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छोटे बाबा का बड़ा काज
डॉ. सुधा मलैया लेखिका उच्चशिक्षित व सक्रिय सामाजिक नेत्री हैं, आप छात्र जीवन से ही राजनीति, संस्कृति, पत्रकारिता व ऐतिहासिक शोधों से जुड़ी रही हैं, आप राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्या रही हैं तथा वर्तमान में ओजस्विनी' पत्रिका की संपादिका भी हैं। आपने कई किताबों का प्रकाशन भी किया है। कुंडलपुर पर आपका शोध महत्त्वपूर्ण है।
सम्पादक
बड़े बाबा की पुनःप्रतिष्ठा
उदाहरण देश के अन्य संरक्षित स्मारकों की सुरक्षा की दृष्टि छोटे बाबा, आचार्य श्री विद्यासागर जी के नेत्रों से | से ठीक नहीं था। यक्ष प्रश्न है कि कानून का उल्लंघन अविरल भक्तिधारा बह रही थी, विचित्र और आश्चर्यजनक | किसके द्वारा हुआ ? मर्यादाएँ कब और किसने तोड़ी ? था यह दृश्य, नयनाभिराम भी। किसी ने राग-द्वेष से ऊपर | कर्तव्यों का किसने और कितना पालन किया ? जिम्मेदारियों वीतरागी साधुओं के नेत्रों में पानी कब देखा ? पर ये 17 ] का निर्वहन किसने किया ? यह जानने के लिए जरूरी है जनवरी 2006 को हुआ, क्योंकि एक बड़ा काज सम्पन्न | नये मन्दिर के निर्माण और बड़े बाबा की मूर्ति को स्थानांतरित हुआ, क्योंकि पूरी हुई उस दिन वर्षों की साध बड़े बाबा को | | करने की आवश्यकता को सम्यक् परिप्रेक्ष्य में जानना, उनकी गरिमा के अनुरूप, विशाल व भव्य मंदिर में प्रतिष्ठित | कानूनी भू-स्वामित्व, सामाजिक, पुरातत्व विभाग व शासन, करने की। और विराजमान हो गये बड़े बाबा 2.36 मिनट | | प्रशासन की भूमिका आदि सभी दृष्टि से। पर, अपनी गरिमा और भव्यता के अनुरूप, नवनिर्माणाधीन | कुण्डलपुर क्षेत्र एवं मंदिरों/मूर्तियों की प्राचीनता 'मंदिर की भव्य विशाल वेदी पर, अक्षत, बिना किसी क्षति । 15 फुट ऊँची, 12 फीट चौड़ी, एक पत्थर में तराशी के, बड़े बाबा अर्थात् जटाधारी प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ, गई पद्मासन मुद्रा में आदिनाथ भगवान की यह मनोहारी अंतिम श्रीधर स्वामी की निर्वाण स्थली, कुण्डगिरि, पटेरा । प्रतिमा प्राचीनतम एवं विशालतम है। शैली के आधार पर तहसील, जिला दमोह, मध्यप्रदेश, की पहाड़ी पर स्थित लगभग 5 वीं - 6 वीं शती के आस-पास की इस मूर्ति के मुख्य मंदिर के मूल नायक, जन-जन के हृदय में बड़े बाबा बारे में प्रमाणिक रूप से कहना कठिन है कि यह कब बनी, के रूप में प्रतिष्ठित.
किसने तराशी, किसने प्रतिष्ठित करवायी और किस पुण्यात्मा जब हजारों हजार लोगों ने उस विशाल प्रतिमा को | राजा, महाराजा ने उस भव्य विशाल मंदिर का निर्माण सोलह साल के सरदार बालक के द्वारा कुशलता से संचालित करवाया। न कोई अभिलेख उपलब्ध है और न ही आज पुष्पक विमान-सी सजी क्रेन के द्वारा हौले से ऊपर ही ऊपर | दिनांक तक कोई प्राचीन उल्लेख, जिससे पुष्टि की जा लहराते हुए विशाल वेदी पर सरलता से प्रतिष्ठित होते देखा, | सके। उस समय बुंदेलखंड में गुप्तों के मांडलिक कौन थे, तो भक्तों को यह घटना निश्चित ही किसी चमत्कार या | यह स्पष्ट नहीं है। अतिशय से कम नहीं लगी, और उनके लिए यह बड़े बाबा अंतिम केवली श्रीधर स्वामी की निर्वाणभूमि होने का फल के माफिक हल्के होकर आकाश मार्ग से उड़ना के कारण यह क्षेत्र अत्यंत प्राचीन काल से पवित्र रहा होगा लगा। भावविभोर श्रद्धालु और भक्तजनों के जयकारे से | और इसी कारण संभवतः यहाँ भगवान आदिनाथ व अन्य आकाश गूंज उठा। अतिशय हुआ या चमत्कार, निर्णय कौन तीर्थंकरों के मंदिरों का निर्माण हुआ। अन्य 63 मंदिरों में करे ? भक्तिभाव से सराबोर भक्तों ने गढ़ी नई उपमाएँ और | प्राप्त जिन-मूर्तियाँ लगभग 5 वीं शती से लेकर 16 वीं शती उपमान, आस्था की प्रतिष्ठा हुई और धर्म प्रभावना पुष्ट। | की हैं।
किन्तु भारतीय पुरातत्त्व विभाग के लिए यह बड़ी वर्तमान मंदिर, कोई भी 300 वर्ष से अधिक प्राचीन दुर्घटना थी। प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्त्विक स्थल एवं | नहीं है। छ:घरिया वंदना मार्ग से पहाड़ पर वंदना को जाते अवशेष अधिनियम 1958 का खुला उल्लंघन था। उनके | समय दायें हाथ पर सपाट छतवाला मंदिर है, जो अम्बिकामठ अनुसार जैन समाज ने गैर कानूनी काम किया था, जिसका | के नाम से जाना जाता है, वह पूर्वगुप्तकालीन है। मंदिर
अगस्त 2006 जिनभाषित 11
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