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के अध्यक्ष श्री संतोष सिंघई, चौधरी रूपचंद जैन एवं महामंत्री | यह किसी समाजविशेष की मनमानी किये जाने का उदाहरण सत्यपाल जैन आदि पदाधिकारियों की सहनशीलता, कर्मठता | नहीं, अपितु पुरातत्त्व विभाग द्वारा अकारण हस्तक्षेप का का, जिन्होंने गुरु की आज्ञा मानने और पालन करने में कोई | उदाहरण है, जीवित मंदिरों को मृत स्मारकों में बदलने की कसर नहीं छोड़ी। यदि इस पूरे कार्यक्रम को सफल बनाने | साजिश है, जीवन को मुख्य धारा से काटकर, अलग-थलग का श्रेय आचार्य श्री के बाद किसी एक व्यक्ति को दिया जा | बन्द चारदीवारी में रखने के प्रयास हैं। हमारी धरोहर, हमारी सकता है तो वह है निर्माण समिति के प्रभारी वीरेश सेठ। विरासत, हमारे जीवन का अंग होना चाहिए, कोई अलग सा स्तुत्य है उसकी कर्मठता, अभिनंदनीय है उसका बड़े बाबा | हिस्सा नहीं। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण हमारे गर्व का विषय और छोटे बाबा के प्रति समर्पण, जिस प्रकार क
होना चाहिए, दर्द का नहीं। प्राचीन मंदिरों.स्मारकों में जीवन ऑपरेशन मोक्ष को उन्होंने अंजाम दिया, बिना थके, बिना | की हलचल हो, उपयोगिता हो, वही उनका सबसे बड़ा रुके, न दिन देखा-न रात, इस योजना को सफल बनाने में | संरक्षण व रक्षण है। पुरातत्त्व विभाग की भावना स्पष्ट रूप योगदान दे सकने वाले हर व्यक्ति का सहयोग लेने में जिस | से सकारात्मक तथा राष्ट्र व समाज के हित में होनी चाहिए। प्रकार बुद्धिमत्तापूर्वक और किसी भी समय प्रत्येक अप्रिय | यह खेद का ही विषय है कि पुरातत्त्व विभाग ने अपनी स्थिति को टालने में समन्वयक का जो कार्य उन्होंने किया, | याचिका में बच्ची से बलात्कार का जिक्र किया। पुरातत्त्व उसे शब्दों में नहीं बाँधा जा सकता है। छोटे बाबा का यह | विभाग के दायित्व क्या अब बदल गये हैं? यह चिंता का बड़ा-सा भक्त निश्चित रूप से ऐरावत हाथी जैसा | विषय है जिस पर सभी जागरूक लोगों को ध्यान देना तीक्ष्णबुद्धि-सम्पन्न एवं गुणयुक्त सिद्ध हुआ। सम्पूर्ण जैन | चाहिए। समाज को उन पर गौरव है। इस पूरे यज्ञ में अनेक दातारों ने | कुण्डलपुर की मंदिर व मूर्तियाँ संरक्षित की श्रेणी में मुक्त हस्त से आहुति दी। जैसा सेवा दल के युवकों ने | नहीं अपना श्रमदान दिया। अनेक विशेषज्ञों ने बिना मूल्य लिए 16 तारीख को केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग ने न्यायालय अपने सेवाएँ दीं। आई. आई. टी. इंजीनियरों का योगदान | | में याचिका दायर की और उस पर 16 तारीख को 3 सुनवाइयाँ सराहनीय था, जिसके कारण ही सभी जिनबिम्बों को निकाला | हुईं। उसको आगे बढ़ाते हुए 17 जनवरी को पुनः सुनवाई जा सका। किन्तु यह मानना होगा इस सम्पूर्ण प्रसंग में, इस | हुई और पुरातत्त्व विभाग की याचिका पर उच्च न्यायालय ने प्रदेश के मुख्यमंत्री की विवेकशीलता, संवेदनशीलता व | सायं 4.30 - 6.00 बजे यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दूरदर्शिता के कारण ही अप्रिय स्थितियों को टाला जा सका।| दिया, उसके पश्चात् 6 मार्च को सुनवाई हुई और फिर 24 शायद बड़े बाबा का काज उन्हीं के कार्यकाल में होना | अप्रैल को। भारतीय पुरातत्त्व विभाग का दावा था कि भगवान लिखा था। शासन के रुख के कारण ही वे प्रशासनिक | आदिनाथ की प्रतिमा प्राचीन सम्पदा है और बड़े बाबा का निर्णय नहीं लिये जा सके, जिसके कारण सैकडों जाने जा | मंदिर संरक्षित स्मारक। सकती थीं।
भारतीय पुरातत्त्व विभाग का दावा 1904 के प्राचीन बड़े बाबा मूर्ति स्थानांतरण के परिणाम
स्मारक संरक्षण अधिनियम के तहत दिनांक 16.07.1913 कतिपय बुद्धिमान् व्यक्तियों एवं पुरातत्त्व विभाग ने | तथा 13.11.1914 को मध्य प्रांत के मुख्य आयुक्त के बार-बार चिंता जतायी कि इस एक उदाहरण से सभी सम्प्रदाय अतिरिक्त सचिव द्वारा जारी दो अधिसूचनाओं पर आधारित अपने-अपने धार्मिक स्थलों के साथ मनमानी करने की छूट है, जिसको आधार बनाकर विभाग, प्राचीन एवं ऐतिहासिक चाहेंगे। पत्रकारों ने भी बार-बार यह चिंता जतायी। किन्तु | स्मारक, पुरातात्त्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 उदाहरण गलत दिये जा रहे हैं। प्रथमतः न यह संरक्षित | (1958 एक्ट) के प्रावधानों को कुंडलपुर के मंदिरों, मूर्तियों स्मारक है, न ही यहाँ पुरातत्त्व विभाग का कभी कोई आधिपत्य | के संदर्भ में लागू करना चाहता है। किन्तु वास्तविकता यह रहा, न प्रबंधन । इसकी तुलना केवल तिरुपति बालाजी, या | है कि 1958 एक्ट के प्रावधान कुंडलपुर पर लागू नहीं है, वैष्णो देवी, बांदकपुर आदि मंदिरों के ट्रस्ट से की जा सकती | इसके निम्न कारण हैं - है, ताजमहल व लाल किले से नहीं। रायसेन की मजार व । 1. भारत के समस्त प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्मारक अजमेर शरीफ से की जा सकती है, मस्जिद मोठ' से नहीं। | दो श्रेणियों में वर्गीकृत हैं। संघ सूची क्रमांक 67 के अंतर्गत
20 अगस्त 2006 जिनभाषित
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