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अब डंक मत मारो
श्रीपाल जैन 'दिवा'
मैंने बिच्छुओं से
बहुत कहाअब डंक मत मारो। तन में
खाली जगह बची नहीं है। वे मानते ही नहीं
कहते हैं - आपका तन डंक मारने की सुरक्षित जगह है। इसलिए मारते हैं डंक। डंक तो अच्छे तन में ही मारा जाता है . हम से भी
ज्यादा जहरीले तन को डंक मारने से क्या लाभ ? फिर उनके हाथ में जूता है तुम्हारे पाँव में है क्योंकि तुम आदमी हो। हम सब बिच्छू तुम से ज्यादा समझदार हैं तुम जैसे पर ही हम जिन्दा हैं तुम मना मत करो हमें जीने दो क्योंकि - तुम आदमी हो।
शाकाहार सदन एल.75, केशर कुंज
हर्षवर्द्धन नगर, भोपाल
राग-द्वेष से रहित हो जाने पर समता भाव आविर्भूत होता है और इस समता भाव के प्रगट हो जाने से उनके
आत्मबोध तथा इससे उनके कर्मों का वियोग होता है। With the departure of attachment and aversion, equanimity arrives, with this equanimity comes the knowledge of the self and then follows freedom from karma.
महापापी मनुष्य ऐसा कोई भी पुण्य कार्य नहीं कर सकता है जो उसके लिए आत्महित-कारक हो। A sinner is incapable of performing such auspicious karmas as are in the interest of his soul.
वीरदेशना
अगस्त 2006 जिनभाषित 25
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