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________________ किन्हीं कारणों से असंतुष्ट हो विद्वेष रखनेवाले, लोगों की आँखों की किरकिरी बन गया। उन लोगों ने पुरातत्त्व विभाग के अधिकारियों को शिकायत कर मंदिर के निर्माणकार्य को एवं बड़े बाबा की मूर्ति के स्थानांतरण को रुकवाने के लिए भारी दबाव डाला। परिणामस्वरूप पुरातत्त्व विभाग द्वारा जबलपुर उच्च न्यायालय में याचिका प्रस्तुत हुई। यद्यपि पुरातत्त्व विभाग को नवीन मंदिर के निर्माण एवं पुराने मंदिर से मूर्ति के स्थानांतरण को रोकने का कोई विधिसम्मत अधिकार नहीं है। इस संकट के अवसर पर दिगम्बर जैन समाज को क्या करना चाहिए यह महत्त्वपर्ण विचारणीय बिंद है। हमारे बीच किसी बात पर आंतरिक मतभेद हो सकते है, किंतु यदि कोई बाहरी शक्ति हमारे धर्मायतनों पर आक्रमण करे, तो क्या हम सबको एकजुट संगठित होकर पारस्परिक मतभेदों को गौण कर आक्रमणकर्ता से संघर्ष कर अपने धर्मायतनों की सरक्षा नहीं करनी चाहिए ? क्या हमारे आंतरिक विचार-भेदों के कारण हम अपने धर्मायतनों पर आक्रमण करनेवालों को सहायता देकर स्वयं के पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मार रहे हैं ? यह हमारा आत्मघाती कदम हमारे अस्तित्व एवं हमारी अस्मिता पर भारी संकट ला सकता है। तथापि कंडलपुर तीर्थ पर आए इस वर्तमान संकट पर विजयप्राप्ति के लक्षण उच्च न्यायालय द्वारा स्थगनादेश हटाने एवं उच्चतम न्यायालय द्वारा पुनः स्थगनादेश लगाने से इंकार करने का स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। कुंडलपुरक्षेत्रकमेटी सत्य पर है। कमेटी के समर्थन के देश के समस्त दिगम्बर जैन समाज की श्रद्धापूर्ण भावनाएँ हैं। एक दिन अवश्य ही जन-जन की भावनाओं के अनुकूल, बड़े बाबा की भव्यता के अनुरूप ही विशाल भव्य मंदिर पूरा होगा और हम सब उस मंदिर की छत के नीचे बैठकर बड़े बाबा के दर्शनपूजन कर पायेंगे। सत्य की विजय होती है। सत्यमेव जयते। मूलचंद लुहाड़िया अनुभूत रास्ता विहार करता हुआ पूरा संघ अकलतरा की ओर बढ़ रहा था। वहाँ जाने के लिए दो रास्ते थे- एक पक्की सड़क से होकर और एक कच्चे रास्ते से होकर जाता था। कच्चा रास्ता दूरी में कम पड़ता था। वहाँ पर अनेक लोगों ने अपने-अपने ढंग से रास्ता बताया। कुछ महाराज पहले ही बताये गये रास्ते से आगे निकल गये। एक वृद्ध दादा जी ने आकर बताया कि बाबाजी आप लोग तो सीधे इसी रास्ते से निकल जाइये, आप जल्दी पहुँच जायेंगे और रास्ता भी ठीक है। मैं इस रास्ते से अनेकों बार आया-गया हूँ। तब आचार्यश्री के साथ हम सभी मुनि उसी रास्ते पर चल दिये। आगे चलकर देखा रास्ता एकदम साफ-सुथरा था एवं दूरी भी कम थी। आचार्यश्री ने कहा - देखो उस वृद्ध का बताया हुआ रास्ता एकदम सही है, क्योंकि वह अनुभूत रास्ता है। इसी प्रकार मोक्षमार्ग में हर किसी के बताये रास्ते पर नहीं चलना चाहिए, बल्कि जो अनुभूत कर चुके हैं, ऐसे ही वीतरागी गुरु के बताये रास्ते पर चलना चाहिए। तभी हम जल्दी मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। मुनिश्री कुंथुसागर-संकलित 'संस्मरण' से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524308
Book TitleJinabhashita 2006 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2006
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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