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________________ [4] आज संसार यह मान ले, कि चन्द्रगुप्त सम्राट् जैन धर्मानुयायी था तो यह अनुमान सहज ही में कर लिया जायगा कि उस समय जैनधर्म राष्ट्रीय धर्म था, और भारतवासियों के पूर्वन भी कभी इस धर्मके माननेवाले रहे हैं । इसका फल यह होगा कि भारतवासी इस धर्मकी भी आदर भावसे देखने लगेंगे और इसके जाननेके इच्छुक होंगे । दिगम्बर जैन । (१०) मैं पहिले संकेत कर चुका हूं कि जाति ह्रासके कारण बालविवाह, वृद्धविवाह भी हैं । अब मैं उनकी तरफ आता हूं। इन कुरी तियोंने हमारी समानको जर्नरित कर रक्खा है, इनके हटाने का बहुत दिनोंसे आन्दोलन होरहा है, परन्तु मनुष्य गणना की रिपोर्ट से यह जानकर हृदय विदीर्ण होजाता है कि अभी हमारी समाज में पांच वर्ष से कम अवस्थाकी विधवा विद्यमान है । तो कैसे कहा जासकता है कि आन्दोलनका परिणाम सतोषजनक निकला है । इसको रोकने के लिये केवल प्रस्तावोंसे काम 1 नहीं चलेगा । अमली कार्यवाहीकी आवश्यकता है । कन्या का विवाह १४ वर्षसे पूर्व न हो, और लड़कों का विवाह अठारह वर्ष से कम और चालीस वर्ष से अधिक अवस्था में न हो । परिषदको प्रत्येक स्थानपर अपना इस भिितका संगठन बनाना चाहिये कि जहांपर उपर्युक्त नियमका उलंघन होता हो, वहां जिस भांति बने योग्य उपायोंसे उस विवाह सम्बन्धको न होने दें | यदि अन्य उपायोंसे कार्य न चले तो ऐसे विवाह किसीको सम्मिलित न होने दें । बालविवाहके रुक जानेसे चौदह वर्ष से [ २६ कम अवस्थाकी विधवा जिनकी संख्या बहुत काफी है, न हो सकेंगी । चालीस वर्ष से उपरका विवाह रुक जाना भी विधवाओंकी संख्या में कमीका कारण होगा । इस प्रकार बालविवाह और वृद्वविवाह रुकने से जो कन्यायें वैधव्य से बचेंगी उनका संबंध युवकों के साथ होने से वह जातिकी वृद्धि में कारण होंगी । बाल विवाह से बहुतसी कन्यायें गर्भधारण शक्ति न होनेके कारण असमय ही प्रसव पीड़ासे मृत्युका ग्रास होनाती हैं और यदि उनकी संतान होती है तो वह बलहीन और संसार के कार्यों में साधक न हो बाधक होती है । विवाह के १, ३, ५ साल बाद द्विरागमन ( गोंना ) की प्रथा भी हटा देनी चाहिये यह भी बाल विवाह में साधक है इसके दूर करने से जिस समय द्विरागमन ( गौना ) होता है उस समय विवाद होने लगेगा । तथा द्विरागमन और विवाह के वीच विधवा होने की जोखम भी जाती रहेगी । वृद्धविवाह के लिये कन्याविक्रय बहुत अंगोंमें साधक होरहा है । इस घृणास्पद और लज्जाजनक कुरीतिको रोकनेके लिये परिषदको अपनी पूर्ण शक्ति लगा देनी पड़ेगी और ऐसे, दीन अबला कन्याको बेचकर आजीविका करनेवाले अधम पुरुषोंके यहां पंचोंको लड्डू खाने से काम न चलेगा किंतु ऐसे विवाहों से असहयोग करना पड़ेगा । ११ - फजूल खर्चीके सम्बन्ध में भी मुझे समानसे वही शिकायतें हैं जो मैं कुरीतियोंके सम्बन्धमें कर चुका हूं । जन्म, विवाह और
SR No.543196
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size7 MB
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