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दिगम्बर जैन ।
[ वर्ष १० मृत्युके समय पर जो अनुचित व्यय होरहा है खर्ची और धनोपार्जनके मार्गको देखकर मुझे उसको रोकने के लिये समानसेवी २५-३० यह भी कहते हुये संकोच नहीं होता कि ऐसे वर्षसे चिल्लारहे हैं परन्तु फल बहुत कम व्यर्थ व्ययोंके बढ़ जानेसे आज द्रव्योपार्जनका निकला है। परिषदको अपने प्रस्ताव द्वारा मागं अनीतिपरायण होगया है। समयकी निम्नलिखित फजुलखर्ची सर्वथा बंद कर देना आवश्यकता और देशकी दशा हमें पाठ चाहिये ! और शेष छोटी २ रस्मोंके लिये देती है कि अब हम बहुत दिनोंसे स्थानीय अथवा जिला सभाओंको अधिकार उपयोगमें आई हुई चटक मटकको छोड़कर दिया जावे कि अपने २ रिवानों पर विचार सादी जिन्दगी बनावें । छलकपट रहित आडंबर करते हुवे दरतूर उलअमल (नियम) बनावें। शून्य - सादे जीवनका महत्व बहुत बड़ा है । (क) १०० भादमियोंसे अधिक वारात न हो। अब हमें फैशनके रोगसे जितना जल्दी (ख) वारातमें मिठाईकी पत्तल दो छटांकसे होसके मुक्त होजाना चाहिये, एक दिन में पांच मधिक न हो!
__चार वार बदले जानेवाली उन पोशाकोंको हमें (ग) बूर, बखेर, वागवहारी, मातिशबाजी, तुर्त विदा कर देना चाहिये जो कि धनके दुरुरंडियां नचाना कतई बन्द कर दिया जावे। पयोगके साथ २ भारतीयता नष्ट कर रही हैं । (घ) जेवर दिखाना बन्द कर दिया जाय। भारतीय जीवन शुद्ध और सादा जीवन है उस(च) मरनेकी ज्योनार बन्द की जाय। में अल्पव्ययके साथ भव्यता भरी हुई है वैसा (छ) गौना बन्द किया जाय।
पवित्र जीवन हरेकको बनाना आवश्यक है । इसके सिवाय बहुतसा द्रव्य अनावश्यक और १२-साधर्मी सज्जनों ! अब मैं आपका अनुपयुक्त वस्त्र आदि भाडम्बरोंमें स्वाहा कर ध्यान एक दूसरे विषयकी ओर आकर्षित करता दिया जाता है । आजकल समयकी गति, वस्तुः हूं। यह तो निर्विवाद है कि पूना प्रतिष्टायें ओंकी मंहगाई, शिक्षादि कार्यों की आवश्यकतायें धर्म-लाभकी प्राप्ति और प्रभावनाके अर्थ की जाती हमें ऐसे फजूलके धन व्ययसे सहसा रोकती हैं । जैन समाजका वीस पच्चीस लाख रुपय! हैं। हम लोग व्यापारोन्नतिसे वणिक कहलाते प्रतिवर्ष इस मद (विभाग) में व्यय होता है । हैं परन्तु इन फजूल खर्चियोंके देखने से कहना परन्तु क्या कोई विचारशील व्यक्ति इस बातको पड़ता है कि वास्तव में हम वणिक पद्धति से बिल कहने का साहस कर सकता है कि जिस ढंगसे कुल दूर हैं। ऐसे पानी के संग्रह से क्या उपयोग आजकल पूना प्रतिष्ठाएं होती हैं उनसे जितना सिद्ध होगा, जो अनावश्यक द्वारसे बह रहा चाहिये उतना धर्मलाभ और धर्मपभावना हो । व्यापारकी उथल पथलमें जब धन वृद्धिका होती है ? भाप मुझे क्षमा करेंगे यदि मैं यह कह मार्ग रुक जाता है ऐसे समयमें मितव्ययी हूँ कि पूजा क्या एक अच्छी प्रदर्शिनी होती पुरुष ही अपनी रक्षा कर सकता है । फिजूल है। बाकायदे बाजार लग जाते हैं। स्त्री पुरुष के