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सम्पादकीय
सत्यमेव जयते
केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा म.प्र. राज्य सरकार एवं कुंडलपुर क्षेत्र कमेटी के विरुद्ध माननीय जबलपुर उच्च न्यायालय में प्रस्तुत याचिका पर न्यायालय ने प्रारंभ में दिए हुए स्थगनादेश को आंशिक रूप से हटाकर बड़े बाबा की मूर्ति के संरक्षण के लिए आवश्यक निर्माण की स्वीकृति प्रदान की थी। उच्च न्यायालय के उक्त निर्णय के विरुद्ध केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग ने पुनः माननीय उच्चतम न्यायालय में एस. एल. पी. प्रस्तुत की थी। श्रद्धालु श्रावकजनों के पुण्योदय से माननीय उच्चतम न्यायालय ने वह एस. एल. पी. स्वीकृति के स्तर पर ही निरस्त कर दी। इस निर्णय से यह प्रतिफलित हुआ है कि बड़े बाबा की मूर्ति के स्थानांतरण के पश्चात् उसकी सुरक्षा के लिए मंदिरनिर्माण को माननीय उच्चतम न्यायालय ने उचित ठहराया है। इस समस्त घटनाक्रम ने देश के सम्पूर्ण दि. जैन समाज के मन मस्तिष्क को आंदोलित किया है। किंतु कुछ लोग सार्वजनिकरूप से घटनाक्रम को तोड़-मरोड़कर विकृत रूप में प्रचारित कर समाज को भ्रमित करने का प्रयास करने में लगे हुए हैं। यहीं तक नहीं, अपितु कुछ लोग प्रच्छन्नरूप से न्यायालय में दिगम्बर जैन समाज के हितों के विरुद्ध विपक्ष की सहायता करने की सीमा तक भी चले गए हैं 1
वस्तुतः उक्त घटना दिगम्बर जैन समाज को एक बार फिर झकझोर कर अपने धर्मायतनों की सुरक्षा एवं अपनी अस्मिता के अस्तित्व के प्रश्न पर गहन चिंतन करने को विवश करती है । स्वतन्त्र भारत के इतिहास में दिगम्बर जैन समाज की अपने धर्मायतनों एवं धर्म तीर्थों के निर्माण, जीर्णोद्धार एवं पुनर्निर्माण की स्वतन्त्रता पर आक्रमण की यह प्रथम घटना है। दिगम्बर जैन समाज के स्वामित्व के 100 वर्ष से अधिक प्राचीन हजारों जिनालय एवं सैकड़ों तीर्थक्षेत्र आज भारत भूमि पर हैं, जिनकी सुरक्षा एवं अपनी आवश्यकतानुसार निर्माण अथवा पुनर्निर्माण करने तथा पूजा-अर्चना करने का अधिकार दिगम्बर जैन समाज को है और उसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप पुरातत्त्व विभाग द्वारा नहीं किया जा रहा है। कुंडलपुर तीर्थक्षेत्र पर भी प्रारंभ से दिगम्बर जैन समाज का स्वामित्व रहा है और उसकी सुरक्षा एवं देखरेख के लिए क्षेत्र कमेटी का गठन किया जाता रहा है। समय-समय पर क्षेत्र कमेटी समाज के हित में नव निर्माण, जीर्णोद्धार, पुनर्निर्माण करती रही है, जिसमें कभी भी पुरातत्त्व विभाग द्वारा कोई आपत्ति नहीं की गई है। पूर्व में कुंडलपुर के मंदिरों को केवल म. प्र. प्रांतीय राज्य की पुरासंपत्ति की सूची में अंकित किया गया था। किंतु केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा कभी भी विधिवत् उन्हें राष्ट्रीय संरक्षित मान्यूमैंट्स की परिधि में नहीं लाया गया और न वहाँ कभी नियमानुसार नीला बोर्ड लगाया गया और न विभागीय चौकीदार ही रखे गए। यह भी उल्लेखनीय है कि कुंडलपुर के मंदिरों के रख रखाव पर पुरातत्त्व विभाग ने कभी एक पैसा भी खर्च नहीं किया।
कुंडलपुर तीर्थक्षेत्र के प्रति देश के दिगम्बर जैन समाज के आकर्षण का मुख्य कारण बड़े बाबा की विशाल, अतिशयकारी, भव्य मूर्ति रही है। उस भव्य मूर्ति के छोटे जीर्ण-शीर्ण मंदिर के जीर्णोद्धार एवं विस्तार के लिए क्षेत्र कमेटी एवं क्षेत्र से जुड़ा दिगम्बर जैन समाज गत अनेक वर्षों से चिंतित था । अनेक बार अनेक प्रकार की योजनाओं पर विचारविमर्श होता रहा । इसी बीच भूविज्ञानशास्त्र के विशेषज्ञों की राय भी ली गई और एक भूकंपरोधी विशाल भव्य नवीन मंदिर के निर्माण की योजना सामने आई। इस योजना को देश के सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज की विशाल सभा में सन् 2001 में अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी, अ.भा.दि. जैन विद्वत् परिषद्, शास्त्री परिषद् एवं समस्त दिगम्बर जैन समाज ने एक स्वर से नए मंदिर के निर्माण की योजना का समर्थन किया और साथ ही मध्यप्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री महोदय ने मंदिरनिर्माण का समर्थन करते हुए उसके लिए राज्य सरकार द्वारा आवश्यक सहयोग की घोषणा की। तभी नवीन विशाल मंदिर के निर्माण कार्य को प्रगति मिली।
तथापि अत्यंत खेद की बात है कि यह नवीन भव्य मंदिर का निर्माण एवं क्षेत्र का विकास अपनों में से ही कुछ,
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