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संसद द्वारा बनाये गये किसी कानून के द्वारा अथवा | के स्मारकों पर लागू करना गैरकानूनी और गैरसंवैधानिक अनुवर्तीसूची क्रमांक 40 के अंतर्गत घोषित राष्ट्रीय महत्त्व है, क्योंकि ऐसा करने से 1964 अधिनियम निष्क्रिय एवं के स्मारक तथा राज्य सूची क्रमांक 12 के अंतर्गत सम्मिलित | प्रभावहीन होगा। वे स्मारक जो राष्ट्रीय महत्त्व के नहीं हैं। 1958 एक्ट की 8. इन संदर्भो में 200-300 वर्षों से श्री देव पार्श्वनाथ धारा 2(1) केवल वे स्मारक संरक्षित हैं, जिन्हें इस कानून | जी मंदिर समिति, कुण्डलपुर 16 जुलाई 1913 की अधिसूचना के द्वारा राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया हो या जिन्हें के पूर्व मंदिरों का प्रबंधन, रखरखाव एवं मरम्मत तथा प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्मारक अधिनियम 1951, जो केवल जीर्णोद्धार करवाती रही और उसी के पास कुण्डलपुर के राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारकों की घोषणा के लिए बनाया गया, | मंदिरों का स्वामित्व एवं कब्जा रहा। के अंतर्गत राष्ट्रीय महत्त्व के घोषित किये गये हों, साथ ही 9.16 जुलाई 1913 एवं 13.11.1914 की अधिसूचना 1951 एक्ट में वही स्मारक राष्ट्रीय स्मारक घोषित किये गये | मध्यप्रांत मुख्य आयुक्त के अतिरिक्त सचिव द्वारा जारी की जो 1904 के अंतर्गत संरक्षित स्मारक घोषित किये गये थे। | गई थी, न कि केन्द्र सरकार के द्वारा, स्वतंत्रता पूर्व केन्द्र
2. प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्त्विक धरोहर व अवशेष । सरकार का अर्थ गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया की कार्यकारी एक्ट 1964, मध्यप्रदेश की धारा 38 के अनुसार प्राचीन समिति अर्थात् गवर्नर इन काउंसिल थी। केन्द्र सरकार ने स्मारक अधिनियम 1904 के प्रावधान मध्यप्रदेश राज्य के | कभी भी 1904 अथवा 1958 के तहत कुण्डलपुर के मंदिरों प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्मारकों एवं पुरातात्त्विक अवशेषों | को राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक घोषित नहीं किया, क्योंकि के संदर्भ में लागू नहीं हैं, केवल उन विषयों को छोड़कर | कुण्डलपुर के मंदिर धराहर जरूर हैं, स्मारक नहीं हैं, वे जिन पर के प्रावधान पहले लागू हो चुके हैं।
पूजा के जीवन्त स्थल हैं। कुण्डलपुर के मंदिर प्रथमतः 3. 1904 अधिनियम के तहत जारी सभी संरक्षित | स्मारक नहीं, जीवित मंदिर हैं और द्वितीयतः ये 1958 एक्ट स्मारकों की अधिसूचना केवल केन्द्र अथवा राज्य सरकारों | के तहत नहीं आते हैं और इस दष्टि से भारतीय पुरातत्व के द्वारा ही जारी की जा सकती थी।
सर्वेक्षण का कोई भी अधिकार मंदिरों पर नहीं है और न ही 4. 1904, 1951 व 1958 के अधिनियमों के अनुसार | वे संरक्षित स्मारक हैं। केवल राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक ही संरक्षित होंगे। इसके
रदन काउंसिलदारा संरक्षित स्मारक अतिरिक्त जो भी प्राचीन व ऐतिहासिक स्मारक हैं, वे राष्ट्रीय स्मारक नहीं होंगे व 1964 के अधिनियम के तहत राज्य के 1913 और 1914 में जो अधिसूचना जारी की गई अधिकार क्षेत्र में आयेंगे।
| थी, उसकी पुष्टि करने का अधिकार 1904 एक्ट की धारा 5. 1904 अधिनियम की धारा 3 में 1937 के एक 3 के अंतर्गत केवल गवर्नर इन कॉउंसिल को था, जो संशोधन द्वारा संरक्षित स्मारकों के संदर्भ में अधिसूचना कुंडलपुर के संदर्भ में नहीं हुआ। मध्यप्रांत के बारे में 1904 जारी करने का अधिकार केवल केन्द्र सरकार को दिया, जो | के बाद जारी सभी अधिसूचनाओं का गवर्नर इन कॉउंसिल इसके पूर्व स्थानीय सरकार को भी था। अतः 1958 एक्ट के द्वारा पुष्टि किया जाना आवश्यक था, जैसा कि निम्न उदाहरणों प्रावधान केवल उन अधिसूचनाओं पर लागू हैं जो केन्द्र | से स्पष्ट हैं - सरकार द्वारा 1937 के बाद जारी की गई या जिनके संदर्भ में | गवर्नर इन कॉउंसिल के पत्र क्रमांक C-72-A-Bकेन्द्र सरकार ने स्पष्ट अधिसूचना 1904 या 1958 के एक्ट | 358 दिनांक 11.04.1925 से स्पष्ट होता है कि उसमे संरक्षित के तहत सम्पूर्ण प्रक्रियाएँ पूरी करते हुए की हों। यदि ये | स्मारकों में कुण्लपुर के संदर्भ में केवल सपाट छत वाले अर्हताएँ पूरी नहीं होतीं, तो वह स्मारक राष्ट्रीय महत्त्व का | मंदिर का उल्लेख किया है। दिनांक 10.07.1916 की स्मारक नहीं माना जा सकता।
अधिसूचना क्रमांक 180, जिसकी मुख्य आयुक्त ने भी पुनः 6. 1958 एक्ट के प्रावधान उन स्मारकों पर नहीं | पुष्टि अधिसूचना संख्या 932, दिनांक 27-8-1917 की थी, लागू हैं, जिनके संदर्भ में केन्द्र सरकार ने कोई अधिसूचना | उसे भी दुबारा गवर्नर इन काउंसिल में 1904 एक्ट ds-5-3 जारी नहीं की है।
(3) के अंतर्गत पुनः कनफर्म किया गया। इसी प्रकार दिनांक 7. 1958 के प्रावधान को मानना गैर राष्ट्रीय महत्त्व 28.07.1916 की अधिसूचना क्रमांक 280, जिसकी पुनः
अगस्त 2006 जिनभाषित 21
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