी : 258189। आनंदसागर जी, मुनिश्री अगम्यसागर जी और मुनिश्री | 4. उपाध्याय मुनि श्री गुप्तिसागर जी। सहजसागर जी। चातुर्मास स्थली : श्री दि. जैन मंदिर, जीटी करनाल चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन सर्वोदय तीर्थ, | रोड, गन्नौर, सोनीपत (हरियाणा) 131001 । संपर्क सूत्रः अमरकंटक - 484446, जिला शहडोल (मध्यप्रदेश) 01264-261961 फोन- कार्यालय - 07629 - 269450, 269550, चेतन मुनिश्री सुधासागर जी, क्षुल्लक श्री गंभीरसागर जी, एसटीडी - 269612, 269619, 2696201 संपर्क सूत्र : क्षुल्लक श्री धैर्यसागर जी। (1) कार्यकारी अध्यक्ष : प्रमोद जैन, अंकुर इंटरप्राइजेस, चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन उदासीन आश्रम, विनोबा नगर, बिलासपुर (छत्तीसगढ़), (फोन : 07752- अशोकनगर, जि. उदयपुर (राजस्थान)। संपर्क सूत्रः 22076 (नि), 220075 (का), फैक्स : 231422, मो. आश्रम : 0294-2411788, ब्र. फूलचंदजी लुहाड़िया : 98271-30283) (2) महामंत्री : पी.सी. जैन - 223688 09214-619617, झमकलालजी टाया : 2410857 (3) धर्मेश जैन, पेंड्रा (फोन : 07751-224308) | 6. मुनिश्री समतासागर जी, ऐलक श्रीनिश्चयसागर जी। (4)वेदचंद्र जैन (पत्रकार), पेंड्रा रोड (फोन : 220680) | चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, परवारपुरा, 26 अगस्त 2006 जिनभाषित Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इतवारिया, नागपुर(महाराष्ट्र)।संपर्क सूत्र : कार्यालय : | बेड़की हॉल (08338-262244) 0712-2767370, भीकमचंदजी : 2776156 15. मुनिश्री मार्दवसागर जी। 7. मुनि श्री स्वभावसागर जी, क्षु. श्री प्रशांतसागर जी। चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, गैरतगंज, चातुर्मास स्थली : श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, जि. रायसेन(म. प्र.)। सम्पर्क सूत्र : कमल सेक्रेटरी : शुजालपुर मंडी, जि. शाजापुर (म.प्र.)। संपर्क सूत्र : 07481-221146 नीरज : 94254-93393 राजेन्द्र कुमार जैन(अध्यक्ष), डॉ. के.के. जैन : 07360- | 16. मुनिश्री निर्णयसागर जी, मुनिश्री आगमसागरजी। 242508 चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, गणेशगंज, मुनिश्री सरलसागर जी। शाहपुर, जि. सागर(म.प्र.)। सम्पर्क सूत्र : 07582चातुर्मास स्थली : श्री दि. जैन सिद्धक्षेत्र, पवाजी(उ.प्र.)। 282316,282336 संपर्क सूत्र : 0517-2705016, ज्ञानचंदजी जैन (अध्यक्ष) 17. मुनिश्री प्रशांतसागर जी, मुनिश्री निर्वेगसागर जी। : 94155-90646। चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, गोटेगाँव, जि. 9. मुनिश्री प्रमाणसागर जी, क्षुल्लकश्री सम्यक्त्वसागर जी। जबलपुर(म.प्र.) ।सम्पर्क सूत्र : श्री धर्मचंद्रजी : 07794चातुर्मास स्थली : श्री दि. जैन मंदिर. 13 नं. हाता. 283167 तेरापंथी कोठी, मधुवन, सम्मेदशिखरजी, जि. गिरीडीह | 18. मनिश्री विनीतसागर जी, मनिश्री चंद्रप्रभसागर जी (झारखंड)। सम्पर्क सूत्र : नीलेश जैन : 094315- | चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन महावीर भवन, 05967, फोन : 232415,06558-23292 हिंगोली(महाराष्ट्र)। सम्पर्क सूत्र : अशोक कुमार 10. मुनिश्री आर्जवसागर जी, क्षुल्लक अर्पणसागरजी। आगरकर :02456-224335 चातुर्मास स्थली : श्री दि. जैन मंदिर, राँची(झारखंड)। | | 19. मुनिश्री प्रबुद्धसागर जी। संपर्क सूत्र : धर्मचंदजी रारा : 0651-2209286,94311- | चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर, सिवनी(म. 70479 प्र.) 480661। सम्पर्क सूत्र : यशोधर दिवाकर : 11. मुनिश्री पवित्रसागर जी, मुनिश्री प्रयोगसागरजी। 07692-220109 चातुर्मास स्थली : श्री. पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, | ' | 20. मुनिश्री पायसागर जी। बरगी, जि. जबलपुर (म.प्र.) । सम्पर्क सूत्र : 0761- | चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर दड़ना, जि. 2860536, संतोष जैन : 2860190 12. मुनि श्री चिन्मयसागर जी, क्षुल्लकश्री सुपार्श्वसागरजी। | मुण्ड (कर्नाटक)। | 21. मुनिश्री अक्षयसागर जी, मुनिश्री सुपार्श्वसागरजी। चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन समवसरण मंदिर | चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, शिहट्टी, जि. श्राविकाश्रम, कंचनबाग, इंदौर(म.प्र.)। संपर्क सूत्र : | माणकचंदजी बाकलीवाल : 0731-2537901, कोल्हापुर (महाराष्ट्र)। सम्पर्क सूत्र : 02322-260117 आजादजी जैन : 94253-21151, ट्रस्ट : 2524404, | 22. मुनिश्री पुण्यसागर जी महाराज, मुनिश्री नमिसागरजी। आश्रम : 2516770,2529945 चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर , 13. मुनिश्री पावनसागर जी। बेलगाँव(कर्नाटक)। चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, झाझी रामपरा. | 23. मुनिश्री अजितसागर जी, ऐलकश्री निर्भयसागरजी। जि. दौसा (राजस्थान)। सम्पर्क सूत्र : सुबोध जैन __ चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन नन्हे मंदिर, धगट (एडवोकेट) : 01420222327 चौराहा, असाटी वार्ड, दमोह (म.प्र.)470661 /सम्पर्क 14. मुनिश्री सुखसागर जी।। सूत्रः शरद पलन्दी : 07812-221440 चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, | 24. मुनिश्री पुष्पदंतसागर जी, मुनिश्री कुंथुसागर जी। हासन(कर्नाटक)। सम्पर्क सूत्र : श्री महावीर भैया, | चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, तारादेही, अगस्त 2006 जिनभाषित 27 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिला दमोह(म. प्र.)। सम्पर्क सूत्र : अजित चौधरी : | 234168 07603-286411, विक्रम चौधरी : 93006-20581 | 27. आर्यिकाश्री मृदुमति जी, आर्यिकाश्री निर्णयमति जी, 25. आर्यिकाश्री गुरुमति जी, आर्यिकाश्री उज्ज्वलमति जी, आर्यिकाश्री प्रसन्नमति जी। आर्यिकाश्री चिन्तनमति जी, आर्यिकाश्री सूत्रमति जी, चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, कटंगी, आर्यिकाश्री शीतलमति जी, आर्यिकाश्री सारमति जी, जिला - जबलपुर (म. प्र.)। सम्पर्क सूत्र : ब्र. संजीवजी आर्यिकाश्री साकारमति जी, आर्यिकाश्री सौम्यमति जी, : 07621-268758,268443 आर्यिकाश्री सूक्ष्ममति जी, आर्यिकाश्री शांतमति जी, 28. आर्यिकाश्री ऋजुमति जी, आर्यिकाश्री सरलमति जी, आर्यिकाश्री सुशांतमति जी, आर्यिकाश्री जागृतमति जी, आर्यिकाश्री शीलमति जी, आर्यिकाश्री असीममति जी. आर्यिकाश्री कर्तव्यमति जी, आर्यिकाश्री निष्काममति आर्यिकाश्री गौतममति जी, आर्यिकाश्री निर्माणमति जी. जी, आर्यिकाश्री विरतमति जी, आर्यिकाश्री तथामति आर्यिकाश्री मार्दवमति जी, आर्यिकाश्री मंगलमति जी, जी, आर्यिकाश्री चैत्यमति जी, आर्यिकाश्री पुनीतमति आर्यिकाश्री चारित्रमति जी, आर्यिकाश्री श्रद्धामति जी, जी, आर्यिकाश्री उपशममति जी, आर्यिकाश्री धुब्रमति आर्यिकाश्री उत्कर्षमति जी। जी, आर्यिकाश्री पारमति जी. आर्यिकाश्री आगममति चातुर्मास स्थली : श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, जी, आर्यिकाश्री श्रुतमति जी। विद्यानगर, तेंदूखेड़ा, जिला दमोह ( म. प्र.)। सम्पर्क चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, सुभाष चौक, सूत्र : अध्यक्ष = दीपक गोयल : 07603-204191, अशोकनगर (म.प्र.) 473331। सम्पर्क सूत्र : अध्यक्ष शैलेन्द्र नायकः 204074 -- रमेश चौधरी : 07543-222414, संयोजक - 29. आर्यिकाश्री तपोमति जी, आर्यिकाश्री सिद्धांतमति जी, बाबूलाल जैन : 222652, श्री राधेलालजी : 222537, आर्यिकाश्री नम्रमति जी, आर्यिकाश्री विनम्रमति जी, 222998 आर्यिकाश्री अतुलमति जी, आर्यिकाश्री पुराणमति जी, 26. आर्यिकाश्री दृढ़मति जी, आर्यिकाश्री पावनमति जी, आर्यिकाश्री अनुगममति जी, आर्यिकाश्री उचितमति आर्यिकाश्री साधनामति जी. आर्यिकाश्री विलक्षणमति जी, आर्यिकाश्री विनयमति जी, आर्यिकाश्री संगतमति जी, आर्यिकाश्री वैराग्यमति जी, आर्यिका श्री जी, आर्यिकाश्री लक्ष्यमति जी। अकलंकमति जी, आर्यिकाश्री निकलंकमति जी, चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन धर्मशाला, शारदा आर्यिकाश्री आगममति जी, आर्यिकाश्री स्वाध्यायमति विद्यापीठ के पास, संजय चौक, पथरिया, जिला दमोह जी, आर्यिकाश्री प्रशममति जी, आर्यिकाश्री मुदितमति जी, आर्यिकाश्री सहजमति जी, आर्यिकाश्री संयममति (म.प्र.) 470666 | सम्पर्क सूत्र : पदमचंद फट्टा जी, आर्यिकाश्री सत्यार्थमति जी, आर्यिकाश्री सिद्धमति (अध्यक्ष): 242262, नरेन्द्र जैन करवना वाले : जी, आर्यिकाश्री समुन्नतमति जी, आर्यिकाश्री शास्त्रमति 242279, ऋषभ सिंघईः 07601-242375, ताराचंद जी, आर्यिकाश्री तथ्यमति जी, आर्यिकाश्री वात्सल्यमति जैन : 242286 जी, आर्यिकाश्री पथ्यमति जी, आर्यिकाश्री संस्कारमति 30. आर्यिकाश्री गुणमति जी, आर्यिकाश्री ध्येयमति जी, जी, आर्यिकाश्री विजितमति जी, आर्यिकाश्री आप्तमति आर्यिकाश्री आत्ममति जी, आर्यिका श्री संयतमति जी। जी, आर्यिकाश्री स्वभावमति जी, आर्यिकाश्री धवलमति चातुर्मास स्थली : श्री दि. जैन मंदिर, शाहगढ़, जिला जी, आर्यिकाश्री समितिमति जी, आर्यिकाश्री मननमति सागर ( म. प्र.)। सम्पर्क सूत्र : दामोदर सेठ : जी। 07583%259744 चातुर्मास स्थली : श्री गणेश दि. जैन संस्कृत 31. आर्यिकाश्री प्रशांतमति जी, आर्यिकाश्री विनतमति जी, महाविद्यालय, वर्णी भवन, मोराजी, लक्ष्मीपुरा, सागर आर्यिकाश्री शैलमति जी, आर्यिकाश्री विशुद्धमति जी। (म.प्र.) 470002 । सम्पर्क सूत्र : 075582-268393, चातुर्मास स्थली : श्री दि. जैन मंदिर, कुरवाई, जिला 28 अगस्त 2006 जिनभाषित - Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदिशा ( म. प्र.)। सम्पर्क सूत्र : शिवकुमार गुडा : | आर्यिकाश्री अमूर्तमति जी, आर्यिकाश्री अखंडमति जी, 247252, धर्मशाला : 07593-247392 आर्यिकाश्री अनुपममति जी, आर्यिकाश्री अनर्घमति जी, 32. आर्यिकाश्री पूर्णमति जी, आर्यिकाश्री शुभ्रमति जी, आर्यिकाश्री अतिशयमति जी, आर्यिकाश्री अनुभवमति आर्यिकाश्री साधुमति जी, आर्यिकाश्री विशदमति जी, जी, आर्यिकाश्री आनंदमति जी, आर्यिकाश्री अधिगममति आर्यिकाश्री विपुलमति जी, आर्यिकाश्री मधुरमति जी, जी, आर्यिकाश्री अमन्दमति जी, आर्यिकाश्री अभेदमति आर्यिकाश्री कैवल्यमति जी, आर्यिकाश्री सतर्कमति जी। जी, आर्यिकाश्री श्वेतमति जी, आर्यिकाश्री उद्योतमति चातुर्मास स्थली : श्री दि. जैन खंडेलवाल भवन, बड़ा जी, आर्यिकाश्री स्वस्थमति जी, आर्यिकाश्री गंतव्यमति जैन मंदिर रोड, दुर्ग ( म. प्र.) 491001 । सम्पर्क सूत्र : जी, आर्यिकाश्री सवंरमति जी, आर्यिकाश्री पृथ्वीमति प्रदीप बाकलीवाल : 998271-61611, प्रकाशजी : जी, आर्यिकाश्री निर्मदमति जी, आर्यिकाश्री विनीतमति 94252-47683,0788-2323111 जी, आर्यिकाश्री मेरुमति जी, आर्यिकाश्री परमार्थमति 33. आर्यिकाश्री अनंतमति जी. आर्यिकाश्री विमलमति जी, जी, आर्यिकाश्री ध्यानमति जी, आर्यिकाश्री विदेहमति आर्यिकाश्री निर्मलमति जी, आर्यिकाश्री शुक्लमति जी, जी, आर्यिकाश्री अवायमति जी, आर्यिकाश्री अदरमति आर्यिकाश्री आलोकमति जी. आर्यिकाश्री संवेगमति जी. जी। आर्यिकाश्री निर्वेगमति जी, आर्यिकाश्री सविनयमति जी, चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, पिसनहारी आर्यिकाश्री समयमति जी, आर्यिकाश्री शोधमति जी, की मढिया, जबलपर (म.प्र.)।सम्पर्क सत्र : मढियाजी आर्यिकाश्री शाश्वतमति जी, आर्यिकाश्री सुशीलमति : 0761-2672827, गुरुकुल : 2672991, नंदीश्वर द्वीप जी, आर्यिकाश्री सुसिद्धमति जी, आर्यिकाश्री सुधारमति : 2370229, ब्राह्मी विद्या आश्रम : 3201159 जी, आर्यिकाश्री उदारमति जी, आर्यिकाश्री संतुष्टमति | 37. आर्यिकाश्री अपूर्वमति जी, आर्यिकाश्री अनुत्तरमति जी, जी, आर्यिकाश्री निकटमति जी, आर्यिकाश्री अमितमति आर्यिकाश्री अगाधमति जी। जी, आर्यिकाश्री अविकारमति जी माताजी। चातुर्मास स्थली : श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन युगल चातुर्मास स्थली : श्री दि. जैन धर्मशाला, थाने के सामने, मंदिर, मडावरा, तह.महरौनी, जि. ललितपुर (उ.प्र.)। कटनी ( म. प्र.)। सम्पर्क सूत्र : श्रीमती शिमला जैन सम्पर्क सूत्र : डॉ. राजेश सिंघई (महामंत्री): 05172(प्रतिनिधि) : 07622-404269 230238,230291, 230322 34. आर्यिकाश्री कुशलमति जी, आर्यिकाश्री धारणामति जी। | 38. आर्यिकाश्री उपशांतमति जी, आर्यिकाश्री ओंकारमति चातुर्मास स्थली : श्री दि. जैन बड़ा मंदिर, जैसी नगर, जी, आर्यिकाश्री परममति जी, आर्यिका चेतनमति जी जिला सागर (म.प्र.)4701251 सम्पर्क सूत्र : राजेन्द्रजी चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, दलपतपुर, पडरिया वाले (अध्यक्ष) : 07584, 07584-270268, | जिला सागर(म.प्र.)। 270292,270267,94256-56399 39. आर्यिकाश्री अकंपमति जी, आर्यिकाश्री अमूल्यमति 35. आर्यिकाश्री प्रभावनामति जी, आर्यिकाश्री भावनामति जी, आर्यिकाश्री आराध्यमति जी, आर्यिकाश्री जी, आर्यिकाश्री सदयमति जी, आर्यिकाश्री भक्तिमति अचिन्त्यमति जी, आर्यिकाश्री अलोल्यममति जी, जी। आर्यिकाश्री अनमोलमति जी, आर्यिकाश्री आज्ञामति चातुर्मास स्थली : श्री दि. जैन उदासीन आश्रम, ईसरी, जी, आर्यिकाश्री अचलतमति जी, आर्यिका श्री जिला गिरीडीह (झारखंड)। सम्पर्क सूत्र : आश्रम : अवगममति जी। 06558-233158 चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर, सुभाष 36. आर्यिकाश्री आदर्शमति जी, आर्यिकाश्री दुर्लभमति जी, वार्ड, गढ़ाकोटा जि. सागर(म.प्र.)। सम्पर्क सूत्र : अशोक आर्यिकाश्री अंतरमति जी, आर्यिकाश्री अनुनयमति जी, जैन : 07584-258846 आर्यिकाश्री अनुग्रहमति जी, आर्यिकाश्री अक्षयमति जी, 40. आर्यिकाश्री सुनयमति जी। अगस्त 2006 जिनभाषित 29 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र सोनागिरि, पंचबालयति मंदिर : 0731-2570689, ब्र. जिनेश मलैया भट्टारक कोठी, जि. दतिया (म.प्र.)। सम्पर्क सूत्र : | :094253-51764 07522-262222 | 46. ऐलकश्री संपूर्णसागर जी। 41. आर्यिकाश्री सत्यमति जी, आर्यिकाश्री सकलमति। । चातुर्मास स्थली : श्री शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन आश्रम, सागवाड़ा, धामपुर, जि. बिजनौर (उ.प्र.)। सम्पर्क सूत्र : अनिल डूंगरपुर (राजस्थान)। सम्पर्क सूत्र : जया कोठारी : जैन (अध्यक्ष) : 9897743075, सुभाष जैन : 9897002966-252700 20342 42. ऐलकश्री दयासागर जी। 47. ऐलकश्री नम्रसागर जी। चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन महावीर विहार, | चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, डेरा स्टेशन रोड, गंजबासौदा, जि. विदिशा (म.प्र.)। सम्पर्क पहाड़ी, पुराना पन्ना नाका, छतरपुर (म.प्र.)। सम्पर्क सूत्रः महावीर विहार : 07594-220464, सतीश जैन : सूत्र : 07682-244915, संजीव बांसल : 248942, 221515 98267-61313 43. ऐलकश्री निशंकसागर जी। 48. क्षुल्लकश्री ध्यानसागर जी। चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, जवरीबाग, | चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन मंदिर, उस्मानपुरा, नसिया, इंदौर (म.प्र.)। सम्पर्क सूत्र : महेन्द्र जैन अहमदाबाद(गुजरात)। सम्पर्क सूत्र : कार्यालय : 079(संयोजक): 98270-97163, राकेश जैन (सह 27559084 संयोजक) : 9826213535, कार्यालयः0731-2460989, | 49. क्षुल्लकश्री पूर्णसागर जी। 2466274 चातुर्मास स्थली : श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, 44. ऐलकश्री उदारसागर जी। मझौली, जि. जबलपुर(म.प्र.)। सम्पर्क सूत्र : प्रसन्न चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र, फलहोड़ी, | जैन : 07624-244845, नेमचंदजी : 244475 बड़ागाँव (धसान), जि. टीकमगढ़ (म.प्र.)। सम्पर्क | 50. क्षुल्लकश्री नयसागर जी। सूत्र : हुकुमचंद हटैया : 07583-257037 चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन पंचायती बड़ा मंदिर, 45. ऐलकश्री सिद्धांतसागर जी। गाँधी रोड, झाँसी (उ. प्र.)। सम्पर्क सूत्र : संतोष कुमार चातुर्मास स्थली : श्री दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ मंदिर, जैन : 94159-43290, अजितकुमार जैन : 94150ग्रेटर विजयनगर, श्री दिगम्बर जैन पञ्चबालयति मंदिर, 04976 बॉम्बे हॉस्पिटल के पास, इन्दौर (म.प्र.)। सम्पर्क सूत्र : आचार्यश्री से दीक्षित - 79 मुनिश्री, 165 आर्यिकाएँ, प्रियदर्शनी जैन (अध्यक्ष) : 98260-80490, 8 ऐलकश्री, 5 क्षुल्लकजी = 257 कुल। जो सज्जन अपने गुणों के द्वारा तीनों लोकों को आनंदित किया करते हैं, उनको देखकर स्वभाव से दुष्ट दुर्जन मनुष्य क्रोध करते हैं। The virtuous ones who, through their virtues add to the bliss of three lokas, rouse anger among those who, by nature, are wicked. क्रोध अनेक पापों का जनक है; उसका परित्याग करके जीवदया में प्रवृत्त होना चाहिए। Anger sires several sins. It must be renounced and kindness towards all the living beings adopted. वीरदेशना 30 अगस्त 2006 जिनभाषित Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाचार प्रसिद्ध शाकाहार विशेषज्ञ डा. चिरोंजी लाल बगड़ा | स्थानों में धार्मिक शिक्षण शिविर सम्पन्न हुए। इन धार्मिक अहिंसारत्न उपाधि से अलंकृत शिविरों में तत्त्वार्थ सूत्र, द्रव्यसंग्रह, रत्नकरण्डक श्रावकाचार, कोलकाता। दिगम्बर जैन समाज के विशिष्ट कार्यकर्ता इष्टोपदेश, भक्तामर स्तोत्र, सामायिक पाठ समयसार, छहढाला, शाकाहार, अहिंसा एवं जीवदया क्षेत्र के सुप्रसिद्ध विशेषज्ञ | जैन धर्म शिक्षा भाग-1 व 2,जिज्ञासा समाधान एवं करणानुयोग डा. चिरोंजीलाल बगडा को भगवान पार्श्वनाथ निर्वाण भाग-1 का अध्ययन कराया गया। महोत्सव समिति के तत्वाधान में उनके द्वारा किए गये ___योग एवं वास्तु का प्रशिक्षण पं. फूलचन्द जैन योगाचार्य, अभूतपूर्व सेवाकार्यों हेतु विशाल जनसमुदाय के समक्ष श्री छतरपुर एवं पं. भरत जैनदर्शनाचार्य, रजवांस द्वारा दिया पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन उपवन मंदिर बेलगछिया में आयोजित | गया। शिविरों में लगभग 8000 शिविरार्थियों ने लाभ लिया। एक विशेष समारोह में 'अहिंसारत्न' उपाधि से सम्मानित पुलक गोयल, सांगानेर किया गया। देश विदेश में धर्म प्रचार गौरव के क्षण श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर के श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर के | अध्यापक श्री सौरभ कुमार जैन दशलक्षण पर्व के शुभ चार शिक्षक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली अवसर पर धर्म प्रचारार्थ कनाडा जा रहे हैं तथा श्री राकेश द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा में अपनी अद्वितीय कमार जैन कबैत जा रहे हैं। संस्थान परिवार ने प्रतिवर्ष की प्रतिभा का परिचय देते हए प्रथम प्रयास में ही चयनित हो भाँति इस वर्ष भी लगभग 125 स्थानों पर विद्वान भेजने का गए हैं। श्री सौरभ कुमार जैन, श्री आशीष कमार जैन, श्री | निर्णय किया है। अनंत बल्ले ने जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन, बौद्ध दर्शन एवं गांधी दर्शन से तथा श्री पुलक गोयल ने प्राकृत विषय से यह पात्रता सूचना प्राप्त की। संस्थान के 9 स्नातक छात्रों ने शिक्षा शास्त्री में श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान के एक प्रवेश प्राप्त किया है। विनीत जैन भोपाल से, राकेश जैन एवं | विद्वान् स्वामी कुमार विरचित कार्तिकेयानुप्रेक्षा का एवं उस प्रशांत जैन रायपुर से, उमेश जैन, राजेश जैन, आशीष जैन पर लिखी गयी आचार्य शुभचन्द्र जी का संस्कृत टीका का एवं आलोक जैन श्रृंगेरी से तथा विनोद बेलोकर एवं प्रतीष | शब्दशः हिन्दी अनुवाद करना चाहते हैं। यदि इस कार्य को काले पना से शिक्षा शास्त्री का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। पहले किसी के द्वारा सम्पन्न किया गया हो अथवा वर्तमान शैक्षणिक क्षेत्र में बढ़ते हुए संस्थान के स्नातक छात्रों की / में इस पर कोई कार्य कर रहे हो कृपया निम्नलिखित पते पर प्रगति को देखकर संस्थान परिवार गौरवान्वित है। सूचित कर अनुगृहीत करें। अधिष्ठाता श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान ग्रीष्म कालीन शिविर में महती धर्म प्रभावना वीरोदय नगर, सांगानेर, जयपुर (राज.) श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर की फोन. 0141-2730552 ओर से इस वर्ष भी ग्रीष्मकालीन अवकाश में प्राचार्य डॉ. शीतलचन्द जैन के सफल निर्देशन तथा पं. रतनलाल बैनाड़ा प्राकृत में प्रथम लघु शोध प्रबन्ध के मार्गदर्शन में बारामती, कोपरगांव, बेलगांव, किशनगढ़, दि. जैन श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर में अध्यापन उदयपुर, बीना, फलटण, लोहारिया, पूना, हुपरी, रेवाड़ी, | करा रहे पं. पुलक गोयल प्राकृताचार्य ने प्राकृत भाषा में कोथली, करकंब, धूलिया, पट्टन कोडोली, औरंगाबाद, | लघुशोध प्रबन्ध लिखकर प्राकृत को पुनः जीवन्त करने का करमाला, पैठण, पंढरपुर, कुर्ल्डवाडी, दहिगांव, भिगवण, | प्रयास किया है। “पाइय गंथेसु गुणट्ठाणं : अज्झयणं' शीर्षक सतारा, कन्नड़, मोडनिंब, हारूली, वार्शी एवं जयपुर के विभिन्न | से यह लघशोध प्रबन्ध श्री दिगम्बर जैन आचार्य महाविद्यालय अगस्त 2006 जिनभाषित 31 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के प्राचार्य डॉ. श्री शीतलचन्द जैन के निर्देशन में लिखा गया | दिनांक 30.07.2006 को किया। इस संस्था का प्रयास है कि है। प्राकृत भाषा में निबद्ध 85 पृष्ठीय इस रचना को विद्वत् | सम्पूर्ण भारतवर्ष की प्रमुख प्रकाशकों की पुस्तकें शास्त्र समाज की प्रशंसा प्राप्त हो रही है। आदि यहां के निवासियों को सहजता से मिल सकें। सौरभ कुमार जैन "जैनदर्शनाचार्य" निर्मल कासलीवाल मानद मंत्री आज ही मंगायें स्वतंत्रता संग्राम में जैन (प्रथम खण्ड) कुंडलपुर के बड़े बाबा नए मंदिर में ही रहेंगे। द्वितीय संस्करण पुरातत्त्व विभाग की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने विशेषताएँ - पूर्णतः परिवर्तित और परिवर्धित 20 जैन शहीदों, खारिज की उ.प्र., छत्तीसगढ़ व राजस्थान के 750 जैन जेलयात्रियों, प्रसिद्ध जैन तीर्थ कुंडलपुर में बड़े बाबा मंदिर निर्माण संविधान सभा के छह जैन सदस्यों आदि का परिचय, 325 के संबंध में जबलपुर हाईकोर्ट द्वारा 20 मई को पारित फोटोग्राफ व 50 रेखाचित्र, आर्ट पेपर पर छपे 528 पृष्ठ, अंतरिम आदेश के विरुद्ध पुरातत्त्व विभाग ने सुप्रीम कोर्ट आकर्षक मुद्रण, सीमित प्रतियाँ दिल्ली में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। 21 जुलाई प्रकाशक - सर्वोदय फाउण्डेशन, खतौली। मूल्य (लागत को इस याचिका की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति मात्र) रू. 300/- (पुनः प्रकाशानार्थ) एच.के. सीमा एवं ए.के. नायर की खंडपीठ ने इसे खारिज प्राप्ति स्थान - (1) डॉ. ज्योति जैन, मंत्री-सर्वोदय फाउण्डेशन, | कर दिया है। इसी के साथ कुंडलपुर पहाड़ी के नए मंदिर में रेलवे रोड, खतौली-251201 (जिला-मजफ्फरनगर) उ.प्र.. | विराजमान बड़ेबाबा के मंदिर निर्माण का कार्य हाईकोर्ट के फोन - 01369 -27339, 941268256 । (2) श्री दि. जैन | निदेशानुसार पूरा होने का रास्ता भी र | निर्देशानुसार पूरा होने का रास्ता भी साफ हो गया। पंच बालपति मन्दिर, बाम्बे हॉस्पिटल के पास, ए.बी.रोड, इन्दौर (म.प्र.) (3) ऋषभदेव ग्रन्थमाला, श्री दि. जैन अतिशय तृतीय स्थापना दिवस पर शांति विधान एवं क्षेत्र मन्दिर संघीजी, पो. सांगानेर, जयपुर(राज.)0141 विद्वत्संगोष्ठी 2730390 (4) श्री दि. जैन लालमन्दिर, चाँदनी चौक, दिल्ली जबलपुर 20 जुलाई 06 साहित्याचार्य डॉ. पं. पन्नालाल 011-23253638 (5) जैन विद्या संस्थान, श्री महावीर जी जैन संस्थान के तृतीय स्थापना दिवस पर मुनि श्री प्रवचन (राज.)। सागर सभागृह संजीवनी नगर जबलपुर में प्रातः बेला में सांगानेर की भगवान ऋषभदेव ग्रंथमाला का वृहत् नवग्रह शांति विधान का आयोजन विद्वान् ब्र. प्रदीप दिल्ली के वीर सेवा मन्दिर में स्थापित हुआ विक्रय केन्द्र | शास्त्री “पीयूष" के आचार्यत्व में संपन्न हुआ। संतशिरोमणि आचार्य विद्यासागरजी महाराज के द्वितीय सत्र में दोपहर 2 बजे से विद्वत् संगोष्ठी का आशीर्वाद एवं मुनि पुंगव श्री सुधासागरजी महाराज की पावन | आयोजन किया गया। जिसमें विभिन्न नगरों से आमंत्रित प्रेरणा से दिल्ली क्षेत्र के धर्मार्थी एवं साहित्यप्रेमी महानुभावों | विद्वानों ने अपने उद्बोधन प्रस्तुत किये। कार्यक्रम की की आवश्यकताओं की सहजता से पूर्ति हेतु भगवान | अध्यक्षता पं. भागचंद्र जैन “भागेन्दु" जी ने की। ऋषभदेव ग्रन्थमाला, सांगानेर ने वीर सेवा मन्दिर, दरियागंज, दिल्ली में एक एक्सटेंशन सेल काउंटर का उद्घाटन रविवार, सुरेश जैन सरल जो अधम मनुष्य अभिमान में चूर होकर श्रेष्ठ विचार नहीं करता, ऐसे मनुष्य का विद्वान् जन दूर से ही परित्याग कर दिया करते हैं। The vile one who, blinded by his pride, does not engage in the sublime contemplation, is abandoned altogether by the wise. वीरदेशना 32 अगस्त 2006 जिनभाषित Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुमति स्तवन (द्रुतविलम्बित छन्द) 1 गगन-सा तव जीवन स्वच्छ है। दुरित बादल ना लवलेश है ॥ परम भास्कर तो द्युतिमान है। सुमतिनाथ सु नाम यथार्थ है ॥ 2 परम ज्योति सदा जयवन्त ये । मुकुर-सा झलके सब वस्तु ये ॥ यह अकम्प शिखा अविनाशनी । अघ - विनाशक शान्ति प्रदायनी ॥ 3 रसभरी तव दिव्य-ध्वनी खिरी। अमृत की घनघोर घटा झरी ॥ वह तृषा सब की हरती रही। सहज ही सब तन्मय हो रही ॥ 4 युगल पादसरोज प्रणाम है । मुकुट-बद्ध सुरासुर गा रहे ॥ जगत्रयी सुख वैभव पाद है। जलज सा जल से तुम भिन्न है ॥ 5 सतत वन्दन उत्तम भाव से । सुमति हो मम बुद्धि विशुद्ध से ॥ जगत-तारक कर्म निवारिये । भ्रमण में बहु काल बिता दिये ॥ 203-203-20-203 ● मुनि श्री योगसागर जी श्री पद्मप्रभ स्तवन (वसन्ततिलका छन्द) 1 ज्यों पद्मराग मणि-सा गाए चारू । सौंदर्यपूर्ण नवजीवन को निहारूं ॥ निर्ग्रन्थ रूप शिवमार्ग दिखा रहा है। संसार-तारक जहाज यही रहा है ॥ 2 ज्यों पद्मपंकज सरोवर में खिले हैं। आमोद से भ्रमर के दल आ रहे हैं । त्यों पद्म तीर्थंकर धर्म प्रभावकारी । भव्यात्म के दल समूह प्रसन्नकारी ॥ 3 त्रैलोक्य पूज्य परमोत्तम ज्ञानसूर्य । है निर्विकल्प विमलेश अनन्तवीर्य ॥ आल्हाद अक्षय अनन्त अपूर्व शान्ति । है कोटि चन्द्र रवि से द्युतिमान कान्ति ॥ 4 मैं पंच पाप करके बहु दुःख पाया । अज्ञान से स्वयम् संसृति में गिराया ॥ सौभाग्य का उदय है तब दर्श पाया। मेरा अनादि अघ का अब अन्त आया ॥ 5 तारे भले विपुल हो तम ना मिटायें। त्यों धर्म भी विविध है शिव ना दिलाये ॥ ये वीतराग धर्म यथार्थता है । ये स्वर्ग मोक्ष भवदुःख निवारता है ॥ प्रस्तुति - रतनचन्द्र जैन Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रजि नं. UPHIN/2006/16750 श्री सम्मेद शिखरजी में पूज्य मुनिश्री प्रमाणसागर जी महाराज के सान्निध्य में श्रावक संस्कार शिविर का आयोजन संतशिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य युवा मनि श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज के ससंग सान्निध्य में तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर स्थित श्री दिगम्बर जैन तेरहपंथी कोठी में ब्रह्मचारी श्री अन्नू भैया एवं ब्र.श्री रोहित भैया के निर्देशन में आगामी पर्वराज पर्युषण के अवसर पर दि. 28 अगस्त से 6 सितम्बर 2006 तक बृहद् श्रावक संस्कार शिविर का आयोजन किया जा रहा है। पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज के सान्निध्य में आयोजित इस श्रावक संस्कार शिविर में प्रातः 4.00 बजे से रात्रि 9.30 बजे पर्यन्त संयम एवं साधना के साथ श्रावकों को संस्कारों का शिक्षण एवं ज्ञान कराया जायेगा। शिविर के बहद दिनव्यापी कार्यक्रम इस प्रकार हैं - प्रातः 4 बजे से 9 बजे तक - जागरण, प्रार्थना, ध्यान, सुप्रभात वाणी एवं सामूहिक पूजन अभिषेक। प्रातः 10 बजे आहार चर्या। 11 बजे विश्राम, 12 बजे से सामायिक / दोपहर 1 बजे पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज द्वारा शिक्षण एवं 2.30 बजे से मुनिश्री का मंगल प्रवचन / अपराह्न 4 बजे अल्पाहार / संध्या 5 बजे से प्रतिक्रमण सामायिक / संध्या 6 बजे से आचार्य भक्ति एवं शंका समाधान। 7 बजे से सामूहिक आरती एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम। शिविरार्थियों के लिए शुद्ध भोजन, धोती दुपट्टा तथा पुस्तक आदि की व्यवस्था समिति की ओर से की गई है। समस्त श्रद्धालु धर्मप्रेमी भाई बहनों से निवेदन है कि तीर्थराज के दर्शन-वन्दन के साथ-साथ पूज्य मुनिश्री के सान्निध्य में आयोजित इस मणिकांचन योग का लाभ उठाकर अपने आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त करें। इच्छुक महानुभाव शीघ्र ही सम्पर्क कर अपना स्थान आरक्षण करवा लेवें। सम्पर्क करें : महामंत्री - छीतरमल पाटनी - 9431140416 वर्षायोग कार्यालय - 9431532385 एवं 9431973918 एवं अजीत पाटनी कोलकाता - 9339756995 मुनि श्री 108 प्रमाणसागर जी महाराज वर्षायोग समिति। पारसनाथ स्टेशन पर राजधानी एक्सप्रेस का ठहराव समस्त समाज को जानकर प्रसन्नता होगी कि कोलकाता दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस दि. 1 अगस्त 2006 से पारसनाथ स्टेशन पर रुकना प्रारम्भ हो रही है। पूर्व रेलवे की विज्ञप्ति के अनुसार नई दिल्ली से हाबड़ा 2302 डा. राजधानी एक्सप्रेस प्रातः 6-19 पर पारसनाथ रुकेगी तथा 2301अप हावड़ा से नई दिल्ली जानेवाली राजधानी एक्सप्रेस रात्रि 8-23 बजे पारसनाथ रुकेगी। दोनों गाड़ियों का 2-2 मिनट का ठहराव यहाँ दिया गया है। तथा यह व्यवस्था 1 अगस्त से 6 महीनों तक अभी प्रयोग के तौर पर प्रारम्भ की गई है। यात्रियों की उपलब्धता रहने पर ठहराव स्थाई रूप से हो सकता है। पारसनाथ (शिखरजी) आने जाने वाले यात्रियों से अनुरोध है कि हावड़ा-दिल्ली एवं दिल्ली-हावड़ा राजधानी एक्सप्रेस की सुविधा का अधिक से अधिक लाभ उठायें। अजीत पाटनी स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, 210, जोन-1, एम.पी. नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं 1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित / संपादक : रतनचन्द जैन।