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दिगम्बर जैन ।
[वर्ष १७
* वय : न ममा नकी तन मन ४-किसी संस्थाको स्थापित करना तो कोई
. कठिन कार्य नहीं है थोड़ेसे उत्साहमें नवीन
म त वर्ष दिए । महो- संस्था स्थापित होनाती है। किन्तु उत्तको है । . 4 त काल नवक्षित सुचारुरूपसे कार्य पथपर चलाना महत्कार्य है । युवकों और ना पीन पद्धति के अनुसार कार्य इतनी बड़ी भारतवर्षीय संस्थाको चलाने के लिये करनेवालों की कार्य प्रणाली में कुछ न कुछ मत- दो चार व्यक्तियोंसे काम नहीं हो सकता किंतु भेद चलता रहा। महासभाके गत दिल्ली सैकड़ों कार्यकर्ताओं और संगठनकी आवश्यकता अधिवेशनपर यह निश्चय ही होगया कि जिनके है। अब उत्साही नवयुवकों को कार्यक्षेत्रमें आकर हाथमें भाजकल महासभाकी वागडोर है वह न अपने उत्साहका परिचय देना चाहिये । अब तो शिक्षित युवकोंके साथ सहयोग करनेको ही आपके पास रुकावटका भी बहाना नहीं है। तैयार हैं और न महासभाके कार्यमें दूसरोंका परिषदके उद्देश्योंकी पूर्ति, समाज और धर्मका हाथवंटाना ही उन्हें इष्ट है यहां तक कि नातिके उत्थान कार्यकर्ताओंकी कर्मण्यतापर ही निर्भर है। वयोवृद्ध अनुभवी निःस्वार्थसेवी लाला चंपतरा- ५-समाजके सामने इस समय इतने कर्तव्य यनी बेरिस्टरको जैनगनट पत्रके सहायक संपादक उपस्थित हैं कि यदि केवल उनकी गणना ही होनेमें बड़ी २ अड़चनें डाली गई और दल- की जाय तो बहुतसा समय लग जाय । न वे बन्दी बनाकर प्रस्ताव रद्द करा दिया गया। सब विषय इस छोटे व्याख्यानमें कहे ही जा अन्तको यह विचार कर कि जातिके समस्त सकते हैं और न परिषद उनको एक साथ व्यक्तियोंको कार्य करनेके लिये क्षेत्र होना अपने हाथमें ले सकती है। अतएव मैं मुख्य र चाहिये, समाजके कुछ उत्साही अनुभवी विचा. दोचार बातें अपने विचारानुसार कहूंगा जिनके रशील महानुभावों के उद्योगसे इस परिषद्की अभावमें जैन समाजकी महाक्षति हो रही है स्थापना होगई।
और जिनपर समानकी भावी उन्नति निर्भर है। ___ महातभासे भी मेरा पुराना और घनिष्ट संबंध ६-सभ्यो ! किसी भी समानका उत्थान और है। मैं उसके जन्मकाल से उसे अपनाता और पतन उस समानकी भावी सन्तानकी योग्यता उससे सहानुभूति रखता आया हूं। मेरी तो अयोग्यतापर ही अवलंबित है। योग्यता शिक्षापर आन्तरिक भावना यही है कि ये दोनों संस्थायें निर्भर है। इस विषयमें जापान का जीताजागता जैन धर्मानुकूल जाति और धर्मकी उन्नतिमें ज्वलन्त दृष्टान्त आपके सन्मुख विद्यमान है। भग्रसर हों । मुझे आशा है कि यदि ये दोनों जापानियों की कुछ ही समयपूर्व कितनी गिरी सभाएं एक दुसरेके कार्यमें बाधा न डालकर अपने १ हुई दशा थी और अब क्यासे क्या हो रही कार्यको योग्य रीतिसे संपादन करती रहेंगों है । हमारी समानमें उच्च शिक्षाकी बड़ी मावतो फिर एक दिन दोनों का संगम हो जायगा। श्यकता है । प्रत्येक विषयके पूर्ण विद्वान होने