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________________ २२] दिगम्बर जैन अंक 1 जैन धर्मका परिचय करने के लिये भिन्न २ शास्त्रसभा, व्याख्यान सभामें संमिलित होते थे। भाषाओंमें भांति २के ट्रैक्ट और पैम्फलेट उनसे वार्तालाप करनेसे मालूम हुआ कि उनके छपाये जावें और विना मूल्य अथवा अल्प हृदयपर कुछ जैन धर्मका प्रभाव बड़ा है। इसी मुल्यपर वितीर्ण किये जायें। भांति चांदनगांव महावीरजीमें वहांके निवासि(ख) बंगाल विहारमें सराफ नामकी जाति यों की भी महावीर भगवान में बड़ी श्रद्धा भक्ति है जो जनसंख्यामें लगभग एकलाल होगी है । उनको भी महावीर भगवानका पवित्र उपदेश और मानभूम, सिंहभूम आदि जिलों में फैली बतलाने की आवश्यक्ता है । इन स्थानोंपर और हुई है। वह जीवहिंसा नहीं करते, पंच उदः ऐसे ही अन्य स्थानोंपर जैन धर्मके प्रचारका म्बर फल नहीं खाते, और पार्श्वनाथ भगबानको कार्य परिषदको अपने हाथमें लेकर उसको अपना देवता मानते हैं, किन्तु जैन धर्मके विष वेगके साथ चलाना चाहिये । यमें कुछ नहीं जानते। पता चलता है कि यह उपदेशक नियत किये जावें, पाठशालाएं कुछ समय पूर्व जैन थे किन्तु जैनधर्मका संसर्ग स्थापित की जावें, जो पाठशाला स्थापित हो न रहनेसे वह अपनेको भूल गये हैं। श्रीमान् चुकी हैं उनको दृढ़ किया जावे, परोपकारार्थ जैन धर्मभूषण ब्रह्मचारी शीतलप्रसादनी तथा औषधालय भादि खोले जावें । उपदेशकीका कलकत्ता निवासी भाई वैजनाथजी सरावगी कार्य यदि हमारे त्यागी, महात्मा करें तो अच्छी आदिने उनके सुधारनेका कुछ प्रयत्न प्रारम्भ सफलता मिल सकती है क्योंकि सब बातोंकी किया है व उनके केन्द्रस्थानोंमें पाठशालायें अपेक्षा चारित्रका प्रभाव अधिक पड़ता है। स्थापित कराई हैं । इसका कुछ फल भी हुमा (ग) ऐसे बहुतसे स्थान हैं जहां पर दोचार है। उनका सविस्तर हाल मैं व्याख्यान बढ़ घर जैनियोंके थे किंतु जैन मंदिर आदि धर्म जानेके भयसे इस समय नहीं कहता। साधन न होनेसे और अनैनोंका अधिक संसर्ग इधर बरेली जिलामें एक रामनगर स्थान है रहने से अपने जैनत्वको मूलकर अन होगये हैं। जो कि पार्श्वनाथ भगवानकी केवलज्ञान भूमि ऐसे स्थानोंकी एक सूची तैयार की जाय और है । और अहिछत्रके नामसे प्रसिद्ध है वहां योग्य उपदेशकों एवं प्रभावशाली पुरुषों द्वारा आजकल कोई जैन नहीं रहता किन्तु रामनग- उन्हें पुनः जैनधर्मपर दृढ़ किया जावे । रमें रहनेवाली सब जातियां पार्श्वनाथ भगवा- (घ) एक ऐसा जैन इतिहास तैयार किया नको मानती तथा उनमें श्रद्धा भक्ति रखती हैं जाय कि जिसमें जैनधर्मका तुलनात्मक स्थान उनके बालकोंको जैन धर्मकी शिक्षा देने के लिये अन्य धर्मोकी अपेक्षा प्रत्येक समयका ज्ञात हो गत वर्ष पाठशाला खोली गई है और साप्ताहिक जावे । यह पुस्तक ऐतिहासिक दृष्टि से लिखी सभा स्थापित करादी गई है। इसी मासमें मैं जाय जिप्सको केवल भारतवर्षके ही विद्वान् नहीं भी महिछत्रके वार्षिक मेलेपर गया था, वे लोग किन्तु संसारभरके विद्वान् स्वीकार करें । यदि
SR No.543196
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size7 MB
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