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ROश्रीवो नरागाय नमः
D||श्रीवोनरागाय नमः॥
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IACID सम्पादक-मूलचंद किसनदास कापड़िया चंदावाड़ी-सरत । GO
SHREE JANN
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पूछ
विषयानुक्रमणिका, नं०
विषय १-२ सम्पादकीय विचार, जैन समाचार संग्रह ARUN३ वर्तमानमें आयुर्वेदकी आवश्यता व उपयोगिता
(आयुर्वेदभूषण पं. सत्यंधर काव्यतीर्थ) ४-५ पद (पं० मुन्नालाल विशारद), दरिद्रतासे दुःख....११-१२ 90 सत्संग (के. एन. मोठावाला ईडर'........ १३
७ रुपाबाई स्मारक मंडर्नु तृतीय अधिवेशन .... १४ वीर सं. २४५०८-९ महिमा (पं0 मुन्नालाल निशंक), नीति रत्नमाला १५-१६ चैत्र
१० व्याख्यान साहु जुमंदादाप्तजी सभापति भारत.
दि जन परिषद मुजफ्फरनगर .... .... १७ ७ ११ प्रस्ताव मुजफ्फरनगर में भारत दि. जैन परिषद २७
१२ विश्वासघात का फ .... १२ सूरतमा जन साहित्य परिषर.... ... .... मुख पृष्ठ
२७ वा ईस्वीसन्
वि.सं. १९८
760
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पेशगो वार्षिक मूल्य रु. २-०-० पोष्टेज सहित ।
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जिला कलाविलवालय ISISTIALADITALDERADIDATTATISEMISTRETEREADIHATITLEAR ALERTI
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સુરતમાં જૈન સાહિત્ય પરિષદ. આ જો કે, આ શકિટ પિતાનું સાહિત્ય અાબર પ્રકાશમાં લાવતા નથી.
: જેમાં હજારો ગ્રંથ તાળા કુંચીમાં બંધ પડેલા 1 સુરતમાં જૈન સાહિત્ય પરિષદની બીજી બેઠક છે. ઉપદેશ અને ક્રિયાને ધર્મ સર્વે ધર્મોમાં વૈશાખ વદ ૧-૨-૩-૪ બે ચાર દિવસેમ ગુજવિશેષતાથી અહિંસક છે. જેને સાહિત્ય ઘણી રાતના પ્રસિદ્ધ કવિ નાનાલાલ દલપતરામના પ્રમુખ ભાષાઓમાં ઉપલબ્ધ છે. ચાર સંધોની સ્થાપના પણ નીચે ગોપીપરામાં ભારે ઉત્સાહથી મળી હતી જેમાં જ છે. શિવગુણસુરી, હેમચંદ્રાચાર્ય, જેમાં તાંગર તેને વિશેષ ભાગ હતો છતાં હીરવિજયસૂરિ, આનંદવન વગેરે આચાર્ય તથા પણ દિગંબર જૈનો તથા કેટલાક સ્થાનકવાસીએ પણ ભામાશા, ધનાશા, જગતસેઠ, દગડુમા વગેરે પ્રસિદ્ધ એમાં ભાગ લીધો હતો. પરિષદમાંથી બહાર પુરૂષ જમાં થઇ ગયા છે તથા આબ, તારંગા, ગામથી ૨૫-૩૦ સારા સારા સાહિત્ય પ્રેમી મુક્તાગિરિ વગેરે પ્રાચીન કારીગરીના તીર્થો જેના ભાઈઓ આવ્યા હતા. તથા સુરતના જૈન છે. જેનોએ કલાની રસિદ્ધ છેડી સાહિત્યરસિક, નેતાઓ જેવાકે રા. બા. કમળાશંકર, પાઠકજી, થવું જોઇએ. જૈન કોલેજ અને જૈન યુનિવર્સિગણુત્રા, ભિક્ષુ અખંડાનંદ, મધવરામ હેરા, ટીની જરૂર છે. વિદેશોમાં હજારે જન ગ્રન્ય ગુલાબદાસ વકીલ, કેશિ આદિ હાજરી પહોંચી ગયા છે અને ત્યાં તેની કેટલી ઉતમ રીતે આપતા હતા. તથા સ્વામી આત્મસ્વરૂપ, કમળા- રક્ષા અને ઉપયોગ થઈ રહયો છે, એ પર વિચાર શંકરભાઈ, કૅશિક વગેરેએ ભાષણો આપ્યાં હતા. કરી જનેએ પિતાનું સાહિત્ય સંસારભરમાં આ કાર્ય શેઠ જીવણચંદ સકેરચંદ મુનિ માણેક. પ્રકાશમાં લાવવું જોઈએ વગેરે વગેરે. મુનિ વગેરેના સતત્ પ્રયાસનું જ ફળ હતું. ટિકિટ
પરિષદને ખાશરે ૫૦-૬૦ તાર અને પત્ર રાખવા છતાં રાજ ૪૦૦-૫૦૦ ભાઈઓ અને બહેનો સહાનુભૂતિના આગ્ય હતા જે અમે વાંચી સંભહાજર રહેતા હતા. ચોથી બેઠકમાં તો સવારે ૯ ળાવ્યા હતા. સબજેટ કમેટી અને નિબંધ કમે
- ટીમાં પણ અમેએ ભાગ લીધો હતો. બીજી ત્રીજી થી ૧ ચાર કલાક સુધી કાર્ય ચાલ્યું હતું.
બેઠકમાં કુલ્લે છ ઠરાવો નીચે મુજબના થયા હતા. સ્વાગત કમેટીના પ્રમુખ નગરશેઠ બાબુભાઈ
ઠરાવ ૧ લો. જે જે સંસ્થાઓ અને રાજા ગુલાબભાઈએ પોતાના વ્યાખ્યાનમાં જણાવેલું કે
મહારાજા તથા વ્યક્તિઓ જૈન સાહિત્ય પુરત પ્રાચીન શહેર છે, એમાં ઘણી જૈન પાઠશાળા,
ક્ષેત્રમાંથી પ્રાચીન અને અર્વાચીન ગો બાહેર કન્યાશાળા, બેડ'ગ, જન વનિતાવિશ્રામ, ભોજ•
પાડીને સાહિત્યને પૂછી આપવાને સતત પ્રયત્ન નાય, પાંજરાપોળ, જીવદયા ખાતું, ઘા જ્ઞાન
કરી રહ્યા છે તે સને આ પરિષદુ આભાર ભંડારો તે સારા સારા જૈન મંદિર તેમજ
માને છે.. -
પ્રમુખ તરફથી એક લાખ ર૦નું સેઠ દેવચંદ લાલભાઈ પુસ્તકોદ્ધાર
- ઠરાવ ૨ જે. બીજી પરિષદુ મળે ત્યાં સુધી કુંડ છે તેમજ બે લાખ ર૦ની સખાવતથી નગીન
- પરિષદનું કામકાજ ચાલુ રાખવા માટે નીચે જણા. દાસ ઘેલ ભાઈ ઝવેરી જેન હાઈકુલ ખુલવાની છે વેલા મહસ્થોની વધારવાની સત્તા સાથે એક કમેટી એટલે અત્રે, લાખો રૂ૦ દાનમાં ખરચાય છે,
નીમવામાં આવે છે અને તેમણે પરિષદમાં મંજુર સભાપતિ કવિશ્રી નાનાલાલે પિતાના ભાષણમાં થયેલા કરાનો બનતો અમલ કરાવવા અને : જણાવ્યું હતું કે જેનાનું સાહિત્ય તીવ પ્રાચીન પરિષદના પ્રસિદ્ધ થયેલા હેતુઓ સફળ કરવાને : છે તથા મહત્વપૂર્ણ છે તેમજ એની રક્ષા અને બનો પ્રયાસ કરો અને પરિષદમાં થયેલ કામપ્રકાશની આવશ્યકતા છે. ઘણું અજૈન સાક્ષરે કાજનો રીપે ટે પ્રગટ કર. કમીટીને આ કાર્ય
રા જૈન સાહિત્યને અન્યાય થઈ રહયો છે પણ કરવા માટે એક સારા ફંડની આવશ્યકતા છે.. તેમાં દેષ જૈન વિદ્વાનેજ છે કે તેઓ ( ટાઈટલના ત્રીજા જિપૂર જુઓ).
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॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥
दिगंबर जैन,
THE DIGAMBAR JAIN.
नाना कलाभिर्विविधश्च तत्त्वैः सत्योपदेशैस्सुगवेषणाभिः । संबोधयत्पत्रमिदं प्रवर्त्तताम्, दैगम्बर जैन-समाज-मात्रम् ॥
वर्ष १७ वॉ.
वीर संवत् २४५०. चैत्र वि० सं० १९८०.
! अंक ६ हा
रान्तब्य
हजारों ग्रन्थ कैदमें पड़े हुए हैं। सुना जाता है कि ईडरका ग्रन्थ भण्डार पं० कन्हैयालाल द्वारा सुधारा जारहा है परन्तु नागौरका तो जैसाका तसा है । नागौरके भट्टारक भी काटकर गये
तो अब तो उनके शिष्यका कर्तव्य है कि वे श्री जिनवाणी माताकी पूना भक्ति विनय
अपना वचन पालन करके शास्त्र भण्डार खोलकरनका महान परम कर उसकी सम्हाल करें। यहांक मंडारपर कह श्रतपंचमी पर्व। पवित्र पर्व श्री श्रुतपंचमी ताले लगे हैं व उनपर मट्टी चूना वर्षोसे पोत पर्व आगामी ज्येष्ठ सुदी
पुषा दिया गया है । अब तो किसी भी अवस्थामें ५ (ता. ७ जुन ) को निकट ही आ पहुचा यह ग्रन्थ भण्डार खुलवाने की कोशिश बम्बई है। यह वही पवित्र दिन है कि जिस दिन सरस्वती भवन द्वारा आगामी जस्से पर होनी श्री भूतबलि व अहंदुबलि आचार्यों ने सिद्धान्त चाहिये । शास्त्रों की प्रथम पुजा की थी तबसे ही इसका नाम अब हम यह बतायेंगे कि श्रुतपञ्चमी के दिन श्रुतपंचमी पड़ाव इस पर्वकी पूननको श्रुतस्कंध हमारे क्या २ कर्तव्य हैं। इस पवित्र दिनमें विधान कहा जाता है । करीब दस पंद्रह वर्षसे इस सब स्थानोंके मंदिरों में सुबह श्रुतकंच विधान पर्वको मनाने की चर्चा जैनहितैषी आदि पत्रों में (जिनवाणीकी पना) बड़े भक्ति भावसे वानित्रों होने पर यह पर्व मनाया जाने लगा है, परन्तु सहित होना चाहिये, उस समय मंदिर में जितने खेद है कि इस पर्वका इतना प्रचार अभीतक भी शास्त्र हों उनको धूप दिखाकर अच्छे शुद्ध नहीं हुआ जैसा कि दीवाली पर्व का होता है । वेष्टनों में बांधकर चौकीपर बिमान करने हमको हमारी मूर्तियोंसे कई गुणी बढ़कर रक्षा चाहिये : फिर ग्रंथ सुवी न हो तो नितने भी हमारी जिनवाणी माता (नैन शास्त्रों ) को ग्रन्थ आने २ भण्डारोंमें हों उनकी सूची बनाकरनेकी है जिस तरफ हमने बहुत प्रमाद रखा कर उनकी एक नकल सबको देखने के लिये बहर है। अभीतक ईडर, नागौर आदि स्थानोंपर रखनी चाहिये व निनको जो ग्रंथ पढ़ने को चाहिये
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दिगम्बर जैन ।
[ वर्ष १७ उनके नाम वह ग्रंथ लिखकर देने चाहिये । समान सुधारके लिये अवश्य आगे आयेंगे । इस दिनको जाहिर त्यौहार रूपसे पवित्र मानना स्वागत सभापति बा. बलवीरचन्द्र जैन वकीचाहिये तथा शामको बड़ी भारी सभा करके लका व्याख्यान भी धर्म व जातिप्रेमसे भरा हुआ सबको इस पर्वका महात्म्य सुनाना चाहिये व था। भाप भी बड़े उत्साही व धर्मप्रेमी हैं। जैन साहित्यकी रक्षा व उसके प्रचारके प्रबन्ध यह आपके ही साहसका फच था कि परिषदका की चर्चा होकर कुछ न कुछ जैन साहित्यकी अधिवेशन मुजफ्फरनगरमें होसका था। अधिवे. सेवाकी योजना करनी चाहिये तथा जो २ ग्रंथ शनों तो सभाओंके अनेक होगए हैं परन्तु इस .अपने मंदिरों में न हों वे अपने मूल्यसे नहीं वार भारत० दि. जैन परिषद में जिस उत्तमताके तो मंदिरोंके भण्डारोंके द्रव्यसे भी इसी दिन साथ कार्रवाई हुई थी वह दूसरे अधिबेशनोंमें मंगानेका प्रबन्ध करना चाहिये । मुद्रित सभी शायद ही कहीं हुई हो । अर्थात् परिषदमें मात्र दि. जैन ग्रन्थ का सुचीपत्र हमारे पास है जो अंग्रेजी पढ़े लिखे नहीं परन्तु कई पंडितगण, कार्ड लिखनेपर मुफ्त भेज देंगे।
ब. भागीरथजी,ब० गणेशप्रसादनी, ब• सीतभागामी श्रुतपंचमी पर्व गत वर्षोंकी अपेक्षा प्रसादनी जैसे त्यागीगण तथा भनेक श्रीमान विशेष रूपसे हरएक स्थानपर मनाया जाय यही व अंगरेजी पढ़े लिखे बड़े २ विद्वान तथा हमारे 'हमारी भावना व अभिलाषा है । तथा इसके पुराने विचार के कई अगुए भी उपस्थित हुए थे। समाचार भी हमें मिलने पर अवश्य प्रकट किये परिषदमें जिस योग्यतासे साहुनीने काम लिया जांयगे।
वह अतीव भादरणीय है । जितने भी प्रस्ताव
हुए हैं प्रायः उन सब पर विरोध, संशोधन मुजफ्फरनगरमें वेदीप्रतिष्ठा, महिला परिषद व आदि हुआ था परन्तु अंतमें सभापतिमी इस
भारतवर्षीय दि० जैन प. तरह इसका निकाल कर देते थे कि जिससे मुजफ्फरनगरमें रिषद्का प्रथम अधिवेशन किसी भी प्रस्ताव पर मत ही लेने की आवश्यपरिषद । चैत्र मासमें अतीव सफ पता नहीं पड़ती थी और सब प्रस्ताव सर्वानु
लता पूर्वक हो गया। मतसे ही पास होजाते थे। परिषदमें कुलं १६ सभापतिका स्थान श्रीमान् साहु जुगमंदिरदासनी प्रस्ताव हुए हैं जो भागे मुद्रित हैं वे पढ़नेसे नजीबाबादने ग्रहण किया था। आपका व्या- हमारे पाठकोंको मालूम होगा कि इसवार ऐसे ख्यान भन्यत्र मुद्रित है जो अक्षरशः पढ़ने योग्य कई प्रस्ताव भी हुए हैं जो बिलकुल नवीन हैं, है। मापने समाजके समक्ष निर्भीकतासे जैन व जैन समानमें जाग्रति व सुधार करनेवाले हैं समानकी सच्ची हालत रख दी है। हम समझते इसलिये उन पर हम यहां कुछ आवश्यक निवे. हैं मापके इस व्याख्यानसे दि. जैन समाजमें दन करना चाहते हैं। नवचेतन अवश्य आवेगा व उत्साही युवकगण दूसरा प्रस्ताव ऐसा है कि हरएक जैन स्कूल
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अंक ६ ]
दिगम्बर जैन । व बोर्डिंगोंमें अंगरेजी पढ़े लिखे जैन विद्वान अशुद्ध रेशम व अशुद्ध सुती वस्त्रके चंदोंवे, वर्ष में दो वार जाकर जैन धर्मपर व्याख्यान दे। वेष्टन मादि मंदिरोंमें न व जावे अर्थात भो जिन उत्साही विद्वानोंको इस सेवाके करनेका हो उनको भी बदल दिये जावे तथा हरएक : भाव हो वे इस कार्यके मंत्री बा. बलवीरचंद भाई बहिन भी शुद्ध सुती वस्त्रका व्यवहार करे। वकील मुजफ्फरनगरको लिख सकते हैं । वर्षमें यह अहिंसा परमो धर्मः माननेवाले जैनियोंके थोड़ासा समप इप्त कार्यके लिये निकालना लिये कैप्ता उत्तम प्रस्ताव है और इसको पूर्ण अंगरेजी पढ़े लिखे विद्वानोंको मुश्किल नहीं अमलमें कानेको मावश्यकता है वरना हम होगा और उनके व्याख्यानोंसे विद्यार्थियोंपर जैनों अनैनोंके समक्ष हंसीके पात्र होंगे। जैन धर्मकी विशेष छाप पड़ेगी।
सातवां प्रस्ताव जैन इतिहास तैयार करनेका तीप्सरा प्रस्ताव ऐसा है कि जैनधर्मकी एक है जिसकी आवश्यकता वर्षोंसे मालूम हुई है। छोटीसी पुस्तक ब्र. सीतलप्रसादनी विद्वानोंके आशा है इसके मंत्री बा• हीरालालनी एम. संशोधन पूर्वक बनावें जिसमें जैन धर्मकी ए. इस कार्यको शीघ्र ही अमल में लावेंगे। प्राचीनता वजैन सिद्धांतका परिचय हो व उसको आठवां प्रस्ताव जैन धर्मप्रचारके लिये उपदेहिंदकी हरएक भाषामें प्रकट करके उसका शक विभाग खोकनेका है जिसमें वैतनिक तो प्रचार सारे हिंदमें करें। यह प्रस्ताव अतीव क्या परन्तु मवैतनिक उपदेशक द्वारा धर्मपचामहत्वपूर्ण व नवीन है। इसपर सहारनपुर स्का यत्न हो । हर्षे है कि प्रस्ताव पास होनेके जिलेके भाइयों जो छापेके विरोधी हैं उन्होंने समय ही बा. जुगलकिशोरनी आदि १०.१२ विरोध किया था परन्तु उनको अच्छी तरहसे महाशयोंने आनररी तौरसे वर्षमें महिने दो समझाने पर वे भी इस कार्यमें सहमत होगये महिने पंद्रह दिन अपने खर्चसे उपदेशार्थ भ्रमण थे यह प्रकट करते हुए हमें बड़ा हर्ष होता है। करने की प्रतिज्ञा की है। आशा है अन्य
चौथा प्रस्ताव मारवाडी व देशी अग्रवालमें विद्वान भी इसका अनुकरण करेंगे। कन्या लेनेदेनेका है जो उचित ही हुआ है। नवां पस्ताव तीर्थोके झगड़े मिटानेको उद्योग ..चवा प्रस्ताव जैन संख्या हातके उपायका करने का है। देखे इसका क्या अमल होता है ? है। इसके लिये जो कमेटी नियुक्त हुई है. __दशवां प्रस्ताव बालविवाह, वृद्धविवाह, उनको अब कुछ कार्य करके दिखाना चाहिये । कन्याविक्रय आदि बंद करनेका है उसमें नवीन आशा है इसके मंत्री ला स्तनलालजी जैन विशेषता यह हुई है कि ऐसे विवाह हो उनमें वकील परिश्रमपूर्वक इस कार्यक्री अमली कार- असहकार किया जाय अर्थात् उसमें किसीको बाई करेंगे।
शामिल नहीं होना चाहिये । हम समझते हैं छठा प्रस्ताव मंदिरोंमें व जनतामें शुद्ध स्वदे. बालविवाह, वृद्धविवाह, कन्याविक्रय भादि धी सूती बसा ही वापरने का है। अर्थात मतीव रोकनेका यह मसहकारका उपाय बहुत ही
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दिगम्बर जैन ।
[ वर्ष १७ उपयुक्त होगा व करनेवाले शर्मी दे होकर दूसरी कि कार्यकर्तागण शीव ही नियमावली बनाकर वार ऐसा कार्य नहीं करेंगे । जातिच्युत और परिषद का कार्य सुचारु रूपसे करते रहेंगे । दंडसे यह उपाय सबसे बढ़ कर है कि ऐसा कोई अंतमें एक बात हम अवश्य कहेंगे कि परिषदके कार्य करें उनके यहां लड्डू खाने, जलूसमें जाने हेतु व उद्देश प्रचार में लाने के लिये परिषदने आदिमें बिलकुल शामिल ही न होवें। जो "वीर" नामक पाक्षिकपत्र व सीतलप
११वां प्रस्ताव व्यर्थव्यय रोकने का है। इसकी सादज के संपादकत्व व बा० कामताप्रसादजीके ६ कलम हरएक पाठक विचारपूर्वक पढ़ें व उपसंपादकत्वमें प्रकट करना प्रारम्भ किया है व उप्तका अपनी२ बिरादरी में अपील करनेका दृढ़ नो उत्तम उपयोगी लेखोंसे अलंकृत होकर हर प्रयत्न करें।
पक्षमें निकलता है उत्तको दि. जैनके हरएक १२वां प्रस्ताव ७०००)के वनट का है जिप्तमें पाठकको विजनौरसे अवश्य मंगाना चाहिये । करीब १०००) ही परिषदमें आये थे और वार्षिक मूल्य सिर्फ ९॥) वार्षिक है जो अतीव द्रव्य विना सब प्रस्तावों की अमली कार्रवाई न है । केसी हो सकेगो इसलिये श्रीमानों का फर्ज है परिषदके मंत्री ला० रतनलालजी जैन वकील कि परिषदको द्रव्य सहायता भेनकर कार्यकर्ता- बिननर अतीव उत्साही व धर्मप्रेमी होनेसे ओंको उत्साहित करें।
परिषद अपने कामों में भविष्यमें बहुत सफलता १३ वा प्रस्ताव-वेदी प्रतिष्ठाऐं कम व साद. प्राप्त करेगी ऐसी सम्भावना है इस लिये सारी गीसे करनेका तथा दावत व गिंदोंडाका तथा जैन समाजको इसको अपनाना चाहिये । अन्य रसमोंके रिवाजोंके बंद करने का है इस राजगिरिमें दिगंपरियों पर दावापर समाजको विचारना चाहिये और अब इस हमारे श्वेतांबर जैन भाइयों ने फिर और एक नया दिशाको समयानुकूल बदलना चाहिये । आव. झगड़ा खड़ा कर दिया है अर्थात राजगिरिक्षेत्रके श्यक वेदीपतिष्ठ एं अवश्य हों परन्तु वे साद- विषयमें १० दिगंबर जैनों र बांकीपुरकी कोर्ट में गीसे होनी चाहिये निससे कम खर्चमें काम दावा दायर किया है कि राजगिरिका पहाड़ सर्षे हो जावे ।
मंदिर, जमीन रस्ताओ वगेरहपर श्वेतांबरी जैनोंकी १४वां प्रस्ताव छात्रवृत्ति फंड खोलने का है मालिकी है । दिगंबरों का इसमें कोई भी हक इसपर तो श्रीमानोंको बिचार करने का है। नहीं है कि वे किसी इतनाममें दखल करें। माशा है इस विषयमें अन्य श्रीमान् लोग इसलिये श्वेतांबर जैन ही राजगिरि तीर्थके स्वर्गीय दानवीर सेठ माणिकचंदनीका अनुकरण मालिक माने जावे आदि । इस केसकी तारीख करेंगे।
७ जूनको है । उस दिन दिगंबरियोंकी ओरसे १५ व १६ वां प्रस्ताव तो परिषदकी प्रबंध बचाव नामा पेश होगा । हमारी तीर्थक्षेत्र कमेटी कमेटी व नियमावली बनाने का है। माशा है इसके लिये बहुत कोशिश कररही है।
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वर्ष १७ ]
दिगम्बर जैन । dataalaaksavatats NEENIENSINEERING सेठीजी पुत्रका वियोग-हमारे चिर जैन समाचारावलि परिचित पुराने समाजसेवक पं. अर्जुनला
लजी से ठं के इकलौते पुत्र प्रकाशचंद्र सेठोका EPRENERAR TREETTESEREEEERSITY
जोधपुरमें देहान्त होगया । प्रकाश चंद्रनी भी , केशरियाजीमें ध्वजा दंड नहीं
२० वर्षकी आयुमें राष्ट्रीय कार्यों में खूब भाग चढा-कई दिनोंसे सुनने में आता था कि ले रहे थे। आप हिन्दी की कविताएं भी अच्छी वैशाख सुदी को केशरियानी में उदैपुर रिया- बनाते थे। सेठनीको प्रकाशचंद्रजीके वियोगसे सतकी ओरसे वैष्णव रीति अनुसार ध्वनादंड बड़ा अघात पहुंचा है। चढ़नेवाला था इसके विरोध हमारी तरफ से दो नए क्षलक-बाहबलि पहाड़पर मुनि भनेक तार चिट्ठियें चहुंची थीं तथा रा• ब. शांतिसागरजीके केशलों के समय ब खुशाल सेठ टीकमचंदजी, रा. ब. नांदमलजी, सेठ चंदनी व ब. हीरालाल जीने क्षुल्लक पद धारण ठाकोरदास भगवानदास जौहरी, सेठ राजमलजी किया है। दोनोंके नाम अब क्रपशः चंद्रप्तागसेठी आदि केशरियाजी व उदेपुर पधारे थे रजी व वीरसागरजी रखे गये हैं। तथा एक भाई तो सत्याग्रह करनेको पहुंचा सिद्धवरकूट-में मुनि चन्द्रपागरजीने था जिससे फिलहाल ध्वनादंड चढ़ना बन्द वैशाख सुदी १ को केशलोंच किया था तब रहा है । सेठ टीकमचंदजी साहबने उदैपुरमें ७०० नरनारी उपस्थित हुए थे। कुंवर साहबसे मिलकर इस विषयकी चर्चा की पपौरा-की पाठशालाकी द्रव्याभावके कारण थी व मागे महाराजाको भी मिलनेवाले हैं। टूटने की संभावना हो रही है। बुंदेलखडके श्वे. जनोंकी ओरसे एक बेरिस्टर व दस पांच भाइयों का कर्तव्य है कि वे पं. मोतीलालजी साधु भी वहां पहुंचे थे परन्तु झगड़ा किती वर्णी द्वारा अतीव परिश्रमसे स्थापित इस पाठ. प्रकारसे न होने पाया था ।
शालाको सहायता देकर चालू ही रक्खें । विवाहमें दान-दाहोदमें अभी विवाहके मलकापुर-में श्राविका सुबोध पाठशालाका समय इस प्रकार दान हुमा था-कोठारी पन्ना. उत्सव जैनमहिला रत्न श्री ललिताबाई के लाल दलीचंद ५१) पाठशाला व १५०) मंदि- सभापतित्वमें ता. २८-४-२४ को हुआ रनी व अन्य, संस्थाओं को लूणनी चन्दालाल नी था जिसमें ललिताबाईने पाठशालाके कार्यसे १०१) पाठशाला व १०२) अन्य सेठ चुन्नी- संतोष प्रकट करके अध्यापिका प्रभावतीबाईके काल हंसरान १५) पाठशालानी कन्हैयालाल, कार्यकी प्रशंसा की थी। ३१) पाठशाला
महाविद्यालय-व्यावरमें गरमीकी छुट्टी वर्धा में-सेतवाल जैन सभाकी ओरसे 'सेत. आषाढ वदी २तक हुई है। इसमें प्रवेशेच्छुक बाक सुदर्शन' मासिक प्रकट होनेवाला है। १० विद्यार्थियोंकी आवश्यकता है।
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दिगम्बर जैन
[अंक १ सूरत-नी श्राविकाशालानी परीक्षा त्यागी काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में देवसागर व सुखानंदनी ब्रह्मचारीए ता० ३ फिझीक, केमीस्ट्री, जियोलोजी, बायोलोनी व मईने दिने लईने अतीव संतोष प्रकट कर्यो माइनिंगकी शिक्षा दी जाती है । उच्च कोटि की हतो । हाक एनो २५ बालिकाओ अने ३० संस्कृत शिक्षाका भी प्रबंध है । जो जन विआवविकाओ लाभ ले छे।
यार्थी इस विद्यालयमें प्रवेश होना चाहे वे महावीरजीके मेले में इस वर्ष चैत्र नीचे के पतेसे अंग्रेजीमें पत्र लिखनेपर सब सुदी १५ पर क्षेत्रकी सुव्यवस्था करनेके लिये प्रकारकी सहायता ले सकते हैं । मईके अंततक एक बड़ी सभा रा. बा० सेठ कल्याणमलनीके आगमनकी सूचना देनी चाहिये । के० मिनराज सभापतित्वमें हुई थी जिसमें १० महाशयों की हेगडे आ. मंत्री जैन एसोशियेशन काशी कमेटी प्रबंधके लिये नियत हुई है जिसके मंत्री हिन्दू विश्व विद्यालय-काशी। रामचंद्र खिंदुका पर हुए हैं तथा धर्मशालाकी महावीर जयंती-इस वार चैत्र सुदी मरम्मतके लिये अपील होने पर १०.१) सेठ १३ को महावीर जयंती उत्सव सूरत, आगरा, कल्याणमल नी, २५१) सेठ हीरालाल पाटनी, ललितपुर, विखरोन, कारंना, शिवपुरी, गोटि२५१) वीरसेवक मंडल जैपुरने भरे थे। टोरिया, कुंथलगिरी, सोलापुर, सुनानगढ़,
पुरातन शहर मांडू-य. गेबीलालजी जालंदर, कलकत्ता, नागपुर, रामपुर, नातेपुते, अपने भ्रमणके हाल में लिखते हैं कि मैंने भभी वर्धा, ननानपुर, बाकरोल, सागर, मुंथरामपुर, धर्मपुरीके पाप्त मांडू (मांडकपुर) नामक पुरातन राणापुर, मादि स्थानों पर मनाया गया था। शहर देखा तो मालूम हुमा कि लोग बम्बई कल- ऋषभ ब्र० आश्रम-का वार्षिकोत्सव कत्ताको बड़ा मानते हैं परंतु यह तो ३६ कोस वैशाख सुदी ३ को होनेवाला था, परन्तु कारबम्बा चौड़ा किला दरबाजा सहित मनबूत बना णवशात् इसवर स्थगित रखा गया है । है। पांच १ खंडके मकान हैं जिनके २ मजल गोहानामें जैन वनिताश्रम-देहली तो जमीनमें हैं। तमाम काम पत्थरका वना है। निवासी ला. हुकमचंद जगाधरमलकी विधवा बड़े २ बाजार हैं। बड़ा जैन मंदिर भी था सुपुत्री ज्ञानमतीने अपने नामसे गोहानामें - जिप्समें जमीनसे प्रतिमा निकली थी वह दि० वैशाख सुदी ३को जैन वनिता आश्रम खोल जैनोंकी संभाल न होनेसे श्वेतांबरी होगया है। दिया । मुहू ब्र० शीतलप्रसाद नीने कराया मांडू महादेवका स्थान भी यहां देखने योग्य है। था। पं० मगनचाई व पं० चंदाबाई भी इस
हिंसा बंद-काशीपुर, पचमान व करौलीमें मौकेपर पधारी थी। इसमें कुमारी विधवा सधवा गत रामनौमीपर होती हुई बलि हिंसा जीवदया तीनों प्रकारकी श्राविकायें प्रवेश की जायेगी। सभा आगरा के प्रयत्नसे बहुत अंशोंमें बन्द कमसे कम ९ वर्षकी कुमारिका तक प्रवेश हो हुई थी।
सकेगी व समर्थसे १) मासिक लिये जांपगे।
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- अंक
दिगम्बर जैन । पंजाब प्रां० सभा-पानीपतमें चैत्र सुदी नीमच में मालवा सभा-नीमचकी ६-७-८ को पंजाब दि. जैन प्रांतिक सभाका छावनीमें वेदी प्रतिष्ठाके साथ २ दि. जैन प्रथम अधिवेशन श्रीमान् आ० ला• प्यारेला- मालवा प्रा० सभाका २० वा अधिवेशन शेठ कमी जैन वकील देहलीके सभापतित्वमें सफ- देवीचंदजी मंदसोरके सभापतित्वमें चैत्र सुदी बता पूर्वक होगया। स्वागत सभापति रा० ब० ११-१२को होगया जिसमें सर सेठ हुकमचंदनी, का. वक्ष्मीचन्दजी व सभापति बाबू प्यारेलाल- ब. गेबीलालजी आदि खास पधारे थे । इसमें भीका व्याख्यान समयानुकूल बहुत ही योग्य कुल ८ प्रस्ताव इस प्रकार पास हुए हैं-(१) हुआ था । कुल १७ प्रस्ताव हुए हैं जिनमेंसे ला• जम्बूपसादजी, पन्नालालजी न्यायदिवाकर, महत्वके ये हैं-(१) सभ के प्रचारार्थ पंनाब ब्र० ज्ञानानंदनी भादिके मृत्युके लिये शोक। (२) प्रान्तमें जिला सभा व जिलाओंमें तहसील सभाएं बाल सगाई, बाल विवाह (१९ वर्षसे कम वर स्थापित की जावे (२) दो उपदेशक रखे जावे व ११ वर्षसे कम उम्र कन्याकी होना) वृद्ध (३ वेश्यानृत्य, बागबिहारी, आतिशबाजी, बूर, विवाह, कन्याविक्रय, व्यर्थव्यय आदि बंद करने बखेर मादि बन्द हो (४) नरनारी समानों के लिये पंचायते कडा नियम बनावें । (३) शारीरिक बरकी स्थिरता व भार्थिक लाभके प्रत्येक दि. जैन मंदिर व पंचायतीके प्रबंधकर्ता लिये व्यायामशाला खोली जावे, प्रत्येक घरमें अपने २ मिम्मेका हिसाब प्रतिवर्ष प्रकाशित मन्न पी: नकी चक्की, कातनेके लिये चरखे व करें (४) दि. जैन धर्म स्वीकार करनेवाले व धुन नेके लिये करधे रखे जावें तथा शुद्ध सादा अपने राज्यमें हिंसा बंद करनेवाले ठाकुर क्रूरभोजन व शुद्ध स्वदेशी वस्त्रोंका उपयोग करके सिंहजीको धन्यवाद (५) सर सेठ हुकमचंदनीको सादा जीवन व्यतीत करे (१) संख्या ह्रासके कारण १ लाख रु. के विशेष दानके लिये धन्यवाद, जाननेके लिये कमेटी की नियुक्ति (६) मंदि (६) सं० २६५० के लिये २७५००)का बजट रोंमें शुद्ध स्वदेशी वस्त्रसे प्रक्षाल की जाय तथा (१० खातोंके लिये) पास किया जाय (७ बजट श स्त्रके वेष्टन शुद्ध स्वदेशी वस्त्रके ही बनाये पूर्ति के लिये फंड किया जाय, (८) ला. जाय (७) सरकारी खाते व स्कूल कोलेजोंमें हजारीलालजी नीमच छावनी (मुनीम सर अनंत चतुर्दशीकी छुट्टी दीनाय (८) युनीवर्सि- सेठ हुकमचंदनी)को धर्म व जाति सेवाके लिये टियोंमें जैन साहित्य व व्याकरणके अन्य प्रवेश " जैनजातिभूषण "का पद दिया जाय । किये मांय । (९) विवाह के समय कन्याकी उम्र समामें करीब ८००) का ही फंड हुआ था। १३ व वरकी उम्र ११ वर्षसे कम न हो शास्त्र दान-जीवदया सभा भागराको (१०) सर्व कौंसिलों व म्यूनिसिपालिटियोंमें ला• मुसद्दीलाळ अमृतप्तरने महिंसाविषयक एक २ जैन सभासद चुनावसे नियत किया पांच हजार ट्रेक्ट खरीद करके दिये हैं तथा जाय भादि ।
१०००) ट्रेक्ट वितरण विभागको दिये हैं।
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दिगम्बर जन।
[वर्ष १७ मुजफ्फरनगरमें महिला परिषद - गोमट्टसार व पंचास्तिकाय पढ़ना चाहिये व मुजफ्फरनगरके मेले में भा० दि० जैन महिला उनकी परीक्षा लेनेके लिये भी माणिकचंद परिषदका १३ वा अधिवेशन दानशीला श्रीमती परीक्षालयको सुचना । बेसरबाईनी बड़वाहके सभापतित्वमें अतीव राणापुर-में मुनि शांतिसागरजीके उपदे. सफलता पूर्वक होगया । श्रीमती पं० मगनबा. शसे पाठशालाको २१६४) व सागवाड़ा ईनी, पं० चंदाबाईनी, रामदेवीबाई, गोपीवाई, विद्यालयको ३७९) मिले थे। संजोदेवी, लाजवंतीवाई, ज्ञानवतीबाई खास गिरनारजी-में तीर्थक्षेत्र कमेटीकी ओरसे पधारे थे । परिषदकी कुल ४ बैंठकें हुई थीं जिनमें मुनीम रखने का प्रबन्ध होगया है । भव प्रबंध बाईयों को अच्छा धर्मोपदेश हुआ व नीचे लिखे सुधरनेकी पूर्ण उम्मेद है । प्रस्ताव पास हुए हैं व परिषदको ९०४) की रांची-में शिखरजीका ईनकसन केस चालू सहायता मिली व ११ ग्राहक जैन महिलाद- है। दोनों ओरसे गवाह होगये हैं । इसमें
के होगये । प्रस्ताव (१) कन्याशालाओं की बैरिष्टर चंपतरायजी व बा० अनितपसादजी सुव्यवस्थाके लिये एक इन्सपेक्टर बाई अथवा वकील निःस्वार्थ वृत्तिसे कार्य कर रहे हैं जिससे वृद्ध भाईको रखा जाय (२) बहिनें महीन विदेशी हजारों रुपये का बचाव हमको हो रहा है । वस्त्र पहनना छोडे व धन तथा धर्मको बचाने के दोनों ओरकी वहस ता. १३ मईको पूर्ण हो लिये शुद्ध व स्वदेशी खद्दरके वस्त्र पहिने (३) गई और अब शीघ्र ही केसका फैसला मिलेगा। विधवा व्हेने संतान रहित होनेपर गोद लेवे तो अंतरीक्षजी- में दि मुनीम व पुनारीपर माधी सम्पत्ति अन्यथा सर्व संपत्ति का उपयोग स्त्री श्वे. मनोने फौजदारी केस चलाया है जो शिक्षा प्रचारमें वरे (४) दो जैन स्त्री उपदेशि. चालू है। कायें (प्रौढ अवस्थाकी) उपदेशार्थ रखी जाय श्रुतपंचमीपर भवनका अधिवेशनइसके लिये १२००) वार्षिकका प्रबंध किया जाय ऐलक पन्नालाल दि. जैन सरस्वती भवन बम्ब (६) श्री सौ. कंचनबाई धर्मपत्नी सर सेठ ईका द्वितीय वार्षिक अधिवेशन आगामी ज्येष्ट हुकमचंद्रजोको स्त्री समन सेवाके उपलक्ष्य में सुदी ५ को होगा जिसमें सालभरका कार्य दानशीला व श्रीमती ललिताबाईको विवरण व आम व्यय सुनाया जाकर आगामी जैनमहिलालका पद दिया जावे-(६) साल का कार्य निश्चित होगा। सब भाई अवश्य र देशमें स्त्री व बच्चों की बढ़ती हुई मृत्यु संख्याको पधारें। रसीदास जैन, मंत्री। कम करनेके लिये हरएक पाठशाला व आश्र महावीर के वकज्ञान जयंती का उत्सव स. मोंमें वैद्यकीय पुस्तकें पठनक्रममें रखी जांय म्यक्तबढिनी सभाकी ओरसे सोलापुरमें वैशाख (७) श्राविकाओंको द्रव्यसंग्रह, रत्नकरण्ड व सुदी १०को हुआ था । मंदिरोंमें पूनन व तत्वार्थकी परीक्षाके बाद अर्थ प्रकाशिका, रोशनी हुई थी।
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दिगम्बर जैन ।
अंक 4]
वर्तमान में आयुर्वेद की आवश्यक्ता
और
उसकी उपयोगिता ।
वर्तमान संसार में जब हम सारे भारतवर्षकी समस्त प्रजापर दृष्टिपात करते हुए, उसकी आगामी आकांक्षाओं को देखते हैं और प्रजाकी marathi अपने कर्णगत करते हैं, तो चारों तरफसे स्वदेशी शब्दकी ही तुमुलध्वनि सुनाई पड़ती है-याने प्रम महांतक सब प्रकारकी देशी वस्तुएं मिलें उन्हींका ही उपयोग करना चाहती है और विदेशी वस्तुका त्याग करना चाहती है। सो वास्तव में ऐसा होना ही चाहिये क्योंकि यह तो प्राकृतिक नियम है कि जहांका - मनुष्य पैदा हुआ होता है, उसी देशकी बनी वस्तुओंसे उसकी प्रकृति सुखमय रह सक्ती है । अतएव भारत वासियों को भारतवर्षकी बनी हुई वस्तुओं की अभिलाषा होना तो स्वाभाविक ही है।
अब यदि ऐसे सुअवसरपर ( जब कि समस्त भारतवर्ष समस्त प्रकारकी स्वदेशी वस्तुओंका
भिलाषी हो रहा है । ) हम लोग न चेतेंगे और भारत की मांग पूरी न करेंगे तो प्रजाको परवश होकर विदेशी वस्तुओंसे ही अपनी मांग पूरी करना पड़ेगी । अतएव हमारा इस समय पहिला फर्ज है कि जिस किसी प्रकार भारतव की मांग पूरी करें और अपना पैसा अपने ही घर में रक्खें- दूसरोंके हाथमें नहीं दे देवें ।
हमको यहां पर यह विचार करना है कि भारतवर्ष में किस वस्तुकी अत्यन्त जरूरत है जिसकी कि हम शीघ्र पूर्ति करें। वह हैं
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१ औषधि २ कपड़ा, ३ लोहे का सामान, ४ खिलोना वगैरह । पाठक महाशयो ? पहिले जमाने में यही भारतवर्ष अपने देशकी मांग पूर्ण करते हुए और २ देशोंकी मांगें पूर्ण करता था, किन्तु वर्तमान में वही भारतवर्ष अपने देश की ही मांग पूर्ण न करके पर मुखापेतो बन रहा है इसका कारण अतिरिक्त एक आवश्यके और क्या हो सक्ता है ? अस्तु
पाठक महाशय ? उपर्युक्त चारों विषयों में से मैं सिर्फ पहिले विषय अर्थात् औषधिका ही व्याख्यान कथा, शेषका नहीं क्योंकि "शरीस्माद्यं खलु धर्मसाधनम्" इस ऋषिवाक्य के अनुसार जीवमात्रको शरीरकी रक्षा करना पहिला कर्तव्य है और शरीस्के स्वस्थ रहने से ही धर्म की सिद्धि हो सक्ती है जो अन्यथा नहीं ।
es हमको यहां औषधिकी आलोचना करते हुए यह भी विचार करना है कि हम भारत वासियोंका अच्छा स्वास्थ्य स्वदेशी औषधियोंसे रह सक्ता है या विदेशी औषधियोंसे, क्योंकि संप्रति हमारे समक्ष यहीं समस्या उपस्थित है और दोनों पक्षोंपर विचार करके जो पक्ष हमारे अनुकूल हो हमारे धर्मका रक्षक हो - हमारे घनका रक्षक हो उसी पक्षको स्वीकार करें । पाठकों ! वास्तवमै सुक्ष्मदृष्टिसे विचारा जाय तो यही सिद्ध होगा कि जो मनुष्य निख देशकी भूमिमें उत्पन्न होकर जिस देशकी व्यवहवा में परिपालित हुआ है उस मनुष्य का स्वास्थ उसी देशकी उत्पन्न हुई औषधियोंसे ही निरोग रह सक्ता है अन्यथा नहीं। जैसे कि जलमें उत्पन्न हुई मछली जल ही में स्वस्थ रह सक्ती है न कि
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दिगम्बर जैन
- मंक ५ थलमें । इत्यादि-इसलिये यही सिद्ध हुआ कि ४-उदाहरण-पेटके दर्दपर अंग्रेजी दवा हम मारतवासियोंको विदेशी औषधी स्वास्थप्रद कौलिकक्योर (पेटका दर्द नाशक) १ शीशीका नहीं है-प्रत्युत स्वदेशी औषधी ही हमारे दाम ॥ है-किन्तु मायुर्वेद शास्त्रमें )। पैसेका स्वास्थ्यको मुखपद है । दूसरा कारण एक यह शुद्ध कुचला क्षार चूर्णके साथ खानेसे ही दर्द भी है कि विदेशी औषधियों में हमारा पैसा भी साफ हो जाता है इत्यादि। सभी प्रायः अंग्रेजी अधिकांश खर्च होता है, क्योंकि हम प्रत्यक्ष औषधियां ऐसी हैं जिनकी की वीस२ गुणी देखते हैं कि जितने दाममें विदेशी औषधिसे चालीसर गुणी कीमत है, जिनका व्याख्यान मैं १ रोगी अंच्छा हो सक्ता है-उतने ही दाममें यहां पर नहीं कर सक्ता हूं। स्वदेशी औषधीसे कमसे कम २० रोगी सरलता यह तो बात हुई द्रव्य बचानेकी अपेक्षासे । पूर्वक शीघ्रतया अच्छे हो सक्ते हैं, जिसके ? अब सोचिये जरा धर्मपर जिसकी बदौलत कि उदाहरण मैं पाठकोंके समक्ष उपस्थित करता हूं। हम अपने सबके सिरमोर कहते हैं।
१-उदाहरण मामूली फसली बुखारपर पाठकों ? धर्म ही एक वस्तु है कि जिसकी • अंग्रेजी दवा मलेरियाक्योर ( फसली बुखार बदौलत यह संसार स्थिर है-यदि कुछ मुख नाशक ) १ शीशीका दाम ||-) है-किन्तु है तो एक धर्महीके रहनेसे । यदि शांति है हमारे भायुर्वेदी शास्त्रमें फसली बुखारमें )॥ तो एक धर्महीके रहने से । यदि प्रेम है तो धर्म पैसेका काढा ही काफी है-याने गिलोय, धनियां, हीके नातेसे । यदि प्राणीमात्रका जीवन है तो नीमकी छाल, पद्माक चंदन, लालचंदन ये पाचों सब धर्म मात्रके सहारेसे। जब इस प्रकार धर्मका
औषधी बनारसे ॥ पैसे में ले भावे और काढ! ही सब जगह सम्बन्ध है तब धर्मकी रक्षा करना बनाकर ४ समय पिलानेसे बुखार चला जाता है हमारा पहिला कर्तव्य है अर्थात् हमको यहापर
२-उदाहरण, मामूली खांसीपर अंग्रेजी दवा यह विचार करना है कि हमारे धर्मकी रक्षा कफश्योर ( खांसी नाशक ) १ शीशीका दाम विदेशी औषधीसे हो सकी है या स्वदेशी 1:-) है, किन्तु हमारे यहां । एक पेसेकी औषधीसे । बस दोनों में से जिससे धर्मकी रक्षा हो दवाईमें खांसी चली जाती है- भटाकटाईका काढा वही ग्राह्य है और जिससे धमकी हानि हो बनाकर उसमें थोडासा पीपलका चूर्ण डालकर वही त्याज्य है। अतएव "अहिंसा परमोधर्मः" पिलादो बस खांसी साफ हो जायगी। यह जो धर्मका लक्षण जितको कि समस्त भार
३-उदाहरण, वदहज्मीपर अंग्ने नी दवा डिस- तवासी मानते हैं-इस धर्मके लक्षणके अनुप्सार पेप्सीयाक्योर ( वदहज्मीनाशक ) १ शीशीका तो विदेशी औषधी त्याज्य हैं जौर स्वदेशी दाम ॥) है-किन्तु आयुर्वेद शास्त्रमें क्षार चूर्ण औषधी ही ग्राह्य है, क्योंकि फीसदी ७५ या लवणभास्कर ही काफी है, निसकी ॥ पैसेमें विदेशी औषधी ऐसी हैं जिनमें कि प्राणियों के कमसे कम ८ खुराक चूर्ण बनेगा।
मांसका संसर्ग है।
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अंक ५ ]
दिगम्बर जैन । - अतएव जब विदेशी औषधियोंमें मांसका चन्द्रमाकी ज्योत्स्नाकी तरह प्रकटित होगा। संसर्ग सिद्ध हुआ तब कौनसा ऐसा भारतवासी बस अन्तमें यह तुच्छ लेखक पाठकोंसे क्षमा होगा जो ऐसा जानकर भी मद्य मांस मिश्रित मागता हुमा प्रार्थना करता है कि आप लोग विदेशी औषधी सेवन करेगा, क्योंकि यह धर्म लेखकी त्रुटियोंपर ध्यान न देते हुए लेख गत प्रधान भारतवर्ष है, जहांके हम रहनेवाले हैं भावको गृहण करेंगे । और आयुर्वंदकी उन्नहम कभी भी धर्मका परित्याग नहीं कर सक्ते, तिमें दत्तचित्त होंगे। पाठकोंका-सेवकचाहे धर्मके लिये यह प्राण भी चले जायें किंतु मायुर्वेद भूषण सत्यन्धर जैन वत्सल काव्यतीर्थ । धर्म नहीं छोड सक्त।
-- -- ___ अतएव प्यारे पाठको ? आजसे इस बातकी प्रतिज्ञा ले लो कि हम विदेशी बस्तुओं का सेवन नहीं करेंगे किन्तु शरीरको निरोग रखने के लिये संयम पूर्वक रहकर परमितभोगी होते हुए चन्द्रपभु चरणों शीश नवावें (टेक ) ॥ धर्मका परिपालन करते हुए स्वदेशी औषधि- चन्द्रपभु निरखकर तुमको चरो शिश नमावें । योंका ही सेवन करेंगे।
चन्द्रच्छटा देखकर मन में अतुक शान्तिता पावें। प्रिय पाठको ! जब हमारी प्रना स्वदेशी
(चन्द्रप्रभु चरणों शीश०) औषधियोंकी तरफ झुक जायगी तब हमारे वैद्यों ।
" तब हमार वया है वह चन्द्र कलंकी विभुनर निःकलंक तुम पावें ॥ और हकीमों तथा विशेषकर डाक्टर महोदयों का
" वह अमृतहि अगदेको दाता आपसे स्वर्गमोक्षको पावें॥ क्या कर्तव्य होगा ? सो भी सुनिये। __ मेरे पूज्य वैद्यरानो तथा मानवर्य्य हकीम
"चन्द्रपभु चरणों शीश०" महोदयों! तथा डीयर डाक्टर महोदयों ! अब वह चन्दा कोरा ही चंदा रविकर श्वेत दिखावे । भाप लोग स्वदेशी औषधिओं का प्रचार करने में अनुपम ज्योति अनोखी आपकी अतुल शांति वरसावै॥ तत्पर हो जाइये क्योंकि समस्त भारतवर्षीय
"चन्द्रप्रभु चरणों शीश." ॥ प्रजा अब आपके ही आधीन है अतः आप सेवक दुःखकर पूरि रहो है किंचित शांति न पावै । लोगोंका कर्तव्य है कि शुद्ध भावसे स्वदेशी शीघ्र कृपा अब करी प्रभुनी सोषसांग मिल जावै॥ औषधियोंका प्रचार करें और विद्यार्थियों को
___"चन्द्रप्रभु चरणों शीश०" ।। मायुर्वेद पढ़ावें तथा सर्नरीके साथ डाक्टरी भी
विनीतसिखावें । जिससे प्राचीन भायुर्वेदकी उन्नति
जैन पाठशाला मुन्नालाल विशारद, होकर भारतवर्षके प्रत्येक घर २ मायुर्वेद , शास्त्रानुसार स्वदेशी औषधियोंकी उन्नति
स्या. शांतिनिकेतन । दमोह सी० पी० । हो। तभी माप लोगोंका मुयश जगतमें भौषधिको भमतदाता है।
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दिगम्बर जैन ।
[ वर्ष १७ FESTYLEEEEEEEEEEEEEEET अफसोस और तो क्या उसकी विद्यमान विद्या
__दरिद्रताके दुःख । पर भी शोभित नहीं होती है। प्रिय बन्धुवर DANEEEEEEEEEEEEEEEEEET
विशेष तो क्या वह दरिद्रतासे ठगाया हुआ दरिद्रताके सदृश इस दुःखमयी क्षण
कुछ भी नहीं कर सकता है । वह दरिद्र पुरुष स्थायी परिवर्तनशील जगतमें अन्य
G सामिप्राय धनिक मनुष्यों के मुखकी तरफ देखता दुःख अवनतिके क्षेत्र में पदार्पण करानेवाले नहीं है
तिके क्षेत्र में पदार्पण सोही रहता है। हैं। शारीरिक मानसिक वाचनिक दःखों में वाचद दरिद्रसे सताया हुआ यह मनुष्य यही दुःख मनुष्यका परम शत्रु है। और यह
घनके लिए तरसता रहता है। एक विचारशत्रु ऐसा बलिष्ठ है कि किसी भी गौरव
शील विद्वान् मनुजका कथन है कि-दारिद्रयत् शाली मनुष्यको मात्म-गौरवसे पतित कर देता
हियमेतिपरिगतः सत्वान् परिभृष्यते । निःसत्वहै। इस बलिष्ठ कष्टने हिन्दुस्थानियों को भी
परिभूयते परिभवान् निर्वेदमापद्यते । निर्दण्णाः बुरी तरहसे सताया है । इस कलिकालके निक
शुचिमेति शोकनिरतो बुद्ध्या परित्यज्यते । ष्ट समयमें प्रायः ऐसे मनुष्य मिलते हैं, जिनके
निर्बुद्धि क्षयमेत्यहो निधनता सर्वापदामास्पदम् । पास शरीरकों भाच्छादित करनेके लिए वस्त्र
दरिद्र मर्त्य विनश्वर पंचपरावर्तन नहीं है, उदर पूर्तिके लिए भोजन नहीं है।
शोकमयी संसारमें स्वाख्यातिको प्र. जिनको देखकर प्रत्येकका हृदय द्रवीभत हो काशित नहीं कर सकता। दारिद्रया. जाता है। विचारशील नीतिवेत्ता मनुष्योंने वस्थामें यह मनुष्य अध्यात्मिक शक्तिसे कहा है कि ।
भी गिर जाता है। शारीरिक बल होनेपर दारिद्रयानमरणाहवि दारिद्रयमवरं स्मृतम् । भी मगर दरिद्रता उसके शिरपर सवार है तो अस्पषलेशेन मरणं दारिद्रयमतिदुःसहम् ॥ निश्चयतः शारिरिक व आत्म बसे पतित हो
अर्थात् मृत्यु और दरिद्रतामें मृत्युकी अपेक्षा जाता है। शारीरिक व मात्मबलसे पवित मानदरिद्रता खराब है। क्योंकि मृत्यु तो अल्प व अपनेको मनुष्य श्रेणीमें न समझकर शोकसे क्लेशसे होती है किंतु दरिद्रता अति दुःख देती मातुर होकर नीचावस्थाको प्राप्त हो जाता है। है। और भी कहा है कि
दरिद्र मनुष्यके हृदय-पटलसे पूज्यापूज्य हितारिक्तस्य हि न जागर्ति कीर्तनीयोऽखिलो गुणः। हितका परिज्ञान भी कूचकर जाता है । " विष हन्त किं तेन विद्यापि विद्यमाना न शोभते ॥१॥ सभा दरिद्रस्य " इस कहावतको भी चरितार्थ स्यादकिंचित्करः सोऽयमाकिंचन्येन वञ्चितः । करदेता है । बंधुवर्य दरिद्र मनुष्य धर्मके कार. मलमन्यैः ससाकूत धन्यक्कं च पश्यति ॥२॥ णोंका परित्याग करके धनार्थ कुत्सित कार्यो
मर्थात निश्चयतः दरिद्रपुरुषके भगत-प्रश- प्रवृत्त हो जाता है। समीय संपूर्ण सदगुण प्रकाशित नहीं होते हैं। चांदमल जैन विशारद, पचार।
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અદ ૧ ] . વિના જૈન
સમુદ્રી અંદર વરસાદનું મીઠું પાણી પડવાથી તે પણ ખારૂં થઈ જાય છે. પરન્તુ તે જે
સારા નક્ષત્રની અંદર પડે છે તો તે કિંમતી મત @@ @@ @d
રૂપે નીવડે છે. કે જેની કિંમત અમૂલ્ય હોય છે, - ( લેખક કે. એન. મીઠાવાલા ઇડર)
બે પિપટ હોય અને બને જુદા જુદા ઘેર - સત્-મારી સેબત-ઉં સારી સોબત રાખ. ઉછરેલા હોય તો જેવી સોબત હશે તેવાં તે કેળવી તે તેની શરૂઆત કરવામાં સૌથી ઉત્તમ સાધન વાશે, કઈ પિપટ મીઠા અવાજથી આવકાર જ્ઞાન છે. જ્ઞાન એ એક શકિત છે. કોઈ પણ આપશે જ્યારે તેને બીજો ભાઈ અપમાનથી રજા પદાથ વિષે કાંઈ પણ જણવું તેનું નામ જ્ઞાન
આપશે. છે. જેવી રીતે પાણી વિના અગ્નિ શાન થી નાનું બાળક હોય અને તેની માતા સાથે નથી તેમ જ્ઞાન વિના મોક્ષ સુખ મેળવી શકાતું જીતેન્દ્ર ભગવાનની પૂજા કરવા જતું હોય તે નથી. સસંગ એ જ્ઞાન પ્રાપ્તીનો ભાગ છે. જેમ માતા પુજન વગેરે કરશે તેમ બાળક પણ મનુષ્ય સેબત એવી કરવી જોઈએ કે તેનાં કરતાં કરશે અગર જોઈતો રહેશે જ કાણુ તેના સંરકાર સામે માણસ કંઇક વધારે જાણતા હોય કે જેથી તેના પર પડે છે. તેનાથી ઉલટું માતા જેવી હશે તેની બુદ્ધિમાં કંઇ વધારો થાય. સારા સંબતી
તેવાજ ગુણ બાળકમાં અવતરશે.
તે એના ખરેખરા ગુણ હોય તેને જ ગ્રહણ કરે.
રો. કલાલને ત્યાં દુધ લેવા જતાં પણ દારૂ રૂ૫ તેમનો વિવેક, ચાલ, સતુ અને મધુરવાણી ગ્રહણું કરે
છે. ભાસે છે. કારણકે લોકોની માન્યતા તો એવી જ સારી સેબત રાખવાથી અન્ય જનોના મનમાં
છે કે કલાલ દુધ વેચે નહિ પણ દારૂ વેચે આ
બધું સેબત ઉપર આધાર રાખે છે. આપણુ વિષે સાસ ખ્યાલ જ આવ્યા કરવાને એ - નિસંશય છે. સુજ્ઞ મંડલીમાં ફરવાથી થોડા ઘ@
A man is known by the Con
- pany he keeps, નોરત તેવી અસર ભારે ગુણ પણ આપણુમાં આવ્યા વિના રહેતા નથી.
કિમતી ભાત એકલો હોય ત્યાં સુધી તે ભાત જીંદગીનું સાર્થક સત્સંગજ છે. જે લોકોની
કહેવાય છે. પણ જે તેની અંદર દાળ પડે છે - પતિ તેના પર થાય છે. સસંગથીજ મનુષ્ય
તો ભાતનું નામ તેમજ જાતી બદલાઈ જઈ પિતાના ધારેલા ધ્યેયને પ્રાપ્ત કરી શકે છે, જેવી
ખીચડી એવું નામ ધારણ કરે છે. આ બધું રીતે એક પુષ્પ હોય અને તેની અંદર કીડી
બતનું જ પરિણામ છે. માણસના ગુણ તેની રહેલી હોય અને આપણે પૂજા કરતી વખતે ને
સોબત વડેજ વખણાય છે, માણસ જે જ્ઞાની અને પાનને ચઢાવીએ તે કીડી પણ ઇશ્વરના ડાઘા હોય પણ જો તેને સારી સેબત ન હોય યાદમાં જઈ બેસે છે. તેથી તે પણ સદ્ગતિને તો તે અવગતિને પામે છે. જેમ એકલું દુધ હોય શરણે જાય છે. આ બધા પ્રતાપ શાને છે. ઉત્તર કે જેને પીવાથી શરીરના અવયે મજબુત થાય એટલો જ કે સત્સંગ.
છે. પણ તેજ દુધની અંદર થોડું ઝેર મેળવ્યું | મેઘરાજ દરેક ઝાડપર સરખી રીતે વરસે હોય તો પીનારનો તરતજ નાશ કરે છે. માટે છે. પણ લીંમડા ઉપર પડેલું પણ લી એડીઓને બત કર્યા પહેલાં ઘણો વિચાર કરે અને પાત્ર
બનાવે છે કે જેની વાસ ૫ણું ખમાતી નથી. જોઇને દાન આપે. છે જ્યારે આમ્ર વૃક્ષ પર પડેલું તેજ પાણી કરી જેવા દુગના રંગથી રંગાએલા મોટા માણસની "અમૃત જળને આપે છે. જે ફળ. ક્તમમાં ઉત્તમ મર્યાદાને પણ નાશ થઈ જાય છે. પ્રસંગથી બુદ્ધિ પળ ભેખાય છેઆ બધું ખપ્પર સેબતને માન માણસોની બુદ્ધિ પણ ચલાયમાન થઈ જાય લીધેજ છે .. . . છેલગથી રંગ જરૂરથી વળગ્યા વગર રહેતો
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લia,
. શિખર તૈના
[ રે ? નથી. માટે ખોટી સેબતને શરૂઆતથી જ છોડી લાલ હરિપ્રસાદ દીવાન રા૦ સારુ બળવંતરાય અને સત્સંગને ગ્રહણ કરે.
પરમેદય ઠાકોર, પંડીત મઝા ગરજી, પંડીત. ધર્મ વતતો વશરયુતનો વિરં કમઃ પુના- ભુવનેન્દ્ર પ્રસાદજી, સંઘવી વાડીલાલ મુળજીભાઈ
વગેરે વકતાઓ તરફથી મહત્વ પૂર્ણ ભાષણ કરम्काव्यं निष्पतिभस्तपः शमदमैः शून्योऽश्पमेधः
વામાં આવ્યાં હતાં. તે પછી પ્રમુખ સાહેબના
પવિત્ર હસ્તે વિદ્યાર્થીઓને નીચે પ્રમાણે ઇનામ વત્તાવમોચનશ્ચમના દયાનં ર વાંછાણી વહેંચવામાં આવ્યાં હતાં. पः सङ्गं गुणिनां विमुच्य विमतिः कल्याण
૧ ભાઇશ્રી છોટાલાલ મોતીલાલને એક . સેનાનું ચાંદ મંડળ તરફથી તથા પાંચ રૂપીઆ
રોકડા બેકિંગ તરફથી તેમણે કરેલી નિઃસ્વાથ સારા માણસની સોબતમાં મનુષ્યની ઇચ્છા
સેવા, સદવર્તન અને નિયમિત અભ્યાસ પૂર્ણ કરવાને શા ગુણોની ખામી છે? સારી
માટે ભેટ આપવામાં આવ્યા હતાં, તથા બે સોબત ખેટી બુદ્ધિનો નાશ કરે છે, મોહને તેઓ
રૂપીઆ રોકડા ધાર્મિક પરિક્ષામાં ઉંચે નંબરે છે, વિવેકને વધારે છે, રનેહને ઉત્પન્ન કરે છે,
પાસ થવા માટે માળવા પરિક્ષાલય તરફથી ઇનામ નીતિને જન્મ આપે છે, જ્ઞાનનો વધારો કરે છે,
આપવામાં આવ્યા હતાં. મને ફેલાવે છે, ધાર્મિક કાર્યો તરફ મનને દર
૨ ભાઈ રતીલાલ કસ્તુરચંદને ઉત્તમ સંવાદ છે અને ખોટી ગતિનો નાશ કરે છે.
તથા ગાયન માટે દેહ રૂપી ઇનામ આપ
વામાં આવ્યો હતો. रूपाबाई स्मारक मंडळर्नु ૨ ભાઈ રમણલાલ વીમળાશીને એક રૂપી
ઉત્તમ સંવાદ માટે ઇનામ આપવામાં આવ્યો तृतीय वार्षिकोत्सव ।
શેઠ પ્રેમ દિગમ્બર જૈન બેગિ આશ્રિત ૪ ભાઈ કેશવલાલ કાળીદાસને આઠઆના - શ્રીમતિ રૂપાબાઈ સ્મારક મંડળનું તૃતિય વાર્ષિક ઉત્તમ સંવાદ માટે ઇનામ આપવામાં આવ્યું હતું..
અધિવેશન તા. ૬-૪-૨૪ ના રોજ બોર્ડિગના ૫ ભાઈ છગનલાલ મોતીલાલને ઉંચા નંબરનું ભવ્ય મકાનમાં જાણીતા દેશભકત શ્રીયુત કાકા સુતર કોતવા માટે આઠ આના ઇનામ આપવામાં સાહેબ દત્તાત્રેય બાલકૃષ્ણ કાલેલકરના પ્રમુખપણ આવ્યું હતું. નીચે મળ્યું હતું. શરૂઆતમાં મંગલાચરણ તથા
કાકા સાહેબે પિતાના અંતિમ ભાષણમાં સ્વાગત થયા બાદ કાકા સાહેબને પ્રમુખસ્થાન કર્યું હતું કે જે વિદ્યાથીઓએ ઇનામ મેળવ્યા છે આપવામાં આવ્યું હતું. ત્યાર પછી હિંદુ મુરલીમ તેમને હું મુબારક બાદી આપુ છું. ભાઈ છોટાલાલના એકયતાની ગાયન ગવાયા બાદ મંડળને શરૂઆ- વિષે મેં ધણું સાંભળ્યું છે. તે ભાઈ વિદ્યાથીઓ તથી અત્યાર સુધીનો એટલે છેલ્લા વર્ષનો ઉપર સારી અસર કરી શકાય છે. વિદ્યાર્થીઓને વિગતવાર રિપોર્ટ ભાઈ શ્રી છોટાલાલ મોતીલાલે બીજી રીતે પણ મારા ધન્યવાદ છે. જે દેશની વાંચ્યો હતો. ત્યાર પછી સ્વાર્થ ત્યાગ અને સેવા કરે છે અને કેળવણી આપે છે, તેવાં શિક્ષકે
સ્વદેશ ભકિતની ભાવનાથી ભરપુર વીર પ્રતાપ- પાસેથી આશિર્વાદ મેળવવો એ ઘણું સારૂ કહે: સિંહ તથા સેઠ ભામાશાને સંવાદ ગાન- વાય. જે હું રાષ્ટ્રીય શાળાને વિધાથી હોત અને તાન સહિત વિદ્યાર્થીઓ તરફથી ભજવી બતાવ- બલુભાઈના શબ્દોમાં મને આશિર્વાદ મળ્યો હોત વામાં આવ્યો હતો. ત્યાર બાદ રા રા છવણુ તે માર માસ ત્રણ રતલ વધત, બા આરિd
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ક્ષેત્ર
કઈ ? ]
હિનજર ઉના ખાસાધારણ છે. મુસાફરી કરવાથી ઘણું દેળવણી
-૩ક્ષિા મળે છે. આચાર્ય પાસેથી કેળવણી લીધા પછી તે મુસાફરીથી પૂર્ણ કરવી જોઈએ. કેળવણી દેશ
सर्वोच धम्मौका यही, सर्वस्व प्राणाधार है। સેવા તથા સમાજ સેવાથી પૂર્ણ થાય છે. જેના
बस जीवके अनुपम सुखोंका, एक थचल अधार है। ધર્મ એ વિશ્વધર્મ છે અહિંસા તપસ્યા અને
है प्राण रक्षाके लिये माना, इसे उत्कृष्ट ही। સહીતા એ જૈનધર્મના મુખ્ય સિદ્ધાન્તો છે.
इसके बराबर जगतमें है, दूसरा कोई नहीं ॥ તમે મને અત્રે બેલા ત્યારે મને વિચાર થયો
વર કા કાળાપાર હિન્દુ, મા મુકામા માગૅ 1 કે તમે એક પરજ્ઞાતિના માણસને શા માટે
खटी तमामों धर्म अरु है, जैनके आचार्यका ॥ બોલાવે છે તમારી જ્ઞાતિમાં વિધાન નરરત્ન છે તે છતાં તમે મને બોલાવ્યો, તે બતાવે છે કે
प्राणोपमासे वृहद समझो, यह अहिंसा घम्मै ही।
जिसकी अलौकिक परम ध्रुति, है गगन हीमें छारही। તમારું હૃદય ઉદાર છે સકુચીત નથી. સ્મારક
( ૨ ) મંડળે વિદ્યાથીઓમાં નવું ચિતન્ય રડવા માંડયું
किन्तु सुक्ष्म गवेषणा युत, देखना हो. ध्यानसे । છે. આજ્ઞાધારક પણું પહેલા ઘરમાં અને ત્યાર
तो बिलोको जैन दर्शन,' भति ही अपने ज्ञानसे ॥ પછી શાળામાં શીખવું જોઈએ.
भालस्य वस ही प्राणका जो, घात होता है सही। - વિવાથી ભાઈઓ? તમે જ્યારે મોટા થાઓ
बस दोड़ती हिंसा समझलो. अन्य कारण है नहीं। ત્યારે જ્ઞાતિઓનું હિત અને દેશનું હિત એકજ દિશામાં વહન થાય એમ કરજે. આજે છઠ્ઠી
क्योंकि उसके भाव प्राणोंका विमर्दन होचूका। એપ્રીલ છે. અપમાન સહન કર્યા કરતાં મરી જવું
अरु द्रव्य प्राणोंका इतन, अपने ही करसे खो चुका। એ ઘણું સારું છે. એમ છઠ્ઠી એપ્રીલ ખાપણને
भान्य जीवोंका हतन हो अथवा, वचना भाग्य फल। શીખવે છે. હજુ અમૃતસર યાદ આવે છે. કાળા
बस भावनाओं में यहां, समझो जु कुछ होगा सफल। કાયદા યાદ આવે છે. આપણી અશકિત આપણને
बस इसीसे है यहाँ पर, राग भाव विहीनता। યાદ આવે છે. તે હમેશાં ધ્યાનમાં રાખજે દેશ
होगी वही अद्धत अहिंसा, भावकी विस्तीर्णता ॥ ભત તથા ધર્મના સાચા સેવકો બનજો, તથા
शुद्धोपयोगी रूपः प्राणों का, हतन ही जान लो। અત્રેથી સારી કેળવણું મેળવી સુખી જીવન
ના રોજ હિંસા, ફીશો વહિવાન ગાળજે. : છેવટમાં શ્રીયુત પંડીત છેટેલાજીએ સુપ્રખ
यदि किसीके गमनमें हो, घत जीवोंका सही।
होश्रेष्टतायुत ध्यान जिसका, मारना बिलकुल नहीं। ભાઈઓને આભાર માન્યો હતો. ભાઈશ્રી મણી- કુલ હી નિન માણારણે હૈ, વીવા સંઘાર | લાલ કોઠારીએ આભારની દરખાસ્તને અનુમોદન ક્ષિા ન રોળી વહું નગો, વાક્ષાત , સપાહો આપ્યા બાદ પ્રમુખ સાહેબને સુતર હાર પહેરાવવામાં આવ્યા હતા, અને તે પછી પાન સોપારી
केवल यहां पर प्राण, व्यपरोण कहोजो सत्रही। લઇ અગીઆર વાગે સભા વિસર્જન થઈ હતી.
तो इशीमें दोष है अतिव्याप्तका आता सही ॥ લી. સેવક.
न्यायके अनुसारसे जो दोष कुछ आजायगा । શ૦ ખંડુલાલ ચીમનલાલ મંત્રી, तो सदा हो पद दलित नहि उचता वह पायगा। શ્રીમતી રૂપાબાઈ સ્મારક મંડળ મોહ ર
(૪માત ), - અમદાવાદ..
सी० पी० । मुन्नालाल निशंक जैन
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१६ ]
[ वर्ष १७
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दैव बिना उद्योगके, करै न कारन सिद्ध ।
नीतिरत्न- माला। बिना चलाये बाणके, स्वतः करे नहिं विद्ध ॥ व्यसनोत्सव दुर्भिक्षमें, राजद्वार समशान ।
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राज्य क्रांति में रहे निकट, बांधव सो पहचान ॥ मन्मथ होत प्रविष्ट ही, प्रथम कर धी नाश । जिम तस्कर घर में घुसत, नाशै द्वीप प्रकाश ॥ गुण पूजित सर्वत्र हैं, वंश न पूजित होय । बाहुबलीको सब नमें, मारीचिको नहिं दोय || मनस्वी घारें अंतरंग, रोष न रहें प्रसन्न ! जिम दरपण भस्मी मले, मुकुलित होय न खिन्न | परुषा पैशुन अनृता, और भसत परलाप । भूप न चितै नहिं कई, कहे घटे परताप ॥६७ पाप और ऋणको करत, मानें सुख मन लोग । पर बाटै जब जलधिसम, करें तबै चित सोग ॥ अदभुत द्रव तीरथ दरश, परिचय जनं सर्वत्र । नधी प्राप्ति प्रवास सुख, दुख नहीं मुग्धा तत्र वहिलपिक जिन संबोधनेको करें, मुग्वाकौन सुग्रीव । निधन किमच्छा घरें, कृत कि दुखी सदीव ॥ सो जीवै जिस यश प्रसर, कीरति है संचार ।
यश अकीर्ति सहित नर, जीवित मृत संसार ॥ वेश्या मुखमंडन तथा पर्वत नाटक हर्म्यं । युद्धवार ता दूर तें, लगें दूरर्ते रम्य ॥ ७२ ॥ इक ले तप दोमें पठन, तीन गान चत्र गाम । पांचसात खेती करो, मिलके बहु संग्राम॥ ७३ ॥ मात पिता पत्नी शिशु, अतिथि पोषण भार । है कर्तव गृहिको इतर, यथाशक्ति अनुसार ॥ वाद्य नाट्य पुस्तक पवन, द्यूत शक्तिता नार । तंद्रा निद्रा षष्ट ये, विद्या विघ्न विचार ॥ ७३ ॥
१ देव, २ तारा, ३ 'धनम् =४ देवताऽराधनम् ।
दिगम्बर जैन |
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AARNAANNIVIVARO मर्म वाक्य मत उच्चरो, परघन कदा न हर्ण । स्मरण करो जिन वर्णको, सदाचरो भवतर्ण ५० रामा पुस्तक लेखनी, परके कर हैं नष्ट | कदाचित् आवें लौटि तौ, चुंबित भ्रष्ट रुपृष्ठ|| कविता युवती सोदरा, जानो जन घीधार । पार्के तिनको कवि पितृ, परजनके हितकार ॥९९ करको भूषण दान है, कंठा भूषण सत्य । • शास्त्र जु भूषण श्रोत्रको, भूषण साधु विरस्य ॥ उत्पादक उपकार कर, दायकं विद्यादान | त्रातामय अरु अन्नप्रद, पंच विधा पितु जान ॥ दूर हुवे भी निकट है, जो वर्ते जिस चित्त । जोचितमें नहिं वर्त है, निकट हुवे क्या हित्त॥ न तो देव है धातुमें, नहीं काष्ट पाषान । देव बिराने भाव में, यातें भाव प्रधान ॥ १६३ ॥ वाकवाद सम्बन्ध धन, दरशन दार परोक्ष | यदि चाहो तुम मित्रता, दूरहि करो विमोक्ष || अपने समतें मित्रता, करो सदा बुधिवान । प्रेम, अर्थ, मय, जन्य में, पूरब सुखकर जान ||१८ ज्ञात नहीं जिस शील कुल, विद्यानाम न धाम । तिसनरको विश्वास कर, देहु न घर विश्राम ॥१९ महा नदीकोपर तरण, महापुरुष संग युद्ध | भूपति संग विरोध कमि, करो न नरप्रतिबुद्ध ॥ देहु इस निकलत वचन, मानवके गुण पांच । विनरौ ह्री श्री धी वृति, कीरति रुइ जिम आंचे ॥ ११ ॥
१. भनि ।
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मंक
दिगम्बर जैन ।
व्याख्यान-- श्रीमान साहु जुगमंदरदासजी नजीबाबाद, सभापति,
भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषद् प्रथम अधिवेशना-मुजफ्फरनगर।
नमः श्रीर्द्धमानाय 'निर्धूतकलिलात्मने ।
सालोकानां त्रिलोकानां यद्विद्या दर्पणायते ॥१॥ स्वागतकारिणी समितिके सभापति महोदय, करनेपर ता० ८ अप्रैलको इस पदके स्वीकार परिषद्के प्रतिनिधि बन्धु. पूज्य ब्रह्म वारियों, करनेके लिये मुझे वाध्य होना पड़ा, और उसी दैवियो और अन्य सज्जनो!
दिनसे अपने गृहकार्यवश मैं सफरमे रहा । १-इस भारतवर्षीय दिगम्बर जैन परिषदके ऐसी दशामें इस कार्यभारका निर्वाह भाम ही उत्तरदायित्व पूर्ण सभापति पदको प्रदान कर सब महानुभावोंके हाथ में है । भाशा है पाप भाप सज्जनोंने जो मेरा गौरव बढ़ाया है इसके सब प्रकारसे मुझे मुविधा और सहायता प्रदान लिये मैं आपका भाभार मानता है। आपने तो करेंगे। अपनी श्रडासे मुझे यहां लाबिठाया, किन्तु मैं २-इससे पहिले कि मैं कुछ भागे कहूं, अपनी असमर्थता और जिम्मेदारीका अनुभव स्थानके विषय में दो शब्द कहना अनुचित न कर रहा हूं। आपने एक ऐसे व्यक्तिको सभा- होगा । मुजफ्फरनगर इस प्रान्तमें नैनियों का पति चुना है कि जिप्समें न योग्यता है, न निसके एक मुख्य स्थान है । हमारा परम पवित्र तीर्थपास समय है, न स्वास्थ्य अच्छा है और नो क्षेत्र भी हस्तिनापुर नी यहांसे केवल ३० मील समानके कार्योंसे हताश होचुका है। अच्छा है। इसी स्थानपर प्रतिष्ठोत्सबके अवसरपर होता यदि किसी कार्यकुशल और सुयोग्य सन् १९११ में भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वान्से यह कार्य लिया जाता। मैं केवल महासभाका अधिवेशन होचुका है । भान वैसे नम्रता प्रदर्शित करने के लिये ही नहीं कहता तो इस स्थानपर स्थानीय मेरे बहुत से सम्बन्धी किन्तु यह मेरा हृद्त भाव है । इस गुरुतर तथा मित्रगण उपस्थित हैं किन्तु जैन जातिके - भारको संभालने के लिये गत मातमें जब मुझसे सुपरिचित मेरे परम मित्र स्वर्गीय रायबह दुर कहा गया था तो मैंने अपनी अप्तमर्थता प्रकट लाला घमड़ीलालजीको न देखकर मैं बड़ी भारी
करते हुये उसे अस्वीकार कर दिया था। त्रुटिका अनुभव कररहा हूं , निती पूर्ति होना - पुनः मंत्री महोदय तथा मंडळके आग्रह निकट भविष्यमें असम्भव नहीं तो कष्ट साध्य
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दिगम्बर जैन ।
[वर्ष १७
* वय : न ममा नकी तन मन ४-किसी संस्थाको स्थापित करना तो कोई
. कठिन कार्य नहीं है थोड़ेसे उत्साहमें नवीन
म त वर्ष दिए । महो- संस्था स्थापित होनाती है। किन्तु उत्तको है । . 4 त काल नवक्षित सुचारुरूपसे कार्य पथपर चलाना महत्कार्य है । युवकों और ना पीन पद्धति के अनुसार कार्य इतनी बड़ी भारतवर्षीय संस्थाको चलाने के लिये करनेवालों की कार्य प्रणाली में कुछ न कुछ मत- दो चार व्यक्तियोंसे काम नहीं हो सकता किंतु भेद चलता रहा। महासभाके गत दिल्ली सैकड़ों कार्यकर्ताओं और संगठनकी आवश्यकता अधिवेशनपर यह निश्चय ही होगया कि जिनके है। अब उत्साही नवयुवकों को कार्यक्षेत्रमें आकर हाथमें भाजकल महासभाकी वागडोर है वह न अपने उत्साहका परिचय देना चाहिये । अब तो शिक्षित युवकोंके साथ सहयोग करनेको ही आपके पास रुकावटका भी बहाना नहीं है। तैयार हैं और न महासभाके कार्यमें दूसरोंका परिषदके उद्देश्योंकी पूर्ति, समाज और धर्मका हाथवंटाना ही उन्हें इष्ट है यहां तक कि नातिके उत्थान कार्यकर्ताओंकी कर्मण्यतापर ही निर्भर है। वयोवृद्ध अनुभवी निःस्वार्थसेवी लाला चंपतरा- ५-समाजके सामने इस समय इतने कर्तव्य यनी बेरिस्टरको जैनगनट पत्रके सहायक संपादक उपस्थित हैं कि यदि केवल उनकी गणना ही होनेमें बड़ी २ अड़चनें डाली गई और दल- की जाय तो बहुतसा समय लग जाय । न वे बन्दी बनाकर प्रस्ताव रद्द करा दिया गया। सब विषय इस छोटे व्याख्यानमें कहे ही जा अन्तको यह विचार कर कि जातिके समस्त सकते हैं और न परिषद उनको एक साथ व्यक्तियोंको कार्य करनेके लिये क्षेत्र होना अपने हाथमें ले सकती है। अतएव मैं मुख्य र चाहिये, समाजके कुछ उत्साही अनुभवी विचा. दोचार बातें अपने विचारानुसार कहूंगा जिनके रशील महानुभावों के उद्योगसे इस परिषद्की अभावमें जैन समाजकी महाक्षति हो रही है स्थापना होगई।
और जिनपर समानकी भावी उन्नति निर्भर है। ___ महातभासे भी मेरा पुराना और घनिष्ट संबंध ६-सभ्यो ! किसी भी समानका उत्थान और है। मैं उसके जन्मकाल से उसे अपनाता और पतन उस समानकी भावी सन्तानकी योग्यता उससे सहानुभूति रखता आया हूं। मेरी तो अयोग्यतापर ही अवलंबित है। योग्यता शिक्षापर आन्तरिक भावना यही है कि ये दोनों संस्थायें निर्भर है। इस विषयमें जापान का जीताजागता जैन धर्मानुकूल जाति और धर्मकी उन्नतिमें ज्वलन्त दृष्टान्त आपके सन्मुख विद्यमान है। भग्रसर हों । मुझे आशा है कि यदि ये दोनों जापानियों की कुछ ही समयपूर्व कितनी गिरी सभाएं एक दुसरेके कार्यमें बाधा न डालकर अपने १ हुई दशा थी और अब क्यासे क्या हो रही कार्यको योग्य रीतिसे संपादन करती रहेंगों है । हमारी समानमें उच्च शिक्षाकी बड़ी मावतो फिर एक दिन दोनों का संगम हो जायगा। श्यकता है । प्रत्येक विषयके पूर्ण विद्वान होने
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[१९
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अंक ५ ]
दिगम्बर जैन । चाहिये। यह तो सम्भव नहीं कि हरएक विषयके स्कालर्शिप फण्ड खोला जाय जिसको जैन विद्यालय खोले नासकें। न तो इतना धन ही धनी महानुभाव अपनी चंचला लक्ष्मीको मचल समाज व्यय करनेको तैयार है और न वे विद्यालय और सार्थक करने के लिये धनसे भरपूर करके इस स्टैण्डर्ड के ही हो सकते हैं कि जो अन्य धर्मकी सच्ची प्रभावना करें और फिर दश वर्ष बाद राष्ट्रीय एवं सरकारी विद्यालयोंकी प्रतियोगता देखें कि समानकी दशा क्यासे क्या होती है। कर सकें । जैन जाति भारतके समस्त प्रांतों में निम्नलिखित नियमानुसार स्कालशिप दिये जा विभक्त है । यदि एक दो कालेज खोल भी सकते हैं। दिये नावें तो यह सम्भव नहीं हो सकता कि (क) विना किसी अपेक्षाके सहायता रूपमें। समस्त पान्तोंके विद्यार्थी उस कालेजसे लाभ (ख) ऋणरूपमें-शिक्षाके पश्चात समर्थ होनेउठा सके। समाजमें बहुतसे तो ऐसे निधन पर वापिस लेलिया जावे। व्यक्ति हैं कि जो धनाभावके कारण अपने बा- (ग) निस छात्रको स्कालर्शिप दिया जाय लकोंको उच्च शिक्षा नहीं दे सकते । और कुछ उससे एक ऐसा प्रतिज्ञापत्र लिखवा लिया जावे, महाशय समर्थ होते हुये भी शिक्षाका मूल्य न कि वह समर्थ होनेपर न्यूनसे न्यून एक छात्रको समझते हुये अपनी सन्तानको उच्च शिक्षासे उतनी ही स्कालशिप अवश्य दे। बंचित रखते हैं । इधर शिक्षाका मूल्य इतना ७-बालकोंकी शिक्षाके साथ . आपको बढ़ गया है कि साधारण परिस्थितिके मनुष्य बालिकाओंकी शिक्षाकी ओर भी पूर्ण ध्यान अपनी सन्तानको शिक्षित बनाने में असमर्थ हैं। देना पड़ेगा । स्त्री पुरुषकी अर्धागनी है यदि
हमारी समाजमें बहुतसे ऐसे योग्य कुशाग्र कोई व्यक्ति अपने आधे अंगको तो पुष्ट करता बुद्धि छात्र विद्यमान हैं जिनको आप भी देख चला जाय ओर अधेकी ओर ध्यान न दे और रहे हैं कि पढ़ना चाहते हैं किन्तु धनाभावके फिर चाहे कि मैं बलवान् होनाऊं तो यह कारण अपनी शिक्षाको जारी नहीं रख सकते कदापि सम्भव नहीं है । इसी भांत जबतक और अपने जीवन के उद्देश्य की पूर्ति में असमर्थ स्त्री पुरुष-युगलकी शिक्षाका योग्य प्रबन्ध न हो हताश होरहे हैं।
होगा, तबतक उनकी संतारयात्रा सुख पूर्वक इस कमीकी पूर्तिका सरल उपाय यही है कि व्यतीत नहीं होती। उनको भी यथाभो असमर्थ होनहार विद्यार्थी चाहे किसी भी सम्भव उच्च कोटि की धार्मिक तथा लौ केक शिक्षा प्रोतका हो, और चाहे वह संस्कृत, अंग्रेजी, दी जानी चाहिये । निससे कि वे गृह सम्बन्धी शिरुपविज्ञान, कृषि, वैद्यक, गणित, कलाकौशल समस्त कार्यों की योग्य रीतिसे व्यवस्था करने में मादि जिस किसी विषयको देशमें या विदेशमें समर्थ हो सकें। उन्हें कमसे कम पाकविद्या पढ़ना चाहता हो, उसको कुछ नियमोंके साथ सीवनकला, वाक चिकित्सा, गृह प्रबन्ध और स्वालक्षिपदी जाय । इस कार्य के लिये एक देश स्थिति जानने आदिके लिये दूसरोंका मुह
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२.] दिगम्बर जैन।
[ वर्ष १७ ताकना न पड़े। उनमें दास दासियोंपर प्रभुता सन् १९९१ में ग्यारह लाख अठहत्तर हजार है। करनेकी शक्ति भी हो तब ही वे गृह-स्वामिनी इस भांति तीस वर्ष में जैनियों की संख्या दोलाख कहला सकती हैं । बालक बालिकाओं का योग्य चालीस हनार घट गई जब कि भारतवर्षकी होना मुख्यतया माताओंपर अवलंबित है । उनको जनसंख्या तीस वर्ष में सत्ताईश करोड़से बढ़कर धर्ममें श्रद्धान कराना सदाचारी बनाना आदिकी बत्तस होगई । यह प्रश्न केवल विकट और चिंता कुंत्री माताओंके हाथ हीमें है । आपको मनुष्य जनक ही नहीं किंतु समान के जीवन मरणका गणनाकी रिपोर्ट देखकर ही सन्तुष्ट होना न प्रश्न है । यदि शीघ्र ही इस घटतीके रोकनेका चाहिये, कि हमारी जातिका स्त्रीशिक्षामें दूसरा कोई योग्य उपाय न किया जावेगा तो लगभग नम्बर है । मनुष्यगणनामें वे स्त्रियां भी शिक्षिता डेढ़ सौ वर्ष में जैन नातिका नामोनिशान इस गिन ली जाती हैं कि जिनको केवल नाम मात्र ही भारत भूमिपर न रहेगा-कोई भी मरहंत लिखना भाता है। इस उदेश्यकी पूर्ति वर्तमानमें भगवान द्वारा प्रतिपादित इप्त सर्वोत्कृष्ट धर्मको निम्न उपायोंसे हो सकती है।
पालन करने वाला हूंहनेपर भी न मिलेगा। (क) स्थान पर कन्यापाठशाला स्थापित की महानुभावों ! हमारी जातिकी संख्या घटनेके मा।
बहुतसे कारण हैं जिनमें से कुछ कारण बाझवि . (ख) स्त्रियोपयोगी पुस्तकें बनाई जावें। वाह भादिकी विवेचना मैं मागे करूंगा। (ग) प्रायः प्रत्येक ग्राम और नगरमें एक दो मनुष्यगणनाको देख नेते पता चलता है कि स्त्रीशिक्षिता पाई जाती हैं । उनको इस बातके हमारी जातिमें पुरुषोंकी अपेक्षा स्त्रियां कम हैं। लिये तैयार किया जावे कि वे गृहस्थ स्त्रियों को इसका फल यह है कि पुरुष संख्य का पांचवां सुबह या शाम कमसेकम एक घन्टा शिक्षा दें, भाग अविवाहित रहकर अपने दिन काटता है, जैनियों के लिये यह बडी सुविधाकी बात है कि उनकी संतान और वंश चलाने का कोई मार्ग भवउनकी स्त्रियां प्रायः श्री मंदिरजीमें प्रतिदिन शेष नहीं है । प्रश्न उपस्थित होता है कि पुरुदर्शनार्थ जाती हैं और इस कार्यके लिये जैन षोंकी अपेक्षा स्त्रियां कम क्यों हैं ? मैं बहुत मंदिर सबसे उचित स्थान हो सकता है। विचार करनेपर भी स्त्रियों की कमीके कारणोंको
८-अाजकल समानके सामने जैन जातिके पूर्णरूपसे निश्चय नहीं कर सका, किन्तु बहुतसे हासकी कठिन समस्या उपस्थित है। सभी इस कारणों में से एक कारण यह भी है कि कन्याओंका विषयमें चिन्तित हैं। सन १८९१में समस्त जैन पालन पोषण लड़कों की भांति नहीं होता। संख्या चौदहलाख सोलहहमार छइसौ अड़तीस जन्मसे ही उनको बोझ स्वरूप मान लिया जाता थी। सन् १९०१में तेरह लाख चौतीस हनार है और उनके जीवन का कुछ मूल्य नहीं समझा एकसो अड़तालीस रई गई। सन् १९११ में जाता। यह भी विचार किया जाता है कि बारह लाख भड़तीस हमार होगई। और अब कड़कियां पराया धन है। दूसरे घर चली
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वर्ष १७ ]
दिगम्बर जैन । जायगी। इनके विवाह आदि संस्कारोंमें बहुत सा स्थिर नहीं रह सकता हम आजकलके जैनोंका जैन धन लगाना पड़ेगा। समानके दुर्भाग्यसे अभीतक धर्म जन्म सिद्ध अधिकार नहीं है । प्रातः स्मव्यर्थव्यय आदिने हमाग पीछा नहीं छोडा है रणीय श्री तीर्थङ्कर भगवानने पशु पक्षियों जिसपर मैं आगे स्वतंत्र रूपसे प्रकाश डालूंगा तकको धर्मोपदेश दिया है । इस धर्मकी फिलाअतएव कन्याओंकी अवहेलना की जाती है। सफीने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि संसा. ऐसी उच्च और पवित्र धर्मको धारण करने वाली में कुछ सुख शान्ति मिल सकती है तो इपी जाति में ऐसे कुविचारोंका अंश मात्र भी पाया धर्मसे । पाश्चात्य देशोंमें जैनधर्मका थोड़ासा जाना कितना लज्जास्पद और घृणा ननक प्रकाश पड़ा है इसीसे डाक्टर हर्मन जैकोबी, विषय है।
मिस्टर हर्ट वास्न सरीखे विद्वानोंने जैनधर्मकी यह जाति हासका विषय बहुत ही गम्भीर मुक्त कंठसे प्रशंसा की है तथा कई पुस्तकें और विचारणीय है। शीघ्रतासे हम इसका अंग्रेजी में जैनधर्म के विषयमें लिखी हैं । डाक्टर निर्णय नहीं कर सकते । भावश्यक्ता है कि थामस्ने जैनधर्मके विषयमें बड़े महत्व के विचार परिषद की ओरसे एक कमेटी नियत की जावे, प्रगट किये हैं, डाक्टर साहबने स्वामी कुन्दजो हर प्रान्तमें जाकर अनुसन्धान करे कि कुन्दाचार्य विरचित श्री प्रवचनसार ग्रन्थका हमारी समाजका हास इतने वेगसे क्यों हो रहा इङ्गलिश अनुवाद किया है। भारतवर्षका तो है। और बह किस भांति रोका जा सकता है। कहना ही क्या है इस देशका तो यह राष्ट्रीय कमेटी अपनी रिपोर्ट छइमाप्तके भीतर समाजके धर्म रह चुका है । निन धर्मो में कुछ भी सार विचारार्थ प्रकाशित करे और परिषदके आगामी नहीं वह लोग तो अपने धर्मकी देशविदेशमें अधिवेशन पर उस कमेटीकी रिपोर्टको प्रयोगमें प्रभावना कर रहे हैं और आपके धर्ममें तो लानेका बीड़ा उठाया जावे ।
अहिंसावाद, कर्म सिद्धान्त और स्याहाद मादि यह प्राकृतिक नियम है कि प्रत्येक वस्तु में सैकड़ों विषय ऐसे हैं कि यदि उनपर प्रकाश वृद्धि हास हुवा करता है। यदि वृद्धि न होकर डाला जाय तो संसार मुग्ध हो । जाय मापके केवल हाप्त ही हाप्त होता रहे तो एक दिन मूल सिद्धान्त "अहिंसा" का सिक्का आजकल उसकी सत्ता अवश्य नष्ट हो जायगी । ठीक जनताके हृदय पर बहुत कुछ बैठता जारहा है यही दशा वर्तमानमें जैन धर्मानुयायियों की है। ऐसे समयमें आपको इस अहिंसा धर्मके प्रचारमें इनका इस बराबर होरहा है और वृद्धि के मार्ग विशेष रूपसे कटिबद्ध होनेकी जरूरत है। सब बंद हैं। आप जैनियोंके हासके कारणों को इसको कार्यरूपमें परिणत करने के लिये निम्न दूर करने का प्रयत्न तो अवश्य करेंगे ही, परन्तु लिखित उपाय वर्तमानमें उपयोगी सिद्ध होंगे। जब तक उनकी वृद्धि के उपायका अवलंबन न (क) एक प्रकाशन विभाग खोला जाय निसकिया जायेगा तबतक भाषप्रणीत जैनधर्म संसारमें के द्वारा बहुत सरलता और सुगमताके साथ
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२२] दिगम्बर जैन
अंक 1 जैन धर्मका परिचय करने के लिये भिन्न २ शास्त्रसभा, व्याख्यान सभामें संमिलित होते थे। भाषाओंमें भांति २के ट्रैक्ट और पैम्फलेट उनसे वार्तालाप करनेसे मालूम हुआ कि उनके छपाये जावें और विना मूल्य अथवा अल्प हृदयपर कुछ जैन धर्मका प्रभाव बड़ा है। इसी मुल्यपर वितीर्ण किये जायें।
भांति चांदनगांव महावीरजीमें वहांके निवासि(ख) बंगाल विहारमें सराफ नामकी जाति यों की भी महावीर भगवान में बड़ी श्रद्धा भक्ति है जो जनसंख्यामें लगभग एकलाल होगी है । उनको भी महावीर भगवानका पवित्र उपदेश और मानभूम, सिंहभूम आदि जिलों में फैली बतलाने की आवश्यक्ता है । इन स्थानोंपर और हुई है। वह जीवहिंसा नहीं करते, पंच उदः ऐसे ही अन्य स्थानोंपर जैन धर्मके प्रचारका म्बर फल नहीं खाते, और पार्श्वनाथ भगबानको कार्य परिषदको अपने हाथमें लेकर उसको अपना देवता मानते हैं, किन्तु जैन धर्मके विष वेगके साथ चलाना चाहिये । यमें कुछ नहीं जानते। पता चलता है कि यह उपदेशक नियत किये जावें, पाठशालाएं कुछ समय पूर्व जैन थे किन्तु जैनधर्मका संसर्ग स्थापित की जावें, जो पाठशाला स्थापित हो न रहनेसे वह अपनेको भूल गये हैं। श्रीमान् चुकी हैं उनको दृढ़ किया जावे, परोपकारार्थ जैन धर्मभूषण ब्रह्मचारी शीतलप्रसादनी तथा औषधालय भादि खोले जावें । उपदेशकीका कलकत्ता निवासी भाई वैजनाथजी सरावगी कार्य यदि हमारे त्यागी, महात्मा करें तो अच्छी आदिने उनके सुधारनेका कुछ प्रयत्न प्रारम्भ सफलता मिल सकती है क्योंकि सब बातोंकी किया है व उनके केन्द्रस्थानोंमें पाठशालायें अपेक्षा चारित्रका प्रभाव अधिक पड़ता है। स्थापित कराई हैं । इसका कुछ फल भी हुमा (ग) ऐसे बहुतसे स्थान हैं जहां पर दोचार है। उनका सविस्तर हाल मैं व्याख्यान बढ़ घर जैनियोंके थे किंतु जैन मंदिर आदि धर्म जानेके भयसे इस समय नहीं कहता। साधन न होनेसे और अनैनोंका अधिक संसर्ग
इधर बरेली जिलामें एक रामनगर स्थान है रहने से अपने जैनत्वको मूलकर अन होगये हैं। जो कि पार्श्वनाथ भगवानकी केवलज्ञान भूमि ऐसे स्थानोंकी एक सूची तैयार की जाय और है । और अहिछत्रके नामसे प्रसिद्ध है वहां योग्य उपदेशकों एवं प्रभावशाली पुरुषों द्वारा आजकल कोई जैन नहीं रहता किन्तु रामनग- उन्हें पुनः जैनधर्मपर दृढ़ किया जावे । रमें रहनेवाली सब जातियां पार्श्वनाथ भगवा- (घ) एक ऐसा जैन इतिहास तैयार किया नको मानती तथा उनमें श्रद्धा भक्ति रखती हैं जाय कि जिसमें जैनधर्मका तुलनात्मक स्थान उनके बालकोंको जैन धर्मकी शिक्षा देने के लिये अन्य धर्मोकी अपेक्षा प्रत्येक समयका ज्ञात हो गत वर्ष पाठशाला खोली गई है और साप्ताहिक जावे । यह पुस्तक ऐतिहासिक दृष्टि से लिखी सभा स्थापित करादी गई है। इसी मासमें मैं जाय जिप्सको केवल भारतवर्षके ही विद्वान् नहीं भी महिछत्रके वार्षिक मेलेपर गया था, वे लोग किन्तु संसारभरके विद्वान् स्वीकार करें । यदि
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[4]
आज संसार यह मान ले, कि चन्द्रगुप्त सम्राट् जैन धर्मानुयायी था तो यह अनुमान सहज ही में कर लिया जायगा कि उस समय जैनधर्म राष्ट्रीय धर्म था, और भारतवासियों के पूर्वन भी कभी इस धर्मके माननेवाले रहे हैं । इसका फल यह होगा कि भारतवासी इस धर्मकी भी आदर भावसे देखने लगेंगे और इसके जाननेके इच्छुक होंगे ।
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(१०) मैं पहिले संकेत कर चुका हूं कि जाति ह्रासके कारण बालविवाह, वृद्धविवाह भी हैं । अब मैं उनकी तरफ आता हूं। इन कुरी तियोंने हमारी समानको जर्नरित कर रक्खा है, इनके हटाने का बहुत दिनोंसे आन्दोलन होरहा है, परन्तु मनुष्य गणना की रिपोर्ट से यह जानकर हृदय विदीर्ण होजाता है कि अभी हमारी समाज में पांच वर्ष से कम अवस्थाकी विधवा विद्यमान है । तो कैसे कहा जासकता है कि आन्दोलनका परिणाम सतोषजनक निकला है । इसको रोकने के लिये केवल प्रस्तावोंसे काम 1 नहीं चलेगा । अमली कार्यवाहीकी आवश्यकता है । कन्या का विवाह १४ वर्षसे पूर्व न हो, और लड़कों का विवाह अठारह वर्ष से कम और चालीस वर्ष से अधिक अवस्था में न हो । परिषदको प्रत्येक स्थानपर अपना इस भिितका संगठन बनाना चाहिये कि जहांपर उपर्युक्त नियमका उलंघन होता हो, वहां जिस भांति बने योग्य उपायोंसे उस विवाह सम्बन्धको न होने दें | यदि अन्य उपायोंसे कार्य न चले तो ऐसे विवाह किसीको सम्मिलित न होने दें । बालविवाहके रुक जानेसे चौदह वर्ष से
[ २६
कम अवस्थाकी विधवा जिनकी संख्या बहुत काफी है, न हो सकेंगी । चालीस वर्ष से उपरका विवाह रुक जाना भी विधवाओंकी संख्या में कमीका कारण होगा । इस प्रकार बालविवाह और वृद्वविवाह रुकने से जो कन्यायें वैधव्य से बचेंगी उनका संबंध युवकों के साथ होने से वह जातिकी वृद्धि में कारण होंगी ।
बाल विवाह से बहुतसी कन्यायें गर्भधारण शक्ति न होनेके कारण असमय ही प्रसव पीड़ासे मृत्युका ग्रास होनाती हैं और यदि उनकी संतान होती है तो वह बलहीन और संसार के कार्यों में साधक न हो बाधक होती है ।
विवाह के १, ३, ५ साल बाद द्विरागमन ( गोंना ) की प्रथा भी हटा देनी चाहिये यह भी बाल विवाह में साधक है इसके दूर करने से जिस समय द्विरागमन ( गौना ) होता है उस समय विवाद होने लगेगा । तथा द्विरागमन और विवाह के वीच विधवा होने की जोखम भी जाती रहेगी ।
वृद्धविवाह के लिये कन्याविक्रय बहुत अंगोंमें साधक होरहा है । इस घृणास्पद और लज्जाजनक कुरीतिको रोकनेके लिये परिषदको अपनी पूर्ण शक्ति लगा देनी पड़ेगी और ऐसे, दीन अबला कन्याको बेचकर आजीविका करनेवाले अधम पुरुषोंके यहां पंचोंको लड्डू खाने से काम न चलेगा किंतु ऐसे विवाहों से असहयोग करना पड़ेगा ।
११ - फजूल खर्चीके सम्बन्ध में भी मुझे समानसे वही शिकायतें हैं जो मैं कुरीतियोंके सम्बन्धमें कर चुका हूं । जन्म, विवाह और
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दिगम्बर जैन ।
[ वर्ष १० मृत्युके समय पर जो अनुचित व्यय होरहा है खर्ची और धनोपार्जनके मार्गको देखकर मुझे उसको रोकने के लिये समानसेवी २५-३० यह भी कहते हुये संकोच नहीं होता कि ऐसे वर्षसे चिल्लारहे हैं परन्तु फल बहुत कम व्यर्थ व्ययोंके बढ़ जानेसे आज द्रव्योपार्जनका निकला है। परिषदको अपने प्रस्ताव द्वारा मागं अनीतिपरायण होगया है। समयकी निम्नलिखित फजुलखर्ची सर्वथा बंद कर देना आवश्यकता और देशकी दशा हमें पाठ चाहिये ! और शेष छोटी २ रस्मोंके लिये देती है कि अब हम बहुत दिनोंसे स्थानीय अथवा जिला सभाओंको अधिकार उपयोगमें आई हुई चटक मटकको छोड़कर दिया जावे कि अपने २ रिवानों पर विचार सादी जिन्दगी बनावें । छलकपट रहित आडंबर करते हुवे दरतूर उलअमल (नियम) बनावें। शून्य - सादे जीवनका महत्व बहुत बड़ा है । (क) १०० भादमियोंसे अधिक वारात न हो। अब हमें फैशनके रोगसे जितना जल्दी (ख) वारातमें मिठाईकी पत्तल दो छटांकसे होसके मुक्त होजाना चाहिये, एक दिन में पांच मधिक न हो!
__चार वार बदले जानेवाली उन पोशाकोंको हमें (ग) बूर, बखेर, वागवहारी, मातिशबाजी, तुर्त विदा कर देना चाहिये जो कि धनके दुरुरंडियां नचाना कतई बन्द कर दिया जावे। पयोगके साथ २ भारतीयता नष्ट कर रही हैं । (घ) जेवर दिखाना बन्द कर दिया जाय। भारतीय जीवन शुद्ध और सादा जीवन है उस(च) मरनेकी ज्योनार बन्द की जाय। में अल्पव्ययके साथ भव्यता भरी हुई है वैसा (छ) गौना बन्द किया जाय।
पवित्र जीवन हरेकको बनाना आवश्यक है । इसके सिवाय बहुतसा द्रव्य अनावश्यक और १२-साधर्मी सज्जनों ! अब मैं आपका अनुपयुक्त वस्त्र आदि भाडम्बरोंमें स्वाहा कर ध्यान एक दूसरे विषयकी ओर आकर्षित करता दिया जाता है । आजकल समयकी गति, वस्तुः हूं। यह तो निर्विवाद है कि पूना प्रतिष्टायें ओंकी मंहगाई, शिक्षादि कार्यों की आवश्यकतायें धर्म-लाभकी प्राप्ति और प्रभावनाके अर्थ की जाती हमें ऐसे फजूलके धन व्ययसे सहसा रोकती हैं । जैन समाजका वीस पच्चीस लाख रुपय! हैं। हम लोग व्यापारोन्नतिसे वणिक कहलाते प्रतिवर्ष इस मद (विभाग) में व्यय होता है । हैं परन्तु इन फजूल खर्चियोंके देखने से कहना परन्तु क्या कोई विचारशील व्यक्ति इस बातको पड़ता है कि वास्तव में हम वणिक पद्धति से बिल कहने का साहस कर सकता है कि जिस ढंगसे कुल दूर हैं। ऐसे पानी के संग्रह से क्या उपयोग आजकल पूना प्रतिष्ठाएं होती हैं उनसे जितना सिद्ध होगा, जो अनावश्यक द्वारसे बह रहा चाहिये उतना धर्मलाभ और धर्मपभावना हो । व्यापारकी उथल पथलमें जब धन वृद्धिका होती है ? भाप मुझे क्षमा करेंगे यदि मैं यह कह मार्ग रुक जाता है ऐसे समयमें मितव्ययी हूँ कि पूजा क्या एक अच्छी प्रदर्शिनी होती पुरुष ही अपनी रक्षा कर सकता है । फिजूल है। बाकायदे बाजार लग जाते हैं। स्त्री पुरुष के
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अंक 1
दिगम्बर जैन । मनोविनोदार्थ सर्व सामग्री एकत्रित होती है। मनता भी अधिक संख्या उपस्थित हो सकी मनुष्य सुंदरसे सुंदर वस्त्राभूषण धारणकर है, और आनन्द भी विशेष रह सक्ता है। सैरको मिलते हैं । तात्पर्य यह है कि प्रत्येक निस बातका मुझे सबसे अधिक रोना है वह व्यक्ति अपनी शक्यनुसार फैशन बनानेमें धनका व्यय है । मापके सामने बहुतसे उपयोगी न्यूनता नहीं करता।
विषय-शिक्षा, समान सुधार, धर्म-प्रचार आदि भाइयो ! मैं पूना प्रतिष्ठाओं का विरोधी नहीं विद्यमान हैं। रुपया तो उतना ही है। यदि इं किंतु इस रीतिका विरोधी हं निस रीतिसे और विभागोंसे बचेगा तो भाप इन उपयोगी वर्तमान में पूना प्रतिष्ठायें होती हैं । पुना कार्यो में खर्च कर सकेंगे । आशा है कि माप पना प्रतिष्ठानों में संयत भोजन सामग्रीके अतिरिक्त प्रतिष्ठाओं की बढ़तीको रोकने, उनमें उचित अन्य दुकानों की क्या आवश्यकता है ? इस सुधार करने और उनमें सादगी पैदा करनेके भांत्रिकी सजधजसे क्या लाभ है ? वस्त्राभूषण लिए प्रयत्न करेंगे। दिखानेके लिये अन्य बहुत बडा क्षेत्र १५-समाजके सामने अपना धन, समय विद्यमान है। यहांफर मे केवक साधारण और शक्तिको व्यय करनेके लिये एक और रुपये आमा चाहिये और बाजारोंमें न घूमकर मार्ग खुला हुमा है और वह तीयोंकी कड़ाई पुमा, शाखा, संका समाधान में ध्यान लगामा है। तीर्थक्षेत्र ओ पृमा बन्दनाके क्षेत्र थे, खेद वाहिके, स्थाव १ पर पार्मिक ब्याख्यान होने है मब समयके प्रभावसे लड़ाई के अखाड़े बने चाहिये। हमको मनला, वाचा, कर्मणा भगवानकी हुवे हैं । दिगम्बर समानको तो अपने स्वत्वकी श्रद्धा, भक्ति में लीन रहना चाहिये और अन्य रक्षाके लिये इसमें पार्ट लेना पड़ रहा है। वह बर्मावलम्बियोंके हृदयपर जैन धर्म की सचाई का यह नहीं चाहते कि श्वेतांवरियोंको तीर्थोसे प्रभाव डालने का प्रयत्न करना चाहिए ? तभी निकाल दें। हमारे विचारके अनुपार तो जैन धर्मकी प्रभावना और धर्म लाभ होसकता श्वेतांबरी क्या और भी कोई माकर तीर्थ वंदना है। जिन महानुभावोंको कभी मुरुकुल कांगड़ी. करें तो हम उनका स्वागत करते हैं। किंतु के कमेटीके नरसेपर जाने का अवसर मिला कुछ श्वेतांबरी सज्जनों का ऐसा विचार होगया होमा उनको भली भांति ज्ञात होगा कि है कि हम दिगम्बरियोंको तीर्थोसे निकालकर धर्म मभावना किस भांति होती है। छोड़ेंगे। तीर्थ सनातन हैं, किसी की मिलकियत
कुछ ही समय पूर्व इतनी अधिक पूजा पति- नहीं हो सकते। श्वेतांबरी अपनी मनोकामनामें ष्ठायें नहीं होती थी। देखते २ दिन प्रतिदिन सफल नहीं हो सकेंगे। व्यर्थकी लड़ाई है। बढ़ती जाती हैं।
दोनों आम्नायोंके भाषसके विरोधसे जैन यदि इतनी पूना प्रतिष्ठा न होकर कम हों समानका गौरव घट रहा है। इधर शिया तो उसमें धर्म लाभ भी अधिक हो सक्ता है, सुभी एक होरहे हैं उधर सनातन धर्म और
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२१]
दिगम्बर जैन । भार्या समाजी हिंदू संगठन बना रहे हैं और भारी भूक है, क्योंकि बाह्याचरणका अंतरंगसे शांतिके उपाप्तक हम लड़ रहे हैं। इस सम्बं- घनिष्ट सम्बन्ध है। धमें मुझे परिषदका यह कर्तव्य मालुम होता है बालकोंका संस्कार ठीक करनेके लिये उन्हें कि इस बातको छोड़कर अभीतक सुलह क्यों प्रारम्भमें धार्मिक शिक्षा अवश्य देनी चाहिये, नहीं हुई, परिषद्को एकवार पुनः सुलहके लिये अर्थ न समझनेपर भी श्री तत्वार्थ सुत्रजी, रत्न प्रयत्न करना चाहिये । और ४ व्यक्तियों का करण्ड श्रावकाचार भादि धार्मिक पुस्तकें स्टा एक ड्यपुटेशन बनाकर श्वेताम्बर समानके कुछ देनी चाहिये । फिर लौकिक शिक्षाके साथ भी शिक्षित व्यक्तियों के पास विचार परिवर्तनार्थ चाहे वह कहीं पढ़े घण्टा भाष घण्टा धार्मिक जाना चाहिये । श्वेताम्बर समाजमें भी सुलहके शिक्षाका प्रबंध अवश्य हो तभी वे धर्ममें श्रद्धालु इच्छुक व्यक्ति अवश्य होंगे। उनको तैयार और संयमी बन कर अपनी मात्माका कल्याण कर किया जावे कि वे अपनी समाजमें इस विषयका सकते हैं। यदि आत्म-कल्याण ही नहीं तो मान्दोलन मचावें, और फिर एक सुलह ।
सब बातें नि:स्सार हैं। कान्फ्रेंस हो।
१५-अपने स्थानपर बैठनेसे पहिले मेरा . ११-सन्नारियों एवं सदगृहस्थों । अब मैं कर्तव्य है कि मैं स्वागतकारिणी समितिके आपके हितकी एक बात और कहूंगा । हम कार्याध्यक्षोंका आभार मानूं और उन्हें धन्यवाद लोग कुछ प्रमादवश और कुछ भिन्न मान्दो- दूं। किंतु विशेष कुछ कारणोंसे मैं इस कर्तकनोंमें पड़कर अपने समीचीन धर्मकी श्रद्धा व्यक
व्यको अंतिम दिन अपनी क्लोजिङ्ग स्पीच और मर्यादाको ढीली कर रहे हैं। हमको अपने
- (Closing Speech में अदा करूंगा।
__ महानुभावो ! भान आपका बहुतप्ता अमूल्य धर्मपर दृढ़ रहना चाहिये । मुसलमानों की ओर ध्यान दीनिये, वे अपने धर्माचरणमें कितने
समय मैंने लिया है इसके लिये मैं आपसे पक्के हैं चाहे जो कुछ भी क्यों न हो समयपर
क्षमा प्रार्थी हूं मैं अपना परिश्रम सफल समझूगा पांचवार नमान पढ़ लेते हैं। उनकी नमानके
यदि आप मेरे विचारोंसे काम उठावेंगे। समय कौसिलें तक स्थगित होनाती हैं।
__ॐ- शांति ! शांति !! शांति .!!! हमको सबसे पहिले अपने धर्ममें अटल श्रद्धा
जुगमन्दरदास । रखनी चाहिये इसीको सम्यग्दर्शन कहते हैं। इसकी सोलहकारण धर्म । शास्त्रों में बड़ी महिमा है । हमारा कर्तव्य है कि अभी ही नवीन छपकर दूसरीवार तय्यार हुआ । हम प्रतिदिन विधि पूर्वक देवदर्शन श्रावकके षट् है । इसबार इसमें सोलहकारणवा कथा व सोलह कर्म करें। (प्त व्यसन, पांच पाप और अम. भावनाओंके सोलह वैये मी बढ़ा दिये गये हैं। व क्ष्योंका त्याग करें । खानपान शुद्ध रखें यह कुछ बढ़ाया घटाया भी गया है । की.॥) समझना कि खानपानमें कोई धर्म नहीं है बड़ी मैने नर-दि. जैनपुस्तकालय-सूरत ।
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वर्ष १७ ]
दिगम्बर जैन । भारत० दि० जैन परिषदके प्रथ- ९ ए० चक्रवर्ती एम० ए० मदरास माधिवेशन मुजफ्फरनगरमें
बाबू बलवीरचन्द्रनी जैन वकील मुनफ्फर
___नगर इसके मंत्री नियुक्त किए गये। मंत्रीजीका स्वीकृत प्रस्ताव । यह भी कार्य होगा कि उन संस्थाओं में जनधर्मकी प्रस्ताव नं. १-यह परिषद निम्नलिखित शिक्षा और उसकी परीक्षाकी भी प्रेरणा करे । महाशोंके असमय वियोगपर शोक प्रगट करती प्रस्तावक-ब० शीतलप्रसादजी .. है और उनके कुटुंबियों प्रति समवेदना समर्थक-पं० महबूबसिंहजी देहली दर्शाती है । १ पं० पन्नालाल नी न्याय दिवा
, ला० शिब्बामल नी अंबाला कर, २ ला• जम्बूपसादजी रईस सहारनपुर, प्र. नं. ३-यह परिषद प्रस्ताव करती है ३ लाला दीपचंदनी सहारनपुर, ४ रा. सेठ कि सर्व साधारणको जैन धर्मका अच्छा परिचय मेवारामनी खुर्जा, ५ रा० ला मजितप्रसादनी करानेके लिए एक पुस्तक ऐसी तय्यार की जाय देहरादुन, १० ज्ञानानंदनी, ७ ब. गोकु. कि जिसमें जैनधर्मकी प्राचीनता और सिद्धांत कप्रसादनी ८ ब. जिनेश्वरदासनी। संक्षेपमें आ जावें । यह पुस्तक हिन्दी, उर्दू,
प्रस्तावक-सभापति । बंगाली, उड़िया, मराठी, कानडी, तामील, '. प्र. नं २-यह परिषद प्रस्ताव करती है कि तेलगू आदि भाषाओं में प्रकाशित की जावे, एक व्याख्यान विभाग स्थापित किया जाय, जैनधर्मभूषण ब० शीतलप्रसादनी इसको हिंदीमें को जैन स्कूल व जैन बोर्डिंगहाउसोंमें जैन तैयार करें व नीचे लिखे विद्वानोंसे इसका धर्मपर व्याख्यान करानेका प्रबंध करे । और संशोधन कराया जाय । निम्नलिखित महाशयोंसे विशेषतया प्रार्थना की १ न्यायाचार्य पं० गणेशप्रसादजी , वर्णी जाय कि वे १ सालमें कमसे कम इन संस्था- २ , . पं० माणिकचंदनी मोरेना ओंमें दो बार व्याख्यान देवें।
३ बाबू जुगमंदिरलालजी वेरिष्टर इंदौर १ ला० जुगमंदिरदासजी बैरिष्टर व जज इंदौर ४ , चंपतरायनी बैरिष्टर .. हरदोई २, मजितप्रसादनी वकील एम०ए० लखनऊ ५, अजितप्रसादनी एम०ए० वकील लखनऊ ३ श्री जयकुमार देवीदासजी वकील अकोला १५० जुगलकिशोरजी मुख्तार सरसावा १ बा० चंपतरायजी बैरिष्टर । हरदोई - प्रस्तावक-पं० चंद्रकुमारजी न्याय काव्य तीर्थ ५ जैनधर्मभूषण २० शीतलप्रसादनी . समर्थक-पं० बाबूरामनी आगरा १५०. चन्द्रकुमारजी न्याय काव्यतीर्थ प्रस्ताव नं. ४-मारवाड़ी जैन ममवाल और
नजीबाबाद देशी जैन अग्रवाल दोनों एक ही जाति हैं, . ७ बबू ऋषभदासनी वकील.मेरठ केवल क्षेत्र भेद होनेसे कोई भेद नहीं होसक्ता,
< सी• ऐस० मल्लिनाथ मदरास अतः यह परिषद प्रस्ताव करती है कि दोनों में
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AAMAAN
aanwar
२८]
दिगम्बर जैन । ... वर्ष १७ परस्पर रिश्ते होने के लिए उत्तेजना दी जाय। न करें।
प्रस्तावक-ज्योतिप्रसादजी देवबंद प्रस्तावक-लाला नेमीशरणनी जैन वकील बिजनौर समर्थक-मित्रसेनजी रईस खतौली समर्थक-व्र० भागीरथजी वर्णी
, विश्वंभरदासजी गार्गीय झांसी , ब्र गणेशप्रसाद नी वर्णी
, सेठ फूलचंद नी खुनो , सेठ मूलचंद किसनदास कापड़िया -सुरत प्र. नं. ५-नैन समाजकी संख्याके वेगके प्रस्ताव नं. ७-जैन इतिहासकी अत्यन्त साथ हासको यह परिषद् चिंता व भयकी दृष्टिसे आवश्यकता समझकर यह परिषद प्रस्ताव करती देखती है और प्रस्ताव करती है कि निम्न है कि जैन इतिहास तैयार करनेके हेतु इतिहास लिखित सज्जनोंकी कमेटी बनाई माय, जो जैन विभाग स्थापित हो, निसके मंत्री व बू हीरालासमाजकी सेख्याके ह्रासका अनुसंधान करें, और सनी एम० ए० हों। वे स्वयं तथा बा• मुनिछह मासके अंदर रिपोर्ट प्रकाशित करे, मिससे सुबतदाताजी मेरठ व बा• कामताप्रसादजी तथा हासके कारण व उसके रोकने के उपाय बतकावें। अन्य विद्वानोंसे सहायता लेकर तैयार करें। मंत्रीको अधिकार दिया भावे कि इसमें और प्रस्तावक-बा० कामताप्रसादनी अलीगंज नाम शामिल करलें।
समर्थक-बाबू नेमीशरण नी वकील बिननौर श्रीयुक्त काला रतनलालजी बिमनोर मंत्री भनुमोदक-ब. शीतलप्रसादजी , ज्योतिप्रसादनी देवबंद प्रस्ताव नं. ८-जैन धर्मके प्रचारका जो काम
, का. चेतनदासनी मथुरा प्राचीन श्रावकोहारिणी सभा कळकत्ता तथा -, ब्र. शीतकप्रसादमी
महिक्षेत्र तीर्थ प्रबन्धकारिणी सभा कर रही है , साहु जुगमेवरातमी ममीवाबाद उसकी यह परिषद सराहना करती हुई प्रस्ताव , पं. बाबूरामजी भागरा करती है कि यह परिषद धर्मप्रचारके हेतु एक
, प्र. गणेशप्रसावजी वर्णी उपदेशक विभाग खोले जिसके द्वारा अवैतनिक R०-का. रतनलालमी वकील बिजनोर और वैतनिक विद्वानोंसे उपदेश कराया जाय । समर्थक-सेठ मुलचंद किसनदास कापड़िया तथा इसके मंत्री मास्टर चेतनदासजी मथुरा
, ब्र• गणेशप्रसादजी वी नियत किये जाय । प्रस्ताव नं० ६-यह परिषद प्रस्ताव करती प्रस्तावक -सेठ मूलचंद किसनदाप्त कापड़िया है कि जैन मंदिरोंमें धोसी, दुपट्टे, कपड़े, वेष्टन समर्थक-बाबू जुगलकिशोरजी मुखत्यार भादि स्वदेशी शुद्ध सुती वस्त्रोंके ही प्रयोगमें अनुमोदक-बा• रतनलालजी बिननौर लाये नार्वे । और चंोवे माबि रेशम व अशुद्ध , बा० मिट्ठनलाकनी शामली सुसी बस्त्रके न चढ़ाये जायें। और जनतासे , ब. शीतलप्रसादजी मार्थना करती है कि वह ऐसे वस्त्रों का व्यवहार प्रस्ताव नं. ९-दिगम्बर श्वेता बरियों में ती.
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अंक 1
दिगम्बर जन । थोंके संबंध जो अदालती झगड़े चल रहे हैं सज्जन सम्मिलित न हों। उससे धन और पुरुषार्थकी महान हानि होरही प्रस्तावक-पं० मक्खनलाल नी देहली है और सर्व जैन समानका गौरव घट रहा है समर्थक-वा० लखपतराय गनौर मतः यह परिषद प्रस्ताव करती है कि नीचे
, पं. बाबूरामनी अहारन लिखे महाश्चयोंका एक डेपुटेशन नियुक्त किया , ब्र० सीतलप्रसादनी माय, जो कि दिगम्बर श्वेतांबर दोनों समा-
ला• शिवामलनी अम्बाला मोके मखिया और शिक्षित व्यक्तियोंसे मिलकर प्रस्ताव नं. १-यह परिषद प्रस्ताव करती झगड़े मिटाने और एकता उत्पन्न करने का प्रबंध
है कि व्यर्थ व्ययको रोकनेके संबंध नीचे करे।
लिखी बातें एकदम बन्द की जावें और छोटी। बा० नेमीशरणजी
रस्मोंके लिये स्थानीय पंचायतों को प्रेरणा की मि. मुनिसुव्रतदासजी
जावे कि वे आप अपने रिवाजों को ध्यानमें बा. रतनलालनी वकील
रखते हुए एक दस्तुरुल अमल (कायदा) बना लेवें। बा० बलवीरचन्दजी,
१-बाहरकी बरात १०० भादमियोंसे अ. रा. व. सखीचंदजी पुरी
धिक न हो। . रा. ब. नांदमलनी भनमेर प्रस्तावक-सेठ मोतीलाल
२-पत्तलकी मीठाई ३ छटांकसे अधिक न हो। समर्थक-बा. लक्ष्मीचंदनी
३-जेवर और दाद दिखलाना बंद कियाजाय।
४- बुर बखेर अतिशबानी, बाग बहारी, ,, सेठ तिलोकचंदनी दिहली
वेश्यानृत्य, नक्कालोंका नाच, स्वांग आदि ,, मास्टर चेतनदासजी मथुरा , नेमिशरणजी वकील बिजनौर
बंद किया जाय । ,, बलबीरचंद जैन वकील मुनफरनगर ५-मृत्यु समयकी ज्योनार व गिदौडा बन्द प्रस्ताव नं० १०-जैन जातिमें बाक विधवा किया जाय । भोंकी संख्याकी अधिक बढ़ती देखकर और ६-द्विरागमन बंद किया जाय । कुमारोंके बिबाह न होते देखकर यह परिषद ... प्रस्तावक-विश्वम्भरदाप्त गागीय झांसी मस्ताव करती है कि बालविवाह वृद्ध विवाह समर्थक-ला. अतरसैन देशभक्त सम्पादक
और कन्याविक्रय बंद किया जाय तथा विवाहके समय कन्याकी भायु १३ वर्षसे कम और भनुमोदक-मूलचंद किशनद्रासनी कापड़िया लड़के की आयु १६ वर्षसे कम च हो और ४० , -उपदेशक देवीसहायनी वर्ष के ऊपर कोई पुरुष विवाह न करें। इस : प्रस्ताव नं. १२-परिषद के भागामी मारके प्रस्तावके विरूप को विवाह हो. उनमें कोई खर्चके लिये निम्नलिखित बजट पास किया मावे ।
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दिगम्बर जैन
भंक ५] २४००) प्रस्तावक-ब्र. सीतलप्रसाद नी दि. श्वे. एकता विभाग १०००) समर्थक-पं० चंद्रकुमारजी न्यायतीर्थ प्रबंध खाता
५००) ,
पं० बागमनी। प्रचार खाता
१०.०) प्रस्ताव नं०१४-उच्च धार्मिक और लौकिक इतिहास सम्बन्धी
५००) शिक्षाकी जन समाजमें अभीतक बहुत कमी है ट्रैक्ट विभाग
१००) इसे दूर करनेके लिये यह परिषद प्रस्ताव करती नैन ह्रासके उपायोंका अनुसंधान ५००) है कि जैसे सेठ माणिकचंद पानाचंद बम्बई व बोर्डिंगोंमें व्याख्यान विभाग १००) लाला प्यारेलाल वकील देहली छात्रवृत्ति फंड पुस्तक तैयार
५००) स्थापित करके सहायता देते हैं उसी तरह अन्य ७४००) धनवानोंको प्रेरणा की जाय कि वे अपनी चंचला १४००) लक्ष्मीका उपयोग छात्रों को सहायता रूपसे या
६०००) कर्न रूपसे देकर शिक्षा प्रचार करें । प्रस्तावक-ला. रतनलालजी
- प्रस्तावक-ब शीतलप्रसादनी।। समर्थक-ब्र० शीतकप्रसादनी
समर्थक-मास्टर चेतनदासनी मथुरा । , -मूलचन्द किसनदासजी कापड़ियासुरत प्रस्ताव नं० १५-भारत दि. जैन परिषद्की
प्रस्ताव नं० १३-वर्तमानमें जैन समान प्रबंधकारिणी कमेटीके निम्नलिखित सदश्य चुने बिम्ब व वेदी प्रतिष्ठाओंको अधिकतासे करती जाते हैंहुई उनको लौकिक मेलेका रूप देकर सच्ची १ चम्पतराय बेरिस्टर सभापति धर्म प्रभावनामें हानिकारक होरही है, इसलिये २ साहू जुगमन्दरदासजी उपसभापति यह परिषद् प्रस्ताव करती है कि अत्यन्त आव. ३ बा• रतनलालमी बिजनौर मंत्री श्यकता होने पर ही प्रतिष्ठाएं बहुत सादगी ४ ला• नेमीशरण नी जैन वकील बिननौर मौर कम खर्च में की जाय तथा उनमें अत्यन्त साहू जुगमंदरदासजी , भावश्यक भोजनादि सामग्रीकी दुकानोंके सिवाय बा. बलवीरसिंह वकील मुनफरनगर मंत्री और उसमें न रक्खी जाय तथा धर्म व्याख्या
व्याख्यान विभाग नोंका व महान पूनाका अधिक प्रबन्ध किया ७ हीरालालनी एम०ए० इतिहास विभाग मंत्री नावे और प्रतिष्ठाओंमें दावत करना व गिदोडा ८० शीतलप्रसाद नी लडूडू वांटना बंद किया जाय तथा दाना पास ९ मास्टर बिहारीलालनी अमरोहा लकड़ीका प्रबंध दाम लेकर किया जाय और १० राजेन्द्रकुमारजी बिजनौर ऐसे अवसरोंपर मिलनी भादिकी रश्म बन्द ११ अजितप्रसादनी एम० ए० लखनऊ की नाय ।
१२ वा० ऋषभदास वकील मेरठ
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दिगम्बर जैन । १३ ,, रूपचन्दनी जैन कानपुर
प्रस्तावक-बा० रतनलालजी बिजनौर ११ , जुगलकिशोरनी सरसावा
भनुमोदक-बा. बलवीरसिंह मुजफरनगर १५ , जोतिप्रसादनी देवबंद
प्रस्ताव नं. १६-परिषदकी नियमावली चेतनदासजी हेडमास्टर मथुरा बनाने के लिये नीचे लिखे महाशयोंकी एक छोटेलालजी कलकत्ता
कमेटी नियुक्त की जाय, जो नियमावली बना. निर्मलकुमारजी मारा
कर मंत्रीको भेन दे । मंत्री उसको प्रकाशित १९, बैजनाथनी श्रावगी।
करके सभासदोंके पास संमतिके लिये भेनकर ,, गोकुलचन्दनी दमोह
बहुमतसे पास करले । जहांतक हो यह कार्रवाई २१, हरनारायणनी भागलपुर
शीघ्र पास होनी चाहिये । २२ , चवरे वकील मकोला
बा० चंपतरायजी बैरिष्टर हरदोई २३ ब• दीपचन्दजी वर्णी
मजितपसादजी लखनऊ २४ बा० कंछेदीलालजी वकील जबलपुर , जुगमंदरलाल जन इंदौर २५ सेठ चिरंजीलालजी वर्धा
नेमीशरणनी वकील बिजनोर २६ रा.व. नांदमलजी मनमेर
रतनलाल नी , , २७ बा० मुरारीलाल अम्बाला .
साहु जुगमंदिरदास नजीबाबाद २८ रा० ब० लक्ष्मीचन्दनी रईस पानीपत
ब्रह्मचारीनी सीतलप्रसादनी २९ रा० ब० प्यारेलाल वकील देहली
जुगलकिशोरजी सरसावा
मित्रसेननी खतौली २. लाला जग्गीमलनी देहली ३१ सेठ मूलचंद किसनदास कापड़िया सुरत
बलवीरसिंहनी मुजफ्फरनगर ३१ , ताराचंद नवलचंद मुंबाई
चेतनदासनी मथुरा ३३ ., रतनचंद चुनीलाल जरीवाला
इसका कोरम चारका होगा। ३. सेठ फूलचंद हीराचंद सोलापुर
प्रस्तावक-सभापति १५ सी. ऐस० मल्लिनाथ मदरास २६ सेठ वर्डमानैयाजी म्हेसुर
* विश्वास घातका फल ।* १७ पं० माणिकचंदजी मोरेना
____एक स्यार जंगलसे आया। ३८ चंद्रकुमारजी न्याय काव्य तीर्थ
__ भूखा प्यासा मति घवराया ॥ ३९ सेठ लालचंदजी सेठी झालरापाटन तही मृग इक उसे दिखाया। १.पं. बाबूरामनी अहारन
देखत ही यों मनमें भाया ॥१॥ ४१ वा. मित्रसेननी खतौली
वशमें करूं मृगा यह मान । १२ नेमीचंदनी मुरादाबाद
.. जिससे सुधरे मेरा कान ॥
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११]
विचार कर कहा मृगसे ।
था मैं | व्याकुल बहुत दिनोंसे ॥१॥
मेरा मित्र नहीं है कोई |
इससे करें मित्रता दोई ॥
अत मित्रता मैं नहिं करता ।
इससे भला अकेला रहता ॥३॥
मिलने में मित्र कहाते ।
वे सब झूठी प्रीत लगाते. ॥
सच्चा प्रेम नहीं दर्शाते ।
स्वारथके बस प्रीत उपाते ॥४॥
तत्र यों बोला चतुर लिया ।
शंका करो नहीं तुम भैया ॥
मैं तुमसे अति प्रीत उपाऊँ ।
कभी न तुमसे नेह हटाऊँ ॥९॥
किरिया रामचन्द्र मुझको ।
दिगम्बर जैन ।
जो मैं धोका देंऊँ तुझको ॥
प्राणोंसे बढकर अपनाऊँ ।
तुझको सच्चा मित्र बनाऊं ॥ ६ ॥
तब मृग हृदय बहुत हर्षाया ।
स्यारके ऊपर प्रेम उपाया ॥
दोनों रहन लगे मिल सोई ।
प्रेम भेद जाने नहि कोई ॥७॥
लिड़ई कपट युत प्रेम वढावे |
मृग नहिं ये बातें मनालाचे ॥
इ दिन किया लिईने कैसा |
सो सब तुम्हें बतावें वैसा ॥८॥
जहां वहिलिया जाल बिछाया ।
वहां लिड़इ मृग लेकर घाया ||
फंसा दिया मृगको फंदे में ।
आपन जाय छिपा खंदे में ||९||
इतनेमें इक वायस आया ।
7
मृगको यों उपदेश सुनाया ॥
अब दम साधी मित्र हमारे ।
जिससे बचना प्राण तुम्हारे ॥१०॥ वायस वात सुनत मृगस्याना ।
दम, साध रह गया चिमाना ॥
दिल में सोचे यही लिड़ैया |
कब आवेग मार वहिलिया ॥ ११॥ कांधे घरे कुठार बहिलिया ।
भाया जाल निकट तल बलिया ॥
मृगको फंसा देखकर उसने ।
[ वर्ष १७
दिलमें यही विचारा उसने ॥१२
इस मृगने तन दीने प्राण |
फंदा बाहर करूं निदान ॥
फंदा बाहर मृगको डाला |
रोटी बैठा कौआ काला ॥१३॥
तहि महिलिया कोप उपायत ।
काग उड़ाने तुरतहि घाया ||
यहां मृम उठ दौड़ लगाई |
देख बहिलिया गुहा आई ॥ १४ ॥ फेंक कुल्हाड़ी ऐसी मारी |
कटी लिड़की मुंडि विचारी ॥
यह विश्वासघात फळवंका ।'
इसमें करो न कोई शंका ॥ १३॥ इससे सुनो सकल नरनारी ।
तनो कपटकी खोटी यारी ॥
कहत 'प्रेम' खुन चित्त लगाई |
तज बिस्वासघाति दुखदाई ॥ १६ ॥ प्रेमचंद जैन पंचरत्न,
जैन विद्यालय-भिन्ड ।
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રાટ છવણચંદ સાકરચંદ ઝવેરી સુરત, રા દરખાસ્ત-મુલચંદ આશારામ વેરાટી, ચુનીલાલ ગુલાબચંદ દાળીયા સુરત, રા• ભાઇ- ટેક-વસનજી દયાળ ગણવા તથા વિનયવિજયજી ચંદ છેટુભાઇ સુરત, ૨૦ રતનચંદ ખીમચંદ મહારાજ. ' કાપડીઆ સુરત, રા મુલચંદ કીસનદાસ કાપડીઆ ઠરાવ ૬ ઠે. કેમ્બ્રીજ હીસ્ટરી Anelસુરત, રા, જવેરી મુલચંદ આશાગમ વૈરાટી અમent India ના પ્રથમ ભાગમાં તથા શ્રીમાન અને દાવાદ, રા વર્ધમાન સરૂપચં અમદાવાદ, રા યાલાલ મુનશી તેમજ અન્ય અને વિદ્વાને
લાલ મોહનલાલ પાદરાકર, રા મોહનલાલ તરફથી જે જે જન સંબધે ભુલ ભરેલાં અને દલીચંદ દેશાઈ, વગેર ૨ ૦ મહાશ. *
જન કેમની લાગણી દુઃખાય તેવાં લખાણ થાય દરખાસ્ત-ચુનીલાલ શ્રાફ ટેક-મોહનભાઈ છે તેને આ પરિષદ્ નાપસંદ કરે છે, અને તેવા
ઝવેરી અમદાવાદ. લખાણનું કારણ તે લેખકોની જન ધર્મ સંબંધી ઠરાવ ૩ જે-જે જે સ્થાનના આ૫ણું જ્ઞાન અભ્યાસની માછપ છે તેમ આ પરિષદ્ માને છે. ભંડારા સર્વેના ઉપયોગના અથે ખુલા ન થયા અને તેથી તેવા વિદ્વાને જન ધર્મ સંબંધી હોય તે ભંડારાના વ્યવસ્થાપકોને મળી તેમને ખુલા લખાણે લખતા પહેલાં જન ધર્મને વિશેષ મુકાવવા; જે જે ભંડારાના પુસ્તકોની યાદીઓ અભ્યાસ કરીને લખે એ ઉચિત છે એમ આ પરિ. પ્રસિદ્ધ થઈ ન હોય તેઓની યાદી પ્રગટ પદ દઢપણે માને છે. કરાવવી; પ્રસિદ્ધ ન થયા હોય અને પ્રસિદ્ધ કરવા દરખાસ્ત-મણીલાલ મોહનલાલ પાદરાકર, જેવાં પુસ્તકો ચોગ્ય સુનિરાજે તથા જૈન વિદ્વાનો – ૧ લાલચંદ ભગવાનદાસ વડોદરા. ની દેખરેખ નીચે પ્રગટ કરાવવા ગ્ય પ્રયત્ન પરિષદમાં કુલે ૪પ નિબંધ આવ્યા હતા કરવાને માટે તે તે ભંડારેના વ્યવસ્થાપક.ને આ જેમાંથી ૧૦ પરિષદમાં વંચાયા હતા. એ બધા -પરિષદ ભલામણ કરે છે. •
નિબંધમાં હિન્દી ભાષાના બે નિબંધે હતા-એક | દરખાસ્ત–૦ હીરાલાલ હંસરાજ જામનગર, મુનિ આત્મારામજી ઉપર હલભવિજય મહારાજ ટક-વધમાન સ્વરૂપચંદ વકીલ અને પં. ભગ ને ને બીજો બ્ર. શીતલપ્રસાદને સાહિત્યકા વાનદાસ હરખચંદ વળા.
મ' વ પ્રચારકે ઉપાય પર હતો તે અમે . હરાવ -જન ધનના દરેકે દરેક પુરુરૂક વાંચો તે તથા વિજયધર્મસરી ઉપરનો છલાં અને ખેલાં મેળવીને, એકઠા કરીને ગુજરાતી નિબંધ પણ અમે વંચ્યો હતો. આ બે દરેકની એકેક નકલ રાખી શકે તે એક નિબંધ ઉપયોગો હોવાથી અમે તે આવતા અંકમ સકળ જૈન સંઘને મધ્યસ્થ જ્ઞાનભંડાર કરવાની પ્રટ કરીશું તેમજ અવેલા નિબંધની કુલસે યાદી આવશ્યક્તા આ પરિષદ ૨વીકારે છે. તેમજ પણ આવતા અંકમાં પ્રકટ કરાશે. એકંદરે આ એક જન કેલેજ સ્થાપવાની જરૂર આ પરિષદ પરિષદે જે કાર્ય કર્યું છે તે ગુજરાતના દિગંબર જણાવે છે.
. જનોને અનુકરણીય છે. પરિષદનું કાર્ય નિભાઆ દરખાસ્ત-નગરશેઠ બાબુભાઇ ગુલાબભાઈ વવાને આશરે ૧૨૦૦) નું ફંડ થયું હતું જે ટકોણલાલ મોહનલાલ પાદરાકર અને મુલચંદ સમયે એક બાલુભાઈ ભાવસારે ૧) આપતા તેનું કરસનદાસ કાપડીયા સુરત.
લીલામ કરતાં ૭૮૨) ઉપજ્યા હતા. પરિષદ થોડા ઠરાવ ૫ મે-જન સરતું સાહિત્ય વધુ પ્રચાર વખતમાં થવા પામી હતી પણ તેને સફલતા પામે તે કયત્ન કરવાને બપરિષદ્ જરૂર ઘણીજ સારી મળી છે. જૈન વનિતા વિશ્રામની જાવે છે. અને તે કરવાને માટે મંડળો સ્થપાય બાળાઓએ પણ ગીત ગરબાઓથી સારે આનંદ એવી અગત્ય આ પરિષદ સ્વીકારે છે.
આવે
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________________ "Digamber Jain" Regd. No. B. 744. હ્યા નEાવિચાર-%ા 6 ૭વાં વાર્ષિ- તથા બહેનોએ નીયમ વ્રતો લીધા હતા. અત્રેથી મુનિજી તા. 6 એ નવાગામ પધાર્યા હતા. ત્યાં कोत्सव ता.१ मई को बाबू श्रीप्रकाशनी बेरिष्टर બે દિવસ રહી ઉપદેશ આપે જેથી અનેક ને હું ‘આ ન’ વેદ માપતિત્વમેં રજીસ1gવૈ લેવાયા તથા અન્ય લેાકાએ પણ દારૂ” માંસ હોનયા છે . ઘાંઘ વતી 3 માનનારું છે મી ત્યાગના નીયમ લીધા હતા તથા નવાગામ પાઠgયાં છે | મત્રીને ઘટ દિયા %i ફ્રણ વિદ્યા૪- શાળા માટે માસિક રૂ. 5) આષધ દાન માટે તથા 4 યાર્ડ શાળા માટે માસિક રૂ. 10) ના यसे आजतक करीब 100 पंडित तैयार होकर પુસ્તકો તથા છાંણી લાયબ્રેરી તથા એ.ષધ દાત નિદૈ દૈT દિર વિદ્યાર્થિયો સં૨ત વ દેરી ખાતે 30 5) મળી રૂ૦ 20) માસિકની વ્યવસ્થા કરી ગયા હતાં. ત્યાંથી મુનિજી તા 0 8 મી એ ધર્મવી પાવીનતા, સત્તકતા વ શાપુરા 5 ધાડાદર પધાર્યા ત્યાં પણ ઉપદેશ અપવાથી આઈ - માં ન્હાવાને બિકુલ રીવાજ નહોતા તેના व्याख्यान हुआ था व अंतमें उतीर्ण छात्रों को નિયમ લેવાયા હતા. અને ત્યાંથી બાવલવાડા તા. पारितोषिक दिया गया था। 10 ના રાજ પધાર્યા હતા તેમજ ત્યાંથી ત:૦ રહૃારાજેન ઝન સમા%ા પ્રથમ ધ. 11 ભાંગુદા થઇ કેસરીયાજી પધાર્યા છે. હું’ પણ વેશન વૈશાવ gii રૂ o ાનાથ પ્રતિજોરર બાવલવાડા સુધી સાથે હતા. મુનિજીની વૃત્તિ - સ કડી = = જાણે ચોથા આરાના મહામુનિની વૃત્તિ જેવી જ समय हरकुवा (दमोह) में चौधरी ननाई लालनी જણાય છે. તેમને ધી ખાંડ ગાળ રસ બીલકુલ टडाके सभापतित्वमें होगया जिसमें कार्यकर्ता ત્યાગ છે. Yક્ત મકાઈ તથા ઘઉંની રાબડી અને ભોંક્ષા રાવ ફુગા વ કાતિ તુષા જે વરતાવ દળ ભાતના તથા દુધને આહાર કરે છે. પરીपास हुए है। ણામ બહુત શાંત છે. આપને હવે કેશરીયાજી, ડુંગ રપુર, સાગવાડા થઈ ઇન્દોર જવા વીચાર છે ને समाधिमरण - भमरावती में सिं० मूलचंद ત્યાંજ ચતુમસ થાય તે સંભવ છે. जीका 64 वर्षकी आयुमै समाधिमरण होगा। મારા હસ્તકની ચારે પાઠશાળાની વાર્ષિક આપને અવની પૃરયુ સમય ટુ સે તસ્રા વિ! પરીક્ષા તા 28-024 બાવલ વાડા તા 0 ૩૦-૫થા કૌt H : 2 == પ્રારાં સાફાર સૌષધિ 24 નવા (મ, તા. 2-6-24 છાણી અને ત્ય'થી ત્યાજ દર જે ક્ષમાવળી વ ગામfમંતવન દર .y[ તા 0 4-'- 24 ના રોજ દેવલ લેવાની મુદત છે માટે જેમના આ પ્રસ ગે આવવા વિચાર હોય छोड़े थे। अंत समय 1 0 1) दान भी कर गये है। તા થૈડદર જરૂર પધારો!. ધાડ, દરેથી–માડાશીયા ફચંદભાઈ તારાચંદ લખી જણાવે છે કે મુનિ મહારાજ શ્રી શાંતિના પવિત્ર જારમારી વેરાવગરજી ( છાણીવાળા ) રાણાપુરથી સાગવાડા, ડુંગરપુર, દેવલ થઈ છાંણી .0 4-5-24 ના - 5' માવ 4) જૈ તોહા હૈ રાજ પધાર્યા હતા, જેની મને ખબર હોવાથી હું' - મા,નૈ $aa પતાપણ ત્યાં ગયા હતા. ત્યાં એક દિવસ મેળાવડે કરાવી ધણા ઉપદેશ આપવાથી ઘા ભાઈએ દાં ના-૦િ સૈન પુરત -સુરત ! "जनविजय / प्रिन्टिग प्रेस खपाटिया चकला-सुरतमें मूलचंद किसनदास कापड़ियाने मुद्रित किया और "दिगम्बर जैन" आफिस. चंदावासी-सुम्तसे उन्होंने ही प्रकट किया।